Tuesday, June 15, 2010

माफी नहीं, सर चाहिये

नहीं, इस बार माफी से काम नहीं चलेगा. दोषी चाहे कोई भी हो, गिरफ्तारी हो, समयबद्ध मुक़दमा चले और सज़ा होनी चाहिये . हम चाहते हैं कि न केवल दोषियों को सज़ा मिले बल्कि पीड़ित परिवारों को प्रति पीड़ित व्यक्ति दस लाख रुपये का मुआवज़ा भी मिले.


वारेन एंडर्सन को किसने भगाया ,किसने उससे रिश्वत ली और किसने देश वासियों के साथ धोखा किया? रोज़ाना नई नई जानकारिया सामने आ रही हैं . भोपाल के तत्कालीन डी एम , पुलिस अफसर ,हवाई जहाज़ का पायलट , किसी पार्टी का कोई प्रवक्ता, या किसी एन जी ओ का कोई सक्रिय सदस्य- इन सभी का कुछ भी बयान आये, इस बार कोई दोषी बचने ना पाये.

सबको मालूम है सी बी आई का कैसे दुरुपयोग किया जाता रहा है और (इसी मामले में नहीं,बल्कि अन्य मामलों में भी) किया भी गया. अब जनता का, मीडिया का इतना अधिक दबाब होना चाहिये कि सी बी आई अपने रीढ़ की हड्डी में बांस की खपच्ची लगा कर खडी हो और पूरे मुक़दमें के दोबारा सुनवाई की अपील सुप्रीम कोर्ट में करे.इस अपील की मुख्य दलील पीड़ित को उचित मुआवज़ा दिलाना ही होना चाहिये.

अर्जुन सिंह मुंह खोलें या न खोलें , सबको हक़ीक़त पता है. पर अब अर्जुन सरीखों के मुंह को खोलने पर मज़बूर किया जाये. जो सरकारी अफसर यह कह कर बचना चाह रहा है कि वह क्या करता उसे तू ऊपर से आदेश थे, ऐसे सारे अफसरों को सरेआम खुली अदालत लगा कर नंगा किया जाये और ज़िम्मेदारी दोषी अफसरों पर भी डाली जाये .

प्रधान मंत्री ने मामले को ठंडा करने के लिये मंत्रिय़ों की एक समिति के हवाले कर दिया है . इस समिति की रपट क्या आयेगी यह भी सबको पहले से ही पता है. यदि किसी को बलि का बकरा बना कर कांग्रेस बचना चाहे और माफी नामा देश के सामने पेश करें तो इस माफी नामे को भी नकार दिया जाना चाहिये. हमें माफी नहीं ,सर चाहिये .
जो लोग अब ज़िन्दा नही हैं ,उन पर मुक़दमा तो नहीं चलाया जा सकता, परंतु यदि उनका दोष सामने आता है तो इसे इतिहास में दर्ज़ किया जाना ज़रूरी है .आने वाली पीढी को पता होना चाहिये कि पिछली पीढी में कैसे कैसे पापी हुए हैं.

यदि भारतीय लोकतंत्र कलंकित हुआ है तो लोकतंत्र के इस काले पन्ने को सबके सामने खुल कर रखे जाने की ज़रूरत है कि आने वाली पीढी सदैव सचेत रहे और लोकतंन्त्र फिर से दुबारा कलंकित न हो. अफसर शाही कलकित ना हों और न ही न्यायपालिका पर कोई आंच आये .

जनता के और मीडिया के दबाब से यह सम्भव है. यह दबाब बन रहा है. इसे और अधिक पुख्ता करने की ज़रूरत है .

वाह!!! लालू जी वाह!! नीतिश को गरियाओगे तो पासवान को कहां छिपाओगे ?

इस हमाम में सभी नंगे हैं . इधर नीतिश कुमार का मुलम्मा उतरा तो उधर लालू जी भी अपनी भद पिटवा गये.

एक प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिये लालू जी ने भाजपा से दोस्ती के सवाल पर नीतिश को कटघरे में खड़ा करके गोला दागा. कहने लगे कि जरा भी शर्म है तो या तो भाजपा से अलग हो जायें या फिर भाजपा में शामिल हो जायें.
बहुत सही लालू जी. अच्छा प्वाइंट पकड़ा है आपने . हम भी सहमत हैं . पर सूप बोले तो बोले छलनी भी ...

लालू जी, आप तो राम विलास पासवान को राज्यसभा में भेज् रहे हैं. ये वही पासवान हैं ना जो राजग की सरकार में मंत्री थे. अब आपके सगे हैं ? यानी जो आपके साथ रहे वह धर्म-निरपेक्ष और जो आपके खिलाफ हो जाये वह साम्प्रदायिक.

कल तक तो पासवान साम्प्रदायिक थे और आपके लिये अछूत थे,( जैसे कि नीतिश कुमार आज हैं). अब आपकी गोटी उनके साथ फिट बैठ रही है ,तो उनका सारा दाग धुल गया? कौन सी गंगा में नहला दिये उन्हें आप ?

वाह वाह !! नीतिश कुमार ! गुड़ खाओगे और गुलगुले से परहेज़ करोगे ?

इस सादगी पे कौन ना मर जाये ए खुदा

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


जी हां ,ये ज़ुबानी ज़मा-खर्च की लड़ाई किसे दिखा रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ? भाजपा के साथ गल्बहियां भी हैं और आंखों के डोरे भी लाल हैं ! क्या बात हैं? ये बाज़ीगरी ही तो इनकी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है.

इधर भाजपा को आंख दिखायी ,प्रेस के सामने खूब गरियाये.उधर चुपके से .....लुधियाना की रैली में जो फोटो खींचा गया था फर्ज़ी था क्या? नहीं ना ? फिर हाय तौबा क्यों ? एक मोदी ( नरेन्द्र) को खरी खोटी सुनाई, दूसरे मोदी ( सुशील) को पुचकार दिया. इधर राजग ( NDA) के साथ सरकार भी चलाओगे और ‘सोने ‘ से खरे भी दिखना चाहोगे ?
जनता को बेवकूफ समझ रखा है क्या ?

अब समय आ गया है कि जनता ऐसे राजनीति के बाज़ीगरों को कटघरे में खड़े कर के सवाल पूछे. दुमुहीं राजनीति कतई बर्दाश्त नहीं होगी.राजनैतिक पाखंड को बेनक़ाब किया जाना चाहिये. फिर चाहे वह नीतिश हों या लालू या पासवान .... ( देखें अगली पोस्ट)

Sunday, June 13, 2010

मेरी यूरोप यात्रा-10- कुछ और पेरिस...



20.04.10 मंगलवार

आज शोपिंग का कार्यक्रम था. तय हुआ था 9.30 बजे . निकल पडेंगे ताकि सब कुछ निबटा कर दोपहर बाद की ट्रेन से वापस ग्रेनोबल जा सकें. पिछली रात सोते सोते बहुत देर हो गयी थी. टी वी का रिमोट लौक हो गया ,फिर मेकेनिक को बुला कर ठीक कराया. फिर अन्य लिखा पढी / नेट / चेट में दो बज गये.






सुबह नीन्द तब खुली जब दरवाजे पर लगभग पीटने की आवज़ें आयीं. हां यह पीटर ही था. ( पीटर ,ज़ाहिर है पीटेगा ही !!!!!) .पीटर ने बताया कि अन्य सभी नाश्ता कर के इंतज़ार करते रहे और फिर फुटकर शौपिंग के लिये निकल गये हैं . बिल्कुल युद्धस्तर पर तैयार होना पडा. भाग कर ब्रेक फास्ट किया. वहां भी सब कुछ समेटा जा चुका था ,जो मिला ,काम चलाया. लगभग दो-ढाई घंटे का शौपिंग का समय था. परफ्यूम ज़रूरी था, अन्य कुछ पेरिस की यात्रा को यादगार बनाने के लिये ... . बाज़ार में घूमते घूमते मैं अन्य साथियों से अलग हो गया. नियत स्थान पर मिलना तय हुआ था. शौपिंग आदि पूरी कर के धीरे धीरे सब वहीं मिल गये.






सब अपने अपने पसन्द का खाने खाना चाहते थे. पीटर हमें पास ही ऐसे क्षेत्र में ले गया जहां भिन्न प्रकार के अनेक भोजनालय थे. हमने चुना ‘हिमालयन’ जो वस्तुत: एक पाकिस्तानी रेस्त्रां था. खाना मिला दाल तड़का, चावल आदि.
जब हम फिर स्टेशन पहुंचे तो ट्रेन मे अभी 45 मिनट का समय था. हवाई यात्रा बन्द होने से ट्रेन में भीड काफी बढ गयी थी.वेटिंग रूम में मुशकिल से बैठने की ज़गह मिली.

पेरिस से ग्रेनोबल वापसी के सफर में पीटर से भारतीय संस्कृति आदि पर लम्बी चर्चा हुई. कृष्नेन्दु के साथ समय-काटू पहेलियां आदि. आठ बजे के बाद हम वापस पहुंचे . इस बार मेरा कमरा बदल गया था , बाकी सभी को वही कमरे मिले जो वह पेरिस जाने से पहले छोड कर गये थे. बाज़ार जाकर दूध,फल आदि खरीदे. फिर इंडियन बाज़ार के गुल्शन रात्रा से भेण्ट हुई. मैने उन्हें बताया कि उनकी दुकान का ज़िक्र मैं अपने ब्लोग पर करूंगा. ( रात्रा खुश हुआ !!!)

लेट लतीफी में नाश्ता भी गया. 21.04.10 बुधवार

आज का दिन अब तक का सबसे बोरिंग दिन कहा जा सकता है.
देर से सो कर उठा. सोचा स्काइप पर दिल्ली बात की जाये. कोशिश की ,नहीं मिला. फिर ई-मेल आदि चेक करने में लग गया. फिर एक बार स्काइप कनेक्शन की कोशिश की. इस बीच भूल भी गया कि नाश्ते का समय सिर्फ 9.30 तक है. घडी देखी 9.35 हो चुके थे.भाग कर नीचे रेस्ट्रां में पहुंचा तो सब कुछ समाप्त. मुझे शालीन (??) तरीके से बताया गया –“ दे टाइम इस ओवेर” .
ब्रेकफास्ट लगाने वाली महिला ने सिर्फ इतनी सहानुभूति दिखाई कि मुझे ब्रेड ,कोर्न फ्लेक्स ( दूध तो कमरे में था ही) ‘उठा कर’ ले जाने की अनुमति दे दी.( ना कोई फल, ना जूस, ना योगर्ट,) . मरता क्या न करता, जो मिला वही लेके रूम पर आ गया.




पिछले रात की खरीदारी काम आयी. I had fruits and milk bought last night. दूध गरम किया Corn flakes मिलाया. एक सेव ,एक नाशपाती के साथ तीन स्लाइस ब्रेड. ऊपर से कौफी. हो गया नाशता.

फिर आराम से नहा कर, पूजा आदि के बाद तैयार होकर पहुंचा Grenoble ecole de management . गेल फोइल्ल्र्ड ( जो वहां business manager है) ने बताया कि आपने Academic director के साथ तय meeting जो 11.00 बजे थी मिस कर दी है. वह होटल में मेरे पुराने वाले कमरे का फोन मिलाता रहा . Miscommunication as he tried my old room to inform. I did not pickup ( I was'nt there ). मेरी अगली मीटिंग एम बी ए डाइरेक्टर के साथ 3.30 पर थी. मैं लंच करके वापस होटल आ गया.मेरे पास अभी भी एक घंटा था. मैने रूम चेंज करके वापस पुराना रूम मांगा जो बिना हिचक के मिल गया.
मीटिंग से लोटकर फिर सामान पैक किया ताकि फिर उसी रूम में शिफ्ट कर सकूं. शाम को पैदल सैर को निकला. वापस आकर बेटे से एक घंटा स्काइप पर बातॆं हुई और इस बीच मैने उसे सात चित्र भी भेजे.





मन नहीं लग रहा , उसके बाद. लगता है मेरे छात्र डिनर के लिये चले गये होंगे . मेरी उनसे बात नहीं हो पायी क्यों कि मैं स्स्काइप पर व्यस्त था. अब अकेले जाने का तो बिल्कुल ही मन नहीं था.आलस्य और भूख का सम्बन्ध तब समझ में आया जब अकेले बाहर जाकर खाना खाने का मन नहीं था. रेडी-टू-ईट वाले खाने के पेकेट (MTR) भी थे पर आलस्य था कि बनाने ( गर्म करने ) का भी मन नहीं था. सोचता रहा कि बनाऊं कि नहीं . फ़िर दो फल ( एक सेव और एक नाशपाती)खा लिया , कौफी पी ली,बस् हो गया.
कभी मन उदास हो तो संगीत एक राहत देता है यह सोचकर लेप्टोप से गाने सुनने का मन बनाया. पहले आधे घण्टे परेशान रहा क्यों कि लेपटोप में आवाज़ नहीं आ रही थी. गाना सुनने का मन था . आवाज़ नहीं आई , सोचा चलो आई पी एल का सेमी फाइनल मैच u-tube पर देखेंगे. मैच तो लग गया, पर बिना आवाज़ के मज़ा ही नहीं आ रहा था. खूब कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ.अचानक ध्यान गया कि लेप टोप में तो ईयर प्लग लगाया हुआ है और इसीसे आवाज़् नहीं आ रही है.खूब हंसा अपने ऊपर ,हां मन का टेंशन निकल गया.

22.04.10 बृहस्पतिवार
आज सिर्फ 2.30 पर एक मीटिंग तय थी, अत:सुबह का कोई तनाव नहीं था , किंतु नाश्ता कर के फिर तैयार हुआ. और 12.30 पर कैफेटेरिया पहुंच गया. लंच में कटे फल , एक सेव, फ्रेंच टोस्ट और ओरेंज़ जूस लिया. फिर वापस आकर 2.30 की मीटिंग के लिये फिर गया. फ्रांस में भी अनेक देशों के लोग आकर सदियों से बसे हैं .उन्ही में एक थे डा. ऍब्देल्क्रीम ( अब्दुल करीम ही सही लगता है) , जो ग्रेनोबल मेनेजमेंट स्कूल मे exchange programme के निदेशक हैं. अगले सत्र व अगले वर्ष फिर से आने के कार्यक्रम पर उनसे मीटिंग तय थी.

शाम को पहली बार MTR का पेकेट वाला खाना बनाया. पेकेट पर लिखे निर्देश पढे. पहले विकल्प के तौर पर चावल के पेकेट को ज़रा खोलकर ओवेन में रखा. अब दूसरा तरीक आजमाना था. सो राज़मा के पैकेट को उबलते पानी में 5 मिनट रखा. यूं देखा जाय तो कोई खास नहीं पर काम चलाने के लिये बुरा नहीं था.
खाना चाहे कैसा भी बना हो पर बनाने वाले को तो वही सबसे स्वादिष्ट लगता है. हालांकि इसमें मेरा कोई खास योगदान नहीं था, सिर्फ गर्म करने का ज़रिया ही तो था मैं. पर फिर भी लगा कि जैसे मैने ही बनाया है सो पूरे रुचि के साथ चठ्खारे ले ले कर खाया.

Saturday, June 12, 2010

मेरी यूरोप यात्रा -9- मोनालिसा के ‘साक्षात’ दर्शन








हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें कुछ चीजें बिना बदले लगभग एक जैसी ही रहती हैं मसलन ‘कोंटीनेंटल’ ब्रेकफास्ट. पेरिस के सिटाडाइन होटल में भी वही ‘कोंटीनेंटल’ ब्रेकफास्ट, रुचिकर तरीके से सजा हुआ मिला.ताजे फलों मे अनन्नास भी था. मुझे अपने अल्पज्ञ होने का आभास हुआ जब मैने किसी से पूछा कि इस फल को यहां क्या कहते हैं. जवाब सुनकर ताज़्ज़ुब करने की बारी मेरी थी,जब उसने कहा ‘अनन्नास’.मैं तो अब तक यही समझता आया था कि अनन्नास एक हिन्दी शब्द है.


आज पेरिस में हमारा दूसरा दिन था.पहले दिन यानी कल, एफिल टोवर के इर्द-गिर्द चार घंटे घूमते रहने पर भी एफिल टावर को ऊपर चढकर नहीं देखा था. यह आज के लिये छोड़ा हुआ था. भरपेट नाश्ता लेकर कल वाली प्रक्रिया दोहराते हुए हम फिर उसी सेन नदी के किनारे पहुंचे जो पेरिस का मुख्य पर्यटक बिन्दु है.मेट्रो स्टेशन से लगभग आधा कि.मी. चल कर रास्ते में यहां वहां फोटो खींचते हुए एफिल टोवर पहुंचे. एक बार फिर शुरू हुआ फोटो खींचने खिंचवाने का सिलसिला.

इस बीच हम टिकट की लाइन में भी लग लिये थे जो काफी लम्बी थी. दिन के ग्यारह बज चुके थे और पर्यटकों की तादाद प्रतिपल बढती जा रही थी.लाइन में लगे हुए लोगों के इर्द-गिर्द हौकर आ आकर अपने अपने सामान की बिक्री के प्रयास कर रहे थे. तभी हमें माइक के ज़रिये बताया गया कि भीड अधिक होने के कारण अभी तीन मंज़िल से ऊपर जाने की अनुमति नहीं है. तीन मंज़िल तक का किराया 8 यूरो है तथा जो व्यक्ति और ऊपर की मंज़िलों में जाना चाहते है, उन्हें अतिरिक्त किराया देना पड़ता है. हमने तय किया कि हन तीन मंज़िल तक ही जायेंगे.





ज़मीन से लगभग 30 अंश के कोण बनाती हुई लिफ्ट ( जिसमे बीस –बाईस व्यक्ति रहे होंगे ) के सहारे हमने ऊपर उठना शुरू किया. मैंने ‘सतह से उठता हुआ आदमी’ की छवि को वीडियो में कैद करने के लिये कैमरा ओन कर दिया. कुछ सेकंडों में हम तीसरी मंज़िल पर थे. बाद में हमने पाया कि दूसरी मंज़िल पर कुछ सोविनीयर्स की दुकानें, प्रसाधन आदि की सुविधा व छोटी से चाय-पानी की दुकान सी है.






पेरिस का सारा का सारा शहर सामने था और हम एक सम्राट की तरह आंखे फैला फैला कर शहर को अपने ‘कब्ज़े’ मे पाकर खुशी महसूस कर रहे थे.

हमने चारों ओर घूम घूम कर शहर के दृश्यों को कैमरे में कैद किया. और लगभग डेढ घंटे बाद नीचे उतरे.
आज का हमारा अगला पड़ाव था Notre Dame Cathedral, built in 1300 AD ( one of the oldest catholic churches of the world).खयाल समय का भी रखना था क्योंकि केथेड्रल के बाद हमें LOUVRE म्यूज़ियम जाना था , जो विश्व का विशालतम कला संग्रहालय कहलाता है .

केथेड्रल पहुंचते पहुंचते मेरे कैमरे की बैटरी कम्ज़ोर हो गयी थी,और मैने अजय के कैमरे की सहायय्त्ता लेना शुरू किया ( देखें चित्र)



केथेड्रल से निकलने पर हमरा अगला पड़ाव था University of Sorborne. हम पैदल ही निकल लिये और खरामा खरामा चलते हुए पहुंचे LOUVRE म्यूज़ियम.

यहां का विशाल डोम देखकर प्रसन्नता हुई. पीटर ने बताया कि यह कुछ वर्ष पूर्व ही बना है और अब इस विशाल म्यूज़ियम का प्रवेश इसी डोम के अन्दर से है. य़ह विश्व का सबसे बडा कला संग्रहालय है. विश्व भर के कला प्रेमी यहां आते हैं और कई कई दिन बिता कर पूरा देख पाते हैं.







संग्रहालय में जाने से पहले हमने बाहर मनोहारी (क़्रत्रिम) तालाब के किनारे बैठकर फोटो खींचे /खिंचवाये फिर गये अन्दर. आज सोमवर था और इस दिन म्यूज़ियम 6.30 पर ही बन्द हो जाता है अत: हमारे पास सीमित समय था. अत: तय हुआ कि सबसे पहले लियोनर्दो दा विंची की मशहूर कलाकृति ‘मोनालिसा’ के दर्शन किये जायें. समय रहने पर ही शेष संग्रह देखा जाये. हालांकि बाहर लिखा हुआ था कि कैमरा लेकर जाना मना है ( क्यों ???) मगर हर दर्शक के हाथ कैमरा देखकर तसल्ली हुई कि साक्षात मोनालिसा की ‘असली’ मुस्कान को हम कैद कर सकेंगे.





एक के बाद एक गैलरी पार करते रहे .लगा कि कुछ छूट गया है. पूछने पर ज्ञात हुआ कि मोनालिसा तो पीछे छोड आये हैं. मुख्य हौल से हटकर एक अलग गैलरी है जिसमें सर्वाधिक सुरक्षा है और वहीं भीड भी सबसे ज्यादा थी. मोनालिसा की तस्वीर खींचने के लिये मारा मारी थी.मैंने न केवल चित्र लिये ( देखॆं) बल्कि वीडियो भी बनाया. उसके बाद ही अन्य गैलरी की तरफ बढे.

विश्व प्रसिद्ध sculptures भी यहां है माइकेल एंजेलो,वीनस, ( Michaelangelo,Venus, Adonis,Other Greek gods, Cupid ) एक से बढकर एक कला के जीते जागते नमूने . सचमुच लगा कि हम ने कला की राजधानी देख ही ली.






शाम हो चली थी. सोचा कि होटल जाने से पहले खाना भी खाते चलें. ‘भारतीय’ भोजन की गली हम देख ही चुके थे. तय हुआ कि आज दक्षिण भारतीय दोसा आदि खाते हैं . फिर वही गली.. फिर वही ...
रात 9.30 पर पहुंचे होटल