Saturday, July 7, 2007

बारिश के मौसम में धूप की गज़ल


पेड़ से छन कर आई धूप


हरी घास पर छाई धूप .



बादल का गर्जन सुनकर,


बारिश को ललचाई धूप.



एक पुराने गाने सी


लगती सुनी सुनाई धूप



जाड़ों में अच्छी लगती है


गरम गरम अलसाई धूप.



अपनी छवि को देख नदी में,


खुद से ही शर्माई धूप .



नदी किनारे रेत पे गिरकर ,


लेती है अंगड़ाई धूप.



खूब फुदकती टुकड़ा टुकड़ा


बादल ने सरकाई धूप.



इन्द्रधनुष के संतूरों पर


सबने खूब बजाई धूप.



नंगे पर्वत, सोती नदिया


देख देख बौराई धूप.



खेत में बिखरे दाने दीखे,


फूली नहीं समाई धूप.




बारिश के मौसम में अक्सर


पड़ती नहीं दिखाई धूप.









3 comments:

Divine India said...

गज़ल तो यह है ही पूरा संगीत बिखेरा है भाव का…बहुत उम्दा रचना पढ़ने का मौका मिला काफी दिनों बाद…। बधाई स्वीकारें!!!

Udan Tashtari said...

बहुत खूब, अरविंद भाई. सुन्दर प्रवाहमय.

Kavi Kulwant said...

धूपनुमा कविता खूब लगी..सुंदर