Sunday, November 14, 2010

समीर भाई का दिल्ली मिलन : एक अनियमित ब्लोगर की ओर से एक अरपट

लगभग दो माह पूर्व समीरलाल जी की एक मेल प्राप्त हुई थी जिसमें सूचना थी कि 11 नवम्बर को दिल्ली आयेंगे. तारीख नोट कर ली गयी, फिर अगली सूचना का इंतज़ार रहा. दीवाली पर शुभकामना का आदान प्रदान हुआ ,परंतु समीर जी की ओर से दिल्ली आने का ज़िक्र न पाकर सोचा शायद कार्यक्रम बदल गया हो.

12 तारीख को मैने सोचा कि यदि समीरभाई आ रहे हैं तो किसी न किसी ब्लोग पर तो सूचना होगी ही. चिट्ठाजगत पर गया तो झकाझक टाइम्स और फिर नुक्कड से पूरी जानकारी मिली.तुरंत 13 तारीख के दोपहर बाद के अन्य कार्यक्रम रद्द किये और सूचना दे दी कि मैं भी पहुंचूंगा.
क़ई बार मिलते मिलते रह गये समीर भाई से. 2008 के सुनिता शानू जी के कार्यक्रम में पहुंच नहीं पाया. 2009 में अमरीका गया पर 21 दिन बिताकर भी कनाडा न जा सका. 2010 में फिर कार्यक्रम बना और समीर जी से तय भी हो गया कि नियग्रा फाल्स पर भेंट होगी .पर मेरे कुछ छात्रों को वीसा न मिला और फिर कार्यक्रम बदला.

शनिवार को लगभग 3 बजे ढूंढते ढूंढते नियत स्थान पहुंचा और दूर से ही अविनाश जी नज़र आ गये.बालेन्दु दाधीच जी के अतिरिक्त वहां एकत्र अन्य ब्लोगरों से अपरिचित था अत: परिचय कराया अविनाश जी ने.
चाय-पानी का एक दौर चल चुका था. ( वो वाली चाय गर्म थी-दीपक बाबा जी!!),मेरे लायक बिना चीनी की चाय भी थी.


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सक्रिय ब्लोगर व पाठक न होने के नाते 2008-09 मे ब्लोग जगत पर छाये बन्धुओं से अपरिचित था. पहले मिला तारकेश्वर गिरि जी से. मैने पूछा क्या लिखते हैं? उन्होने बताया कि मुख्यत: ब्लोग पर गन्दगी फैलाने वाले कुछ ब्लोगरों को कस कर जवाब देता हूं . उन्होने दो तीन ऐसे धतकर्मी ब्लोगरों के नाम भी गिनाये ... ( ...जाने भी दो यारो...)
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नीरज जाट जी मिले. कहा गया कि इनके ब्लोग पर एक पहेली आती है ,जो वाकई चुनौतीपूर्ण होती है. नीरज जी ने बताया के वह किसी ....अंटी..चोर से परेशान हैं ,जो बहुत मेहनत करके पहेली का हल खोज़ लेता है और अपने ब्लोग पर जाकर लिख देता है कि नीरज जाट की पहेली का उत्तर ..फलाना .. है. लोग पहले उस ब्लोग पर जाकर हल पढते हैं और फिर्..इस ब्लोग पर जवाब देते हैं... ******************************************************************
रचना जी मिलीं. 2007 के एकाधिक ब्लोगर सम्मेलन में भेंट हो चुकी थी. तब तक कुछ और मित्र भी जुड चुके थे. अचानक बहस जैसी छिड गयी कि लोग ब्लोग क्यों लिखते हैं . ज़ाहिर है राय भिन्न भिन्न थी. मैने इसमें जोड़ा कि यहां कोई रचना वापस करने वाला सम्पादक नहीं है. कोई भी भाव हो,भावना हो, विषय हो, या भाषा हो,साहित्य लिखिये,गाली दीजिये, सब चलता है... ******************************************************************
अजय झा जी से भी भेंट हुई, ब्लोग अनेक बार देखा था परंतु,मुलाकात पहली थी. सुरेश य़ादव , शेखावत जी, अनिल कौशिक जी, शाह्नवाज सिद्दीकी, आदि से परिचय हुआ-पहली बार. तब तक राजीव तनेजा भी आते दिखे. पुराने ब्लोगरों में से वह भी परिचित चेहरा थे.
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3.15 पर परिसर में एक गाडी घुसी और भारी भरकम शख्सियत उतरी ( या कहें अवतरित हुई) ,हां ,हां वही उड़न तश्तरी...
फिर सतीश सक्सेना जी से परिचय हुआ ,जो समीर जी के रथ के सारथी थे
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तय हुआ कि अन्दर हाल मे चला जाये .इस बीच जिस रफ्तार से भाइयों के फोनी कैमरे क्लिक हो रहे थे, लग रहा था कि कई ब्लोगर सचित्र विवरण देने वाले है.. यही सोच कर मैने अपने कैमरे को ज़हमत नहीं दी.... *******************************************************************
कार्यक्रम के बीच व अंत में जिन अन्य ब्लोगरों के नाम पता चला –विनोद पांडे, राम बाबू, टी एस दराल, पदम सिंह, एम वर्मा,दीपक बाबा. कार्यक्रम शुरु होनेपर पधारे – सुनीता शानू जी, निर्मल वैद्य, अपुर्व बजाज, मोहिन्दर कुमार जी...
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अनिल कौशिक जी ने प्रायोजक का परिचय भी दिया और बीज वक्तव्य भी क्योंकि अविनाश जी को मोबाइल से फुर्सत ही नहीं मिल रही थी. फिर सुरेश यादव जी के साथ परिचय शुरु हुआ. सब दो दो मिनट बोलते रहे. अधिकांश ने अपने ब्लोग का परिचय भी दिया और ब्लोग –ब्लोगिंग –ब्लोगर पर लघु वक्तव्य भी. मुख्य वक्ताओं में बालेन्दु शर्मा जी ने चेताया कि 2010 के आंकड़ों के अनुसार ब्लोगरी बढ तो रही है ,परंतु विकास की दर कम हो रही है.उन्होने प्रश्न चिन्ह लगाया के कहीं हम कम समय में बहुत ज्यादा पाने की उम्मीद तो नहीं कर रहे.मज़ेदार रहा उनकी पांच पृष्ठों का कविता पाठ. इस खोज पूर्ण व व्यंग्य बाणों से भरी कविता में जैसे ही किसी ब्लोग्गर ( टाइप) का ज़िक्र आताअ, सतीश जी पूछते –यह आप्पने बारे में ही कह रहे हैं ना ? एक बार जब बिना पढे टिप्पणी करने का जिक्र हुआ ,तो समीर भाई ने धीरे से पूछा-यह किसके बारे में है?
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प्रसिद्ध व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय जी पर अध्यक्षता मानो थोप सी गयी .कहा गया कि आप वरिष्ठ हैं अत: आपं अंत में बोलेंगे. प्रेम जी ने वरिष्ठता लेने से सरासर इंकार कर दिया और चन्द वाक्यों मे वाचस्पति जी को धन्यवाद देकर अपना वक्तव्य समाप्त घोषित कर दिया. उन्होने कहा कि मुझे तो अविनाश जी ने सिखाया है और मैं तो छोटा सा ब्लोगर ही हूं *******************************************************************
अब बारी थी मुख्य अतिथि समीर जी की. उन्होने ब्लोगिंग के प्रयोजन, मंतव्य, उपयोगिता ,विकास , भविष्य सभी विषयों को समेटा.एक विषय पर उनकी रचना जी से लम्बी बहस होते होते बचाई अनिल कौशिक जी ने . बह्स थी कि आप अपने ही घर मे नया ब्लोगर क्यों नहीं बनाते. रचना जी का आग्र्ह था कि पुरुष ब्लोगरों को चाहिये कि वे अपनी पत्नियों को भी ब्लोग लिखना सिखाये ताकि पाठक भी बढॆं और लेखक भी.
समीर जी ने अपने शरीर के अनुपात में भारी भरकम तर्क पेश किये. मैदान तो उन्हे मारना ही था.

फुरसतिया वाले अनूप शुक्ल जी का जिक्र भी आया. सतीश सक्सेना जी ने कहा कि कहा जायेगा कि मैं समीर जी के गुट में आ गया हूं. समीर भाई ने बताया कि वह किसी विवाद में नहीं रहते,न किसी विवाद पर टिप्पणी ही करते हैं .उनका किसी के प्रति दुराव नहीं है, न वह किसी के विरोधी गुट में हैं.
उन्होने माना के अनूप शुकल जी उनके गुरु हैं और वह गुरु के विरोध में कैसे हो सकते हैं ?
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अंत मे ग्रुप फोटो का प्रस्ताव था ,परंतु यू एन आई टी वी वाले आ गये तो व्यवधान हो गया.लोग तितर बितर से होरहे थे क्यों कि बाहर ( गर्म? ) चाय का एक और दौर था.
मुझे फिर फीकी चाय मिल गयी थी. मैं प्रसन्न भी था . संतुष्ट भी. एक एक कर के सब से बिदा ली और मैं ये गया...वो गया.... *******************************************************************
प्रवासी संसार, नुक्क्ड ,अविनाश जी व अन्य आयोजकों को धन्यवाद.

Tuesday, September 28, 2010

साहित्यकार एवम पत्रकार श्री कन्हैया लाल नन्दन : एक श्रद्धांजलि

नन्दन जी नाम तो धर्मयुग के समय से ही सुनता आ रहा था. उन्हे देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ 1981 में . 10,दरियागंज से टाइम्स की पत्रिकायें निकलती थी. इस बिल्डिंग के ठीक सामने एक छोटी सी चाय की दुकान थी जिसे एक सरदार जी चलाते थे. मैं विज्ञापन एजेंसी ACIL की research division में senior executive था और कलकत्ता से ट्रांसफर हो कर दिल्ली आया था और वहीं पास में मेरा कार्यालय था. लंच के समय वहां चाय पीने के बहाने नियमित आने वालों में थे महेश दर्पण, सुभाष अखिल, सुरेश उनियाल, धीरेन्द्र अस्थाना,रमेश बत्रा. कभी कभी यहां अन्य बडे लेखकों कहानी कारों, पत्रकारों के दर्शन हो जाया करते थे.ऐसे एक बार नदन जी से भी मिलना हुआ. ( वहां एकाध बार सर्वेश्वर जी, योगेश गुप्त, आनन्द स्वरूप वर्मा ,अवध नाराय्ण मुद्गल आदि से भी सामना हुआ था). मैं उन दिनों 'वामा' पत्रिका के लिये लिखता था ( सुश्री मृणाल पांडे सम्पादक थीं),बाद में दस दरियागंज से प्रकाशित 'दिनमान' में भी लिखा,जब सतीश झा सम्पादक बने थे.

कविता का शौक था अत: साहित्यकारों का सानिध्य भाता था. उन्ही दिनों दूरदर्शन पर किसी कवि सम्मेलन मे नन्दन जी की वह कविता जिसमें वह समुद्र से वार्तालाप करते हैं सुनी.जिसमें वह समुद्र को उसके पानी के खारेपन के अतिरिक्त अन्य खामियां गिनाते हैं , बस वहीं से मैं श्री नन्दन का प्रशंसक बन गया. उसके बाद तो जैसे जैसे उन्हे पढता और सुनता गया ,उतना हे उनके प्रति सकारात्मक भाव बनते गये.
मैं मालवीय नगर में रहता था. वहीं एक बार 'सागर रत्ना' नामक रेस्त्रां में उनसे भेंट हुई. मैं कानपुर का हूं और यह जानकर खुशी हुई कि नन्दन जी का समय भी कानपुर में बीता तो आत्मीयता बढी.

बाद में जब मेरी पहला कविता संग्रह 'नक़ाबों के शहर में' प्रकाशित हुआ( जिसकी भूमिका डा. केदार नाथ सिंह् ने लिखी थी)तो इसकी एक प्रति मैने नन्दन जी को भी भेंट की. उनदिनों नन्दन जी एक स्तम्भ 'जरिया-नजरिया' लिखते थे और इसी स्तम्भ में उन्होने 'मेरी पसन्द' नाम से कुछ कवितायें देना प्रारम्भ किया. इसी स्तम्भ में उन्होने मेरी एक कविता का ज़िक्र भी किया और मेरा परिचय भी अपने स्तम्भ में दिया. मैं गद्गद हुआ और उनके घर ( 132 कैलाश हिल्ल्स) जाकर मिला.

1999 में मेरा गज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन था. मेरे अनुरोध पर वह उसकी भूमिका लिखने के लिये तैयार हो गये.( देखें उनके हस्त-लिखित अग्रलेख की प्रति). मेरी गज़लों पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होने लिखा "... और इस तरह अरविन्द जी दुष्यंत की जलाई हुई मशाल का दंडमूल थामे आगे बढते हुए नज़र आते हैं ..". इस अग्र-लेख का शीर्षक भी उन्होने ही दिया- " इंसानी ज़िन्दगी के अक्स"

फिर वह गिरने से चोट लगने के कारण AIIMS में भर्ती रहे तो उन्हे देखने भी गया. उन्हे बातचीत में जानकारी हो गयी थी कि मेरी पत्नी provident fund ( भविष्य निधि ) में प्रवर्तन अधिकारी हैं . उन्हे अपनी पुराने नियोक्ता से धनराशि मिलने में कुछ कठिनाई हो रही थी. मेरे अनुरोध ( कि मैं उनके घर आकर जानकारी ले लूंगा) करने के बावज़ूद वह स्वयं मेरे घर आये और सारे कागज़ -आदि सौंप गये.





फिर जब उनका संग्रह ' बंजर धरती पर इन्द्र धनुष' ( जो उनके स्तम्भ -मेरी पसन्द - में छपी कविताओं आदि का संग्रहीत रूप था), तो इसमें भी उन्होने मेरी कविता को स्थान दिया ( पृष्ठ 155-156, देखें स्कैन प्रति).इस पुस्तक के विमोचन पर जो डा. कर्ण सिंह ने किया था, दिल्ली का पूरा साहित्य जगत उपस्थित था.








मेरी उनसे अंतिम मुलाक़ात पिछले वर्ष एक साहित्यिक गोष्ठी में हुई थी ,जिसमे उन्होने मेरी पसन्द की कविता 'सूरज की पेशी' सुनाई थी. मैने कुछ दोहे व गज़ल पढी थीं जिसे उन्होने सराहा .

बहुत कम ही ऐसे साहित्यकार रहे हैं जो स्फल पत्रकार भी बने . टाइम्स समूह में यह परम्परा ही रही.नन्दन जी इन्ही गिने चुने साहित्यकारों मे से थे. बाद में एलेक्ट्रोनिक मीडिया आने के बाद भी वह इन-चैनल के सम्पादक रहे.

नन्दन जी अपने प्रिय पाठकों, मित्रों, सहकर्मियों आदि में अपने स्वभाव के चलते लोकप्रिय बने रहे. वह ऐसी शख्सियत नहीं थे जो आसानी से भुलाई जा सके.
मेरी श्रद्धांजलि.











Wednesday, September 22, 2010

टाइम्स ओफ इंडिया-खबर बेटे की या बाप की? रिपोर्टर को भी नहीं पता ? Times of India :ALL in the FAMILY ??

सम्पादक तो सम्पादक ,रिपोर्टर को भी नहीं पता कि क्या पिछले दिन क्या खबर लगायी गयी थी और उसका क्या फोलो-अप जाना है. खबर बाप की और फोलो-अप बेटे का.
जी हां ,प्रतिष्ठित 'राष्ट्रीय" दैनिक टाइम्स ओफ इंडिया का है यह हाल.

पहली ख़बर छपी 17 सितम्बर को . पूर्व कानून मंत्री शांती भूषण के हवाले से . रिपोर्टर धनंजय महापात्र ने लिखा कि श्री भूषण ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर कहा कि कि 16 पूर्व मुख्य न्यायाधीशों में से कम से कम आठ् निश्चित रूप से भ्रष्ट थे . ज़ाहिर है ऐसा कहने से उनके ऊपर कोर्ट की अवमानना का मामला बन सकता था. खबर में कहा गया था कि श्री शांती भूषण ने चुनौती देते हुए यह आरोप लगाये और कहा कि यदि हिम्मत है तो मेरे ऊपर अवमानना का केस दर्ज़ किया जाये.


खबर महत्वपूर्ण तो थी ही. अनेक लोगों ने श्री शांतीभूषण ने इस कदम को सराहनीय और वाकई साहसी, हिम्मत वाला बताया . ( मैने तो तुरंत ट्विटर Twitter पर अपनी टिप्पणी भी दे डाली, देखें : http://twitter.com/ArvindChaturved
http://twitter.com/bhaarateeyam


मैने तो अपनी टिप्पणी में twitter पर लिखा कि श्री शांतीभूषण को एक कदम बढ़ कर उनके नामों का खुलासा करना चाहिये.
दो दिन बाद 19 सितम्बर के Time of India में पहले पेज पर छपी खबर देखकर चोंकने की बारी मेरी थी. श्री शांतीभूषण वाली 17 सितम्बर की खबर का फोलो-अप था और इसमें श्री शांतीभूषण का ज़िक्र न होकर उनके बेटे ( और वकील ) प्रशांत भूषन का नाम आ रहा था. मुझे लगा कि मैने ही गलत पढा होगा. मैने खबर की पुष्टि के लिये इसी अखबार की website देखी .



उसी रिपोर्टर (धंनंजय महापात्र) ने दो दिन बाद जाने वाले फोलो-अप् में लिखा कि श्री प्रशांत भूषण ( जिन पर अवमानना का मामला दर्ज़ किये जाने की सम्भावना है) ने आज उन नामों का खुलासा करते हुए प्रमाण भी प्रस्तुत किये .

अब खबर का तो मलीदा बन गया ना?

खबर की तो जान ही निकल गयी. 17 तारीख को कुछ आरोप लगाये श्री शांती भूषण ने और 19 सितम्बर की रपट में उनके नाम्को गायब करके छाप दिया नाम उनके बेटे का.!!!

वाह टाइम्स ओफ इंडिया वाह !!!

मैं सोच रहा था कि चलो भूल हो गयी पर शायद अगले दिन /या उससे भी अगले दिन सम्पादक् की ओर से कुछ क्षमा याचना तो होगी ही अखबार के पहले पेज पर.


परंतु रिपोर्टर तो रिपोर्टर ,शायद सम्पादक महोदय ने भी नहीं पढी यह खबरें.

यह हाल है हमारे राष्ट्रीय मीडिया का.

Monday, August 9, 2010

हास्य गज़ल

बैठा हूं मैं उदास तेरे घर के अपोजिट
लूंगा यहीं सन्यास तेरे घर के अपोजिट.

लम्बा है और हरा है तेरे सामने का लौन ,
खायेंगे गधे घास तेरे घर के अपोजिट.

जिस जिस को तूने देख लिया टेढ़ी आंख से
घूमे है बदहवास तेरे घर के अपोज़िट.


ठर्रे की दुकानों पे पियक्कड करें दंगे,
पकडे गये बदमाश तेरे घर के अपोजिट.

जब से मिली है आशिक़ों को बोलने की छूट,
आशिक़ करें बकवास तेरे घर के अपोजिट.

कुत्ते के काटने पे थी सुईयां लगी जिन्हे,
बन्दे थे वे पचास तेरे घर के अपोजिट.

खूसट से तेरे बाप से टकरा गये थे जो,
कुछ आम थे ,कुछ खास तेरे घर के अपोजिट.

Sunday, August 8, 2010

प्रलय का कहर

लेह लद्दाख में बादल फटने की विनाशकारी घटना ने वहां के निवासियों पर कहर ढाया है.टी वी पर खबरें देख देख कर मन द्रवित हो जाता है. जान -माल का भारी नुकसान होने के बाद वहां के पीड़ित लोगों की दुश्वारी और भी बढ गयी है. संचार के माध्यम सब कटे हुए हैं. आने -जाने के रास्ते बन्द हैं. यहां तक कि सरकारी मदद पहुंचने में भी मुश्किल आ रही है.

खाने -पीने की भारी किल्लत है ,लोग पूरी तरह से प्रलय -पीडित् हैं.

सरकारी आंकडों के अनुसार भले ही दो सौ से कम जानें गयी हों ,परंतु प्रलय की विभीषिका इन आंकडों से कहीं अधिक भयंकर हैं. हज़ारो घरों में लोग बेघर हो गये हैं और परिवारों में सदस्य लापता हैं,जिनकी खोज निरंतर ज़ारी है.

ऐसे समय में पीडित परिवारों को मदद की ज़रूरत है. हम सभी को अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ न कुछ मदद ज़रूर करनी चाहिये.


उन अनाम मृतकों को मेरी श्रद्धांजलि जो इस प्राकृतिक विपदा के शिकार हुये.

Tuesday, August 3, 2010

गज़ल्

मैं ढूंढता हूं एक राज़दार शहर में
हर दोस्त मेरा बन गया अखबार शहर में.


जिस शख्स का इतिहास भी थाने में दर्ज़ था,
वो आज बन गया है असरदार शहर में.


अपने मुनाफे के लिये भगवान बेच दे ,
ऐसे हैं धर्म के अलमबरदार शहर में.



दिन रात लोग जो करें सत्ता की दलाली,
हां हां उन्ही के दम पे है सरकार शहर में.


जब से ये 'हाय' 'बाय' 'हलो' शब्द चले हैं,
गुम हो गया है जैसे 'नमस्कार' शहर में.

Wednesday, July 21, 2010

इंडियन आइडल 5 : असल खेल तो अब होगा

इंडियन आइडल (Indian Idol)-शुरू से ही यह रियलिटी शो मेरा पसन्दीदा टीवी कार्यक्रम रहा है. उसके बाद दूसरा नम्बर आता है बिग बौस (Big Boss) का. हालांकि ये दोनो ही कार्यक्रम विदेशी टी वी चैनलों की नकल ही हैं परंतु लोकप्रियता में दोनों अन्य रीयलिटी शो की तुलना में कहीं आगे हैं.

इंडियन आइडल -5 के औडिशन राउंड समयाभाव के चलते देख न सका. परंतु बहुत ज्यादा कुछ मिस नहीं किया. आखिरी 12 प्रतियोगियों के चुने जाने के बाद से लगातार देखता आ रहा हूं. मंगलवार 20 जुलाई का एपिसोड फिर छूट गया. आखिरी पांच में से एक का एलीमिनेशन होना था. कल से संशय था कि कौन निकाला गया होगा. आज वेबसाइट से पता चला कि कल निर्णायक मंडल ने अपना वीटो इस्तेमाल करके राकेश मैनी को निकलने से बचा लिया. ( यह भी कि आगे ये निर्णायक मंडल अब कोई वीटो इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे).

इन सभी रीयलिटी शो की जो बात अखरती है ( और कभी कभी मन में सन्देह भी पैदा करती है) कि जनता कमज़ोर
प्रतिभागियों को भी लगातार वोट क्यों देती रहती है ?

इंडियन आइडल में भी हर वर्ष एक न एक एक ऐसा प्रतिभागी ज़रूर होता है जो अपेक्षाकृत कमज़ोर होते हुए भी लोकप्रिय होने के चलते बचा रहता है. ( या उसे बचाये रखा जाता है ,ताकि एक क्षेत्र विशेष के दर्शक कार्यक्रम से जुडे रहें)?

इंडियन आइडल -5 में एक से एक बढकर गायन प्रतिभा आई. अब जो पांच बचे हैं उनमें श्री राम, शिवम, राकेश ,भूमि और स्वरूप खान हैं. मेरी राय में इनमें से स्वरूप खान को यहां तक नहीं पहुंचना चाहिये था. जनता के वोट न जाने कैसे उसे बचाये हुए हैं. शायद लोकगायन के क्षेत्र से आने के कारण उसके प्रति सहानुभूति ज्यादा है और इसी के चलते वह बचता चला आ रहा है.

इसी तरह शशि सुमन व नौशाद का निकाला जाना भी मुझे अखरा,क्यों कि मेरी राय में वह दोनो ही टीया, स्वरूप, व भूमि की तुलना में बेहतर गायक थे.

अब तो लगता है कि टी आर पी भी स्वरूप को नहीं बचा पायेगी. अगला नम्बर उसका ही होना चाहिये. इसके बाद ही होगा सही मायनों में मुक़ाबला. श्रीराम, राकेश और शिवम तीनों ही बहुत अच्छे गायक हैं. मैं आशा कर रहा हूं कि अंतिम तीन में यही तीनों पहुंचे.

अगला राउंड मज़ेदार होगा.मैं समझता हूं कि स्वरूप खान के बाद भूमि को निकला जाना चाहिये. देखें जनता की सोच में और मेरी राय में क्या फर्क है?

Monday, July 5, 2010

यू –ट्यूब ने किया पचास हज़ारी

यू-ट्यूब पर एक कवि सम्मेलन के मेरे काव्य-पाठ के अंश को देखने वालों की तादाद पचास हज़ार पार कर गयी. इसका लिंक नीचे दिया जा रहा है.आप भी आनन्द लीज़िये.

http://www.youtube.com/watch?v=w_vlI96_uCQ

मेरी यूरोप यात्रा-11-जब मैने तेहरान की लोकल ट्रेन चलाई

अगले दिन शुक्रवार को छात्रों के साथ industry visit पर जाना था. ठीक 9.40 पर Ms Odile Gruet का आना हुआ. हम सभी नीचे होटल के गेट पर ही इंतज़ार कर रहे थे. Corys Tess नामक कम्पनी मे जाना था. कम्पनी का दफ्तर लगभग एक किलोमीटर दूर था. हम लोगों ने पैदल चलना तय किया.
कम्पनी के अधिकारियों से परिचय होने पर उन्होने कम्पनी की उपलब्धियों के बारे में बताया तथा यह भी जोड़ा कि दिल्ली मेट्रो कार्पोरेशन को उन्होने आठ सिमुलेटर सप्लाई किये हैं.


हमने फ्लाइट सिमुलेटर के बारे में सुन तो रखा था परंतु अनुभव नहीं किया था.
यहां तो ट्रेन सिमुलेटर का सामनाहोने वाला था. हमें बताया गया कि ब्रीफिंग के बाद हमें न केवल सिमुलेटर की पूरी कार्यवाही समझाई जायेगी बल्कि एक सिमुलेटर पर मेट्रो ट्रेन की ड्राइविंग भी सिखाई जायेगी. इसके पहले कि मेरे छात्र जो सभी एंजीनीयर थे, आगे आते पहले मैने इस अनुभव के लिये खुद को पेश कर दिया. जिस सिमुलेटर पर हमॆ ले जाया गया वह तेहरान के लिये बनाया गया है तथा कुछ ही दिनों मे दस सिमुलेटर तेहरान मेट्रो के लिये सप्लाई होने वाले हैं.




मुझे ड्राइवर की सीट पर बैठाया गया मेरे दो छात्र मैं कोंसोल पर थे जहां से पूरी ट्रेनिंग नियंत्रित की जाती है. शेष तीन छात्र मेरे साथ द्राइवर केविन में ही थे. पहले हेडफोन के ज़रिये मुझे ड्राइवर केबिन के कंट्रोल्स के बारे में बताया गया. स्पीड ,बेकिंग, कितनी दूर् पर ब्रेक लगाने हैं ट्रेन को कहां रोकना है. ,लाइन पर कोई एक्सीडेंट हो जाये तो इमर्जेंसी में क्या और कैसे करना है. धीरे धीरे मैने तेहरान के स्टेशन पर मेट्रो ट्रेन चलानी शुरू की . पहली बार प्लेटफोर्म से कुछ आगे जाकर रुकी. फिर अगले
प्लेटफोर्म पर पहुंचने में समय ज्यादा ले लिया . अगली बार बिल्कुल सही स्पीड पर जा रहा था कि पटरी पर एक कुत्ता आ गया और मैने ब्रेक न लगा कर उसे मार दिया.

..कुल मिला कर एक अलग ही किस्म के अनुभव व रोमांच का सामना हुआ. इसके बाद अन्य छात्रों की बारी आयी. अब हमारी बारी कंसोल पर थी.
एक अफसोस ज़रूर रहा वह यह कि इस अनुभव को हम कैमरे में कैद न कर पाये. मैं सोच रहा था कि अजय तो अपना कैमरा लेकर आयेगा ही और उसने भी यही सोचा और दोनों ही आज बिना कैमरे के पहुंचे थे. ( यहां दिये गये सिमुलेटर के चित्र कम्पनी की प्रचार सामग्री से हैं).


आज शाम ग्रेनोबल एकोल डी मेनेजमेंट की ओर से फेयरवेल डिनर का इंतज़ाम था.
Grenoble शहर के बाहर जाकर Chateau de la Commanderie नामक जगह पर खाना बुक था. यह पहले एक राजसी परिवार की सम्पत्ति थी, और अब एक रेस्त्रां बन गया है.


GGSB के business manager ( Gael Foillard) गेल फौइल्लर्द व उनकी पत्नी हमारे मेज़बान थे. रास्ते में गेल ने इस रेस्त्रां के इतिहास के बारे में बताया .


वहां पहुंच कर जैसी कल्पना की थी वैसा ही पाया. फ्रेंच शैली का पांच कोर्स का फ्रेंच खाना.


मेज़बान को यह भी पता था कि छह मेहमानों मे से तीन शाकाहारी हैं खाना ऐसा कि अधिक कहना मुश्किल परंतु सिर्फ महसूस ही किया जा सकता है. ( शायद चित्र से कुछ कहाँ सकूं इसलिये कुछ खाने के चित्र विशेष तौर पर ).







Tuesday, June 15, 2010

माफी नहीं, सर चाहिये

नहीं, इस बार माफी से काम नहीं चलेगा. दोषी चाहे कोई भी हो, गिरफ्तारी हो, समयबद्ध मुक़दमा चले और सज़ा होनी चाहिये . हम चाहते हैं कि न केवल दोषियों को सज़ा मिले बल्कि पीड़ित परिवारों को प्रति पीड़ित व्यक्ति दस लाख रुपये का मुआवज़ा भी मिले.


वारेन एंडर्सन को किसने भगाया ,किसने उससे रिश्वत ली और किसने देश वासियों के साथ धोखा किया? रोज़ाना नई नई जानकारिया सामने आ रही हैं . भोपाल के तत्कालीन डी एम , पुलिस अफसर ,हवाई जहाज़ का पायलट , किसी पार्टी का कोई प्रवक्ता, या किसी एन जी ओ का कोई सक्रिय सदस्य- इन सभी का कुछ भी बयान आये, इस बार कोई दोषी बचने ना पाये.

सबको मालूम है सी बी आई का कैसे दुरुपयोग किया जाता रहा है और (इसी मामले में नहीं,बल्कि अन्य मामलों में भी) किया भी गया. अब जनता का, मीडिया का इतना अधिक दबाब होना चाहिये कि सी बी आई अपने रीढ़ की हड्डी में बांस की खपच्ची लगा कर खडी हो और पूरे मुक़दमें के दोबारा सुनवाई की अपील सुप्रीम कोर्ट में करे.इस अपील की मुख्य दलील पीड़ित को उचित मुआवज़ा दिलाना ही होना चाहिये.

अर्जुन सिंह मुंह खोलें या न खोलें , सबको हक़ीक़त पता है. पर अब अर्जुन सरीखों के मुंह को खोलने पर मज़बूर किया जाये. जो सरकारी अफसर यह कह कर बचना चाह रहा है कि वह क्या करता उसे तू ऊपर से आदेश थे, ऐसे सारे अफसरों को सरेआम खुली अदालत लगा कर नंगा किया जाये और ज़िम्मेदारी दोषी अफसरों पर भी डाली जाये .

प्रधान मंत्री ने मामले को ठंडा करने के लिये मंत्रिय़ों की एक समिति के हवाले कर दिया है . इस समिति की रपट क्या आयेगी यह भी सबको पहले से ही पता है. यदि किसी को बलि का बकरा बना कर कांग्रेस बचना चाहे और माफी नामा देश के सामने पेश करें तो इस माफी नामे को भी नकार दिया जाना चाहिये. हमें माफी नहीं ,सर चाहिये .
जो लोग अब ज़िन्दा नही हैं ,उन पर मुक़दमा तो नहीं चलाया जा सकता, परंतु यदि उनका दोष सामने आता है तो इसे इतिहास में दर्ज़ किया जाना ज़रूरी है .आने वाली पीढी को पता होना चाहिये कि पिछली पीढी में कैसे कैसे पापी हुए हैं.

यदि भारतीय लोकतंत्र कलंकित हुआ है तो लोकतंत्र के इस काले पन्ने को सबके सामने खुल कर रखे जाने की ज़रूरत है कि आने वाली पीढी सदैव सचेत रहे और लोकतंन्त्र फिर से दुबारा कलंकित न हो. अफसर शाही कलकित ना हों और न ही न्यायपालिका पर कोई आंच आये .

जनता के और मीडिया के दबाब से यह सम्भव है. यह दबाब बन रहा है. इसे और अधिक पुख्ता करने की ज़रूरत है .

वाह!!! लालू जी वाह!! नीतिश को गरियाओगे तो पासवान को कहां छिपाओगे ?

इस हमाम में सभी नंगे हैं . इधर नीतिश कुमार का मुलम्मा उतरा तो उधर लालू जी भी अपनी भद पिटवा गये.

एक प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिये लालू जी ने भाजपा से दोस्ती के सवाल पर नीतिश को कटघरे में खड़ा करके गोला दागा. कहने लगे कि जरा भी शर्म है तो या तो भाजपा से अलग हो जायें या फिर भाजपा में शामिल हो जायें.
बहुत सही लालू जी. अच्छा प्वाइंट पकड़ा है आपने . हम भी सहमत हैं . पर सूप बोले तो बोले छलनी भी ...

लालू जी, आप तो राम विलास पासवान को राज्यसभा में भेज् रहे हैं. ये वही पासवान हैं ना जो राजग की सरकार में मंत्री थे. अब आपके सगे हैं ? यानी जो आपके साथ रहे वह धर्म-निरपेक्ष और जो आपके खिलाफ हो जाये वह साम्प्रदायिक.

कल तक तो पासवान साम्प्रदायिक थे और आपके लिये अछूत थे,( जैसे कि नीतिश कुमार आज हैं). अब आपकी गोटी उनके साथ फिट बैठ रही है ,तो उनका सारा दाग धुल गया? कौन सी गंगा में नहला दिये उन्हें आप ?

वाह वाह !! नीतिश कुमार ! गुड़ खाओगे और गुलगुले से परहेज़ करोगे ?

इस सादगी पे कौन ना मर जाये ए खुदा

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


जी हां ,ये ज़ुबानी ज़मा-खर्च की लड़ाई किसे दिखा रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ? भाजपा के साथ गल्बहियां भी हैं और आंखों के डोरे भी लाल हैं ! क्या बात हैं? ये बाज़ीगरी ही तो इनकी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है.

इधर भाजपा को आंख दिखायी ,प्रेस के सामने खूब गरियाये.उधर चुपके से .....लुधियाना की रैली में जो फोटो खींचा गया था फर्ज़ी था क्या? नहीं ना ? फिर हाय तौबा क्यों ? एक मोदी ( नरेन्द्र) को खरी खोटी सुनाई, दूसरे मोदी ( सुशील) को पुचकार दिया. इधर राजग ( NDA) के साथ सरकार भी चलाओगे और ‘सोने ‘ से खरे भी दिखना चाहोगे ?
जनता को बेवकूफ समझ रखा है क्या ?

अब समय आ गया है कि जनता ऐसे राजनीति के बाज़ीगरों को कटघरे में खड़े कर के सवाल पूछे. दुमुहीं राजनीति कतई बर्दाश्त नहीं होगी.राजनैतिक पाखंड को बेनक़ाब किया जाना चाहिये. फिर चाहे वह नीतिश हों या लालू या पासवान .... ( देखें अगली पोस्ट)

Sunday, June 13, 2010

मेरी यूरोप यात्रा-10- कुछ और पेरिस...



20.04.10 मंगलवार

आज शोपिंग का कार्यक्रम था. तय हुआ था 9.30 बजे . निकल पडेंगे ताकि सब कुछ निबटा कर दोपहर बाद की ट्रेन से वापस ग्रेनोबल जा सकें. पिछली रात सोते सोते बहुत देर हो गयी थी. टी वी का रिमोट लौक हो गया ,फिर मेकेनिक को बुला कर ठीक कराया. फिर अन्य लिखा पढी / नेट / चेट में दो बज गये.






सुबह नीन्द तब खुली जब दरवाजे पर लगभग पीटने की आवज़ें आयीं. हां यह पीटर ही था. ( पीटर ,ज़ाहिर है पीटेगा ही !!!!!) .पीटर ने बताया कि अन्य सभी नाश्ता कर के इंतज़ार करते रहे और फिर फुटकर शौपिंग के लिये निकल गये हैं . बिल्कुल युद्धस्तर पर तैयार होना पडा. भाग कर ब्रेक फास्ट किया. वहां भी सब कुछ समेटा जा चुका था ,जो मिला ,काम चलाया. लगभग दो-ढाई घंटे का शौपिंग का समय था. परफ्यूम ज़रूरी था, अन्य कुछ पेरिस की यात्रा को यादगार बनाने के लिये ... . बाज़ार में घूमते घूमते मैं अन्य साथियों से अलग हो गया. नियत स्थान पर मिलना तय हुआ था. शौपिंग आदि पूरी कर के धीरे धीरे सब वहीं मिल गये.






सब अपने अपने पसन्द का खाने खाना चाहते थे. पीटर हमें पास ही ऐसे क्षेत्र में ले गया जहां भिन्न प्रकार के अनेक भोजनालय थे. हमने चुना ‘हिमालयन’ जो वस्तुत: एक पाकिस्तानी रेस्त्रां था. खाना मिला दाल तड़का, चावल आदि.
जब हम फिर स्टेशन पहुंचे तो ट्रेन मे अभी 45 मिनट का समय था. हवाई यात्रा बन्द होने से ट्रेन में भीड काफी बढ गयी थी.वेटिंग रूम में मुशकिल से बैठने की ज़गह मिली.

पेरिस से ग्रेनोबल वापसी के सफर में पीटर से भारतीय संस्कृति आदि पर लम्बी चर्चा हुई. कृष्नेन्दु के साथ समय-काटू पहेलियां आदि. आठ बजे के बाद हम वापस पहुंचे . इस बार मेरा कमरा बदल गया था , बाकी सभी को वही कमरे मिले जो वह पेरिस जाने से पहले छोड कर गये थे. बाज़ार जाकर दूध,फल आदि खरीदे. फिर इंडियन बाज़ार के गुल्शन रात्रा से भेण्ट हुई. मैने उन्हें बताया कि उनकी दुकान का ज़िक्र मैं अपने ब्लोग पर करूंगा. ( रात्रा खुश हुआ !!!)

लेट लतीफी में नाश्ता भी गया. 21.04.10 बुधवार

आज का दिन अब तक का सबसे बोरिंग दिन कहा जा सकता है.
देर से सो कर उठा. सोचा स्काइप पर दिल्ली बात की जाये. कोशिश की ,नहीं मिला. फिर ई-मेल आदि चेक करने में लग गया. फिर एक बार स्काइप कनेक्शन की कोशिश की. इस बीच भूल भी गया कि नाश्ते का समय सिर्फ 9.30 तक है. घडी देखी 9.35 हो चुके थे.भाग कर नीचे रेस्ट्रां में पहुंचा तो सब कुछ समाप्त. मुझे शालीन (??) तरीके से बताया गया –“ दे टाइम इस ओवेर” .
ब्रेकफास्ट लगाने वाली महिला ने सिर्फ इतनी सहानुभूति दिखाई कि मुझे ब्रेड ,कोर्न फ्लेक्स ( दूध तो कमरे में था ही) ‘उठा कर’ ले जाने की अनुमति दे दी.( ना कोई फल, ना जूस, ना योगर्ट,) . मरता क्या न करता, जो मिला वही लेके रूम पर आ गया.




पिछले रात की खरीदारी काम आयी. I had fruits and milk bought last night. दूध गरम किया Corn flakes मिलाया. एक सेव ,एक नाशपाती के साथ तीन स्लाइस ब्रेड. ऊपर से कौफी. हो गया नाशता.

फिर आराम से नहा कर, पूजा आदि के बाद तैयार होकर पहुंचा Grenoble ecole de management . गेल फोइल्ल्र्ड ( जो वहां business manager है) ने बताया कि आपने Academic director के साथ तय meeting जो 11.00 बजे थी मिस कर दी है. वह होटल में मेरे पुराने वाले कमरे का फोन मिलाता रहा . Miscommunication as he tried my old room to inform. I did not pickup ( I was'nt there ). मेरी अगली मीटिंग एम बी ए डाइरेक्टर के साथ 3.30 पर थी. मैं लंच करके वापस होटल आ गया.मेरे पास अभी भी एक घंटा था. मैने रूम चेंज करके वापस पुराना रूम मांगा जो बिना हिचक के मिल गया.
मीटिंग से लोटकर फिर सामान पैक किया ताकि फिर उसी रूम में शिफ्ट कर सकूं. शाम को पैदल सैर को निकला. वापस आकर बेटे से एक घंटा स्काइप पर बातॆं हुई और इस बीच मैने उसे सात चित्र भी भेजे.





मन नहीं लग रहा , उसके बाद. लगता है मेरे छात्र डिनर के लिये चले गये होंगे . मेरी उनसे बात नहीं हो पायी क्यों कि मैं स्स्काइप पर व्यस्त था. अब अकेले जाने का तो बिल्कुल ही मन नहीं था.आलस्य और भूख का सम्बन्ध तब समझ में आया जब अकेले बाहर जाकर खाना खाने का मन नहीं था. रेडी-टू-ईट वाले खाने के पेकेट (MTR) भी थे पर आलस्य था कि बनाने ( गर्म करने ) का भी मन नहीं था. सोचता रहा कि बनाऊं कि नहीं . फ़िर दो फल ( एक सेव और एक नाशपाती)खा लिया , कौफी पी ली,बस् हो गया.
कभी मन उदास हो तो संगीत एक राहत देता है यह सोचकर लेप्टोप से गाने सुनने का मन बनाया. पहले आधे घण्टे परेशान रहा क्यों कि लेपटोप में आवाज़ नहीं आ रही थी. गाना सुनने का मन था . आवाज़ नहीं आई , सोचा चलो आई पी एल का सेमी फाइनल मैच u-tube पर देखेंगे. मैच तो लग गया, पर बिना आवाज़ के मज़ा ही नहीं आ रहा था. खूब कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ.अचानक ध्यान गया कि लेप टोप में तो ईयर प्लग लगाया हुआ है और इसीसे आवाज़् नहीं आ रही है.खूब हंसा अपने ऊपर ,हां मन का टेंशन निकल गया.

22.04.10 बृहस्पतिवार
आज सिर्फ 2.30 पर एक मीटिंग तय थी, अत:सुबह का कोई तनाव नहीं था , किंतु नाश्ता कर के फिर तैयार हुआ. और 12.30 पर कैफेटेरिया पहुंच गया. लंच में कटे फल , एक सेव, फ्रेंच टोस्ट और ओरेंज़ जूस लिया. फिर वापस आकर 2.30 की मीटिंग के लिये फिर गया. फ्रांस में भी अनेक देशों के लोग आकर सदियों से बसे हैं .उन्ही में एक थे डा. ऍब्देल्क्रीम ( अब्दुल करीम ही सही लगता है) , जो ग्रेनोबल मेनेजमेंट स्कूल मे exchange programme के निदेशक हैं. अगले सत्र व अगले वर्ष फिर से आने के कार्यक्रम पर उनसे मीटिंग तय थी.

शाम को पहली बार MTR का पेकेट वाला खाना बनाया. पेकेट पर लिखे निर्देश पढे. पहले विकल्प के तौर पर चावल के पेकेट को ज़रा खोलकर ओवेन में रखा. अब दूसरा तरीक आजमाना था. सो राज़मा के पैकेट को उबलते पानी में 5 मिनट रखा. यूं देखा जाय तो कोई खास नहीं पर काम चलाने के लिये बुरा नहीं था.
खाना चाहे कैसा भी बना हो पर बनाने वाले को तो वही सबसे स्वादिष्ट लगता है. हालांकि इसमें मेरा कोई खास योगदान नहीं था, सिर्फ गर्म करने का ज़रिया ही तो था मैं. पर फिर भी लगा कि जैसे मैने ही बनाया है सो पूरे रुचि के साथ चठ्खारे ले ले कर खाया.

Saturday, June 12, 2010

मेरी यूरोप यात्रा -9- मोनालिसा के ‘साक्षात’ दर्शन








हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें कुछ चीजें बिना बदले लगभग एक जैसी ही रहती हैं मसलन ‘कोंटीनेंटल’ ब्रेकफास्ट. पेरिस के सिटाडाइन होटल में भी वही ‘कोंटीनेंटल’ ब्रेकफास्ट, रुचिकर तरीके से सजा हुआ मिला.ताजे फलों मे अनन्नास भी था. मुझे अपने अल्पज्ञ होने का आभास हुआ जब मैने किसी से पूछा कि इस फल को यहां क्या कहते हैं. जवाब सुनकर ताज़्ज़ुब करने की बारी मेरी थी,जब उसने कहा ‘अनन्नास’.मैं तो अब तक यही समझता आया था कि अनन्नास एक हिन्दी शब्द है.


आज पेरिस में हमारा दूसरा दिन था.पहले दिन यानी कल, एफिल टोवर के इर्द-गिर्द चार घंटे घूमते रहने पर भी एफिल टावर को ऊपर चढकर नहीं देखा था. यह आज के लिये छोड़ा हुआ था. भरपेट नाश्ता लेकर कल वाली प्रक्रिया दोहराते हुए हम फिर उसी सेन नदी के किनारे पहुंचे जो पेरिस का मुख्य पर्यटक बिन्दु है.मेट्रो स्टेशन से लगभग आधा कि.मी. चल कर रास्ते में यहां वहां फोटो खींचते हुए एफिल टोवर पहुंचे. एक बार फिर शुरू हुआ फोटो खींचने खिंचवाने का सिलसिला.

इस बीच हम टिकट की लाइन में भी लग लिये थे जो काफी लम्बी थी. दिन के ग्यारह बज चुके थे और पर्यटकों की तादाद प्रतिपल बढती जा रही थी.लाइन में लगे हुए लोगों के इर्द-गिर्द हौकर आ आकर अपने अपने सामान की बिक्री के प्रयास कर रहे थे. तभी हमें माइक के ज़रिये बताया गया कि भीड अधिक होने के कारण अभी तीन मंज़िल से ऊपर जाने की अनुमति नहीं है. तीन मंज़िल तक का किराया 8 यूरो है तथा जो व्यक्ति और ऊपर की मंज़िलों में जाना चाहते है, उन्हें अतिरिक्त किराया देना पड़ता है. हमने तय किया कि हन तीन मंज़िल तक ही जायेंगे.





ज़मीन से लगभग 30 अंश के कोण बनाती हुई लिफ्ट ( जिसमे बीस –बाईस व्यक्ति रहे होंगे ) के सहारे हमने ऊपर उठना शुरू किया. मैंने ‘सतह से उठता हुआ आदमी’ की छवि को वीडियो में कैद करने के लिये कैमरा ओन कर दिया. कुछ सेकंडों में हम तीसरी मंज़िल पर थे. बाद में हमने पाया कि दूसरी मंज़िल पर कुछ सोविनीयर्स की दुकानें, प्रसाधन आदि की सुविधा व छोटी से चाय-पानी की दुकान सी है.






पेरिस का सारा का सारा शहर सामने था और हम एक सम्राट की तरह आंखे फैला फैला कर शहर को अपने ‘कब्ज़े’ मे पाकर खुशी महसूस कर रहे थे.

हमने चारों ओर घूम घूम कर शहर के दृश्यों को कैमरे में कैद किया. और लगभग डेढ घंटे बाद नीचे उतरे.
आज का हमारा अगला पड़ाव था Notre Dame Cathedral, built in 1300 AD ( one of the oldest catholic churches of the world).खयाल समय का भी रखना था क्योंकि केथेड्रल के बाद हमें LOUVRE म्यूज़ियम जाना था , जो विश्व का विशालतम कला संग्रहालय कहलाता है .

केथेड्रल पहुंचते पहुंचते मेरे कैमरे की बैटरी कम्ज़ोर हो गयी थी,और मैने अजय के कैमरे की सहायय्त्ता लेना शुरू किया ( देखें चित्र)



केथेड्रल से निकलने पर हमरा अगला पड़ाव था University of Sorborne. हम पैदल ही निकल लिये और खरामा खरामा चलते हुए पहुंचे LOUVRE म्यूज़ियम.

यहां का विशाल डोम देखकर प्रसन्नता हुई. पीटर ने बताया कि यह कुछ वर्ष पूर्व ही बना है और अब इस विशाल म्यूज़ियम का प्रवेश इसी डोम के अन्दर से है. य़ह विश्व का सबसे बडा कला संग्रहालय है. विश्व भर के कला प्रेमी यहां आते हैं और कई कई दिन बिता कर पूरा देख पाते हैं.







संग्रहालय में जाने से पहले हमने बाहर मनोहारी (क़्रत्रिम) तालाब के किनारे बैठकर फोटो खींचे /खिंचवाये फिर गये अन्दर. आज सोमवर था और इस दिन म्यूज़ियम 6.30 पर ही बन्द हो जाता है अत: हमारे पास सीमित समय था. अत: तय हुआ कि सबसे पहले लियोनर्दो दा विंची की मशहूर कलाकृति ‘मोनालिसा’ के दर्शन किये जायें. समय रहने पर ही शेष संग्रह देखा जाये. हालांकि बाहर लिखा हुआ था कि कैमरा लेकर जाना मना है ( क्यों ???) मगर हर दर्शक के हाथ कैमरा देखकर तसल्ली हुई कि साक्षात मोनालिसा की ‘असली’ मुस्कान को हम कैद कर सकेंगे.





एक के बाद एक गैलरी पार करते रहे .लगा कि कुछ छूट गया है. पूछने पर ज्ञात हुआ कि मोनालिसा तो पीछे छोड आये हैं. मुख्य हौल से हटकर एक अलग गैलरी है जिसमें सर्वाधिक सुरक्षा है और वहीं भीड भी सबसे ज्यादा थी. मोनालिसा की तस्वीर खींचने के लिये मारा मारी थी.मैंने न केवल चित्र लिये ( देखॆं) बल्कि वीडियो भी बनाया. उसके बाद ही अन्य गैलरी की तरफ बढे.

विश्व प्रसिद्ध sculptures भी यहां है माइकेल एंजेलो,वीनस, ( Michaelangelo,Venus, Adonis,Other Greek gods, Cupid ) एक से बढकर एक कला के जीते जागते नमूने . सचमुच लगा कि हम ने कला की राजधानी देख ही ली.






शाम हो चली थी. सोचा कि होटल जाने से पहले खाना भी खाते चलें. ‘भारतीय’ भोजन की गली हम देख ही चुके थे. तय हुआ कि आज दक्षिण भारतीय दोसा आदि खाते हैं . फिर वही गली.. फिर वही ...
रात 9.30 पर पहुंचे होटल

Sunday, May 16, 2010

मेरी यूरोप यात्रा -8- पेरिस का पहला दिन्


पेरिस में हमारे साथ आये छात्र गाइड पीटर ने हमारे मतलब की सारी जानकारी एकत्र कर रखी थी. जब हमने एकमत से कहा कि अब दिन भर के बाद खा रहे हैं तोभारतीय खाना ही मिले तो बेहतर . उसने तुरंत वह ज़गह बता दी जहां हमारी पसन्द का खाना मिल सकता था.

उसने तुरंत हम सभी को व्यक्तिगत रूप से मेट्रो की दो दो टिकटें दीं और कहा कि एक जाने के लिये और दूसरी वापस आने के लिये.


पेरिस में मेट्रो की 1 घंटे की टिकट लगभग डेढ़ यूरो ( नब्बे भारतीय रुपये) की होती है. इस टिकट से यात्री कितने ही बार अलग अलग रूट पर यात्रा कर सकता है बशर्ते यात्रा एक ही घंटे में पूरी की गयी हो. पेरिस में मेट्रो का ज़ाल बिछा हुआ है. क्रिस क्रोस करती हुई तेरह भिन्न लाइनें हैं अनेक स्टेशनॉं पर दो तल व किन्ही पर तीन तल के मेट्रो स्टेशन हैं यह तेरह विभिन्न लाइनें हर दूसरे या तीसरे स्टेशन पर एक दूसरे से मिलती हैं और यात्री यहां ट्रेन बदलते हैं . पूरी पेरिस का सफर इन मेट्रो व बसों से के ऊपर निर्भर है.


चूंकि पीटर साथ में था अत: आवश्यकता नहीं थी, फिर भी पेरिस की मेट्रो का नक़्शा व गाइड लेकर देखा तो एक बार देखने से ही पूरी पेरिस का सफर समझ में आ गया. न केवल गाइड में बहुत ही सरल तरीके से जानकारी दी गयी है, बल्कि हरेक स्टेशन पर इतने सहज दिशा संकेतक हैं कि नया व्यक्ति भी तुरंत सब कुछ समझ सके. यह सब इस्लिये कि पर्यटक यदि फ्रेंच भाषा नहीं भी जानता तो कोई दिक्कत नहीं .

तीन बार मेट्रो बदल बदल कर हम पहुंचे Rue Jarry ( Rue का मतलब है street यानी गली ). रयू जार्री पहुंच कर लगा कि हम किसी एसियाई बस्ती में हैं. भारतीय, पाकिस्तानी व श्रीलंकाई लोग अपनी भाषा में ज़गह ज़गह बात करते दिखे. यहां इन्दिरा रेस्त्रां था, तो कृष्ण भवन भी. साड़ी की दुकान भी और हिन्दी सीडी ,डीवीडी की दुकान भी.इस गली में दो बडे जनरल स्टोर भी दिखे. टूथपेस्ट खरीदने एक में गया तो लगा कि स्टोरे ऎशिय्याई खरीदारों के लिये ही था. भारतीय नमकीन से लेकर घरेलू उपयोग की सामग्री तक ,फूलमाला ,चन्दन ,दुपट्टे....सभी कुछ भारत जैसा.



हममें से कुछ ने कृष्णा भवन में शाकाहरी दक्षिण भारतीय् खाना खाया तो अन्य ने इन्दिरा रेस्त्रां मे चिकेन के साथ बीयर का लुत्फ भी उठाया. वे लोग खुश थे क्यों कि बीयर के साथ चिकेन हमारे शकाहारी खाने की तुलना में सस्ता था.

तीन बार मेट्रो बदलते हुए लग्भग 11.30 बजे वपस होटल पहुंचे.होटल सिटाडाइन में बहुत ही आरामदायक कमरे थे , साथ में किचनेट भी ठीक परंतु हमारे पास चाय बनाने का कुछ सामान नहीं था. किंतु लोबी में 24 घंटे चाय.कौफी मुफ्त उपलब्ध थी. नेट पर पहले मेल चेक की , फिर सोने से पहले ‘मुफ्त’ कौफी का आनन्द लेने लौबी में गया.
पेरिस का पहला दिन लाज़बाब था.
( आगे.. पेरिस में बहुत कुछ है ..)

Tuesday, May 11, 2010

मेरी यूरोप यात्रा-7 पेरिस आखिर पेरिस है !



पेरिस पहुंचना ही एक रोमांचकारी अनुभव लगा. 1987 में पहली बार जब यूरोप आया था (तब स्पेन- मैड्रिड व वेलेंसिया, तथा स्वित्ज़र्लेंड -जिनेवा ही देख पाया था) तब इतना रोमांच कारी अनुभव मैड्रिड में भी हुआ था. लग्भग दो घंटे हम पेरिस को खुली बस की दूसरी मंज़िल से देखते रहे , सराहते रहे और सच कहूं तो ( इस पचपन की उम्र में भी ) एक बचकानी सी खुशी महसूस करते रहे.

पेरिस के अनेक दर्शनीय स्थलों पर एफिल टोवर का रुतबा इस कदर हावी है कि दो घंटे के दौरान कम से चार बार हम एफिल टोवर के चारों ओर से गुजरे. पेरिस यानी एफिल टोवर. बाकि सब दोयम .

बस् के ऊपर से पेरिस के बहुत से चित्र लिये और पेरिस को ‘महसूस ‘ किया. यह भी देखा कि पेरिस घूमने आने वालों मे साइकल से घूमने वाले बहुत हैं. बताया गया कि यहां एलेक्ट्रिक साइकल भी किराये पर मिलती हैं. दिन भर के लिये . साइकल पर घूमने वाले विशेष हेलमेट भी पहनते हैं ,वैसे यह शौक सिर्फ पेरिस या फ्रांस में ही नहीं पूरे यूरोप में है.
सडक किनारे वाले चाय,काफी ,बीयर बार यहां भी बहुत हैं,एक प्रकार से यह संस्कृति का ही एक अंग है.


‘चढ़ो-उतरो फिर चढ़ो-उतरो’ इस प्रकार की बस की सैर का पहला अनुभव मुझे 2004 में कोपेनहेगेन में हुआ था. इस प्रकार के विकल्प में पर्यटक वह सभी कुछ मनचाहे रूप में देख सकता है,बिना किसी बन्धन के. हांलाकि हमारे पास यह विकल्प था, परंतु हम लोग पूरे दो घण्टे बस पर ही सवार रहे और पेरिस को ऊपर –ऊपर से ही देखते रहे. सीमित समय में सभी कुछ ,जो दर्शनीय था, हम देखना चाहते थे.बस के समय की समाप्ति पर सेन नदी ( पेरिस भ्री सभी मुख्य यूरोपीय नगरों की भांति नदी के इर्द-गिर्द ही है) पर बोट-क्रूज़ का भी कार्यकृम था,अत: हम यहां-वहां उतर कर शाम के कार्यकृम में कटौती नहीं करना चाहते थे.

पेरिस के विभिन्न चर्च, ओपेरा, एफिल टोवर,तमाम म्यूजियम,मुख्य बाज़ार, सत्ता के केन्द्र व सदन , कभी सेन नदी के किनारे किनारे तो कभी मुख्य बाज़ार सभी का आनन्द लिय बस के ज़रिये.

जैसे ही बस –यात्रा समाप्ति पर उतरे ,हम बोट क्रूज़ के निर्धारित स्थान की ओर चल दिये.
वहां टिकट बुक करने पर पता चला अभी अगली बोट के लिये 20मिनट और हैं. अब हमने ( अजय और उसका कैमरा भी साथ दे रहे थे)लोगों को देखना शुरू किया.फोटो भी साथ साथ लेते जा रहे थे. फुटपाथी दुकानदार व हौकर्स पर नज़र गयी तो पाया कि अधिकांशतया वह सभी दो वर्गों के ही हैं . एक अफ्रीकी मूल व दूसरी गठेले बदन वाले एसियाई. लगा कि वे या पाकिस्तानी या भारतीय हो सकते हैं . एक सिख भी दिखा.हमने मोलभाव भी शुरू कर दिया था. शायद यह उन्हें पसन्द नहीं आया. ( यह एक –दो अफ्रीकी दुकानदार के चेहरे के हाव-भाव से जाना. बाद में बात-चीत से पता चला कि एशियाई हौकर्स हरियाणा ( भारत) के थे परंतु अधिकांश के पास कोई लाइसेंस नहीं था. जैसे ही कोई पुलिस वाला देखते वह भागने लगते.( हमारे यहां कहतें हैं –भागो भागो कमेटी आ गयी- जब भी वह म्युनिसिपल कमेटी के अथवा पुलिस के लोगों को देखते हैं-भागने लगते हैं)


खैर, समय होने पर हमने बोट-क्रूज़ का आनन्द लिया. लगभग 90मिनट के क्रूज़ के बाद महसूस किया कि पेट में चूहे कूद रहे थे. सुबह से बस चना-चबेना ही चल रहा था, कोई पूरा भोजन नहीं किया था. पीटर ने पूछा कि किस तरह का खाना हम पसन्द करेंगे तो हम सब का उत्तर था यदि भारतीय मिले तो अच्छा.

( आगे .. पेरिस में भारतीय खाना ??)

Monday, May 10, 2010

मेरी यूरोप यात्रा 6-- नमस्ते भी सुना ,सौरी भी. हार्ली डेविडसन की फोटो



मैने पिछली पोस्ट में मोटर साइकल हार्ली डेविडसन का ज़िक्र किया था और यह भी लिहा था कि हमने उसके फोटो भी खींचे. भाई विवेक रस्तोगी ने एक छोटे से कमेंट में इसकी मांग जैसी(?) की है. अत: पहले फोटो
दिन भर के सैर् सपाटे ने थका तो दिया था. सोचा था कि रात को हल्का भोजन या फिर दूध-फल से काम चला लेंगे. पहले दिन के लाये फल अभी खत्म नहीं हुए थे और दूध की बोतल भी लगभग भरी थी. कल सुबह पेरिस की यात्रा पर निकलंने का प्रोग्राम था. कमरा भी खाली करना था क्यों कि पेरिस से वापसी 20 अप्रैल रात की तय थी.

किंतु सामान वापस मिलंने की खुशी भी celebrate करना था, अत: वीरैया व अजय के साथ मार्केट जाने का फैसला हुआ. उन्होंने बोम्बे पेलेस नामक एक रेस्त्रां देख रखा था. तय हुआ कि वहीं चलना है. ग्रेनोबल शहर बहुत बड़ा नहीं है. 25 मिनट की पैदल यात्रा करके हम के बोम्बे पेलेस पहुंच गये. सुना था कि यहां की बिरयानी व लस्सी मशहूर है. मुंह में पानी लिये हम एक टेबल पर बैठ गये. वेटर आया तो उसने बताया कि यह हिस्सा पार्टी के लिये आरक्षित है और उसने हमॆं दूसरी टेबल बता दी. हमने मेन्यू देखना शुरु किया. तभी हिमाचली टोपी व सिल्क का पठानी सूट पहने एक सज्जन नमूंदार हुए और पूछा कि क्या हमने सीट बुक की हुई है? हम हैरान.कहा नहीं ,बुक तो नहीं की है.
“ I am sorry” ,उसने कहा था.

“ आज सारी सीट पहले से बुक हैं ,हम आपकी सेवा नहीं कर पायेंगे”
“ I am sorry” ,उसने कहा था.

बुरा तो लगा ,परंतु कर ही क्या सकते थे . कानों में शब्द गूंज रहे थे.
“ I am sorry” ,उसने कहा था.

बड़े बे-आबरू होकर उसके कूचे से निकल कर हम सोच ही रहे थे कि कहां जायें ,तभी बिल्कुल सामने की सडक पर - –लग्भग सामने-“श्रीलंका रेस्त्रां” नाम के साइन बोर्ड पर नज़र गयी.सोचा कि कोई तमिल भोजनालय होगा ट्राई करने में क्या हर्ज़ है. अन्दर जाते ही बडे आदर के साथ बैठाया गया. मालिक ( यहां ज्यादातर भारतीय रेस्त्रां चलाने वाले मध्यम दर्ज़े के ही हैं और स्वयम या उसके घर के सदस्य भी खुद काम में हिस्सा बटाते हैं) .मालिक ने अपना परिचय देकर पूछा कि हम् कहां के हैं?
मेन्यू पूरा भारतीय था. हमने नान, दाल मखनी , मिक्स्ड वेजीटबल मंगाया. बाद में एक प्लेट फ्राईड राइस भी लिया. स्वाद भी ठीक ही था, बहुत ज्यादा तारीफ लायक भी नहीं.
वापस लौट कर सामान पेक करना था. हमारी पेरिस की यह यात्रा भी ‘ग्रेनोबल एकोल डी मेनेजमेंट’ की ओर से प्रायोजित थी, और हमारे साथ एक वरिष्ठ छात्र, जिसे पेरिस की जानकारी थी, गाइड के तौर पर भेजा जा रहा था, जिसका नाम था पीटर . वह कभी भारत नहीं आया परंतु उसने भारत के बारे में बहुत कुछ पढ रखा था.पीटर, जो मूल रूप से वियेना का रहने वाला था, परंतु अधिकांश्तया इंगलेंड में रहता आया था. ने हमें बताया था कि वह क्रिकेट का शौकीन है ( शायद इंगलेंड में ही यह शौक पनपा होगा). आई पी एल के मैचों को वह यू-ट्यूब पर देखता था और मुम्बई-इंडियंस उसकी पसन्दीदा टीम थी. पीटर ने कहा था कि सिर्फ एक छोटा बेग जिसमे एकाध जोडी कपडॆ व आवश्यक सामान हो,काफी होगा. हमारा बाकी सामान एक अन्य कमरे में रख दिया जायेगा तथा पेरिस से वापस होने पर कमरा बदल भी सकता है.

मैं एक पाठ्य-पुस्तक पर काम कर रहा हूं और प्रकाशक का आग्रह था कि कुछ सामग्री भेजना ज़रूरी था. सोचा रात भारत जाग कर काम खत्म करते हैं ताकि मेल करने लायक सामग्री हो जाये. यह भी कि सोना तो ट्रेन में भी हो सकता है.

सुबह 4 बजे तक काम खत्म किया. प्रकाशक को मेल भेजी, सामान की दुबारा पैकिंग की, सोते सोते 5 बज गये. अलार्म 7 बजे का था,अन्यथा ट्रेन छूटने का डर जो था.


.

18.अप्रैल को सुबह 9.15 पर स्टूडेंट गाइड Peter से स्टेशन पर मिलना तय हुआ था. ई-टिकट पहले से बुक थीं,परंतु उन्हें ट्रेन चलने के पहले इंडोर्स करना ज़रूरी था. पीटर लाइन में था. समय अधिक लग रहा था. धुक धुक होने लगी कि ट्रेन के समय तक हो भी पायेगा या नहीं. जब ट्रेन छूटने में मात्र 5 मिनट बचे थे , पीटर हांफता हांफता परंतु मुस्कुराता हुआ आता दिखा. पहले हम प्लेटफार्म की तरफ भागे फिर निर्धारित डब्बे की ओर.
साढे तीन घंटे की यात्रा थी,सबने खूब चना चबेना इकट्ठा किया था. ट्रेन चलने पर पैकेट खुलने लगे. पीटर हमारे लिये टमाटर ( पता लगा वह औस्ट्रिया के थे), पेप्सि डाइट , वेफर्स, ले के आया था.











मुख्य स्टेशन पर लगभग 2 बजे उतर कर हमने मेट्रो ( अंडर-ग्राउंड) ट्रेन की राह पकडी, बीच में उतर कर फिर पटरी बदली और अंतत: पहुंचे –होटल सिटाडीन . अपने अपने कमरों मे चेक-इन के बाद 10 मिनट में हमॆं लोब्बी मे फिर मिलना था, ताकि 4 बजे के खुली बस के 2 घंटे के टूर पर निकल सकें. फिर भागम भाग .एफिल टावर के पास से ही बस चलती है. वहां उसी तरह हौकर ने घेर लिया,जिस तरह भारत में विदेशी पर्यटकों को घेर लेते हैं.
(आगे...कैसे किया पेरिस ने स्वागत ?)

Saturday, May 8, 2010

मेरी यूरोप यात्रा 5 - आंसी की सैर-अद्भुत् नज़ारे

भरपेट आलू ,चीज़ व घास फूस ( मेरे मांसाहारी मित्र यही शब्द प्रयोग करते हैं) खाने के बाद अब नौकायन की बारी थी. जल्दी जल्दी में गाइड से यह पूछना भूल गये कि किस बोट में हमें जाना है. खाना खाकर नदी के किनारे खरामा खरामा चलते हुए झील की तरफ बढे. झील के किनारे किनारे अनेक भोजनालय व बार हैं. इस मौसम में यूरोप वासी धूप का खूब आनन्द उठाते हैं और ओपेन एयर भोजनालय, कौफी घर या बार आदि पसन्द करते हैं.



























चूंकि यह एक पर्यटक स्थल हैयहां सब तरह के मज़मेबाज़ भी होते हैं. कहीं दो तीन गायक मिल्कर सडक किनारे गिटार या अन्य साज़ लेकर गा रहे होते हैं तो कहीं कलाकर फुटपाथ पर तस्वीरें बना रहे होते हैं. केरीकेचर (कार्टून0 बनाने वाले भी कई दिखे. कहीं कोई केनवास पर तस्वीर बना रहा था तो बोर्ड पर. सब बिक्री के लिये भी उपलब्ध थी.
झील के पास विशाल हरा भरा क्षेत्र भी था, फव्वारे भी थे, युवा युगल जोडे भी आनद के लिये सभी तरफ बिखरे थे. मेरे छात्र अजय ने अपने निकोन कैमरे से ऐसे कई चित्र लिये,उस कैमरे का ज़ूम तो गज़ब का है. सैकड़ो मीटर दूर की तस्वीर भी क्लोज- अप जैसी लगती है.

चूंकि बोट ( जिसको पेमेंट पहले ही हो चुका था) की जानकारी नहीं थी,अत: दर्ज़नों उपलब्ध विभिन्न आकार वाली ( मोटर बोट ,पेडल बोट, आदि) बोट में एक हमने 60 यूरो ( एक घंटा) में तय की.बोट स्वामी ने चलाना सिखाया और पानी में धकेल दी. एरिल ने मोटरबोट का स्टीयरिंग सम्भाला.
हमें लगा एक घंटा कुछ ज्यादा हो जायेगा तथा सोविनीयर आदि की खरीद के लिये समय नहीं बचेगा क्यों कि हमारी वापसी की ट्रेन 5.30 पर थी. यह सोच कर आधा घंटा घूम कर वापस आ गये.

बाज़ार घूमा, छुट्पुट खरीदारी करते हुए स्टेशन की तरफ जा रहे थे कि बाज़ार में एक हार्ले डेविडसन मोटर साइकिल दिख गयी. कृश्नेन्दु को इसका क्रेज़ जैसा था अत: उसीकी फोटो खींचने में लग गये. फिर बाइक के स्वामी /स्वामिनी आ गये. वे अमरीकी पुलिस के सिपाही थे.



जब मेरा सामान कल शाम तक नहीं मिला था तो मैने अपनी ट्रेवल एजेंसी को मेल भेजी थी और पूछा था कि क्या कोई बीमा का क्लेम बनता है ? जवाब आया कि ज़रूर, किंतु बीमा वाले आवश्यक वस्तुओं की खरीद की रसीद मांगेंगे. कपडों की तो किल्लत हो ही रही थी, अत: सोचा कि लगे क्लेम के लिये रसीद भी मिल जायेगी, कुछ कपड़े ( स्वेटर, कैप, अंतर्वस्त्र, धूप का चश्मा,आदि वहीं आंसी के बाज़ार से ही खरीद डाले. सोचा कि सामान तो देर-सवेर मिलेगा ही साथ ही 100 डालर का क्लेम भी मिल जायेगा.,

वापसी की त्रेन पकडकर वापस आये . जब पहुंचे तो मेरे कमरे में मेरा खोया सामान वापसी की रसीद , एयर्लाइंस का पत्र आदि सब मिल गया. खुशी हुई.




चित्र सं. 1 अद्भुत नज़ारा
चित्र सं. 2-बोट का आनन्द्
चित्र सं. 3- आंसी झील का किनारा और हम..
चित्र स.4 -अजय के कैमरे से
चित्र स. 5 आंसी में- बस यूं ही
चित्र सं. 6 पेंटिंग्स की एक लघु गैलरी
चित्र स. 7 चित्रकार ने बनाई पेंटिंग्स बाज़ार में
चित्र स. 8 गुड़िया को घुमाती गुड़िया -आंसी के बाज़ार में

(आगे---हमने ढूंढा बोम्बे पेलेस रेस्त्रां ..मगर...)