Monday, May 10, 2010

मेरी यूरोप यात्रा 6-- नमस्ते भी सुना ,सौरी भी. हार्ली डेविडसन की फोटो



मैने पिछली पोस्ट में मोटर साइकल हार्ली डेविडसन का ज़िक्र किया था और यह भी लिहा था कि हमने उसके फोटो भी खींचे. भाई विवेक रस्तोगी ने एक छोटे से कमेंट में इसकी मांग जैसी(?) की है. अत: पहले फोटो
दिन भर के सैर् सपाटे ने थका तो दिया था. सोचा था कि रात को हल्का भोजन या फिर दूध-फल से काम चला लेंगे. पहले दिन के लाये फल अभी खत्म नहीं हुए थे और दूध की बोतल भी लगभग भरी थी. कल सुबह पेरिस की यात्रा पर निकलंने का प्रोग्राम था. कमरा भी खाली करना था क्यों कि पेरिस से वापसी 20 अप्रैल रात की तय थी.

किंतु सामान वापस मिलंने की खुशी भी celebrate करना था, अत: वीरैया व अजय के साथ मार्केट जाने का फैसला हुआ. उन्होंने बोम्बे पेलेस नामक एक रेस्त्रां देख रखा था. तय हुआ कि वहीं चलना है. ग्रेनोबल शहर बहुत बड़ा नहीं है. 25 मिनट की पैदल यात्रा करके हम के बोम्बे पेलेस पहुंच गये. सुना था कि यहां की बिरयानी व लस्सी मशहूर है. मुंह में पानी लिये हम एक टेबल पर बैठ गये. वेटर आया तो उसने बताया कि यह हिस्सा पार्टी के लिये आरक्षित है और उसने हमॆं दूसरी टेबल बता दी. हमने मेन्यू देखना शुरु किया. तभी हिमाचली टोपी व सिल्क का पठानी सूट पहने एक सज्जन नमूंदार हुए और पूछा कि क्या हमने सीट बुक की हुई है? हम हैरान.कहा नहीं ,बुक तो नहीं की है.
“ I am sorry” ,उसने कहा था.

“ आज सारी सीट पहले से बुक हैं ,हम आपकी सेवा नहीं कर पायेंगे”
“ I am sorry” ,उसने कहा था.

बुरा तो लगा ,परंतु कर ही क्या सकते थे . कानों में शब्द गूंज रहे थे.
“ I am sorry” ,उसने कहा था.

बड़े बे-आबरू होकर उसके कूचे से निकल कर हम सोच ही रहे थे कि कहां जायें ,तभी बिल्कुल सामने की सडक पर - –लग्भग सामने-“श्रीलंका रेस्त्रां” नाम के साइन बोर्ड पर नज़र गयी.सोचा कि कोई तमिल भोजनालय होगा ट्राई करने में क्या हर्ज़ है. अन्दर जाते ही बडे आदर के साथ बैठाया गया. मालिक ( यहां ज्यादातर भारतीय रेस्त्रां चलाने वाले मध्यम दर्ज़े के ही हैं और स्वयम या उसके घर के सदस्य भी खुद काम में हिस्सा बटाते हैं) .मालिक ने अपना परिचय देकर पूछा कि हम् कहां के हैं?
मेन्यू पूरा भारतीय था. हमने नान, दाल मखनी , मिक्स्ड वेजीटबल मंगाया. बाद में एक प्लेट फ्राईड राइस भी लिया. स्वाद भी ठीक ही था, बहुत ज्यादा तारीफ लायक भी नहीं.
वापस लौट कर सामान पेक करना था. हमारी पेरिस की यह यात्रा भी ‘ग्रेनोबल एकोल डी मेनेजमेंट’ की ओर से प्रायोजित थी, और हमारे साथ एक वरिष्ठ छात्र, जिसे पेरिस की जानकारी थी, गाइड के तौर पर भेजा जा रहा था, जिसका नाम था पीटर . वह कभी भारत नहीं आया परंतु उसने भारत के बारे में बहुत कुछ पढ रखा था.पीटर, जो मूल रूप से वियेना का रहने वाला था, परंतु अधिकांश्तया इंगलेंड में रहता आया था. ने हमें बताया था कि वह क्रिकेट का शौकीन है ( शायद इंगलेंड में ही यह शौक पनपा होगा). आई पी एल के मैचों को वह यू-ट्यूब पर देखता था और मुम्बई-इंडियंस उसकी पसन्दीदा टीम थी. पीटर ने कहा था कि सिर्फ एक छोटा बेग जिसमे एकाध जोडी कपडॆ व आवश्यक सामान हो,काफी होगा. हमारा बाकी सामान एक अन्य कमरे में रख दिया जायेगा तथा पेरिस से वापस होने पर कमरा बदल भी सकता है.

मैं एक पाठ्य-पुस्तक पर काम कर रहा हूं और प्रकाशक का आग्रह था कि कुछ सामग्री भेजना ज़रूरी था. सोचा रात भारत जाग कर काम खत्म करते हैं ताकि मेल करने लायक सामग्री हो जाये. यह भी कि सोना तो ट्रेन में भी हो सकता है.

सुबह 4 बजे तक काम खत्म किया. प्रकाशक को मेल भेजी, सामान की दुबारा पैकिंग की, सोते सोते 5 बज गये. अलार्म 7 बजे का था,अन्यथा ट्रेन छूटने का डर जो था.


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18.अप्रैल को सुबह 9.15 पर स्टूडेंट गाइड Peter से स्टेशन पर मिलना तय हुआ था. ई-टिकट पहले से बुक थीं,परंतु उन्हें ट्रेन चलने के पहले इंडोर्स करना ज़रूरी था. पीटर लाइन में था. समय अधिक लग रहा था. धुक धुक होने लगी कि ट्रेन के समय तक हो भी पायेगा या नहीं. जब ट्रेन छूटने में मात्र 5 मिनट बचे थे , पीटर हांफता हांफता परंतु मुस्कुराता हुआ आता दिखा. पहले हम प्लेटफार्म की तरफ भागे फिर निर्धारित डब्बे की ओर.
साढे तीन घंटे की यात्रा थी,सबने खूब चना चबेना इकट्ठा किया था. ट्रेन चलने पर पैकेट खुलने लगे. पीटर हमारे लिये टमाटर ( पता लगा वह औस्ट्रिया के थे), पेप्सि डाइट , वेफर्स, ले के आया था.











मुख्य स्टेशन पर लगभग 2 बजे उतर कर हमने मेट्रो ( अंडर-ग्राउंड) ट्रेन की राह पकडी, बीच में उतर कर फिर पटरी बदली और अंतत: पहुंचे –होटल सिटाडीन . अपने अपने कमरों मे चेक-इन के बाद 10 मिनट में हमॆं लोब्बी मे फिर मिलना था, ताकि 4 बजे के खुली बस के 2 घंटे के टूर पर निकल सकें. फिर भागम भाग .एफिल टावर के पास से ही बस चलती है. वहां उसी तरह हौकर ने घेर लिया,जिस तरह भारत में विदेशी पर्यटकों को घेर लेते हैं.
(आगे...कैसे किया पेरिस ने स्वागत ?)

3 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा लग रहा है आपका संस्मरण पढ़ना...जारी रहिये.

विवेक रस्तोगी said...

जी हाँ सर फ़ोटो की ही माँग की गई थी, जो आपने पूरी कर दी, धन्यवाद ।

बढ़िया लग रहा है संस्मरण पढ़ना।

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

@समीर जी,
आप पढ कर ही मज़ा ले रहे हैं , मुझे यह जान कर ही अच्छा लग रहा है.

@विवेक जी,
मोटर साइकल की फोटो अभी और हैं.