Wednesday, July 18, 2007

14 जुलाई की ब्लौगर मीट:एक और अ-रपट्

इत्ती सारी रपटें तो पैले ई पौंच गयी.सबन नें पढ भी लयी. हज़म ऊ कर लयी. फिर भी का जर्रूरत आन पडी अ-रपट लिक्खन की ?
तो भैया जी ,बात ऐसी ही कि जो पेट में पडत है ,बाय .
बाहर तो आनें ई चिईयें.
जो अन्दर की बात बाहर नायं निकरी तो है जय्ये बदहज़मी.
ताई मारें हमने सोची कि ..गुरु है जाओ शुरू...

बात शुरू कत्त है कौन कौन लये था 'हिडेन अजेंडा'.

एक ने कह दई कि सबतों बढिया ब्लौग लिखन् वारे है : सारथी उर्फ जे सी शाश्त्री फिलिप.बडी मेहनत कत्त हैं परंतु लिखतई जाय रहे है. थकत नही है.दूसरे ने बोली सच्ची बात बहिनी. बिल्कुल सच्ची.
अब जब दो बहिनें काऊ की तारीफ कर दें तो तीसरे भैया का सुन सकत है? भैया ने सुनी और फर्मान जारी कर दओ कि वे तो ईसाइयत को प्रचार करवे वाले है. चौथे भैया बोले 'ना भई ,जे सही (नही है. और फिर गर सही है तो भी क्या, हम क्या किसी से उसका धरम प्पूछ कर बात करेंगे .बात आई गई है गयी. जी तो अच्छो भयो कि ज्यादा लोग सुन नाई पाये, नई तो शायद है जाती वही पर ...)

एक ने' जीतु भाई नही आये 'की टिप्पणी की तो दूसरा बोलन लगे. अच्छा हुआ ,नही तो पूरा फोकस उन्ही पे होता, हमें कौन पूछता?

एक ने लडू बांटे ,खुशी की बात थी. दूसरे ने तीसरे से कहा, भैया जी मत खाना, मेरे ड्ब्बे क्र लड्डू में 'फफून्द' लगी है.
देखो कही ,तुम्हारे डब्बे में भी तो ....

हम साम्प्रदायिकता की कितनी भी आलोचना करें. 'लीग' को कितना भी कोसें. हम में से हरेक के अन्दर एक 'लीगी' छुपा हुआ है. ऎक बहेन जी बडी शान से से कह रही थी आज मेरी चार छत्तीस्गढियोंसे मुलकात हुई.( असली पहचान छुपाने के लिये ,प्रदेश का नाम बदल दिया गया है)फ़िर एक भैया बोले कि मेरी बेटी का नाम वो है ,जो आपके प्रदेश में एक फूल होता है.

में तो पहली बार किसी ऐसी मीट में गया था. कई अन्य भी कई और अन्यों से अपरिचित थे. एक बहिनी का परिचय तमाम अन्य से यों हुआ : सफेद शिर्ट मे'फलाने ' है, उनके बगल में 'ढिकाने'. और जो उनके पीछे दिख नही पा रहे वे है 'एक्स', बगल में जिनका जूता ज्यादा चमक रहा है वे हैं 'वायी', . एक नये आगंतुक बोले, " मे हूं'ज़ेड' मेरे ब्लौग का नाम....." .
तब तक बहिनी सब नामों को भूल भी चुकी थी, बोली," चलो कोई बात नही , चार को पहचानती हू और चार का नाम जानती हू,इतना काफी है".

एक सुजान ब्लौगर जब हिन्दी के स्पीच रिकग्नीशन् ( आवाज पहचानने वाला )सोफ्ट्वेयर के बारे में बताने लगे तो दूसरे टांग घुस्साऊ मास्टेर साहेब से चुप ना रहा गया. उन्होने कुछ विपरीत टिप्पणी की. पहले वाले समझ गये और नपी तुली हिन्दी में आखिर डांट पिलायी तब जाकर मास्टेर साहेब चुपा गये.

......
अंत में जब सब जाने वाले थे तब प्रवेश हुआ ... अब जाने भी दो यारो ( जब अभी तक की रपट में किसी का नाम नही आया ,तो अब आखिर में क्यों ?

कुल मिला कर बढिया रहा मामला.

15 comments:

अनूप शुक्ल said...

जे बात् कही सच्ची-सच्ची, खरी-खरी।

मसिजीवी said...

:)

Anonymous said...

eeजेई बात गुरु, भौत मज़ा आयो, सब लिखवैय्या और पढ़्बैय्यन की सिगरी बातें हमऊ ने सुनी हती। अपने जितू भय्या तो ज्ञानी पंडा के हाथ के पानी पीबे के कारन कानपुर मेंई सपट लिये। जे सुसर के दिल्ली बारे तो एकदम घदा है।
इकल्ली शानू मेमसाब ने खरी खरी बताई पर अमित बाबा बोले जो कन्नो है सो कल्लेऊ, का उखाड़ोगे सो उखाड़लेऊ।
सो अरबिन्द भैय्या हम्मने तो सोचलई है कि भाड़ मे जाय तुमाई जे सब धरम संखला, हत्तेरे की।
तुमाई जे रपट भौत अच्छी लगी

Anonymous said...

सही लिखा आपने :)

mamta said...

आपकी अ-रपट से बाक़ी बची हुई जानकारी भी मिल गयी।

Udan Tashtari said...

बड़ी जानकारी भरी पोस्ट रही. बधाई. :)

36solutions said...

वाह अरविन्द जी लपेट लिये ना हम छत्तीसगढियो को. अब मेम साहिबा रखी होंगी मोगरा फूल का नाम तब तो सोरा आने फिट बैठ जायेगा आकडा. मजा आ गया रपट इस तरह पढ्कर . धन्यवाद

शैलेश भारतवासी said...

हमऊ सोचतS रहे कि मरदवा ४ दिन गुजर गवा मगर अरबिनद जीवा ना बोले, आये ना आपना पर, ।

काकेश said...

इहो बढ़िया रही..!!

Sanjeet Tripathi said...

बने बताएस भैय्या! ओ का हे न कि अब तेहां छत्तीसगढ़िया के बात कर देस तो मेहा छत्तीसगढ़ी मेच लिखत हावंव, समझ में नई आही तो नीरज दीवान ले पूछ लेबे!!
बने लिखे हस गा!!

संजय बेंगाणी said...

ई भासा समझने के लिए थोड़ा धीमे धीमे पढ़ना पढ़ा, बाकी आप तो बहनो की बातों पर कुछ ज्यादा ही कान देते हो. :)


ये अंदाजे बयाँ भी खुब रहा.

Mohinder56 said...

जे हुई न बात..हम सोच लिये हैं अरबिन्द भैया अगली बार हमहूं मूंह न खोलेंगे.. और खोलेंगे तो सिर्फ़ खावन पीवन के वास्ते.. बोलन के वास्ते बिलकुल नाहिं

सुनीता शानू said...
This comment has been removed by the author.
सुनीता शानू said...

आप तो छुपे रूस्तम निकले..इसीलिये चुपचाप बैठे थे,अब समझ में आया...

सुनीता(शानू)

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

अब तो अगली ऐसी मीट की तैयारी है. बस तारीख का इंतज़ार है.
अपनी तो ,चिट्ठाकर गणो, तक़नीकी पक्ष में कुछ चवन्नियां कम है, तो बस ऐसे ऊल जलूल प्रयोग काम आ जाते है.