फिर आई 26 जनवरी और फिर हुआ रेवड़ियां बांटने का सिलसिला . किसी को चोट ना पहुंचे परंतु फिर भी साल -दर- साल उठने वाले इस प्रश्न का कोई संतोषजंक उत्तर कहीं से भी नहीं आता.
पद्म विभूषण, पद्म भूषण एवम पद्म श्री उपाधियां दिये जाने की न तो प्रक्रिया पारदर्शी बनाई जाती है और नही ही ऐसे नामों पर विचार किया जाता है जिन्हे वास्तव में राष्ट्र द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिये.
1977 में जनता पार्टी सरकार ने इन पद्म पुरुस्कारों पर रोक लगाकर एक अच्छा कदम उठाया था, परंतु बाद की सरकारों ने न्यायिक प्रक्रिया द्वारा फिर बहाल करवा लिया.
आखिर किसका प्रयोजन सिद्ध होता है इन पुरुस्कारों से?
ज़ाहिर है कि इसमें निज़ी स्वार्थ ,भाई -भतीजावाद ,'तू -मेरी कह मै-तेरी' अव्यावहारिक नीतियां ही ज़िम्मेदार हैं .
जैसा कि मैने पहले कहा किसी एक य दो नाम लेने से कोई लाभ नहीं ,ये पब्लिक है सब जानती है.
इन पुरुस्कारों पर रोक लगाना ही उचित होगा.