चन्द्र शेखर जी का जानाअनेक दिनों से जानकारी मिल रही थी कि अध्यक्ष जी (चन्द्रशेखर जी के चाहने वाले उन्हे इसी नाम से सम्बोधित करते थे) कुछ ज्यादा ही अस्वस्थ हैं.बार बार सोचता था के अगले रविवार भोन्डसी ( गुडगांव स्थित भारत यात्रा केन्द्र ) आश्रम जरूर जाऊंगा. अध्यक्ष जी के बारे में नियमित जानकारी के दो ही सूत्र थे -डा. सुब्रमण्यम स्वामी या सजपा की सचिव वसंता नन्द्कुमार. मेरा मोबाइल फोन खो जाने से वसंता का नम्बर मिलना मुश्किल हो रहा था, और डा.स्वामी ,सदैव की भांति इस वर्ष भी पढाने हार्वर्ड वि.वि. चले गये थे.
वही हुआ जिसका डर था. परसों रात टीवी से खबर हुई कि अध्यक्ष जी की हालत गंभीर है. और सुबह पता चला कि ... नही रहे.
इतवार का दिन था अत: ड्राइवर को नही आना था. पहले सोचा कि अकेला चला जाऊं पर यह सोच्कर कि वी आई पी गणों के आने से साउथ एवेन्यू में भीड होगी, ड्राइवर को बुलवा लिया. तीन साउथ एवेन्यू पहुंचते ही सबसे पहले सुधीन्द्र भदौरिया दिखे. मैने उन्हे याद दिलाया कि 1986 में यहां सबसे पहले वही लेकर आये थे.य़ुवा लोक दल का मैं राष्ट्रीय सचिव था. सुधीन्द्र भदौरिया उस समय युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे. फिर तो रोज़ का नियम बन गया. 7, जनतर मंतर से निकल कर हम सब युवा साथी सुधीन्द्र भदौरिया के साथ अध्यक्ष जी के पास पहुंच जाते. श्याम रज़क, सुमन,त्रिलोक त्यागी, दुश्यंत गिरि,भक्तचरण दास,बालू, ( और अन्य वे भी जो अब तक एम पी,एम एल ऎ,मंत्री बन चुके है..).
कभी कभी डा. सुब्रमण्यम स्वामी के साथ भी जाना हो जाता था. फिर डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने मुहिम चलायी कि लोक्दल व जनता पार्टी का विलय होना चाहिये, अजीत सिंघ को जनता पार्टी का अध्यक्ष बना कर चन्द्र शेखर जी को प्रधान मंत्री बनाना है. कुछ लोगों ने जो चन्द्र शेखर जी के काफी करीब थे उन्होने विरोध करना शुरू किया और यह भी कानाफूसी की कि डा स्वामी उन्हे राजनैतिक रूप से खत्म कर देंगे यदि ऐसा हो गया तो. किंतु चन्द्र शेखर जी ने किसी की नही सुनी और एक सच्चे राजनैतिक संत की तरह अपने पद की कुरबानी के लिये तैयार हो गये.
फिर वीपी सिंह सामने आ गये. जनता दल की भूमिका बनने लगी थी. हम सब जानते थे कि चन्द्र शेखर जी
मन से वी पी सिंह की अध्यक्षता में तैयार नही होंगे.
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