Friday, May 25, 2012


महंगौ है गऔ तेल  

फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो  अब नांय बैठौंगो , कार में अब नांय बैठौंगो फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगौ.

·         तेल कौ पैसा मोपे नांय,  अब हमें कौउ पूछत नांय, कार अब हमें सुहावत नांय                 देख देख कें कुढ़ों  जाय में कैंसे बैठौंगो ?

·फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो



·         संग मेरे ठाड़ी गूजरिया, पहन के धानी चूनरिया, के पिक्चर ले चल सांवरिया

·पैदल कैंसे जांऊ मैं पिक्चर  घर ई बैठौंगो,                                             फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो                                                                                                                     

·         चीख रये सब टीवी अखबार, बढ़ गयी महंगाई दस बार, जे गूंगी बेहरी है सरकार             जनता बिल्कुल्ल है लाचार, देश में मच गऔ हाहाकार                                     दफ्तर मेरो दूर मैं, रस्ता कैसे पाटौंगौ ?

·फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो



·          कि नेता मज़े करें दिन रात , विन्हे महंगाई नांय सतात, कीमतें फिर फिर हैं बढ़ जात,        अबकी बारी सोच लयौ है वोट ना डारोंगौ  

फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो  अब नांय बैठौंगो,कार में अब नांय बैठौंगो  फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगौ.















Sunday, May 13, 2012

आइये मां को याद करें




मातृ दिवस यानी अंग्रेज़ी के Mothers day पर आज अपने ब्लोग पर पूर्व प्रकाशित रचना "मां" प्रस्तुत कर रहा हूं. ,जो वर्षों पहले मेरे संग्रह " चीखता है मन " में प्रकाशित हुई थी. सभी माओं व उनकी संतानों के अमर सम्बन्ध को समर्पित.
अपने आगोशोँ मे लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ
गर्मी हो तो ठंडक देती, जाडोँ मेँ गर्माती माँ
हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती
घंटोँ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ

अपने सुख दुख मेँ चुप रहती शिकन न माथे पर लाती
अपना आंचल गीला करके ,हमको रहे हंसाती माँ

क्या दुनिया, भगवान कौन है, शब्द और अक्षर है क्या
अपना ज्ञान हमेँ दे देती ,बोली हमे सिखाती माँ

पहले चलना घुट्ने घुट्ने और खड़े हो जाना फिर
बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठलाती माँ

उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर,
खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां

जब होती है दूर हृदय से प्यार बरसता रहता है
उसकी याद बहुत आती है, आंखे नम कर जाती मां

–अरविन्द चतुर्वेदी

प्रस्तुतकर्ता डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi पर 2:10:00 AM

पुनश्च: दो वर्षों पूर्व जब यह रचना मैने अपने ब्लोग पर प्रस्तुत की थी तो तीन प्रतिक्रियायें भी प्राप्त हुई थीं. हूबहू प्रस्तुत हैं :
  3 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari said... बहुत आभार अरविन्द भाई इस रचना को प्रस्तुत करने का. माँ के लिए तो जितना भी हम आप लिखें, कम ही होगा. नमन! January 31, 2010 4:38 AM


  संगीता पुरी said...
बहुत सुंदर रचना है .. मां पर जितना कहा जाए कम ही होगा !! January 31, 2010 5:35 AM


  निर्मला कपिला said...

उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर, खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां. माँ आगे निशब्द हो जाती हूँ उसका आकार इतना बडा है कि सभी शब्द उसमे समा जाते हैं सुन्दर रचना धन्यवाद्