लगता है अब कांग्रेस ने मन बना लिया है कि आन्ध्र प्रदेश में से तेलंगाना को पृथक राज्य के रूप में अलग किया जायेगा. इस मुद्दे पर अन्य राजनैतिक पार्टियों का रुख भी सकारात्मक है अत:देर-सबेर तेलंगाना भारतीय संघ का 29वं राज्य बन ही जायेगा.
अनेक वर्षों से तेलंगाना राज्य की मांग उठाई जा रही थी. नौ वर्ष पूर्व बने झारखंड, उत्तराखंड व छतीसगढ़ के लिये हुए आन्दोलनों से कहीं पहले से साठ के दशक से ही यह मांग समय समय पर आन्दोलन मे परिवर्तित होती रही थी.
जैसा पिछले दशक मे गठित नये राज्यों का मामला था, उसी प्रकार तेलंगाना का गठन भी वर्तमान प्रदेश के एक हिस्से को अलग कर के ही होगा. 1957 में जब प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग बना था ,तब उसकी मुख्य शिफारिश भाषाई आधार पर ही पुनर्गठन करना था. संयुक्त प्रांत ,मध्य भारत, बम्बई ,मैसूर ,मद्रास आदि तब के राज्यों के विभाजन के प्रथम स्वर भी भाषाई आधार पर ही उभरे थे अत: उस समय यह कदम सही कहा जा सकता था. बाद के दिनों भी जब भी पृथक राज्य की मांगे उठी हैं ,उनका आधार निर्विवाद रूप से आर्थिक विषमता ही रहा है और भाषा इसमें कभी प्रमुख मुद्दा नहीं रही.
यह सही है कि छोटे छोटे प्रदेश प्रशासनिक दृष्टि से अधिक सफल रहे हैं. बडे राज्य़ों में आर्थिक विषमता होना स्वाभाविक ही कहा जायेगा. विभाजन से पहले उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता था( आकार को देखते हुए शायद आज भी सच है), कि मुख्यमंत्री को तो सभी ज़िलों के नाम भी नहीं पता होते.उत्तर प्रदेश मे अभी भी बुन्देल्खंड, बृज प्रदेश,अवध की मांग है. मध्य प्रदेश मे मालवा क्षेत्र हेतु अलग राज्य का प्रश्न उठता है. महाराष्ट्र में विदर्भ व मराठ्वाडा को अलग करने के लिये आन्दोलन चलते रहे हैं. अभी भी गोरखालैंड, कुर्ग ( कोडगु), आदि प्रदेशों की मांगे विकास व सांस्कृतिक विषमता को लेकर उठती रही हैं
लोकनायक जय प्रकाश नारायण देश में 50 छोटे छोटे प्रदेशों के पक्ष में थे.किंतु मात्र भाषा को आधार मानकर नहीं बल्कि विकास को आधार मानकर. अब इस मुद्दे पर गौर करने का समय आ गया है.क्षेत्रीय विषमता व सांस्क़ृतिक एकरूपता का भी ध्यान रखा जाना चाहिये. पिछले पुनर्गठन के समय यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाता तो झारखंड राज्य में कुछ( आदिवासी ) हिस्सा मध्य प्रदेश व ओडीशा से भी मिलाया जाना चाहिये था. उसी प्रकार राजस्थान से भरतपुर ,मध्य प्रदेश से भिंड ,मुरैना,ग्वालियर आदि को मिलाकर उत्तर प्रदेश में बृज प्रदेश का निर्माण किया जा सकता है.
समय आ गया है कि राज्य पुनर्गठन आयोग गठित किया जाये और आर्थिक,सांस्कृतिक,भौगोलिक आदि आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया जाये. छोटे छोटे 50 राज्य विकास के पहिये को गति प्रदान करेंगे ,ऐसा मेरा मानना है .
1 comment:
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अरविन्द चतुर्वेदी जी से सहमत...
उत्तर प्रदेश के निम्न चार हिस्से तो होने ही चाहिये...
१- पश्चिम उत्तर प्रदेश या हरित प्रदेश.
२- बुन्देलखण्ड.
३- अवध या मध्य उत्तर प्रदेश.
४- ब्रज प्रदेश.
छोटे राज्य एक ऐसी जरूरत हैं जिसका समय आ गया है, मैं आशावान हूँ कि ऐसा जल्दी ही हो जायेगा।
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