Wednesday, July 11, 2007

चन्द्र शेखर : एक राजनैतिक संत


चन्द्र शेखर : एक राजनैतिक संत
अनेक दिनों से जानकारी मिल रही थी कि अध्यक्ष जी (चन्द्रशेखर जी के चाहने वाले उन्हे इसी नाम से सम्बोधित करते थे) कुछ ज्यादा ही अस्वस्थ हैं.बार बार सोचता था के अगले रविवार भोन्डसी ( गुडगांव स्थित भारत यात्रा केन्द्र ) आश्रम जरूर जाऊंगा. अध्यक्ष जी के बारे में नियमित जानकारी के दो ही सूत्र थे -डा. सुब्रमण्यम स्वामी या सजपा की सचिव वसंता नन्द्कुमार. मेरा मोबाइल फोन खो जाने से वसंता का नम्बर मिलना मुश्किल हो रहा था, और डा.स्वामी ,सदैव की भांति इस वर्ष भी पढाने हार्वर्ड वि.वि. चले गये थे.

वही हुआ जिसका डर था. परसों रात टीवी से खबर हुई कि अध्यक्ष जी की हालत गंभीर है. और सुबह पता चला कि ... नही रहे.

इतवार का दिन था अत: ड्राइवर को नही आना था. पहले सोचा कि अकेला चला जाऊं पर यह सोचकर कि वी आई पी गणों के आने से साउथ एवेन्यू में भीड होगी, ड्राइवर को बुलवा लिया. तीन साउथ एवेन्यू पहुंचते ही सबसे पहले सुधीन्द्र भदौरिया दिखे. मैने उन्हे याद दिलाया कि 1986 में यहां सबसे पहले वही लेकर आये थे.य़ुवा लोक दल का मैं राष्ट्रीय सचिव था. सुधीन्द्र भदौरिया उस समय युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. फिर तो रोज़ का नियम बन गया. 7, जनतर मंतर से निकल कर हम सब युवा साथी सुधीन्द्र भदौरिया के साथ अध्यक्ष जी के पास पहुंच जाते. श्याम रज़क, सुमन,त्रिलोक त्यागी, दुश्यंत गिरि,भक्तचरण दास,बालू, ( और अन्य वे भी जो अब तक कई बार एम पी,एम एल ऎ,मंत्री बन चुके है..).
कभी कभी डा. सुब्रमण्यम स्वामी के साथ भी जाना हो जाता था. फिर डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने मुहिम चलायी कि लोकदल व जनता पार्टी का विलय होना चाहिये, अजीत सिंघ को जनता पार्टी का अध्यक्ष बना कर चन्द्र शेखर जी को प्रधान मंत्री बनाना है. कुछ लोगों ने ,जो चन्द्र शेखर जी के काफी करीब थे ,उन्होने विरोध करना शुरू किया और यह भी कानाफूसी की कि डा स्वामी उन्हे राजनैतिक रूप से खत्म कर देंगे यदि ऐसा हो गया तो. किंतु चन्द्र शेखर जी ने किसी की नही सुनी और एक सच्चे राजनैतिक संत की तरह अपने पद की कुरबानी के लिये तैयार हो गये.

फिर वीपी सिंह सामने आ गये. जनता दल की भूमिका बनने लगी थी. हम सब जानते थे कि चन्द्र शेखर जी मन से वी पी सिंह की अध्यक्षता हेतु तैयार नही होंगे. किंतु विपक्षी एकता एवम राष्ट्र के व्यापक हित में फिर एक बार वह मान गये और वी पी सिंह ने जनता दल की अध्यक्षता सम्हाल ली.
जब 1989 के आम चुनावों में जनता दल के संसदीय नेता पद का चुनाव आया तो जाहिर है पार्टी में अलग अलग राय के लोग थे. बैठक के एक दिन पहले सहमति बन गयी थी कि चौ.देवी लाल को नेता पद सौंपा जायेगा. किंतु संसद भवन के सेंट्रल हौल में सम्पन्न बैठक में जिस प्रकार चौ.देवी लाल को नेता चुने जाने के बाद नाटकीय रूप से पगड़ी वी पी सिंह के सर पर रख दी गयी वह अपने आप में एक ओछी राजनीतिक घटना थी जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है. ऐसी स्थिति में चन्द्रशेखर जैसा राजनैतिक संत ही इस गरल को पचा सकता था और वही उन्होने किया.

जैसा कि हम लोगों को अन्देशा था, वी पी सिंह की सरकार शुरू से ही डावांडोल रही. चन्द्रशेखर ने सरकार से दूरी ही बना रखी थी. अध्य़क्ष जी के नेतृत्व के लिये सदैव तैयार कुछ नेताओं ने जनता पार्टी का रूप बना कर रखा ही था और जनता दल में हम लोग शामिल नही हुए थे. कही न कही एक उम्मीद थी कि अध्यक्ष जी जनता दल से अलग हो ही जायेंगे. जद से बाहर रहने वाले इस समूह में प्रमुख थे देवेगौडा, डा. स्वामी, सैयद शहाबुद्दिन,इन्दुभाई पटेल,सरोजिनी महिषी,जयंत मल्होत्रा आदि. आखिर हम लोगों की उम्मीद रंग लायी,और रथ यात्रा के प्रश्न पर वीपी सिंह की सरकार गिर गयी. पूरा अराजकता का माहौल था देश भर में. आरक्षण के प्रश्न पर दंगे हो रहे थे.छात्र आत्महत्याएं कर रहे थे.आड्वाणी की रथयात्रा ने माहौल को और भी गर्मा दिया था. ऐसी अराजक स्थिति में राजीव गान्धी सरकार बनाने के लिये तैयार नही थे. इस चुनौती को एक बार फिर स्वीकार किया ‘अजात्शत्रु’ चन्द्रशेखर ने और तुरंत ही पूरे अराजक महौल को ठंडा करने में सफलता प्राप्त की. उनकी सरकार की सफलता ने नये आयाम स्थापित किये. अराजक असम की सरकार , लिट्टे समर्थक द्रमुक की तमिल्नाडु सरकारों को बिना हिचक राष्ट्रहित में बर्खाश्त कर दिया. इजराइल से दोस्ती आगे बढाई, अमेरिकी विमानों को बिन हिचक ईन्धन देना स्वीकार किया, साथ ही फिलिस्तीनी नेता अराफात से भी सम्बन्ध रखे, और इस्राइल से भी. मनमोहन सिंह अवकाश प्राप्त करके घर बैठे थे, उन्हे सलाह्कार बनाकर आर्थिक सुधारों की नींव रखने का जिम्मा दिया, जिसे बाद में राव सरकार ने और आगे बढाया.
किंतु जब बिना किसी मुद्दे के राजीव गान्धी ने आंखे तरेरनी शुरू की तो अध्यक्ष जी से सहन नही हुआ. उन्होने काफी लचीलापन दिखाया था किंतु फिर भी बात नही बनी. आखिर 6 मार्च को उन्होने त्यागपत्र दे दिया. मॆं उस समय लोकसभा की अधिकारी दीर्घा से उनका भाव पूर्ण भाषण सुन रहा था. मेरे अनेक मित्र ऊपर पत्रकार दीर्घा में थे जिन्होने बताया कि इतना सन्नाटा संसद की किसी भी बैठक में नही देखा गया जितना उस दिन था. सब सन्न थे. मानो सांप सूंघ गया हो. मुझे याद है कि उस रात सम्झौते के बहुत प्रयास हुए जो लग्भग पूरी रात चले. किंतु चन्द्रशेखर यहां गच्चा खा गये. वे उन लोगों की बातों में आ गये जिन्हे वे अपना बहुत करीबी मानते थे . समय गवाह है कि सत्ता से अलग होते ही चन्द्रशेखर का साथ सबसे पहले छोडने वालों मे यही लोग थे , जिन्होने त्यागपत्र देने के लिये उकसाया था. अध्यक्ष जी को गुमराह करने वालों मे जो भी थे, वे बहुत दिनों तक उनके साथ नही रहे और सत्ता के बाहर होते ही साथ छोड गये. चन्द्र शेखर इतने उदार मना थे कि उन्होने साथ छोड गये लोगों का भी बुरा नही माना. हां हाजरी लगाने ये लोग फिर भी यदा कदा तीन साउथ एवेन्यू जाते रहते थे. आखिर वे एक सच्चे राजनैतिक संत थे और अपने राज नैतिक प्रतिद्वन्दियों को भी पूरा सम्मान देते थे.

रविवार को जब तीन साउथ एवेन्यू गया तो सबको वहां देखा, जिनकी राजनीति अध्यक्ष जी की छत्रछाया में विकसित,पल्लवित,पुष्पित हुई. एक पूरा विकसित सुवासित चमन वहां गुल्ज़ार हो रहा था किंतु इस चमन का असली माली ,भोंडसी का संत बहुत दूर से यह नज़ारा देख रहा था.
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि

4 comments:

Sanjay Tiwari said...

हमारी ओर से भी श्रद्धांजलि.

Bhaskar Lakshakar said...

मै पहली बार आपके ब्लॉग से वाकि़फ़ हुआ...चन्द्रशेखर जी के बारे इतनी सटीक और निकट दॄष्टि वाली श्रद्धान्जलि के लिए धन्यवाद..मन भीग सा जाता है उस महान व्यक्तित्व का स्मरण करके/ काले रंग में डूबे राजनेताओं के बीच उजली खादी से व्यक्तित्व को प्रणाम

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

राजनीति में संत तो खैर कोई नहीं होता, लेकिन हाँ चंद्रशेखर एक भलेमानुस जरूर थे. सबसे बड़ी बात यह कि वह एक ऐसे राजनेता थे, जैसे राजनेता की आज जरूरत है और उनकी कमी हम सबको खलती रहेगी.

Manas Path said...

हा भाई कलयुगी सत भोडसी आश्रम दिल्ली के नोएडा मोड का पेट्रोल पप और करोडो रुपये के जेपी फ़ाउडेशन पर कब्जा . ये सब सतई के ही लक्षण है
धन्यवाद