Thursday, December 10, 2009

राज्य पुनर्गठन आयोग गठित किया जाये और छोटे छोटे 50 राज्य बनाये जायें

लगता है अब कांग्रेस ने मन बना लिया है कि आन्ध्र प्रदेश में से तेलंगाना को पृथक राज्य के रूप में अलग किया जायेगा. इस मुद्दे पर अन्य राजनैतिक पार्टियों का रुख भी सकारात्मक है अत:देर-सबेर तेलंगाना भारतीय संघ का 29वं राज्य बन ही जायेगा.
अनेक वर्षों से तेलंगाना राज्य की मांग उठाई जा रही थी. नौ वर्ष पूर्व बने झारखंड, उत्तराखंड व छतीसगढ़ के लिये हुए आन्दोलनों से कहीं पहले से साठ के दशक से ही यह मांग समय समय पर आन्दोलन मे परिवर्तित होती रही थी.

जैसा पिछले दशक मे गठित नये राज्यों का मामला था, उसी प्रकार तेलंगाना का गठन भी वर्तमान प्रदेश के एक हिस्से को अलग कर के ही होगा. 1957 में जब प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग बना था ,तब उसकी मुख्य शिफारिश भाषाई आधार पर ही पुनर्गठन करना था. संयुक्त प्रांत ,मध्य भारत, बम्बई ,मैसूर ,मद्रास आदि तब के राज्यों के विभाजन के प्रथम स्वर भी भाषाई आधार पर ही उभरे थे अत: उस समय यह कदम सही कहा जा सकता था. बाद के दिनों भी जब भी पृथक राज्य की मांगे उठी हैं ,उनका आधार निर्विवाद रूप से आर्थिक विषमता ही रहा है और भाषा इसमें कभी प्रमुख मुद्दा नहीं रही.

यह सही है कि छोटे छोटे प्रदेश प्रशासनिक दृष्टि से अधिक सफल रहे हैं. बडे राज्य़ों में आर्थिक विषमता होना स्वाभाविक ही कहा जायेगा. विभाजन से पहले उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता था( आकार को देखते हुए शायद आज भी सच है), कि मुख्यमंत्री को तो सभी ज़िलों के नाम भी नहीं पता होते.उत्तर प्रदेश मे अभी भी बुन्देल्खंड, बृज प्रदेश,अवध की मांग है. मध्य प्रदेश मे मालवा क्षेत्र हेतु अलग राज्य का प्रश्न उठता है. महाराष्ट्र में विदर्भ व मराठ्वाडा को अलग करने के लिये आन्दोलन चलते रहे हैं. अभी भी गोरखालैंड, कुर्ग ( कोडगु), आदि प्रदेशों की मांगे विकास व सांस्कृतिक विषमता को लेकर उठती रही हैं

लोकनायक जय प्रकाश नारायण देश में 50 छोटे छोटे प्रदेशों के पक्ष में थे.किंतु मात्र भाषा को आधार मानकर नहीं बल्कि विकास को आधार मानकर. अब इस मुद्दे पर गौर करने का समय आ गया है.क्षेत्रीय विषमता व सांस्क़ृतिक एकरूपता का भी ध्यान रखा जाना चाहिये. पिछले पुनर्गठन के समय यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाता तो झारखंड राज्य में कुछ( आदिवासी ) हिस्सा मध्य प्रदेश व ओडीशा से भी मिलाया जाना चाहिये था. उसी प्रकार राजस्थान से भरतपुर ,मध्य प्रदेश से भिंड ,मुरैना,ग्वालियर आदि को मिलाकर उत्तर प्रदेश में बृज प्रदेश का निर्माण किया जा सकता है.

समय आ गया है कि राज्य पुनर्गठन आयोग गठित किया जाये और आर्थिक,सांस्कृतिक,भौगोलिक आदि आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाये. छोटे छोटे 50 राज्य विकास के पहिये को गति प्रदान करेंगे ,ऐसा मेरा मानना है .

Saturday, November 21, 2009

ऐसे काले सर्पों का सन्यास ज़रूरी है

दीवारों से टकराने का अभ्यास ज़रूरी है
पत्थर को पिघलाने का प्रयास ज़रूरी है.


धार नदी की मुड़ सकती है, बस दो हाथों से
अपने हाथों पर ऐसा विश्वास ज़रूरी है.


तृप्त नहीं होती जो मंज़िल को पा जाने तक़
मंज़िल के हर राही को वह प्यास ज़रूरी है.


बीच सफर से जो मुड़ जाये वापस जाने को
ऐसे सारे लोगों का उपहास ज़रूरी है.


मार कुंडली जो बैठे सम्पूर्ण व्यवस्था पर
ऐसे काले सर्पों का सन्यास ज़रूरी है.


हारे थके बदन में फिर से जोश जगाने को,
थोड़े आंसू, कुछ कुंठा ,संत्रास ज़रूरी है.


बहुत अकेले से लगते हैं ये टेढ़े रस्ते ,
एक जीवन साथी का होना पास ज़रूरी है.


सभी गलों से इसके ही स्वर गूंजेंगे कल से
गज़ल लिखे जाने तक़ ये अहसास ज़रूरी है.

Wednesday, November 18, 2009

संतान के लिये अब ओनलाइन पूजा , मात्र 3100 रुपयों में.

गये वे ज़माने जब पुरोहित,पंडित ,पुजारी अपने अपने यजमानों को ढूंढने के लिये या तो मन्दिर मे जाकर ठीया जमाते थे या अपने पुश्तैनी यजमानों के घर के चक्कर लगाते थे. अब ज़माना हाई फाई हो गया है तो पंडित-पुरोहित भी कैसे पीछे रहते.

अब तो टेलीविज़न चैनल घर बैठे ईश्वर के दर्शन कराने को तैयार हैं और आपके नाम के संकल्प के माध्यम से ओनलाइन पूजा- थाली भी अर्पित कर रहे हैं . अब हवन करते हाथ जलाने की आवश्यकता नहीं और न ही चिंता कि आम की लकडी कहां से लायेंगे और पुरोहित कहां ढूंढेंगे. सब कुछ ओनलाइन उपलब्ध है.

मन्दिरों ,विशेषकर बडे मन्दिरों ,की अपनी अपनी वेबसाइट हैं ,जहां न केवल आप दर्शन कर सकते हैं बल्कि चढ़ावा भी आपके नाम से पंजीकृत हो कर लगाया जा सकता है.

कल 19 नवम्बर को एक विशेष पूजा का अवसर है, मुझे एक ई-मेल से जानकारी प्राप्त हुई. ये है संतान-गोपाल् पूजा , जो नि:संतान दम्पत्तियों को संतान दिलाने हेतु की जा रही है. यही नहीं बल्कि मेल में दावा है कि यदि संतानोत्पत्ति में किसी प्रकार की बाधा है तो दूर हो जायेगी तथा इस पूजा के फलस्वरूप स्वस्थ व बुद्धिमान् संतान जन्म लेगी.

इस विज्ञापन नुमा मेल में कहा गया है इस पूजा में पहले पुरुष सूक्त का पाठ होता है फिर भगवान विष्णु की पूजा गोपाल रूप में की जाती है तथा संतान गोपाल मूल मंत्र का जाप होता है.

फीस है मात्र 67.40 अमरीकी डालर अथवा 3100 रुपये.

( इस जानकारी का उद्देश्य इस पूजा का विज्ञापन नहीं है ,परंतु हिन्दू रीति-रिवाज़ों,पूजा-पाठ में आये तकनीकी बदलावों की सूचना भर है. इसे अन्यथा ना लें. और एक स्पष्टीकरण :मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है यदि आपने ओनलाइन पूजा का सहारा लिया तो. )

Tuesday, November 17, 2009

राष्ट्रवादी मराठी या मराठी राष्ट्रवादी ?

आजकल समाचार पढ़ना या सुनना बोझीला सा लगने लगा है. समाचार जानकारी कम देते हैं,विचलित अधिक करते है . यह सिलसिला काफी लम्बे अर्से से ज़ारी है. राजनीतिक समाचार इतना क्षोभ भर देते हैं कि उससे बाहर आना मुश्किल हो जाता है. राज ठाकरे ,मनसे, शिवसेना आदि का अर्थ ज़हर बुझी खबर हो गया है.

सचिन तेन्दुलकर के क्रिकेट जीवन के दो दशक पूरे करने पर मीडिया की चर्चा अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि बाला साहेब अपने आप को 'सुपर मराठा' साबित करने के चक्कर में राज ठाकरे से भी आगे निकल गये. बेचारे सचिन तो बस अपने सीधे-साधे उद्गार व्यक्त किये थे कि वह भारतीय पहले हैं और महाराष्ट्रियन बाद में. और बस तैश में आ गये बाला साहेब ठाकरे.

क्या एक् महाराष्ट्रियन भारतीय नहीं कहलायेगा? पहले देश है या प्रदेश ? किस सीमा तक जायेंगे ये छिछोरे राजनीतिक नौटंकीबाज़?

वक़्त आ गया है कि राष्ट्रवादी तत्वों को जाग जाना चाहिये. विशेषकर महाराष्ट्रियन राष्ट्रवादियों को. अब चुप बैठने का वक़्त नहीं है. उठो और बता दो कि हम शहर ,प्रांत/प्रदेश ,भाषा से ऊपर हैं .देश पहले है.

Wednesday, September 30, 2009

मुझे बरमूडा याद आ गया

हम दुआ कर रहे हैं कि बुधवार को होने वाले मैच में पाकिस्तान जीत जाये. क्यों कि इसी जीत से भारत के लिये आगे की कोई सम्भावना बचती है ,वरना तो जै राम जी की.

क्या बिडम्बना है. कल तक हम कसमें खा रहे थे, हवन ,यज्ञ, तपस्या कुछ भी करने को तैयार थे कि 26 सितम्बर को पाकिस्तान हार जाये.आज हम सभी कुछ पाकिस्तान के हक़ में देखना चाह रहे हैं कि वह कल आस्ट्रेलिया को हरा दे.

इस प्रसंग से मुझे पिछला वर्ल्ड कप याद आ गया जब हम शुरुवात में ही बंगलादेश से हार गये थे. बाद में एक ही सूरत बची थी और हम दुआ कर रहे थे कि काश! बरमूडा-बंगलादेश के मैच में बरमूडा जीत जाये ( वही बरमूडा ,जिसे हराकर भारत ने 413 रन का रिकार्ड बनाया था).

मुझे याद है कि उस दिन आल इंडिया रेडिओ में कविता कार्यक्रम ( हंसते -हंसाते) की रिकौर्डिंग थी, और मैने कविता पढ़ी थे - " गर्दिश में है देश हमारा बरमूडा, कर दे बेडा पार हमारा बरमूडा" .


कल का बरमूडा ,आज का पाकिस्तान .

Monday, September 28, 2009

ब्लोगवाणी का मामला इमोशनलात्मक हो गया है ,आइये इन्हे मनायें

आज दो दिनों के बाद जब देखना चाहा कि ब्लोगजगत में नया क्या है, तो ब्लोगवाणी का पेज़ नहीं खुला . किंतु यह क्या ?ब्लोगवाणी के पृष्ठ पर एक घोषणा पढ़ी तो माथा चकराया. तुरंत चिट्ठाजगत लोग ओन किया. अविनाश वाचस्पति की रपट पर ध्यान गया. बात पूरी तो नहीं पर कुछ कुछ समझ में आयी.

मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार ,प्रसार व प्रगति में ब्लोगवाणी की भूमिका अद्वितीय है. मैने दो सिर्फ दो वर्ष पहले ही (हिन्दी) ब्लोगिंग शुरू की थी और इन दो वर्षों में मैने हिन्दी चिट्ठाकारी ( ब्लोगिंग) का निरंतर विकास देखा है. सिर्फ इसमें ब्लोगरों की संख्या ही कई गुनी नहीं बल्कि तकनीक में भी ज़ोररदार सुधार हुआ है. अक्षरग्राम, नारद ,चिट्ठाजगत व ब्लोगवाणी ,इन चारों ने जो काम किया उसे कम करके नहीं आंका जा सकता. आज जो सर्वाधिक प्रयोग होने वाले दो एग्ग्रीगेटर हैं उनमें ब्लोगवाणी व चिट्ठाजगत ही हैं. मेरे पास आंकडे नहीं है लेकिन मेरा अन्दाज़ है कि ब्लोगवाणी अधिक लोकप्रिय है.दो वर्ष पहले मैने अपने ब्लोग पर सर्वेक्षण किया था ,तब 49% लोगों ने बताया था कि वह सिर्फ ब्लोगवाणी का ही प्रयोग करते है( देखें पूरी रपट )

मुझे याद है कि संतनगर ,ईस्ट ओफ कैलाश ,नई दिल्ली में लगभग दो वर्ष पहले एक ब्लोग्गर मीट हुई थी ( जो मेरे विचार से अब तक हुई सबसे महत्वपूर्ण हिन्दी ब्लोगर मीट थी) . वह ब्लोगवाणी के कार्यालय में हुई थी ( हालां कि इसका आयोजन तो कनाट प्लेस में था परंतु भीड़ बढने से स्थान परिवर्तित हुआ था). उस मीटिंग में भी ( दूसरे सन्दर्भ में)एग्ग्रीगेटर की भूमिका पर एक सार्थक बहस हुई थी. उस बैठक में -अफलातून, मसिजीवी, संजय बेंगाणी, नीलिमा, मैथिली शरण,घुघूति बासूति, पंगेबाज ( अरुन अरोरा),आलोक पुराणिक,शैलेश भारतवासी,सुनीता चोटिया, सृजनशिल्पी,काकेश,मोहिन्दर कुमार, नीरज, सुरेश यादव, जगदीश भाटिया ,(कई नाम भूल रहा हूं) जैसे प्रमुख चिट्ठाकार मौज़ूद थे. ( देखें मेरी एक रपट ) हालां कि उस समय भी हिन्दी चिट्ठाकारी ( ब्लोगिंग) को लेकर ऐसे ही प्रश्न थे जो नारद /अक्षरग्राम /ब्लोगवाणी को लेकर उठे थे. उस समय बाज़ारवाद जैसे मुहावरे भी उछले थे. कमोबेश आज भी मुद्दे वैसे ही हैं . तर्क़ भी वही हैं.

ब्लोगवाणी या अन्य कोई भी सेवा या व्यापार ( जाकी रही भावना जैसी...) के इरादे से आता है तो उसका स्वागत होना चाहिये. यदि किसी के योगदन से हिन्दी को, या हिन्दी चिट्ठाकारी ( ब्लोगिंग) को लाभ पहुंचता है तो हमें शुद्ध अंत:करण से उसकी सराहना करना चाहिये.

कमियां हों तो बताना भी चाहिये. किसी को बुरा भी लगना नहीं चाहिये. लोकतंत्र में हर कोई कुछ भी कहने को स्वतंत्र है.
बात दिल पे नहीं लेनी चाहिये.

'पसन्द' को लेकर उठे प्रश्न ज़ायज़ हैं . ब्लोगवाणी को बुरा नहीं मानना चाहिये था. बस अपना स्पष्टीकरण दे देते. काफी होता . प्रश्नकर्ता की शंका भी मिट जाती.

लगता है कि ब्लोगवाणी ने इसे 'इमोशनलात्मक'बना दिया है.
आइये मैथिली जी व सिरिल जी को हम सब मनायें और ब्लोगवाणी को दुबारा चालू करवाने का प्रयास करें

Sunday, September 20, 2009

क्या आप भी कांफ्रेंस के लिए ( मुफ्त में) कनाडा व अफ्रीका चलेंगे?

दिसम्बर के पहले सप्ताह में ओंटारिओ कनाडा व अफ्रिका में दो अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस होने वाली है. पहली अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में मुद्दा है बेरोज़गारी जो 1 से 4 दिसम्बर तक बताई गयी है.दूसरी कांफ्रेंस केप-वर्डे द्वीप ( पश्चिम अफ्रीका) में 7 से 11 दिसम्बर तक होगी. मज़े की बात है कि कांफ्रेंस के आयोजक सारी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार हैं . आने जाने का खर्चा भी और कांफ्रेंस के दौरान खाना-पीना रहना सब उनके जिम्मे.
और तो और आयोजक तो तीन से लेकर दस लोगों को साथ लाने को भी कह रहे हैं.

नहीं यह अप्रैल फूल नहीं है. ऐसा एक आमंत्रण मुझे ई-मेल से प्राप्त हुआ है और सूचना है कि मेरा पता आयोजकों को देश के किसी युवा संघ्टन ने भेजा है.

पिछले छह महीने में इस प्रकार की अलग अलग विषयों /मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस हो रही हैं ऐसा मुझे इन छह महीनों में प्राप्त आमंत्रणों से पता चला है.

कहने की आवश्यकता नहीं है कि मैं अभी तक ऐसे सारे मुफ्त सैर सपाटा वाले आमंत्रणों को रद्दी की टोकरी के हवाले करता आ रहा हूं. पूरी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई दरिया दिल संघटन होगा जो इस प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस आयोजित करके सभी जाने- अंजाने लोगों को ( मुझे भी )यार-दोस्तों के साथ इस तरह बुलायेगा.
ज़ाहिर है कि इसमें बड़ी चाल है .

कहीं आपको और आपके इष्ट मित्रों को तो इस तरह के प्रलोभन वाले आमंत्रण नहीं मिले हैं? मेरी तो राय कि इन पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया जाये.
आखिर नट्वरलाल कहां नहीं हैं ?

Monday, September 14, 2009

बम्बई किसी के बाप की जागीर नहीं है

कुछ लोगों ने कसम खा रखी है कि वे नहीं सुधरेंगे. चर्चा में बने रहने के लिये राज ठाकरे जैसे (कथित) नेता ऊल-जलूल वक्तव्य देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं.
चिट्ठानामाके अनुसार एक बार फिर राज ठाकरे ने ज़हर उगला है और उत्तर भारतीयों से कहा कि वे बम्बई की राजनीति में हस्तक्षेप न करें और अपने आप को सिर्फ पानी-पूरी बेचने तक सीमित रखें.

कोई इस शख्स को समझाये कि ये दादागीरी की ज़ुबान न ही बोले तो श्रेयस्कर होगा. जब भी वह अदालत के समक्ष उपस्थित होते हैं तो माफी की मुद्रा में दिखायी देते हैं. फिर जब भी मीडिया उन्हे भूलने लगता है तब फिर वह कुछ अटपटा बयान देकर मीडिया का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते हैं.

जिन के विरुद्ध वह ज़हर उगल रहे हैं ,यदि वह भी ऐसी ही भाषा बोलने लगें तो क्या होगा? उत्तर भारतीयों के प्रति जिस प्रकार का दुर्व्यवहार बम्बई में हुआ है ,यदि उत्तर भारतीय भी बदला लेने पर उतर आयें तो क्या होगा ठाकरे जी? में ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि वह राज जैसे सिरफिरे व गुमराह व्यक्तियों को सद्बुद्धि प्रदान करे.

बस दो दुमदार दोहे इस विषय पर प्रस्तुत हैं:-

बिल्ली छोटे गांव की खुद को समझे शेर
सवा सेर आ जायेगा, हो जायेगी ढेर
कि सुन ले राज ठाकरे
मत अपनी जड़ें काट रे


बम्बई तो जागीर है भारत भर की आज
उल्टी गंगा मत बहा मूर्खों के सरताज
बडा पछताना होगा
बड़े घर जाना होगा

Sunday, September 13, 2009

आखिर इस ढोंग की ज़रूरत ही क्या थी ?

देश के अनेक भागों में सूखा पड़ रहा है. क़िसान आत्महत्या पर अभी भी मज़बूर हैं. ऐसे समय में सोनिया गान्धी द्वारा कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को दिये गये सरकारी खर्च में कमी लाने के निर्देशों का वाकई कितना असर होगा ,इसका अन्दाज़ लगाना मुश्किल नहीं है.

जैसे ही वित्त मंत्री प्रणव बाबू ने फरमान ज़ारी किया वैसे ही एक समाचार पत्र मे दो मंत्रियों के 5 -स्टार होटल में रहने की खबर आ गई. अब सरकार की किरकिरी होना निश्चित थी अत: वित्त मंत्री को स्प्ष्टीकरण भी देना पड़ा. परंतु राजनेता ( यानी मंत्रीगण) अभी भी समझोते को तैयार नहीं दिखते . शरद पवार, फारुक अब्दुल्ला ने साधारण श्रेणी की हवाई यात्रा पर भी सवाल उठा दिया है. कुल मिलाकर यह एक गम्भीर मुहिम न होकर एक ढोंग सा बन गया लगता है.

आखिर इस ढोंग की ज़रूरत ही क्या थी ?

इस बहस के कई आयाम हैं परंतु मेरी राय में जो प्रमुख प्रश्न हैं वे निम्न हैं:
(1) क्या अमीर /सम्पन्न पृष्ठभूमि से राजनीति में आने वाले राजनेताओं को अपनी सम्पत्ति का भोंडा ( व अश्लील) प्रदर्शन करने की छूट होनी चाहिये ? दो मंत्रियों ने (लगभग)ताल ठोकते हुए कहा था कि वे अपने पांच सितारा होटल का खर्च स्वयं उठा रहे हैं ( हालांकि इस पर सहजता से विश्वास करना मुश्किल है )अत: किसी को आपत्ति करने का हक़ नहीं है और उन्हे ऐसा करने से नहीं रोका जाना चाहिये.

(2) क्या संप्रग सरकार अपने मंत्रियों को ज़बरद्स्ती सादगी का प्रदर्शन करने पर मज़बूर करके एक ढोंग नहीं कर रही ? सभी जानते हैं कि यदि मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से सादगी पूर्ण व्यवहार हेतु मज़बूर किया भी गया ,तो भी सरकारी खर्च में कोई बड़ी कमी नहीं आने वाली.

(3) क्या वाकई पब्लिक सब जानती है ? जनता को इन फालतू के नारों या दिखावों से भरमाया नहीं जा सकता. जनता इस सारे झूठ के पर्दे के आर पार देख सकती है.
(4) जिस तरह गरीबी की रेखा निर्धारित है ,उसी तरह क्या कोई अमीरी की रेखा भी होनी चाहिये?
(5) अब जबकि कि आम राजनेता संपन्न तबके से भी आने लगे हैं ( भले ही वे - पिछले दरवाजे से राज्य सभा में पहुंचे या धनबल के बूते जनता के वोट खरीद कर) क्या लोक प्रतिनिधियों से सादगी के व्यवहार की अपेक्षा ही नहीं की जानी चाहिये और उन्हे पूरी छूट हो कि वे ( कथित रूप् से) 'अपनी निज़ी' कमाई को सार्वजनिक रूप् से जैसे चाहें वैसे उड़ायें?

ये सभी प्रश्न महत्वपूर्ण हैं.
मेरी राय है कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में आता है तो उसे कुछ त्याग करने के लिये तैयार होना चाहिये. सार्वजनिक जीवन के कुछ मापदंड भी हों ( जिनमें निज़ी दौलत का भी भोंडा व अश्लील प्रदर्शन वर्जित हो) . ये मापदंड भले ही कानून का रूप न लें तो भी एक मर्यादित आचरण अवश्य निर्धारित होना चाहिये.

Saturday, September 5, 2009

कौवों के कोसने के गायें नहीं मरा करती उर्फ भाजपा को गाली देना एक शगल क्यों बनता जा रहा है?

.

सबसे पहले एक शाकाहारी स्पष्टीकरण. फिलहाल मैं भाजपा का कोई प्रवक्ता नहीं हूं .अपने ब्लोग को दलगत राजनीति से दूर रखने की भरसक कोशिश की है. हालांकि कभी कभार छुट्पुट टिप्पणियां ज़रूर की होंगी. यह स्पष्टीकरण इसलिये आवश्यक है कि इस पोस्ट को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाये.

प्रतिक्रियावश इस पोस्ट को लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ी फिलहाल इसका ज़िक्र मैं अभी न उचित समझता हूं और न आवश्यक .
जब प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह ने भाजपा में चल रही उठापटक पर चिंता जताई थी तो वह ( सम्भवत: ) एक आम भारतीय की पीड़ा को ही व्यक्त कर र्हे होंगे,ऐसा मेरा मानना है. हालांकि भाजपाई अध्यक्ष को वह नागवार गुजरा. मैं भले ही भाजपा का सदस्य नहीं हूं पर प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह की ही भांति मानता हूं कि लोकतंत्र को स्वस्थ बनाये रखने के लिये मुख्य विपक्षी दल का मज़बूत रहना भी ज़रूरी है.

भाजपा में जूतों में दाल बंट रही है .इसे सब ने ही देखा है. इसकी तुलना महाभारत से की जाये या गली-मुहल्ले के स्तर वाली घटिया गुटबाजी से, यह अपनी अपनी सोच है. किंतु जहां एक ओर प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह जैसी सोच है , वहीं दूसरी ओर इस जूतम पैज़ार पर चटकारे लेने वालों की भी कमी नहीं है.

भारत में केन्द्रीय स्तर की दलीय् राजनीति सिद्धांतत: अभी भी इतनी परिपक्व नहीं है, कि विचारधारा के आधार पर ध्रुवीकरण हो. पिछले 20- 22वर्षों से प्रदेशों में व केन्द्र में खिचडी सरकारों का ही प्रभुत्व रहा है. इससे न भाजपा अछूती रही न कांग्रेस और न ही कम्युनिस्ट. सबने बहती गंगा में हाथ धोये हैं.

कमोबेश सबही दलों में सिर फुटौव्वल के दौर चले हैं ,सभी दलों में टूट-फूट भी हुई है. सभी ने विचारधारा को ( और कहीं कहीं तो देश की अस्मिता को भी) ताक पर रख कर समझोते किये हैं. ज़िक्र न भी किया जाये तो सभी ऐसे उदाहरणों के वाक़िफ हैं. एक हाथ से दोस्ती और दूसरी से पीठ में छुरा भोंकने वाले एक नहीं कई कई उदाहरण सामने आये हैं. और कोई भी दल , हां हां कोई भी, इसका अपवाद नहीं है.

जैसा कि मैने पहले कहा, भाजपा को गाली देना एक शगल बनता जा रहा है, विशेषकर तथाकथित प्रबुद्ध, प्रगतिवादी, आदि आदि कहलाना पसन्द करने वालों में.

इन सभी से एक गुज़ारिश है. भैया जी, पहले तनिक अपने गिरेबान में भी झांको न . पर उपदेश कुशल बहुतेरे.
किंतु सच्चाई यह है कि कौवों के कोसने के गायें नहीं मरा करती.
भाजपा का सदस्य अथवा प्रवक्ता न होते हुए भी मैं आशावान हूं कि वह एक बार फिर पटरी पर आयेगी तथा भारतीय लोकतंत्र आने वाले वर्षों में और भी मज़बूत होगा.
आमीन.

Friday, August 28, 2009

कवि सम्मेलन सम्पन्न

द्वारका उपनगर ,नई दिल्ली में 26 अगस्त 2009 को रसिक श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति में सम्पन्न हुआ एक कवि सम्मेलन जिसमें डा.क़ीर्ति क़ाले, डा. सरोजिनी प्रीतम, पं. सुरेन्द्र दुबे (जयपुर), महेन्द्र शर्मा,नन्द किशोर अकेला (रतलाम),राजगोपाल सिंह, डा.अरविन्द चतुर्वेदी व रमेश गंगेले ने कविता पाठ किया . गतवर्षों की भांति इस वर्ष भी महाराष्ट्र मित्र मंडल की ओर से गणेशोत्सव के अवसर हिन्दी अकादमी दिल्ली के सहयोग से यह कवि सम्मेलन आयोजित किया गया.देर रात तक रसिक् श्रोता कविताओं के सागर में गोते लगाते रहे और कविता का भरपूर आनन्द लेते रहे. कवि सम्मेलन का प्रारम्भ डा.कीर्ति काले ने सरस्वती वन्दना से किया.तदुपरान्त रमेश गंगेले ने ओजस्वी कविता प्रस्तुत की. उसके बाद डा. सरोजिनी प्रीतम ने मनोरंजक हंसिकाएं सुनायीं. फिर डा. अरविन्द चतुर्वेदी ने हास्य रस की वर्षा करते हुए अपनी हिंग्लिश भाषा की कविताओं से सभी को लोट-पोट कर दिया. गीतकार राजगोपाल सिंह ने दो गीत व गज़लों का सस्वर पाठ करके श्रोताओं को भावविभोर कर दिया.महेन्द्र शर्मा ने एक बार फिर रुख हास्य व्यंग्य की तरफ मोड़कर कवि सम्मेलन में पधारे द्वारका के रसिक जनों को बांधे रखा. रतलाम से पधारे नन्द किशोर अकेला ने पहले हास्य-पूर्ण आत्मकथ्य और फिर काव्य से सभागार को रसमय कर दिया.फिर काव्य-मंच संभाला संचालिका डा.कीर्ति काले ने और दो भाव पूर्ण गीत सुनाकर अद्भुत प्रशंसा अर्जित की . डा. कीर्ति ने अपनी दो नयी रचनायें प्रस्तुत कीं. मधुर सम्वेदनाओं से ओत-प्रोत इन गीतों - 'जब भी मन की माला फेरी,मर्यादा ने आंख तरेरी' तथा " तब हृदय के एक कोने में कोई कुछ बोल जाता है" को बहुत सराहा गया. अंत में पं.सुरेन्द्र दुबे ने व्यंग्य व हास्य का गठ्बन्धन करते हुए श्रोताओं की वाह वाही लूटी. ( चित्र में बांये से – डा.अरविन्द चतुर्वेदी, राजगोपाल सिंह ,महेन्द्र शर्मा, रमेश गंगेले, सुरेन्द्र दुबे,नन्दकिशोर अकेला ,डा. कीर्ति काले व डा.सरोजिनी प्रीतम, साथ ही विडियो में डा.अरविन्द चतुर्वेदी व डा. कीर्ति काले )

Sunday, August 23, 2009

छि: शाहरुख ,तुम गन्दे हो

हालांकि बहुत से पन्ने प्रिंट मीडिया में रंगे जा चुके हैं और टी वी पर बहुत सा समय इस विषय पर खर्च हो चुका है,फिर भी मैं अपनी बात रखना आवश्यक समझता हूं.
भले ही यह विवाद का विषय रहा हो कि शाहरुख ने अपनी जामातलाशी और हिरासत की बात को बढ़ा चढ़ा कर पेश किया.और यह भी (बकौल अमर सिंह) कि शाहरुख ने यह सब अपनी आने वाली फिल्म के प्रचार के लिये किया.
यहां तक तो गनीमत थी. लेकिन बाद में शाहरुख का स्वदेश लौटकर प्रेस कांफ्रेंस करना (और यह भी कहना कि मैं किसी से कोई माफीनामा नहीं चाहता ) और एक बार फिर से मीडिया के लिये मुद्दा उछालना हज़म नहीं हुआ.

चलो यह भी छोड दे ,फिर शाहरुख का यह कहना कि भारत में भी अमरीकी कलाकारों को वही सलूक दिया जाना चाहिये.
( हमारी काबिल मंत्राणी महोदया यह अपने मुखारविन्द से पहले कह चुकी थीं) कुछ 'देशभक्तों ' को संतुष्टि के लिये चलो यह भी ठीक. यहां तक भी गनीमत माना. पर शाहरुख का यह कहना कि जब अंजेलीना जोल्ली यहां आयेगी तो वह खुद उसकी जामा तलाशी लेना चाहेंगे -यह तो बिल्कुल ही हज़म नहीं हुआ. बल्कि इससे तो शाहरुख का सस्तापन, बाज़ारूपन और भोंडापन ही प्रदर्शित होता है.

भले ही शाहरुख को देश की जनता एक बडा कलाकार मानती रहे,पर यह एक बडे कलाकार के लक्षण तो नहीं ही लगे .

Monday, May 18, 2009

अमरीका में भारतीय स्वाद की तलाश

Virginia Commonwealth University (VCU) आने के सिलसिले मे वहां की एक भारतीय मूल की एक छात्रा सुहासिनी पाशीकांती से ई-मेल का आदान प्रादान हुआ था. वह जान पहचान काम आयी. अगले दिन जब मेरे लेपटोप की प्लग-अडोप्टर समस्या दूर नहीं होती लगी ( उन्होने तदर्थ रूप में मुझे एक दूसरा लेपटोप दे दिया था )तो मैने सुहासिनी से सम्पर्क किया और आधे दिन के बाद सुहासिनी ने मुझे एक ऐसा अडोप्टर ला कर दे दिया जो न सिर्फ USA में बल्कि UK आदि अन्य देशों में भी उपयोग किया जा सकता है. ( धन्यवाद, सुहासिनी).
जिस रिसर्च वर्कशोप ( research workshop) के लिये मैं यहां आया हूं, वहां मुझे भारतीय मूल के एक और प्रोफेसर मिल गये. डा. अर्जुन भारद्वाज मूल रूप से इलाहाबाद के हैं और पिछले दस वर्षों से कनाडा की एक university में सहायक प्रोफेसर हैं. इलाहाबाद, कानपुर से लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति ,मायावती तक अनेक विषयों पर बातचीत हुई.वापस होटल भी साथ साथ आये और तय हुआ कि 6 बजे लोबी में मिलेंगे और फिर dinner के लिये जायेंगे. लोबी में जब आया तो भारद्वाज जी होटल स्टाफ से किसी भारतीय रेस्ट्रां के बारे में पूछ रहे थे. मैने पिछले दिन एक guide में एक मशहूर भारतीय रेस्ट्रां FarouksHouse of India के बारे में पढ़ा था,उसकी वेबसाइट भी देखी थी, जिसपर वहां उपलब्ध व्यंजनॉ के दाम भी लिखे हुए थे. इतना याद था कि यह् रेस्ट्रां carry street पर है , जो पास में ही है . मैं और अर्जुन भारद्वाज जी FarouksHouse of India नामक रेस्ट्रां की तलाश में चल दिये. कैरी स्ट्रीट पर चलते चलते गये पर रेस्ट्रां नहीं मिला. ( मैने उनको 1987 की ऐसी ही घटना बयान की जब जिनेवा में हम कल्पना नामक रेस्ट्रां ढूंढते ढूंढते थक गये थे और नहीं मिला था). अनेक लोगों से पूछा ,कईयों ने बताया कि नाम तो सुना है, कहां है ,नहीं मालूम. दर असल कैरी स्ट्रीट बहुत लम्बा मार्ग है जिसके east और west दो हिस्से है, हम अभी तक ईस्ट में घूम रहे थे. जब पूरा रास्ता पार हो गया और पुराना शहर आ गया तो अर्जुन ने कहा कि आम तौर पर अमरीका में शहरों के पुराने हिस्से कुछ असुरक्षित होते हैं विशेषकर बाहरी व्यक्तियों के लिये ,यह सोचकर हम वापस पलटे, वेस्ट कैरी स्ट्रीट मे रेस्ट्रां ढूंढने के लिये. रास्ते में एक महिला से पूछने पर पता चला कि फारुक्स नामक रेस्ट्रां carry town में है , जो काफी दूर है. फिर भी भारतीय भोजन के दीवानों की तरह हम तलाश करते रहे. जब लगा कि अब हद होती जा रही है, और हमें ( कम से कम आज के दिन) भारतीय भोजन की ज़िद छोड़ देनी चाहिये, तभी एक जगह नेओन साइन से ‘Indian cuisine’ लिखा हुआ देखा ,तो तय किया कि चलो यहीं खाना ख्हते हैं. पास गये तो दिखा कि एक छोटा सा भोजनालय ,जिसका नाम था Ruchee Express. अन्दर गये तो मालिक से भी मुलाक़ात हुई. उनका नाम शंकर था और वह मेंगलौर ( कर्नाटक) के मूल निवासी थे.

फिर हमने खाना मंगाया- दाल मखानी, भिंडी, तन्दूरी रोटी व चावल. हम दोनों को ही खाना स्वादिष्ट लगा. वहीं एक और (भारतीय) ग्राह्क ने कहा ‘नमस्ते’.परिचय पूछा तो उसने अपना नाम रौनक बताया, जो नागपुर से इंजीनीयरिंग करने के बाद VCU में bio-medical engineering का छात्र है. रौनक ने बताया कि VCU में भारतीय मूल के छात्रों की संख्या लगभग एक हज़ार है.अधिकांश छात्र summer vacation के कारण भारत गये हुए हैं.

भले ही हम जिस की तलाश में थे नहीं मिला, परंतु जो मिला उससे संतोष तो बहुत मिला.

Sunday, May 17, 2009

अमरीका में उल्टा-पुल्टा

रविवार के दिन मुझे रिचमण्ड के लिये जे एफ के से 8.20 की फ्लाइट पकड़नी थी. सुरक्षा नियमों के अनुसार दो घंटे पहले पहुंचना था. परिवार वाले को बिना डिस्टर्ब किये दिनेश ने मेरे कमरे मे आकर मुझे पांच बजे जगा दिया, हमें मलूम था कि हम लेट हैं इस्लिये कोफी बनाकर बडे मग में भर ली और बिस्किट का पैकेट लेकर चल दिये. लगभग 120कि.मी का सफर था और दिनेश को पेट्रोल ( यहां गैस –कहते हैं) भराना था. रास्ते में न्यू हवेन पर दिनेश ने सिर्फ दस डालर का पेट्रोल भरा ,जो 2.39 डालर प्रतिगैलन था. दिनेश ने बताया कि यहां भिन्न भिन्न कम्पनियों के उत्पाद के दामों में फर्क है. नक़द व क्रेडिट कार्ड की खरीद पर भी दरों में फर्क़ है. नक़द 5 सेंट सस्ता पड़ता है.

आगे जाकर एक अन्य गैस स्टेशन पर फिर दिनेश ने गाडी फुल कराई. दोनो स्थानों के दामों में 14 सेंट्सप्रति गैलन का का फर्क़ था.अधिकांश गैस स्टेशन स्वचालित हैं. ( यूरोप के देशों में भी मैं पहले ऐसा ही देख चुका था).ग्राहक आकर गाड़ी लगाता है.कार्ड स्वाइप करता है और तेल भर जाने पर कार्ड पर रजिस्टर हो जाता है. अमरीका में अनेक गैस स्टेशन भारतीय मूल के लोगों द्वारा भी संचालित हैं जहां काम करने वाले भी भारतीय ही हैं.
7.15 पर एयर्पोर्ट पहुंच गया. कम्प्यूटर-किओस्क लगे हुए थे.अपने आप चेक –इन करना था. समय कम था अत:चेक-इन के बाद सुरक्षा जांच केलिये चला. यहां भी, बेल्ट ,जूते उतरवा कर x ray machine से निकालना पडा.

छोटा विमान था शायद 60 सीट वाला. फ्लाइट में नाश्ते की उम्मीद थी किंतु मिला सिर्फ भुनी मूंगफली के दानों का एक पैकेट और कौफी.
रिचमण्ड एयर्पोर्ट पहुंच कर टैक्सी और और बस बीस पचीस मिनट में होटल पहुंच गया.

अमरीका में काफी कुछ भारत से उल्टापुल्टा है. गाडी लेफ्ट हैंड द्राइव वाली हैं,सडकों पर दायी ओर चलता ट्रेफिक, बिजली के स्विच ऊपर करने पर औन होते हैं,नीचे औफ.
मुश्किल तो तब आयी जब ई-मेल चेक करने के लिये अपना लैप्टोप खोला.

लैपटोप का चार्ज बिलकुल समाप्त था और कोर्ड लगाने के लिये निकाली तो सन्न रह गया. भारत के तीन पिन वाले प्लग के लिये तो यहां के सोकेट बिल्कुल उल्टे हैं. अब क्या करें? होटल के स्टाफ से बात की, उन्होने इंजीनीयर को फोन लगाया पर बात नहीं बनी. हां, उसने Radio sacks नामक एक दुकान का पता बता दिया जो 5 कि.मी दूर थी और आने जाने का भाड़ा लगभग 25 डालर था. मैने होटल के कम्प्यूटर से मेज़बान संस्था- Virginia Commonwealth University ( VCU) ईमेल भेजकर सम्स्या बताई. शाम को मिलने आये एक छात्र सहायक ने सांत्वना दी कि वह अगले दिन एक ऐसा अडोप्टर ला देगा जिससे काम चल जाये.
----कैसे हुई समस्या दूर? खाने के लिये बहाया पसीना...(ज़ारी)

Saturday, May 16, 2009

अमरीका में “भारतीयम”-तीन: सांई बाबा का सत्संग और अमरीकी भक्त










जाना तो मुझे रिचमंड था, परंतु जे एफ के एयर्पोर्ट से उल्टे उत्तरपूर्व की तरफ दिनेश आहूजा जी के घर ( जो ईस्ट लाइम, कनेक्टिकट में है) जा रहे थे .दिनेश का आग्रह था कि उस दिन बुद्धपूर्णिमा है,और उन्होने अपने घर सांई-सत्संग के साथ साथ(meditation ) मेडिटेशन-ध्यान पर चर्चा करने हेतु विशेषज्ञ को आमंत्रित किया है अत: मैं पहले एक दिन उनके यहां रुकूं और फिर रिचमंड जाऊं.

हाई-वे पर ट्रेफिक-जाम जैसी स्थिति तो मैने सोचा भी नहीं था, पंरतु मैने देखा कि जगह जगह अचानक ट्रेफिक धीमा हो रहा था. न्यू हेवन के पास दिनेश ने गाड़ी हाई-वे से उतार कर नगर के अन्दर से निकाली और तीन कि.मी का चक्कर लगा कर फिर हाई-वे पर आ गये.रास्ते में दिनेश को सूचना मिली कि काम में हाथ बटाने हेतु दो मित्र-परिवार उनके घर पहुंच चुके हैं. डेढ़्- बजे अपरान्ह हम घर पहुंचे. दिनेश ने मित्र परिवारों से मिलाया. श्रीनिवास कामीरेड्डी व उपेन्द्र जी सपत्नीक आकर काम में जुट गये थे. मुझे बताया गया कि आज लगभग 75 व्यक्ति सत्संग में भाग लेंगे ,उसके उपरांत भोजन है. दोपहर में भयंकर नींद आ रही थी. थकान के अलावा मुख्य कारण था कि दिल्ली से निकले हुए 24 घंटे से अधिक हो गये थे, किंतु अभी तो पूरा दिन बाकी था. मेहमानों के आने के पहले मुझे तैयार होने को कहकर सभी काम में व्यस्त हो गये.
तीन बजते बजते मेहमानों का आना शुरू हो गया. सत्संग सबसे नीचे तल पर बने बड़े कमरे में था. सांई बाबा का भव्य दरबार सजा था ( चित्र देखें). सतसंग मे भाग लेने वालों के लिये 60-70 पृष्ठों का एक फोल्डर दिया जा रहा था, जिसमें सभी भजन आदि रोमन / देवनागरी /तेलुगु व गुजराती लिपियों में लिखे हुए थे.

भजन /कीर्तन ढप, झान्झ ,मजीरों के साथ शुरू हो चुका था. देर से आने वाले निश्चित स्थान से फोल्डर उठाते और भजन में शामिल हो जाते. बीच बीच में उपेन्द्र जी अपने वीडिओ कैमरे से और श्रीनी अपने स्टिल कैमरे से चित्र लेते रहते .लगभग पांच बजे दिनेश ने meditation की महत्ता और अपने अनुभवों पर प्रकाश डाला. फिर श्रीमती पाविनी ने मेडिटेशन की पूरी प्रक्रिया आदि को प्रश्न-उत्तर के माध्यम से समझाया और सभी ने 25 मिनट के लिये सुझावानुसार ध्यान लगाया. यहां बताना आवश्यक है कि श्रीमती पाविनी विशाखापट्नम की रहने वाली हैं और 2003 से मेडिटेशन में लगीं है. उनका दावा है कि उस अवस्था में उन्होने अनेक महान आत्माओं का साक्षात्कार किया है.इन अनुभवों पर उनकी पुस्तक का भारत ( हैदराबाद) में शीघ्र ही विमोचन होने वाला है.

अपने अपने अनुभव सबने साझा किये. फिर विशाल आरती के साथ सत्संग समाप्त हुआ. इसमे मूल अमरीकी डा. ब्रूस व उनकी पत्नी, साई भक्त एन्न, कनेक्टिकट के बड़े अस्पताल के वरिश्ठ चिकित्सक डा. मार्क व पत्नी, ( लगभग दस अमरीकियों को मिलाकर)60 व्यक्ति सतसंग में शामिल हुए. इन (मूल रूप से)भारतीय अमरीकी पर्रिवारों के बच्चे भी आये हुए थे. कई परिवार तो दो-ढाई घंटे लगाकर पहुंचे थे. इनमें साई भक्त मूल अमरीकी परिवारके अतिरिक्त आन्ध्र के तेलुगुभाषी से लेकर पंजाबी ,गुजराती ....सभी शामिल थे . सच्ची अर्थों में ...अमरीका में भारतीयम ..
फिर सबने सुस्वादु भारतीय भोजन का आनद लिया. कोई दही लेकर आया था तो कोई आलू-गोभी की तरकारी. कोई अपने घर से पुदीने की चटनी बना कर लाया था. मैं तो भारत से मिर्च का अचार ले गया था. एक बडे परिवार की तरह से यह समागम लगा जिसमे सबकी भागीदारी भी थी और सब आनंद भी ले रहे थे. रात्रि लग्भग दस बजे विसर्जन हुआ.

फ़िर से जे ऎफ के एयरपोर्ट ..और वहां से ...रिचमंड की उड़ान ...( जारी).



Publish Post Save

अमरीका में “भारतीयम”-तीन: सांई बाबा का सत्संग और अमरीकी भक्त

जाना तो मुझे रिचमंड था, परंतु जे एफ के एयर्पोर्ट से उल्टे उत्तरपूर्व की तरफ दिनेश आहूजा जी के घर ( जो ईस्ट लाइम, कनेक्टिकट में है) जा रहे थे .दिनेश का आग्रह था कि उस दिन बुद्धपूर्णिमा है,और उन्होने अपने घर सांई-सत्संग के साथ साथ(meditation ) मेडिटेशन-ध्यान पर चर्चा करने हेतु विशेषज्ञ को आमंत्रित किया है अत: मैं पहले एक दिन उनके यहां रुकूं और फिर रिचमंड जाऊं.

हाई-वे पर ट्रेफिक-जाम जैसी स्थिति तो मैने सोचा भी नहीं था, पंरतु मैने देखा कि जगह जगह अचानक ट्रेफिक धीमा हो रहा था. न्यू हेवन के पास दिनेश ने गाड़ी हाई-वे से उतार कर नगर के अन्दर से निकाली और तीन कि.मी का चक्कर लगा कर फिर हाई-वे पर आ गये.रास्ते में दिनेश को सूचना मिली कि काम में हाथ बटाने हेतु दो मित्र-परिवार उनके घर पहुंच चुके हैं. डेढ़्- बजे अपरान्ह हम घर पहुंचे. दिनेश ने मित्र परिवारों से मिलाया. श्रीनिवास कामीरेड्डी व उपेन्द्र जी सपत्नीक आकर काम में जुट गये थे. मुझे बताया गया कि आज लगभग 75 व्यक्ति सत्संग में भाग लेंगे ,उसके उपरांत भोजन है. दोपहर में भयंकर नींद आ रही थी. थकान के अलावा मुख्य कारण था कि दिल्ली से निकले हुए 24 घंटे से अधिक हो गये थे, किंतु अभी तो पूरा दिन बाकी था. मेहमानों के आने के पहले मुझे तैयार होने को कहकर सभी काम में व्यस्त हो गये.
तीन बजते बजते मेहमानों का आना शुरू हो गया. सत्संग सबसे नीचे तल पर बने बड़े कमरे में था. सांई बाबा का भव्य दरबार सजा था ( चित्र देखें). सतसंग मे भाग लेने वालों के लिये 60-70 पृष्ठों का एक फोल्डर दिया जा रहा था, जिसमें सभी भजन आदि रोमन / देवनागरी /तेलुगु व गुजराती लिपियों में लिखे हुए थे.

भजन /कीर्तन ढप, झान्झ ,मजीरों के साथ शुरू हो चुका था. देर से आने वाले निश्चित स्थान से फोल्डर उठाते और भजन में शामिल हो जाते. बीच बीच में उपेन्द्र जी अपने वीडिओ कैमरे से और श्रीनी अपने स्टिल कैमरे से चित्र लेते रहते .लगभग पांच बजे दिनेश ने meditation की महत्ता और अपने अनुभवों पर प्रकाश डाला. फिर श्रीमती पाविनी ने मेडिटेशन की पूरी प्रक्रिया आदि को प्रश्न-उत्तर के माध्यम से समझाया और सभी ने 25 मिनट के लिये सुझावानुसार ध्यान लगाया. यहां बताना आवश्यक है कि श्रीमती पाविनी विशाखापट्नम की रहने वाली हैं और 2003 से मेडिटेशन में लगीं है. उनका दावा है कि उस अवस्था में उन्होने अनेक महान आत्माओं का साक्षात्कार किया है.इन अनुभवों पर उनकी पुस्तक का भारत ( हैदराबाद) में शीघ्र ही विमोचन होने वाला है.

अपने अपने अनुभव सबने साझा किये. फिर विशाल आरती के साथ सत्संग समाप्त हुआ. इसमे मूल अमरीकी डा. ब्रूस व उनकी पत्नी, साई भक्त एन्न, कनेक्टिकट के बड़े अस्पताल के वरिश्ठ चिकित्सक डा. मार्क व पत्नी, ( लगभग दस अमरीकियों को मिलाकर)60 व्यक्ति सतसंग में शामिल हुए. इन (मूल रूप से)भारतीय अमरीकी पर्रिवारों के बच्चे भी आये हुए थे. कई परिवार तो दो-ढाई घंटे लगाकर पहुंचे थे. इनमें साई भक्त मूल अमरीकी परिवारके अतिरिक्त आन्ध्र के तेलुगुभाषी से लेकर पंजाबी ,गुजराती ....सभी शामिल थे . सच्ची अर्थों में ...अमरीका में भारतीयम ..
फिर सबने सुस्वादु भारतीय भोजन का आनद लिया. कोई दही लेकर आया था तो कोई आलू-गोभी की तरकारी. कोई अपने घर से पुदीने की चटनी बना कर लाया था. मैं तो भारत से मिर्च का अचार ले गया था. एक बडे परिवार की तरह से यह समागम लगा जिसमे सबकी भागीदारी भी थी और सब आनंद भी ले रहे थे. रात्रि लग्भग दस बजे विसर्जन हुआ.

फ़िर से जे ऎफ के एयरपोर्ट ..और वहां से ...रिचमंड की उड़ान ...( जारी).


Friday, May 15, 2009

अमरीका में ‘भारतीयम’ –दो

एमिरेट्स की उड़ान के दौरान मैने पाया कि जो यात्री सो नहीं रहे थे वह अपनी अपनी वीडिऑ स्क्रीन पर फिल्में ही देख् रहे थे . अधिकांश भारतीय मूल के यात्री तो हिन्दी ( या तेलुगु ) फिल्में देखने में व्यस्त थे. मेरी सीट के अगल बगल वाले भी .मैं काफी देर तक तो रेडिओ पर आशा भोंसले के गीत सुनता रहा, फिर मुकेश पर आ गया, फिर मैने जब गेम्स का चैनल ढूंढा ,तो मुझे सुडोकू मिल गया. बस फिर क्या था, बीच बीच में झपकी, फिर सुडोकू, यानी खेल खेल में मैने लम्बी यात्रा पूरी की. बीच बीच में दाहिनी तरफ वाले गुजराती भाई से ( वह भी पहली बार अमरीका जा रहा था), और बांई ओर दिल्ली की मूल निवासिनी व अमरीका मे मेडिकल छात्रा, से बात चीत भी होती रही. सफर भली प्रकार कट गया.

यान से उतर कर बस में लगभग 5 कि.मी. का सफर और तब आया टर्मिनल ,जहां इमिग्रेशन तथा कस्टम की कार्यवाही पूरी करनी थी. उसके भी पहले सुरक्षा जांच के नाम पर बेल्ट और जूते भी उतरवाये गये और एक्सरे मशीन से गुजारने पडे. उस दिन न्यूयोर्क का मौसम खराब था और इस कारण हमारी फ्लाइट 1 घंटा देर से पहुंची थी. इमिग्रेशन के लिये 50 काउंटर थे ,किंतु उसमें लगभग आधे – अमरीकी नागरिक, ग्रीन-कार्ड धारक, राजनयिक आदि श्रेणियों के लिये थे और शेष ‘विजिटर्स’ के लिये.

धीरे धीरे लाइन ने खिसकना शुरू किया और एक घंटे आते आते यह कार्य भी सम्पन्न हुआ. कन्वेयर बेल्ट पर सामान के लिये मैने ट्रोली उठाई तो मुझे बताया गया कि पांच डालर लगेंगे. आन्ध्र के एक परिवार को ( पांच सदस्यों के परिवार के पास आठ बडे बडे सूटकेस थे, जिन पर विशाखापटनम का पता भी लिखा हुआ था) को तीन ट्रोली के पन्द्रह डालर खर्च करने पडे ( यानी करीब 750 रुपये).
ज़ब कस्टम का फार्म भर रहा था तो उल्झन में पड गया. एक प्रश्न था कि “क्या आप अपने साथ पौधा,वनस्पति,ताजा फल , खाद्य सामग्री या कीडे-मकोडे तो नही लाये हैं?” (food & insects-एक ही category में देखकर मैं हैरान था.) यदि ‘’हां’ पर निशान लगाते है तो इसका मतलब हुआ कि मेरे साथ Insects –कीडे भी हैं. और ना पर, तोयह झूठ् होता क्यों कि मेरे पास मिठाई, नमकीन आदि बहुत कुछ था. खैर मैने ,हां पर निशान लगाया, सोचकर कि देखा जायेगा. सामान लेकर निकला तो अंतिम स्थान पर कस्टम अधिकारी ने फोर्म देखकर पूछा कि खाने के सामान मे क्या है ?मैने बताया कि ‘indian cookies’. उसने मुझे दूसरी तरफ रखी एक्सरे मशीन की तरफ भेज दिया, और वहां से निकल कर लगा ,मानो किला फतह कर लिया और ऐयरपोर्ट से बाहर आया.

मेरे मेज़बान दिनेश आहुजा जो ईस्ट-लाइम से मुझे लेने के लिये पांच बजे घर से निकले थे और अब ग्यारह बज रहे थे. अभी दो घंटे का सफर तय करना था.तय हुआ कि हाईवे पर रुक कर हल्का नाश्ता कौफी ले लेंगे. दिनेश ने अपनी SUV मे GPS लगाया हुआ था, जो मिनट मिनट पर बताता जा रहा था कि कब कहां मुडना है,कहां गाडी बांई लेन मे रखनी है और कहां दांयी में.
हम हाई वे से नीचे उतर कर वहां बनी दुकानों पर गये, एक चाइनेज़ स्नेक्स पर जलपान लिया और कौफी के मग हाथ में लेकर वापस गाडी में आ गये,अपने गंतव्य की तरफ.

........( आगे जारी....अमरीका में सांईभक्तों का सत्संग )

Wednesday, May 13, 2009

अमरीका में " भारतीयम"

अमरीका की भूमि से यह मेरा पहला ब्लोग है. पिछले चार् दिनों से मैं यहां वर्जीनिया राज्य की राजधानी 'रिचमंड' नामक नगर में हूं.
8 मई को जब दिल्ली से चला था ,तब से ही पहली ब्लोग पोस्ट का शीर्षक सोचा हुआ था. आज सुबह सात बजे पहली पोस्ट लिख ली थी पर न जाने क्यों save नहीं कर पाया, और अब दोपहर को दुबारा लिख रहा हूं.

दुबाई के लिये जब दिल्ली से Emirates की फ्लाइट पकड़ी थी तो यान में लगभग तीन चौथाई भारतीय ही थे. समझ में भी आया क्योंकि दुबाई, शार्जाह आदि मे भारतीय कामगारों की भरमार है . परंतु दुबाई से जब JFK Airport ( न्यू यौर्क) के लिये जाने वाली उडान के लिये चेक इन किया तो भी भारतीय मूल के यात्रियों के संख्या हैरान करने जैसी लगी.इस फ्लाइट में भी आधे से अधिक भरतीय मूल के ही थे . मुझे बाद में जानकारी से पता चला कि अब भारतीय मूल के व्यक्ति एयर इंडिया के बजाय Emirates को अधिक पसन्द करते हैं. ( एक तो एयर इंडिया की उडानें लन्दन होके आती है , जहां transit के दौरान checking में घंटों लग जाते हैं, दूसरा एमिरेट्स की सेवा व खान-पान बहुत ही अच्छा है). खान-पान की बात मैने भी महसूस की-निश्चित रूप से उम्दा खाना ( मेरे जैसे vegetarian के लिये तो और भी उम्दा).

तीन वर्षों बाद किसी अंतरराष्ट्रीय उडान पर था अत: बोइंग 777 की सुविधायें भी चौंकाने वाली लगी.भारतीय भाषाओं ( हिन्दी के अतिरिक्त-तमिल,तेलुगु, बंगला भी) का संगीत , फिल्में भी उप्लब्ध थीं.

टोयलेट जाने पर एक मज़ेदार बात मैने नोट की . फ्लश करने के लिये सन्देश हिन्दी,उर्दू, बंगला,तेलुगु,अंग्रेज़ी ( व एक अन्य-शायद फ्रेंच) भाषा में था. भाव तो सभी सन्देशों का एक ही था, मगर भाषा अलग अलग थी.

हिन्दीमे लिखा था 'क़्रपया शौचालय की सफाई के लिये यह बटन दबायें', उर्दू में लिखा था' बराये-मेहरबानी टोयलेट इस्तेमाल करने के बाद यह बटन दबाइये' और बंगला में लिखा था-' फ्लश कोरार जोन्ये एखने दाबान्'

अभी दिन के लगभग डेढ़ बजने को हैं भूख लग रही है. अगली किश्त शाम को ....

Sunday, April 19, 2009

मज़बूरी का नाम ....गान्धी

जिन गांधी बाबा के चलते इस कहावत का चलन हुआ ,अगर कब्र में होते तो करवटें ज़रूर बदल रहे होते. गांधी बाबा को या उस ज़माने के लोगों को तो गुमान भी नहीं होगा कि उनका (जाति ) नाम इस कदर चर्चा का शिकार होगा और वो भी नक़ली गांधी नाम वालों की वज़ह से.

अब किस का नाम लें. फीरोज़ को तो स्वयम गांधी बाबा अपन नाम उधार दे गये थे. कुछ दिन तक चला लेकिन तब इसे 'भुनाने' की बात नही चली थी और इसके दुरुपयोग जैसा कोई आरोप नहीं लगा.
इन्दिरा जी को तो स्वाभाविक रूप से यह नाम मिला था. वैसे भी उनके नाम के साथ् 'नेहरू' जैसा भारी भरकम नाम लगा हुआ था, अत: यहां भी किसी ने नहीं कहा कि बाबा के नाम का कोई दुरुपयोग हुआ है.
परन्तु समय बीतने के साथ साथ जिन जिन शख्सियतों के साथ यह नाम जुड़ा,वह विवाद के घेरे में आते गये और प्रश्न उठता रहा कि क्या यही गांधी बाबा की विरासत के सही हक़दार हैं?


अनेक दिनों से कुछ फिर से लिखने की उचंग चढ़ रही थी. परंतु पुराना संकल्प था कि अपने ब्लोग पर कोई राजनैतिक विवादित मुद्दे को नहीं छुऊंगा. इसी के चलते लगभग सौ दिन तक खुद को ब्लोग से दूर रखा. मन उद्वेलित होता रहा, उंगलियां की -बोर्ड पर थिरकने की ज़िद करती रहीं परंतु ..मज़बूरी ..

अंत में सोचा ..चलने दो बालकिशन...( हैदराबादी भाई यह कहावत भी समझ् गये होंगे. जो न समझे हों उन्हे बताता चलूं कि येह एक स्थानीय ज़ुमला है जिसे हैदराबाद में खूब इस्तेमाल किया जाता है.ठीक वैसे ही जैसे कानपुर में 'झाडे रहो कलट्टर गंज..').

अब किस गांधी का जिक्र करूं ? यहां तो अब 'गांधीगीरी' भी फैशन बनकर फल-फूल रहा है. बन्दूक उठाने वाले भी गांधी का नाम लेकर 'लोकतंत्र के सबसे बड़े मेले' में अपना मज़मा लगाये बैठे है.

लगभग बीस वर्षों तक राजनीति को इतने करीब से देखा है कि टिप्पणी लिखना शुरू करूं तो सिलसिला खत्म ही न हो.
और फिर आज के खतरे ...कहीं चुनाव आयोग ही इसे आचार संहिता का दुरुपयोग ना मान ले.

फिर भी ठान लियाहै तो बस लिखना फिर से आरंभ ..अब इस यज्ञ में आहुति ज़रूरी है..क्योंकि मज़बूरी का नाम ...गांधी है.

Sunday, January 25, 2009

माउथ फ्रेशनर का चुम्बन से क्या रिश्ता है ?

क्या आपको याद है कि आपने अपना पहला चुम्बन ( KISS) कब और कहां लिया था? क्या आप उस समय मानसिक रूप से चुम्बन के लिये तैयार थे और इस तैयारी में आपको कितना वक़्त लगा था? कहीं आपका पहला चुम्बन अचानक तो नहीं था? अप्रत्याशित ?
जो भी हो क्या आप उस पहले-पहल अनुभव को कुछ exciting बना कर एक मसालेदार स्टोरी के रूप में पेश कर सकते हैं ?

नहीं ,मैं किसी सस्ती सेक्सी पत्रिका की बात नहीं कर रहा. अपने चुम्बन की कहानी बनाकर गोवा की मुफ्त यात्रा का पुरुस्कार जीतने की प्रतियोगिता आयोजित की गयी है एक ब्रांड के माउथ फ्रेशनर की ओर से. इस किस –कांड के लिये पूरी की पूरी वेब्साइट प्रायोजित की गयी है. www.kiss.....in इस वेबसाइट पर प्रतियोगिता में भाग लिया जा सकता है. माउथ फ्रेशनर के इस ब्रांड की प्रचारित खूबी मात्र इतनी है कि इसे खाकर आप अपने आप को चुम्बन लेने-देने केलिये तैयार रहते हैं. विज्ञापन यह सन्देश देने का प्रयास करता है कि कहीं भी कभी भी आपको चूमने –चाटने के लिये तैयार रहना चाहिये और यह सम्भव है फलां फलां ब्रांड की माउथ फ्रेशनर से.
क्या कहने इस मार्केटिंग के और क्या बात है विज्ञापन की . किंतु बात यहां मात्र विज्ञापन की ही नहीं है. इस विज्ञापन के पीछे जो मानसिकता व संस्कृति है, मैं उसे रेखांकित करना चाहता हूं.
पहले पहल इस विज्ञापन को मैने एम टी वी ( MTV) चैनल पर देखा.हैरानी हुई. किंतु यह हैरानी और अधिक बढ़ गयी जब मैने उक्त website देखी. अनेक फिल्मी अभिनेत्रियों के चित्र यहां दिखाये गये हैं ,और इन चित्रों के नीचे एक संख्या लिखी हुई है जो इन अभिनेत्रियों को प्राप्त मतों की संख्या है- जो इन्हे Most kissable (अति चुम्बनीय) बनाते हैं.
फिर आती हैं चुम्बन की कहानियां. भिन्न भिन्न प्रतिभागियों ने अपने पहले चुम्बन की कहानी भी लिखी है ( धैर्य की कमी के कारण मैं इन्हे पढ़ न सका)

इस पूरी ‘खोज’ की पृष्ठभूमि यूं है कि Advertising Management विषय की class में मैने छात्रों को assignments दिये थे और उनसे विज्ञापन के नये उदाहरण(approaches/strategies) ढूंढ़ कर लाने को कहा था.
कुछ अन्य विज्ञापनों की चीर-फाड़ फिर कभी.
( कहीं जाने-अनजाने मैं मुझसे इस वेबसाइट का प्रचार न हो जाये, इसलिये पूरा नाम नहीं दे रहा, साथ ही माउथ फ्रेशनर का नाम का उल्लेख भी नहीं किया गया है)

Tuesday, January 20, 2009

ये प्यार का गुरु है ,सिखाता है कि लडकी को कैसे पटाया जाये

यह आप पर निर्भर है कि आप की क्या उम्र है और आप इस विकट समस्या से जूझ रहे हैं या नहीं. यदि आपका किसी पर दिल आ गया है और वह ( लडकी / महिला) आपको घास नहीं डाल रही . अब आप किसका सहारा लेंगे? आपको तलाश है किसी अनुभवी व्यक्ति की जो लडकी पटाने में माहिर हो और आपको कुछ ऐसे टिप्स दे दे ताकि आपका काम चल जाये.
हो सकता है कि आप अपनी महिला दोस्त से वह ‘विशेष’ प्रस्ताव देना चाहते हों मगर हिम्मत नहीं पड़ रही ,या आपको अपने ऊपर पूरा विश्वास नहीं है . फिर आप ऐसा गुरु तलाश रहे हों, जो आपको प्यार में उत्पन्न विकट स्थिति से उबार सके.
कम से मेरे ज़माने में तो आशिक़ इतने forward नहीं थे और न ही उन्हे ऐसे “गुरु” आसानी से उपलब्ध थे जो उनके इस पुनीत कार्य में उनकी मदद कर सकते. बल्कि नौसिखिया आशिक तो ऐसे भी होते थे,जो उम्र भर अपने महबूब से इज़हारेमुहब्बत भी नहीं कर पाते थे और देखते ही देखते “उनकी” कहीं और शादी भी हो जाती थी. अब ज़माना बदल गया है.
इतना बदल गया है ज़माना ?

जी हां, एफ एम रेडियो के अनेक चेनलों पर इस प्रकार के कार्यक्रम उप्लब्ध हैं ,जहां लव-गुरु आपकी ऐसी ही समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं. एमटीवी नामक चैनल पर ऐसा ही एक प्रोग्राम आता है “लवलाइन” और यहां भी लव गुरु हाज़िर हैं ,जो जिज्ञासुओं को वह सब सीख दे रहे हैं जो,कही और् नही मिल सकती.

जानना चाहते हैं कि ज़माना कितना बदल गया है ? तो आप स्वयं ही परखें और इन रेडिओ टीवी चैनलों का मज़ा लें.

Monday, January 19, 2009

अपने देश में ही क्यों पराये हैं हिन्दीभाषी ?

नहीं ,मैं बम्बई की बात नहीं कर रहा हूं. वहां तो फिलहाल राज ठाकरे के गुंडो की कार्य वाही पर अंकुश लगा हुआ है.हिन्दी भाषियों के प्रति घृणा फैलाने का जो पुनीत कार्य राज ठाकरे ने बम्बई में कर रखा है,कमोबेश वैसी ही हालत उत्तर-पूर्व में भी है. आज नहीं ,बल्कि अनेक वर्षों से यहां हिन्दीभाषी लगातार घृणा का शिकार होते आ रहे है. सबसे ताज़ा-तरीन घटना है आसाम में बदरपुर् व हरंगाजाओ नामक स्टेशनों की तथा त्रिपुरा के धर्मनगर की, जहां भारतीय रेलवे द्वारा नियुक्त तीन दर्जन हिन्दीभाषी युवकों को नौकरी पर हाज़िर होने से रोक लिया गया. जब ये लोग अपनी ड्यूटी पर पहुंचे तो वरिष्ठ अधिकारियों ने स्थानीय लोगों के दबाब में आकर नौकरी से वंचित रखा.
स्थानीय लोग इन हिन्दीभाषियों का विरोध काफी समय से करते आ रहे हैं और अनेक स्थानों पर हिन्दीभाषी हिंसा का शिकार भी हुए हैं. क्या कसूर है इनका ? कहां हैं मानवाधिकार समर्थक और कहां है हमारा कानून? कोई तो बताये कि आखिर अपने देश में ही क्यों पराये हैं हिन्दीभाषी ?

Saturday, January 10, 2009

कैसी कैसी नौटंकी होगी लोकसभा चुनाव में

अभी तक जो भी नौटंकियां राजनैतिक दल करते आ रहे थे, मानो कम थीं.अपनी कमीज़ को औरों से ज्यादा सफेद साबित करने की जो होड़ राजनैतिक दलों में लगी है ,उसका ही नतीजा है समाजवादी पार्टी के नेता अमरसिंह का लखनऊ सीट पर प्रत्याशी की घोषणा.
समाजवादी पार्टी के नेता ने मुन्नाभाई की गान्धीगीरी का चुनावी लाभ उठाने की नीयत से संजय दत्त को लखनऊ से लोकसभा का प्रत्याशी बनने की घोषणा कर दी. कांग्रेस की गान्धीगीरी का उन्हें यही सबसे माक़ूल जवाब लगा. इसमें तर्क ढूंढना फिज़ूल है.संजय दत्त का लखनऊ से क्या और कैसे नाता है, यह सवाल भी बेमानी है. चुनाव में प्रत्याशी सुनिश्चित करने का सबसे बडा पैमाना उसका "जिताऊ" होना है, फिर वह सारी दीगर कसौटिओं पर भले ही खोटा निकले. कांग्रेस व भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी के लिये भी यह फिल्मी गली अपरिचित नहीं है. राज बब्बर ( भले ही अब वह कांग्रेस की गोद में बैठ गये हैं), व जया प्रदा का सहारा वह पहले भी ले चुकी है.

अभी तक अनेक चुनावों का इतिहास सिद्ध करता है फिल्मी कलाकारों की लोकप्रियता सभी दलों के लिये कारगर हथियार साबित हुई है. तमिलनाड की तो पूरी की पूरी राजनीति फिल्म से जुडी शख्सियतों के इर्द-गिर्द ही घूमती आ रही है. एम जी आर से लेकर विजयकांत तक सब 'मौलीवुड" के रंग में ही रंगे हुए रहे हैं. एन टी रामा राव के बाद आन्ध्र में भी जब यही रंग चढ़ा, तो वहां भी ऐसे व्यक्ति निरंतर सफलता पाने के प्रयास मे लगेगी हैं जिनका नाता फिल्मों से रहा है. नयी पार्टी प्रजाराज्यम भी इसी का नतीजा है.
बम्बई नगरी में सुनील दत्त लम्बे अर्से तक राजनीति में फिल्म उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में रहे. अमिताभ का जिक्र छोड़ भी दें तो शतुघ्न सिन्हा, राजेश खन्ना की लोकप्रियता समय समय पर कांग्रेस व भाजपा ने भुनाई. इसी क्रम में गोविन्दा की लोकप्रियता का लाभ मंत्री राम नाइक को हराने में हुआ और अब शाहरुख की चर्चा है कि वह बम्बई की एक सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी बनेंगे .
अब भाजपा को कौन सा ठुमके वाला पसन्द आता है, यह जानने के लिये ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पडेगा. टी वी कलाकर नितीश भारद्वाज,अरविन्द त्रिवेदी,दीपिका चिखालिया, स्मृति ईरानी आदि को तो भाजपा भुना ही चुकी है.


मजे की बात तो यह है कि जब कई टिप्पणीकारों ने ( इसमें कभी संजय दत्त के वकील रहे और लखनऊ से एक बार प्रत्याशी रहे राम जेठ्मालानी भी शामिल हैं) संजय दत्त के नाम पर कानूनी योग्यता का प्रश्न खड़ा किया ,तो झट से उनके स्थान पर नयी पत्नी मान्याता का नाम अमर सिंह ने आगे कर दिया.साथ ही भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी का नाम भी उनके पक्ष से घोषित हो चुका है.


तो अब इस स्थिति तक आ गयी है राजनैतिक नौटंकी. दुहाई है.

Wednesday, January 7, 2009

आतंकवाद : ढेरों प्रश्न ,पहला प्रश्न-पाकिस्तान क्या करेगा?

बम्बई की आतंकवादी घटना के बाद से लगातार पाकिस्तान अभी तक मुकरता ही आ रहा था. अब जबकि सारे सबूत पेश कर दिये गये हैं (न केवल पाकिस्तान को, बल्कि उन तमाम देशों को भी, जिनसे भारत कार्यवाही में दबाब बनाने की अपेक्षा करता है ), पाकिस्तान के रुख पर निगाहें जमी हुई हैं.
पाकिस्तान के हुक्मरानों के प्रारम्भिक रुख से तो यही लगता है कि पाकिस्तान वही पुराना रिकौर्ड बजाता रहेगा. बडी ही चतुराई से पाकिस्तानी नेता किसी सीधॆ जवाब से बचते आ रहे हैं. एक स्वर उभरता है कि सबूत पूरे नही है, दूसरा वक्तव्य आता है कि कोई भी कार्यवाही हम करेंगे तो अपने देश में ही करेंगे.
आतंकवादियों मे अकेला ज़िन्दा बचा कसाब वहां का नागरिक है ,यह तो निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है. न केवल भारत , बल्कि अमरीकी खुफिया एजेंसी भी यह मान चुकी है और पाकिस्तान को समझा चुकी है. भारत के गृहमंत्री तो डी एन ए परीक्षण का प्रस्ताव भी रख चुके है अब क्या सबूत बाकी है ,यह पाकिस्तान बता भी नही पा रहा है.

सेटेलाइट फोन पर आतंकी पाकिस्तानियों की बातचीत का पूरा ब्यौरा भी पेश किया ज चुका है. यानी कि कुछ भी ऐसा नही बचा जो, सन्देह के घेरे में हो.

अब पाकिस्तान के पास विकल्प क्या है?

पाकिस्तानी सेना का एक अधिकारी ने कल ही कहा कि भारत द्वारा पेश सबूतों में कुछ भी नया नहीं है. दूसरा फौज़ी अफसर कहता है कि हम इनकी जांच करेंगे . जांच मे कितना समय लगेगा यह पाकिस्तान बताने को तैयार नहीं है.
ले दे कर पाकिस्तान के पास सिर्फ टाल-मटोल करने के अलावा कोई रास्ता नही है. पाकिस्तान हां-ना हां-ना करते करते समय निकालना चाहता है.

अब इससे दूसरा प्रश्न निकलता है- कि भारत कब तक पाकिस्तान के जवाब की प्रतीक्षा करेगा ?

Tuesday, January 6, 2009

यहां है सारी मिठाइयां -और भी बहुत कुछ्

जिस साइट से कुछ मुंह में पानी आने वाले फोटो लिये थे वह साइट है; Indian Food

खाना खजाना -दुकान मिठाई की- मांग पंगेबाज की

इतने दिनों बाद ब्लोग पर वापसी करने पर भाई अरुन अरोरा (http://pangebaj.blogspot.com) ने मिठाई की मांग कर डाली. वादा तो पूरा करना था. सोचा क्यों न virtual मिठाई हो जाये.













तय किया कि एक बढिया सी फोटो डाउनलोड करके अपने ब्लोग पर डालते हैं और पंगेबाज जी को आमंत्रित करते हैं.
पहली फोटो ढूंढी तो देखते ही मुंह में पानी आ गया. सोचा कुछ और देखते हैं .मिठाई की दुकान ही सज गयी. फिर तय किया कि आज कुछ चुनी हुई मिठाइयां ही हाज़िर की जायें ,बाकी फिर कभी.



( फिर मन में आया कि कहीं कोई copyright violation तोनहीं हो जायेगा, सोचकर एक साइट का लिंक भी हाज़िर कर रहा हूं.

Sunday, January 4, 2009

लो !! मैं वापस आ गया

पिछले आठ माह में सिर्फ तीन -चार पोस्ट ही लिख पाया और अंत में घोषित भी कर दिया था कि कुछ दिनों तक व्यस्तता के कारण ब्लोग पर नहीं दिखूंगा.
तीन दिन पहले औपचारिक दस्तक भी दी थी ,और कहा था कि: " चौंकना मत ..अगर मेरी दस्तक सुनो".

और अब दस्तक के बाद हाज़िर हूं ,फिर से.

इन दिनों बहुत कुछ भोगा, बहुत कुछ सहा. अनेक बार मन हुआ कि कुछ लिखूं पर .....

दरअसल ,मैं आई आई टी दिल्ली में शोध छात्र (हूं) था, और शोध प्रबन्ध को अंतिम रूप देने में व्यस्त था. 30 दिसम्बर को अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत कर दिया ,तब जाकर दिल को सुकून हुआ. लगा कि एक बडी जिम्मेदारी से मुक्त हुआ.

मैं अपने मित्रों से भी क्षमा चाहूंगा कि उनके ब्लोग भी पढ नहीं सका , इस दौरान टिप्पणी भी नहीं कर सका ,हालांकि नुकसान मेरा ही रहा क्योंकि अनेक पढने ,गुनने और सीखने योग्य सामग्री से वंचित ही रहा .

कुछ मित्रों के आमंत्रण पर उनके साथ उपस्थित भी न हो सका.मुझे विश्वास है, मित्र गण अन्यथा न लेंगें.

पिछले तीन दिनों में एग्रीगेटर के माध्यम से बहुत कुछ पढा तो जाना कि आखिर ब्लोग पर क्या क्या चल रहा है.

पिछले वर्ष की तरह ,पुन: सक्रिय होने का प्रयास करूंगा.

तो..... मिलता हूं.

Friday, January 2, 2009

चौंकना मत अगर मेरी दस्तक सुनो

चौंकना मत अगर मेरी दस्तक सुनो
देके आने की पहले, खबर आऊंगा.

दूर था इसलिये सबने देखा नहीं
हर जगह देखना अब नज़र आऊंगा.

-अरविन्द चतुर्वेदी