Thursday, February 25, 2010

घर हो या ससुराल ,मज़े लो होली में

नाचो दे दे ताल, मजे लो होली में,
गालों मलो गुलाल, मजे लो होली में.

रंग बिरंगे चेहरों में ढून्ढो धन्नो,
घर हो या ससुराल , मजे लो होली में.

हुश्न एक के चार नज़र आयें देखो,
एनक करे कमाल , मजे लो होली में


चढे भंग की गोली ,डगमग पैर चलें,
बहकी बहकी चाल, मजे लो होली में.

ऐश्वर्या जब तुम्हे पुकारे ‘अंकल जी’,
छूकर देखो गाल, मजे लो होली में


छेडछाड में पिट सकते हो ,भैया जी,
गैंडे जैसी खाल, मजे लो होली में.



बीबी बोले मेरे संग खेलो होली,
बैठो सड्डे नाल , मजे लो होली

Sunday, February 14, 2010

ये लो भैया,अब 'भारतीयम' भी..... माजरा क्या है ?

पहले पहल तो चौंका. ब्लोगवाणी पर टिप्पणियों की सूची पर नज़र पडी तो देखा किसी ने 'भारतीयम' ब्लोग पर टिप्पणी की है. चौंकना स्वाभाविक था. क्योंकि टिप्पणी का विषय मेरे ब्लोग की किसी हालिया पोस्ट से बिलकुल ही भिन्न था.
फोरन भारतीयम पर जा कर देखा तो पता चला कि किसी शंकर नामक ब्लोग्गर ने इसी नाम से एक और ब्लोग चालू कर दिया है. मैं तो 2007 से भारतीयम नाम से ब्लोग्गिंग कर रहा हूं. फिर अब एक और भारतीयम....?


मैं नहीं जानता कि जिन भाई ने ये भारतीयम नाम से दूसरा ब्लोग प्रारम्भ किया है ,उन्हे मेरे भारतीयम की जानकारी थी या नहीं. परंतु उनका ब्लोग 2008 से है और इसमे अभी तक 10 पोस्ट हुईं हैं . मैने तो आज ही पहली बार देखा.

कुछ दिनों पहले बी एस पाबला जी के चिट्ठा चर्चा सम्बन्धी डोमैन नाम को लेकर सारथी जी की टिप्पणी पढ़ी थी जिसमें उन्होने इसे एक साधारण सी घटना ही बताई थी. अब पशोपेश में हूं .


मैं तो शंकर जी से अनुरोध करूंगा कि यदि इसे अन्यथा न लें तो कुछ और नाम अपना लें .

यदि वह स्वीकारते हैं तो ठीक ,नहीं स्वीकारते तो भी ठीक.

और फिर कर भी क्या सकता हूं मैं ?
सिर्फ कुछ भ्रम ही तो फैलेगा...चलने दो बाल किशन ...