Friday, September 23, 2011

पटौदी के नवाब से वह यादगार मुलाक़ात



Nawaab of Pataudi या Tiger Pataudi के नाम से मशहूर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान मंसूर अली खान पटौदी को पहली बार मैने खेलते देखा था कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में. 1964 में एम सी सी ( इंग्लेंड) की टीम भारत के दौरे पर थी. पहले चारों टेस्ट मेच ड्रा रहे थे.कानपुर का मेच पांचवां व अंतिम मैच था. उन दिनों कम से कम सीज़न् टिकट 5 रुपये की होती थी ( स्टूडेंट गैलरी ) . सम्भव ही नहीं था. अत: चार दिन रेडिओ पर ही कमेंट्री सुनी. मैं मात्र 9 वर्ष का था. आखिरी दिन मेरे मौसेरे भाई,जो मैच देखने ही कानपुर आये थे, एक अतिरिक्त टिकट होने के कारण मुझे साथ ले गये. भारत की टीम फोलो-औन के बाद दूसरी इनिंग खेल रही थी. बापू नादकर्णी ने 122 नाबाद की पारी खेली तथा सलीम दुर्रानी ने छक्कों ,चौकों की बौछार के साथ (शायद) 21 गेन्दों पर 61 नाबाद बनाये. मेच तो जैसा सुबह ही लग रहा था,ड्रा ही रहा. इस मेच में कप्तान मंसूर अली खान पटौदी ही थे, किंतु दूसरी पारी में उनकी बैटिंग का नम्बर ही नहीं आया क्यों कि भारत ने 347 रन तीन विकेट खोकर बनाये थे .

फिर पूरे पांच वर्ष के इंतज़ार के बाद 1969 में बिल लारी के नेतृत्व में आस्ट्रेलिया की टीम ने भी कानपुर में दूसरा मैच खेला जिसका नेतृत्व भी मंसूर अली खान पटौदी ने ही किया था. इस मैच में अजीत वाडॆकर, अशोक मनकड,अशोक गंडोत्रा,सुब्रोतो गुहा, एकनाथ सोलकर,विश्वनाथ जैसे नये खिलाडी भी थे. इस मैच को पूरे पांच दिन 5 रुपये की सीज़न टिकट खरीद कर देखा था,तब तक मैं 14 वर्ष का था.पटौदी का अपना नवाबी स्टाइल प्रभावी था. उनकी चाल ढाल पूरी शाही थी. फील्डिंग में गज़ब की फुर्ती थी,कुल मिलाकर एक गज़ब का चमत्कारिक व्यक्तित्व लगता था.पहली पारी में नवाब पटौदी ने 38 रन बनाये और दूसरी पारी में शून्य. मैच अंतत: बराबारी पर छूटा था. जहां टीम रुकी थी ( कानपुर क्लब ) में ,वहां विश्राम वाले दिन सुबह सुबह पहुंच गया. उन दिनों बहुत अधिक सिक्योरिटी का बवाल नहीं था. वहां पीली टी-शर्ट् में खूबसूरत अजीत वाडेकर मिले, अन्य खिलाडी मिले और उनके औटोग्राफ भी लिये किंतु अफसोस कप्तान मंसूर अली खान पटौदी से मुलाक़ात न हो सकी.

फिर आया 1981 का वर्ष. मैं आई आई टी कानपुर से पढ़्कर ( आई आई टी बम्बई होते हुए) चार वर्ष हैदराबाद में काम करने के बाद कलकता मे Advertising Consultants(indis) Ltd ( ACIL) नामक एडवर्टाइज़िंग कम्पनी में कार्य रत था. अगस्त 1981 में मेरा तबादला दिल्ली हो गया. अक्तूबर् 1981 में कम्पनी के सभी ब्रांच मेनेजरों व अधिकारियों की एक कांफ्रेंस सूरजकुण्ड में आयोजित हुई. यह वार्षिक कांफ्रेंस तीन दिन की थी और इसकी पूर्व सन्ध्या पर एक पार्टी का आयोजन दिल्ली में फ्रेंड्स कोलोनी स्थित होटल सूर्य सोफाइटल मे हुआ. हमारी कम्पनी ( ACIL) के हैदराबाद ब्रांच के मेनेजर थे एम एल जयसिम्हा. हां हां वही ML Jaisimha जो भारतीय क्रिकेट टीम के ओपनिंग बल्लेबाज़ हुआ करते थे. . पार्टी शुरू होने के कुछ समय बाद सभी लोगों को यह देखकर खुशी हुई कि जयसिम्हा के साथ साथ हौल में प्रवेश किया अब्बास अली बेग तथा मंसूर अली खान पटौदी ने, जो जयसिम्हा के विशॆष बुलावे पर पार्टी में आये थे. सबसे परिचय हुआ. लोग समूहों में बंट कर बात-चीत कर रहे थे. मैं पहुंचा तीन पूर्व क्रिकेट खिलाडियों के ग्रुप में जो उस समय ACIL के एम डी दिलीप सेन के साथ मगन थे. इधर उधर की बांतॆ हुई. क्रिकेट के कुछ किस्से भी हुए. विज्ञापन पर भी बात चीत हुई. अब्बास अली बेग व नवाब पटौदी लगभग 2 घंटे पार्टी में रहे फिर जयसिम्हा को साथ लेकर विदा ली.

1981 की वह भेंट मुझे अभी तक बिल्कुल स्पष्ट रूप में याद है.

आज जब नवाब पटौदी के निधन का समाचार सुना, तो उनकी याद्गार क्रिकेट पारियों ( विशेषकर 1964 में दिल्ली टेस्ट में बनाये 203 नाबाद) की भी याद आयी. साथ ही याद आयी वह पार्टी भी जो टाइगर से एक पहली व अंतिम मुलाक़ात थी.

नवाब पटौदी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.

Thursday, August 18, 2011

अन्ना हज़ारे ने बनाया माहौल....

ये अन्धेरा अब पिघलना चाहिये
सूर्य बादल से निकलना चाहिये

कब तलक परहेज़ होगा शोर से
अब हमारे होँठ हिलना चाहिये

फुसफुसाहट का असर दिखता नहीँ
हमको अपना स्वर बदलना चाहिये

अब नहीँ काफी महज़ आलोचना
आग कलमोँ को उगलना चाहिये

ये नक़ाबेँ नोचने का वक़्त है
हाथ चेहरोँ तक पहुंचना चाहिये

वक़्त भी कम है हमारे हाथ से
अब न ये मौक़ा फिसलना चाहिये.

Tuesday, May 24, 2011

अमरीका में भारतीयम: एक बार फिर

2009 के बाद एक बार फिर अवसर आया है लिबर्टी की देवी के दर्शन का. इस बार मंज़िल है मेनेज़मेंट का मक्का कहे जाने वाला हार्वर्ड विश्वविद्यालय.
IJAS की वार्षिक कांफ्रेंस में भाग लेना व दो शोध पत्र प्रस्तुत करना है . पहला शोध पत्र “भारत में आर्थिक सुधारों का उद्यमशीलता ( Entrepreneureship ) पर सकारात्मक प्रभाव” विषय पर है तथा दूसरा शोध पत्र “ भारतीय औषधि उद्योग में पेटेंट (Patent ) व नवीनता ( Innovation ) की लागत “ विषय से सम्बन्धित है.

विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड वि.वि में सम्मेलन के अतिरिक्त अन्य अकादमिक/ शैक्षिक/व्यावसायिक गतिविधियों के सिलसिले में कनेक्टिकट एवम न्यूजर्सी भी जाना होगा.
हिन्दी ब्लोग जगत 2009 में हुई मेरी पिछली यात्रा पर ‘अमरीका में भारतीयम” (http://bhaarateeyam.blogspot.com/2009/05/blog-post.html ) व अन्य लेखों की श्रंखला पढ चुका है.इसी प्रकार पिछले वर्ष( 2010) –“मेरी यूरोप यात्रा” ( http://bhaarateeyam.blogspot.com/2010/06/9.html) के 12 अंक भी “लोक मंगल” व “भारतीयम” ब्लोग पर आ चुके हैं जिन्हे पाठक वर्ग ने सराहा था. इस बार भी आपको मेरी अमरीका यात्रा से जुड़े अनुभव व संस्मरण उपलब्ध होंगे

Sunday, May 22, 2011

गज़ल: "है अन्धेरों भरी ज़िन्दगी आजकल"

है अन्धेरों भरी ज़िन्दगी आजकल
ढूंढते हैं सभी रोशनी आजकल

खूबसूरत समां खुशनुमा वादियां,
ऐसे सपने भी आते नहीं आजकल

वादा करना,मुकरना तो आदत बना
लोग करते हैं यूं दिल्लगी आजकल

रहजनी जिनका पेशा था कल तक यहां,
वो भी करने लगे रहबरी आजकल

सब्ज़ पत्तों ने ओढा कुहासा घना
जंगलों जंगलों तीरगी आजकल

राम मुंह से कहें और बगल में छुरी
ऐसे होने लगी बन्दगी आजकल

चान्द बादल में खुद को छुपाता फिरे,
बहकी बह्की लगे चान्दनी आजकल

सर से गायब हुई चूनरी ओढनी
और दुपट्टॆ भी दिखते नहीं आजकल
- डा. अरविन्द चतुर्वेदी

Tuesday, May 17, 2011

उड़ने की होड़ में हमारे पंख कट गये

सच को दबाने के लिये हथियार लिये है,
हर आदमी अब हाथ में अखबार लिये है.

बगलों में तंत्र मंत्र की गठरी दबाये है,
अब संत भी आंखों में चमत्कार लिये है.

उड़ने की होड़ में हमारे पंख कट गये,
हर दूसरा पंछी यहां तलवार लिये है .

हर पूजा अधूरी है बिना फूल के शायद,
हर फूल दिलों में ये अहंकार लिये है.

आता है झूमता हुआ इक डाकिये सा वो,
बादल है, बारिशों के समाचार लिये है.


जिसने बनाये ताज़ कटी उनकी उंगलियां,
सीने में यही दर्द तो फनक़ार लिये है. **

मैं उससे बिछड़ तो गया, इस पार हूं मगर,
वो मेरे ख्वाब आंख में उस पार लिये है. **

डा.अरविन्द चतुर्वेदी

Tuesday, April 12, 2011

देश के लिये उठे हाथ

दिल्ली के जंतर मंतर पर 5 से 9 अप्रैल 2011 तक जो लोकतंत्र का यज्ञ हुआ, उस ने हम सब देशवासियों में नई आशा का संचार किया है. लोग भविष्य के प्रति आशांवित हैं और एक नये प्रकार का आत्मविश्वास उपजा है.

इस समूची उपलब्धि पर मेरे बह्त पुराने ( आई आई टी बम्बई 1976-77) मित्र व वैज्ञानिक डा. शाहिद अब्बास अब्बासी ने मुझे एक चार पंक्तियों की रचना भेजी है,मैं चाहता हूं सभी लोगों तक पहुंचे.








हर दश्त को भी अब से बहारें मिलें खुदा

हर शख्स खुश दिखे वो नज़ारे मिलें खुदा

जो चल पड़ा है कारवां अब ना रुके कभी

इस मुल्क को हज़ारों हज़ारे मिलें खुदा


- डा. शाहिद अब्बास अब्बासी, पोंडिचेरी विश्वविद्यालय , पुदुच्चेरी.

Friday, March 18, 2011

मज़े लो होली में

नाचो दे दे ताल, मजे लो होली में,
गालों मलो गुलाल, मजे लो होली में.

रंग बिरंगे चेहरों में ढून्ढो धन्नो,
घर हो या ससुराल , मजे लो होली में.

हुश्न एक के चार नज़र आयें देखो,
एनक करे कमाल , मजे लो होली में


चढे भंग की गोली ,डगमग पैर चलें,
बहकी बहकी चाल, मजे लो होली में.

ऐश्वर्या जब तुम्हे पुकारे ‘अंकल जी’,
छूकर देखो गाल, मजे लो होली में


छेडछाड में पिट सकते हो ,भैया जी,
गैंडे जैसी खाल ? मजे लो होली में.



बीबी बोले मेरे संग खेलो होली,
बैठो सड्डे नाल , मजे लो होली में.

Thursday, February 17, 2011

प्रधान मंत्री तो निरा भोन्दू है रे !!!!

प्रधान मंत्री तो निरा भोन्दू है रे !!!!

ये कैसा सरदार है जो अपनी मज़बूरियां गिनाता है ?
बिना रीढ़ की हड्डी के हैं मनमोहन सिंह !!!!!
यह प्रधानमंत्री कुर्सी चिपकू है !!!!


कल की मीडिया कांफ्रेंस से मनमोहन सिंह के प्रशसकों को एक बडा धक्का लगा है. भले ही सरकार घिसट घिसट के चल रही हो, भले ही अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री के रहते महंगायी ने अपने सारे पुराने रिकोर्ड तोड़ दिये हों, भले ही संप्रग की सरकार को घोटालों की सरकार की संज्ञा दी जाती रही हो, कम से कम मनमोहन सिंह पर व्यक्तिगत रूप से कीचड़ कम ही उछला गया था. ऐसा अब तक इसलिये हो रहा था क्यों कि मनमोहन जी ने अब तक अपना मुंह ही नहीं खोला था.

अब तो सारा मुलम्मा उतर गया. कलई खुल गयी और सारा का सारा भेद जग ज़ाहिर हो गया. अब तो कुछ भी छिपा नहीं रह गया. क्यों कि खुद प्रधान मंत्री जी ने सरेआम स्वीकार कर लिया कि उनके रीढ़ की हड्डी ही नहीं है.

देश गर्त में जाये तो जाये, सरकार में उनके मातहत मंत्री अरबों खरबों का चूना देश को लगा कर अपने खज़ाने भरते रहें , आम आदमी पिसता रहे, मगर मनमोहन जी चुप थे, चुप हैं और चुप रहेंगे क्योंकि ....”मैं नहीं चाहता कि सरकार गिर जाये और दुबारा चुनाव कराना पडे”

अरे भाई साफ साफ कहो न कि हम कुर्सी चिपकू हैं ,कुर्सी छोडेंगे नहीं , कुछ करेंगे भी नहीं. देश भाड़ में जाता है तो जाये. .... क्यों कि मैं कुछ बोलूंगा तो ..सरकार गिर जायेगी... मेरी गद्दी चली जायेगी. चुनाव करना पडेगा...

मैं तो गठबन्धन को बचाने के लिये प्रधानमंत्री बनाया गया हूं. मेरी आका ने कहा कि चाहे कुछ .... हां हां चाहे कुछ भी कीमत चुकाना पडे, सरकार नहीं गिरना चाहिये.
देश भाड़ में जाता है तो जाये.....
आदमी मरता है तो मरे... मेरी सरकार के मंत्री दोनों हाथों से देश को लूट रहे हों तो लूटें..
मैं चुप रहूंगा.... मैं चुनाव नहीं होने दूंगा.... गठबन्धन की मज़बूरी जो है...
मुझे दोष मत दो ... मैं भ्रष्टाचार नहीं देख पा रहा तो क्या हुआ? मैं क्या करूं अगर मेरे मंत्री देश लूट रहे हैं? गठबन्धन की सरकार है ना.... क्या आप ये छोटी सी बात भी नहीं समझते ?

क्या कहा? मैं भोन्दू हूं ? मेरी रीढ़ की हड्डी नहीं हैं ?

कुछ भी कह लो ... मैं नहीं हटूंगा..... मैं गद्दी नहीं छोडूंगा ... जै हिन्द... जै हिन्द ... जै गठबन्धन ... जै माता सोनिया....जै राहुल जी.....

Monday, January 3, 2011

मुलम्मा उतर गया