ख्वाब कांटों की तरह आंख में गड़ता क्यूं है ?
तमाम चेहरों से चिपकी हुई जड़ता क्यूं है ?
हमें मालूम है खुशबू कहां से लाया है .
वो इत्र लगाकर ,इस तरह अकड़ता क्यूं है ?
कि जिसके पढ़ने से नफरत में डूब जाता है,
तू ऐसे मज़हबों की पुस्तकें पढ़ता क्यूं है ?
बिखर क्यूं जाता है, हर बार इकट्ठा होकर ,
तुम्हारा कुनबा बार बार उजड़ता क्यूं है ?
ये सच और झूठ का झगड़ा नहीं मिटने वाला,
तू ख्वाम्खां के सवालात में पड़ता क्यूं है ?
हरेक शख्स पे उंगली उठाई है तुमने ,
किसी ने तुझ पे उठाई तो बिगड़ता क्यूं है ?
साथ खुशियों में निभाया है मेरा आज तलक ,
आज जब गम का ये साया है, बिछड़ता क्यूं है ?
7 comments:
"हरेक शख्स पे उंगली उठाई है तुमने ,
किसी ने तुझ पे उठाई तो बिगड़ता क्यूं है ? "
बहुत सही प्रश्न है. एकदम से कबीरदास का दोहा याद आ गया "बुरा देखन मैं जो चला ..."
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हे प्रभु, मुझे अपने दिव्य ज्ञान से भर दीजिये
जिससे मेरा हर कदम दूसरों के लिये अनुग्रह का कारण हो,
हर शब्द दुखी को सांत्वना एवं रचनाकर्मी को प्रेरणा दे,
हर पल मुझे यह लगे की मैं आपके और अधिक निकट
होता जा रहा हूं.
कि जिसके पढ़ने से नफरत में डूब जाता है,
तू ऐसे मज़हबों की पुस्तकें पढ़ता क्यूं है ?
bahut ache arivind ji unda ghazal
हमें मालूम है खुशबू कहां से लाया है .
वो इत्र लगाकर ,इस तरह अकड़ता क्यूं है ?
vah kahayaal ki udaan apne paron ke bal boote par atal hai.
dad ke saaath
Devi
@शास्त्री जी, सजीव सारथी जी एवम देवी जी,
प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद्
प्रो. साब - इसमें तो जनता परिवार की कहानी भी है [:-)] -[" बिखर क्यूं जाता है, हर बार इकट्ठा होकर /तुम्हारा कुनबा बार बार उजड़ता क्यूं है ? "] - थोड़ी सवाल जवाबी करें तो ["ख्वाब की नस्ल है जात है यूँ चुभने की / समता सा स्वप्न है, हर रात उमड़ता यूँ है"]- अभी धीरे धीरे पढ़ना जारी है [ कविताएँ क्योंकि बाकी थोड़ा भारी है [:-) ] - सादर मनीष
जी, आपने बिल्कुल सही पकडा है. तथाकथित तीसरा मोर्चा इसी श्रेणी में आता है. ज़नता ( विभिन्न अवतारों में) परिवार की भी यही कहानी रही है. इसी को ध्यान में रखकर लिखा था यह.
किसी दूसरी गज़ल मे भी मैने इसी प्रश्न को यूं उठाया था:
कहते हैं सभी मिलकर ,अन्धेरों से लडेंगे
जुगनू इकट्ठे हो रहे हैं रोज़ शाम को.
शुक्रिया
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