Tuesday, September 18, 2007

जन्मतिथि एवम पुण्य तिथि पर काका हाथरसी को श्रद्धांजलि


आज हास्य रस के पुरोधा कवि श्री काका हाथरसी का जन्म दिन भी है और पुण्य तिथि भी. आज के दिन सन 1906 में काका का जन्म हुआ और सन 1995 में आज के ही दिन काका परलोक सिधार गये थे . कम लोगों को उनका असली नाम पता है- वह प्रभु दयाल गर्ग के नाम से जाने जाते थे ,परंतु काका नाम अधिक मशहूर हुआ. हास्य उनके जीवन का अभिन्न अंग था,उनकी जीवन शैली थी. वह हास्य को भरपूर जीते थे.

उनके इस सिद्धांत को रेखांकित करती कविता है-

डाक्टर वैद्य बता रहे ,कुदरत का कानून
जितना हंसता आदमी, उतना बढ़ता खून
उतना बढ़ता खून, हास्य मेँ की कंजूसी
सुन्दर सूरत मूरत पर छाई मनहूसी
कंह काका कवि,हास्य व्यंग्य जो पीते डट के,
रहती सदा बहार ,बुढापा पास न फटके.



काका की जनप्रिय पुस्तकों में -काका के कारतूस, काका की फुलझडियां, का का की कचहरी ,काक्दूत, काका के प्रहसन महामूर्ख सम्मेलन, चकल्ल्स,काका की चौपाल , आदि दर्जनों पुस्तकें है जिनके दर्जनों संस्करण बिक चुके हैं.

काका ने विशुद्ध हास्य लिखा, गुद्गुदाने वाले व्यंग्य को कविता में पिरोया.
उनकी 'विद्यार्थी' की परिभाषा इस प्रकार है


पूज्य पिता की नाक में डाले रहो नकेल
रेग्युलर होते रहो तीन साल तक फेल
तीन साल तक फेल. भाग्य चमकाता ज़ीरो
बहुत शीघ्र बन जाओगे कालेज के हीरो
कह काका कविराय ,वही सच्चा विद्यार्थी
जो निकाल कर दिखला दे विद्या की अर्थी.

काका की कलम से कोई विषय अछूता नही रहा. रिश्वत पर उन्होने ये लिखा--

रिश्वत रानी धन्य तू तेरे अगणित नाम
हक्-पानी उपहार औ बख्शीश ,घूस इनाम
बख्शीश ,घूस इनाम ,भेंट, नज़राना, पगडी
तेरे कारण खाऊ मल की इनकम तगडी
कह काका कविराय ,दौर दौरा दिन दूना
जहां नहीं तू देवी,वह महकमा है सूना.

मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि.

6 comments:

Shiv said...

अद्भुत कवि थे काका. हास्य कहीँ से भी निकाल लेते थे.१९८५ में कनिष्क विमान दुर्घटना के बाद विमान के ब्लैक बॉक्स समुद्र से निकालने के लिए एक रोबोट का सहारा लिया गया. मुझे याद है, काका ने एक छोटी सी कविता इसपर भी लिख दी थी...

अटलांटिक के वक्ष में मार साहसिक चोट
ब्लैक बॉक्स को पकड़ कर ले आया रोबोट
ले आया रोबोट धन्य वैज्ञानिक पापा
सरसठ सौ फीट गहराई में मारा छापा
ऐसा ही रोबोट आयकर वाले पाएं
छिपे हुए काले धन को ऊपर ले आयें..

काका को श्रद्धांजलि..

Shastri JC Philip said...

अरविंद जी, मैं बचपन से काका हाथरसी के "पोषक तत्व" ग्रहण करता आया हूं. आज उनकी कमी बहुत अखरती है. इस लेख के लिये आभार -- शास्त्री जे सी फिलिप

प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
बन सकती है.

आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??

sanjay patel said...

हास्य के वेदव्यास थे पूज्य काका.हाथरस से प्रकाशित होने वाली पत्रिका संगीत का बरसों सम्पादन किया उन्होने और न जाने कितने लोगों को शास्त्रीय संगीत के व्याकरण से अवगत करवाया. उन्हे घुटी हुई काँफ़ी बहुत पसंद थी.ख़ाकसार को उनकी सेवा का अवसर प्राप्त हुआ था. वे विलक्षण मेधा के व्यक्तित्व थे. उनके जाने से हिन्दी मंच से गरिमामय ठहाका विदा हो गया. काका की कविता पूरे परिवार के साथ बैठकर सुनी जा सकती थी. अब हास्य कविता वाले मिमिक्री कर रहे हैं और मिमिक्री वाले कविता. काका की आत्मा ये नज़ारा देख कर निश्चेत ही रो रही होगी.
उनकी अशेष स्मृति को मेरे भाव-वंदन.

Sagar Chand Nahar said...

मुझे भी काका के दीवानों में शामिल समझें।
जैसा की संजय भाई ने कहा आजकल कवि मिमिक्री ज्यादा कर रहे हैं। मेरे साथ ऐसा अनुभव हो चुका है। जिसको मैने यहाँ
लिखा था।

Udan Tashtari said...

काका को श्रद्धांजलि..आपका आभार इस दिवस पर काका को याद करने के लिये.

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

gt@शिव कुमार जी, शास्त्री जी, संजय पटेल जी,नाहर जी एवं समीर जी ,

आजकल तो हास्य के नाम पर "भड़ैती" हो रही है. नाहर जी की कवि सम्म्मेलन वाली रपट मैने पढ़ ली. हैदराबाद के नुमाइश मैदान का कवि सम्मेलन एक समय पूरे भारत में मशहूर था. जब मैं हैदराबाद में था(1977-1981),खूब सुना. तब मैं खुद कविता नहीं लिखता था. इधर दो तीन वर्षों से हास्य खूब लिखा है. पहले कवि सम्मेलनों में गज़ल सुनाता था, आजकल मुझे हास्य के लिये ही बुलाया जाता है. सुबह ही( आज 20.09.07) आकाशवाणी के 'हंसते-हंसाते' कार्यकृम हेतु रिक़ौर्डिंग करके आया हूं .और शाम गणेशोत्सव के एक कवि सम्मेलन में जाना है. जी हां ,संजय भाई और नाहर जी, बिल्कुल दुरुस्त फरमा रहे है कि आजकल हास्य के नाम पर चुटकुले बाज़ी अधिक होने लगी है.

क़ाका ने असली हास्य लिखा. गुदगुदाने वाला हास्य लिखा. जिसका कोई सानी नहीं है.
वर्तमान हास्य कवियों मे ओम प्रकाश आदित्य को विशुद्धा हास्य का कवि मानता हूं.

प्रतिक्रियाने का धन्यवाद.