Wednesday, May 5, 2010
मेरी यूरोप यात्रा-3 पहले ही दिन दुखद समाचार
सुबह जब सात बजे सो कर उठा तो अपने घर की तरह अखबार व चाय तो मिलना नहीं था.सबसे पहले नेट पर बैठा अपने मेल चेक करने के लिये. पहली मेल संस्थान (IMI) के Registrar की थी. शीर्षक पढ़ कर ही चौंका. मेल में दुखद समाचार था कि संस्थान (IMI) के director Prof. Venkat Ratnam का निधन हो गया है. जानकर दुख हुआ.
मैं यहां आने से पहले दो तीन दिनों से प्रो.वेंकट से मुलाक़ात करने की कोशिश कर रहा था, परंतु 12, 13 व 14 अप्रैल को भेंट नहीं हुई तो मैने 14 अप्रैल को लग्भग 9 बजे उनसे फोन पर बात की थी. उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उन्होने कहा कि अब बेहतर है. मैने उन्हें अपनी फ्रांस यात्रा के बारे में बात की . उन्हें यह भी बताया कि अफगानिस्तान सरकार से एक प्रशिक्षण कार्यक्रम की स्वीकृति मिली है तो वह बहुत प्रसन्न हुए. उन्होने पूछा कि मेरे वापस् आने तक यदि कोइ कार्य है तो वह सम्बन्धित् व्यक्ति से कह देंगे. मैने कहा आप चिंता न करें मैं वापस आकर कर लूंगा.
इस पर उन्होने मुझे यात्रा की शुभकामनायें दी.
प्रो. वेंकट से मेरी पहली भेंट आई एम टी गाज़ियाबाद में 2004 में हुई थी. वहां उनका पुत्र भी अध्ययन कर रहा था तथा उनके साथ उनकी पत्नी प्रो. चन्द्रा ने भी साथ ही ज्वाइन किया था. जब उन्हें आई एम आई का निदेशक नियुक्त किया गया तो आई एम टी के निदेशक ने एक आयोजन में कहा कि कृपया हमारे यहां से किसी फेकल्टी को वहां मत ले जाना, इस पर उन्होने कहा था ,"बिल्कुल नहीं, सिर्फ एक को छोड़्कर".
बाद में उन्होने ही मुझे IMT Ghaziabad छोड़कर IMI ज्वाइन करने को कहा था.
विधि का विधान कोई नहीं जानता. प्रो. वेंकट का हमारे बीच से इस तरह जाना निस्सन्देह एक अपूरणीय क्षति है. मैं परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि उनकी आत्मा को परम शांति प्रदान करे. प्रो. चन्द्रा व उनके पुत्र को यह अपार दुख सहने की शक्ति प्रदान करे. मैं इस दुख में सहभागी हूं.
दोपहर से पहले एयर्पोर्ट से सामान आने की कोई उमीद नही थी,कहीं जाने का भी मन नहीं हो रहा था.नीचे रिसेप्शन तक गया और उस कन्या से बात की जो फ्रेंच व अंग्रेज़ी दोनों ही जानती /समझती थी.उससे लियों फोन करके सामान के बारे में पूछने का अनुरोध किया. उसने फोन के बाद बताया कि शायद सामान शाम तक् आ जाये ,नहीं तो कल सुबह 11 बजे. अगले सुबह आनसी (Annecy) का कार्यकृम बना हुआ था. चिंता यह थी कि यदि शाम तक सामान न मिला तो कल जायेंगे कैसे. जब यह चिंता रिसेप्शन पर बतायी तो मुझे वहां से washing machine के लिये दो टोकन मुफ्त मिल गये.
शाम होने पर जब सामान नहीं आया तो मार्केट गया,कुछ खरीदारी भी की. इंडियन बाज़ार नामक एक दुकान भी दिखी जिसे दिल्ली के गुल्शन रत्रा व उनके भाई बब्बल चला रहे हैं,उन्होने पूछने पर बताया कि वे लोग यहां 25 वर्षों से है. इस दुकान पर भारतीय रुचि की समस्त सामग्री ( मसाले, दाल, चावल, हिन्दी फिल्मों व गानों की सी डी, रेडी टू ईट (ready to heat & eat ) समोसे, परांठा आदि भी उपलब्ध थे.
.यह भी पता चला कि शाकाहारी भोजन मिलना सम्भव तो है परंतु भारतीय रेस्त्रां दूर था, मन भी नहीं था. मेरे दो छत्रों ने सुझाया कि वह भारत से अपने साथ MTR ब्रांड के खाद्य पेकेट लाये हैं.उनके साथ उनकी किचन में ही गरम कर राजमा चावल खाये गये.
चित्रों का विवरण: सबसे ऊपर चित्र स.1 अपने अपार्टमेंट् के बाहर मेरे तीन छात्र् ( एरिल्, वीरैया व कृश्नेन्दु)
चित्र स. 2एक पुराने चित्र में प्रो.वेंकट रत्नम ( बीच में नीली टाई लगाये) अन्य प्रोफेसर के साथ
चित्र स. 3 अपने अपार्टमेंट के बाहर फूटपाथ् पर मैं
चित्र स.4 ( ऊपर्) ग्रेनोबल एकोल डी मेनेजमेंट के बाहर मैं व मेरे छात्र
(आगे ... आंसी का सफर ...)
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1 comment:
बढ़िया वृतांत...
प्रो. वेंकट को श्रृद्धांजलि!! ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे!!
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