Saturday, May 8, 2010

मेरी यूरोप यात्रा-4: ऐतिहासिक स्थल आंसी की सैर






















चित्र स.1 -ट्रेन का आनन्द -आंसी के रास्ते में

चित्र स. 2- ट्रेन की खिड़की से बाहर की एक झलक
चित्र स. 3- स्टेशन के बाहर शहर के मिज़ाज़ पर बयान
चित्र स. 4- पुराने शहर का एक नज़ारा
चित्र स. 5- निचले शहर का एक विहंगम दृश्य
चित्र स. 6- लीला रोज़ रेस्त्रां के अन्दर


सोते सोते देर हो गयी थी,अत: सुबह 7 बजे का अलार्म लगाया था. अपने छात्र वीरैया से भी कह रखा था कि सात बजे मुझे फोन करके जगा दे. अलार्म से जागा, किंतु फिर सो गया. आठ बजे कमरे पर दस्तक हुई तो मेरे छात्र थे दरवाजे पर.
आज सुबह 9 .35 की ट्रेन पकड़कर आनसी नामक दर्शनीय स्थल जाना था जो जिनेवा से 50-55 मिनट की दूरी पर ही है. ज़ाहिर है तैयार होने के लिये समय कम था. सामान भी नहीं आया था, अत:उन्ही कपडों से काम चलाना था. खैर,जैसे –तैसे तैयार हुआ, पूजा आदि के बाद ब्रेकफास्ट के लिये रेस्त्रां की ओर भागा. यहां पूरा कौंटीनेंटल नाश्ता उपलब्ध था. साबुत व कटे हुए फल, जुस, योगर्ट,भिन्न किस्मों की ब्रेड्स, कोर्न फ्लेक्स, मांसाहारियों के लिये उबले अंडे व हेम ...आदि., ब्रेकफास्ट के बाद भाग कर आंसी ( Annecy) के लिये ट्रेन पकडना था. स्टेशन बमुश्किल पांच-सात मिनट की पैदल दूरी पर था. निर्धारित समय ट्रेन से रवाना हुए. ग्रेनोबल से आंसी लग्भग ढाई घंटे का रास्ता था. मनोहारी दृश्यों से अटा पड़ा था हमारा सफर. बीच में तीन स्टेशन और पडे जहां ट्रेन 2-3 मिनट के लिये रुकी.
हमारे कम्पार्टॅमेंट में एक फ्रेंच फोटो ग्राफर .( अब रिटायर्ड) से भेंट हुई, जो भारत घूमा हुआ था,फिर भी अंग्रेज़ी भली प्रकार नहीं जानता था. सिर्फ फ्रेंच भाषा में ही बात कर रहा था. मेरी टीम ने मुझे ही यह कहकर आगे किया हुआ था कि मैं थोडी –बहुत फ्रेंच समझता हूं ( 1976 में अपने आई आई टी बम्बई के प्रवास में एक सेमेस्टर का कोर्स किया हुआ था और अब तक सभी कुछ भूल चुका हूं,सिवाय ‘बोंझू मस्यु’, ‘कोमां तले वू’, ‘सिल्वू प्ले ‘ ) सवाल - जवाब सभी हां ,ना, टूटे फूटे शब्दों में दोनो तरफ से हो रहे थे. खैर-इस प्रकार की बातचीत का अपना मज़ा है. सो लिया गया. ,
आंसी पहुंच कर हमें निर्धारित गाइड को ढूंढना था. मुख्य द्वार से बाहर आते ही उसने हमें पहचान ही लिया. हम छह ( मैं और मेरे संस्थान के Executive MBA के पांच छात्र.) एक भारतीय दल की तरह थे और निश्चित ही दूर से हमारी पहचान की जा सकती थी. (चूंकि कई बार पहले भी ज़िक्र आया है और आगे भी होगा, अत: इन पांचों के बारे में बताना उचित होगा- यह पांच हिन्दुस्तान एरोनौटिक्स –HAL के अधिकारी हैं जो IMI दिल्ली से 15 माह का कोर्स Executive MBA कर रहे हैं. यह हैं- Veeraiah, Ajay , Vijay Gopal ,Ezhilarasan, Krishnendu Paitandy)

ऑ दियार नाम गाइड, जो लगभग 55-60 वर्षीय महिला थी, ने आगे आकर अपना परिचय दिया और कहा कि आज दो घंटे उन्हें हमारे दल को आंसी घुमाने के लिये कहा गया है. पता चला कि उनका बेटा जयपुर ( राजस्थान विवि) में दो वर्षों से फ्रेंच टीचर है.

गाइड ने पहले हमें वहीं स्टेशन के बाहर एक फव्वारे के पास बिठाकर हमें इस ऐतिहासिक नगर की पूरी जानकारी दी और बताया कि यहां से–रोज़ 26000 फ्रेंच लोग आनसी से जिनेवा जाते हैं, क्यों कि वहां वेतन ज्यादा मिलता है. यहां से 1 घटा की दूरी है हालांकि देश दूसरा है.

फिर हम ने लग्भग दो घंटे आंसी की गलियों की धूल फांकी ( सिर्फ मुहावरा ही है, क्यों कि यहां धूल दिखी ही नहीं). सैर के दौरान ऐतिहासिक स्थान , किला, आदि देखा दुश्मनो से रक्षा के प्रबन्ध किस तरह किले में थे , घोडों के पानी पीने का स्थान , रनिवास, जेल, सिक्के ढालने का स्थान (मिंट ), आदि.. एतिहासिक चर्च , यहां बहने वाली नदी , सभी का आनन्द उठाया.
यह एक पर्यटक स्थल है और अनेक पर्यटक यहां प्रतिदिन आते हैं.यहां के एतिहासिक महत्व के अतिरिक्त स्बसे बडा आकर्षण है विशाल झील, जिसमें पर्यटक छोटी ,बड़ी सभी प्रकार की नौकाओं में नौकायन करते हैं .



हमारी गाइड हमें उस रेस्त्रां ( Le Lila’s Rose)पर लाकर छोड़ गयी और आगे के सफर ( नौकायन ) की जानकारे दे गयीं क्यों कि उनके दो घंटे पूरे हो चुके थे . हमारे अनुरोध पर कि हमारे साथ खाना खायें, गाइड ने मना कर दिया क्यों कि किसी और पर्यटक दल से समय तय था. Le Lila’s Rose नामक जगह पर जहां हमार लंच पहले से बुक था, शाकाहारी के नाम पर विभिन्न प्रकार से पकाये गये आलू ( एक विकल्प उबले-बिन छिले बड़े बड़े आलू भी था) , चीज़ ( प्रोसेस वाला,पनीर नहीं) ,तथा सलाद था. सोटे के आकार वाली बडी बडी ब्रेड ,मखन आदि में ही गुज़ारा करना था हमें ( मुझे मिलाकर कुल छह में से तीन ही शाकाहारी थे). सबसे स्वादिष्ट लगा ब्रेड को खोलते चीज़ में डुबा डुबा कर खाना. ( मेज़ पर छोटी किंतु प्रभावी बर्नर के ऊपर पतीली में चीज़ खौल रहा था, हम कांटे से ब्रेड के छोटे तुकडे डुबो कर खा रहे थे) . मांसाहारियों को मछली व सी-फूड पसन्द आया.


(आगे – नौका विहार , भारतीय रेस्त्रां मे गये तो उन्होने कहा सौरी...)

3 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया चल रहा है वृतांत. आगे इन्तजार है.

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

@समीर भाई,
आप रुचि ले रहे हैं, जानकर खुशी हुई. लिखने को बहुत होता है ,पर अक्सर समयाभाव के चलते हो नहीं पाता.

विवेक रस्तोगी said...

ऐसा लग रहा है कि हम भी आपके साथ ही घूम रहे हैं, प्रभावशाली लेखन