Wednesday, May 5, 2010

मेरी यूरोप यात्रा -2 फ्रांस की ज़मीन पर कदम ..



लियों तक पहुंचते पहुंचते हमारी उड़ान 1 घंटा देरी से पहुंची. मुझे 12.35 पर लियों पहुंच कर 1.30 की शटल पकड़ कर ग्रिनोबल जाना था. मेरी घड़ी में भारतीय समय ही था. जब मेरी घडी में शाम के 5 बजे थे ( यानी दिल्ली से उड़े हुए साढ़े 12 घंटे होचुके थे), फ्रांस की स्थानीय घड़ियां 1.30 अपरान्ह बता रही थी.
सामान लेने के लिये इंतज़ार करता रहा पर नहीं मिला. हारकर कार्यालय में बात करने गया. कई लोगों को ऐसी ही शिकायत थी, बारी आने पर जब शिकायत की तो बताया गया कि मेरा सामान इस्तानबुल एयर्पोर्ट पर ही रह गया है, लियों के लिये नहीं चढाया जा सका. मुझसे गेनोबल के होटल का पता लिखाया गया और कहा गया कि अगले दिन शाम तक सामान होटल में पहुंचा दिया जायेगा.

( मेरे अपार्ट्मेंट की तीसरी मंज़िल से, जहां मेरा कमरा था, एक नज़ारा)



एयरपोर्ट से बैरंग रवाना होने की नौबत थी,कुछ कर भी नहीं सकता था. दूसरों के साथ ऐसा हुआ है, कई बार सुना था,परंतु स्वयम मैं पहली बार यह मज़ा ( या सज़ा) भुगतने वाला था. ठंड थोडी और बढ गयी थी पर जेकेट से काम चल रहा था. गनीमत थी कि आवश्यक दवाइयां व शेविंग किट ,मह्त्वपूर्ण पेपर्स मेरे हाथ वाले बेग में ही थे. 2.30 की शटल के लिये भी मेरा टिकट आरक्षित था,जो मेज़बान की जिम्मेदारी थी, तथा निर्धारित काउंटर पर नाम बताते ही उप्लब्ध हो गया.
फ्रांस में ही नही बल्कि अधिकांश यूरोप में लोग समय के बहुत पाबन्द हैं . ग्रिनओबल के लिये प्लेटफोर्म 4 पर शटल सेवा उप्लब्ध थी. परंतु 2.20 तक वहां कुछ चहल पहल नहीं थी,अचानक 5 मिनट में ही भीड़ बढ़् गयी और ठीक 2.30 पर शटल बस चल भी दी.

सुबह चार बजे दिल्ली से चलने के कारण नींद पूरी नहीं हुई थी. शटल में नींद आ रही थी,परंतु खूबसूरत नज़ारे देखने का लोभ भी नहीं संवरण कर पा रहा था. बाहर के नज़ारे वाकई दिलकश थे. दोनों तरफ ऊंची ऊंची हरी भरी दूर तक फैली पहाडियां मन को लुभा रही थी. इन पहाडियों को देख कर अपना ही एक नया शेर याद आ गया ( पूरी गज़ल फिर कभी)


..खूबसूरत समां, खुशनुमा वादियां, ऐसे सपने भी आते नहीं आजकल




लगभग 5 बजे ( स्थानीय समय ) होटल पहुंच गया. होटल क्या बल्कि अपार्टमेंट या स्टूडियो अपार्टमेंट कहना उचित होगा.नाम भी था Residehome . रिसेप्शन पर उपस्थित कन्या ने बताया कि रूम सर्विस नहीं है किंतु कमरे में पूरी किचनेट मौज़ूद है जिसमें फ्रिज़,ओवेन,होट-प्लेट ,सारे आवशय्क बर्तन,कटलरी आदि मौज़ूद है.


( चित्र में अपने अपार्टमेंट के बाहर मैं व मेरे दो छात्र-ऎरिल व कृष्नेन्दु)

कमरे में व्यवस्थित होकर, मुझसे 5 दिन पहले से ही ग्रेनोबल ( Grenoble Ecole de ँmanagement जो कि Grenoble Graduate School of Business का एक हिस्सा है. पूरे यूरोप में इसकी छठी rank मानी जाती है ) पधारे अपने 5 छात्रों की तलाश की. अब तक की progress report ली. खान-पान की व्यवस्था आदि के बारे मे पूछा और अभी तक शहर के अनुभव की जानकारी ली.
दो छात्रों के साथ बाज़ार गया. अपनी किचेन के लिये कौफी, दूध , फल आदि की खरीद की. दिल्ली में परिवार से बात करने के लिये 7.5 यूरो ( एक यूरो लगभग 61 भारतीय रुपये) का एक कार्ड भी लिया. ( इन कार्ड को किसी भी फोन् बूथ पर इस्तेमाल करके विश्व भर में कहीं बात हो सकती है. ...

अपने मोबाइल फोन पर इंटरनेश्नल रोमिंग बचाने के चक्कर में अपना मोबाइल दिल्ली में छोड़ दिया था. कम्प्यूटर पर स्काइप डाउनलोड कर लिया था,जो मेरे बेटे के लेप्टोप में भी था.
कमरे पर आकर स्काइप पर लग्भग आधा घंटा दिल्ली बात हुई. टी वी ओन किया तो सारे चैनलों पर फ्रेंच भाषा के ही कार्यक्रम थे.

(आगे... पहले ही दिन दुखी खबर )

3 comments:

Udan Tashtari said...

तस्वीरें अच्छी लगी. अरे, सामान नहीं पहुँचा तो एयरलाईन्स से कपड़े खरीदने के पैसे तो ले लेने थे आपको.

विवेक रस्तोगी said...

हम भी साथ ही कर रहे हैं सफ़र

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

@समीर जी,
मुझे बताया गया है कि सिर्फ 100 डालर का दावा ही किया जा सकता है. कागज़ आदि एकत्र कर लिये हैं और ट्रेवल ऍजेंट को दे रहा हूं. वह तो अभी भी मिल जायेगा.
@विवेक जी
हिन्दी का सफर ही है ना ?