Friday, September 21, 2007
ओफिस (कार्यालय )में कैसे सोएं ?
कुछ लोग अपने कार्यालय में काम करने ही जाते है. कुछ लोग मात्र टाइमपास के लिये. कुछ कार्यालय को जनसम्पर्क करने हेतु एक बेहतर विकल्प के रूप में लेते हैं.कुछ लोग सब कुछ चाहते हैं मगर थोडा थोड़ा.
परंतु सचाई यह है कि , यदि अवसर प्राप्त हो तो, अधिकांश व्यक्ति ( दोनो पुरुष कर्मचारी व महिला कर्मचारी ) कुछ देर के लिये ही सही, काम के बीच में कुछ पल आनंद ,शांति के लिये निकालने से गुरेज़ नही करेंगे . .
मेरे एक मित्र है डा. करन भाटिया, रुड़की में हाइड्रोलोजी संस्थान में वैज्ञानिक हैं. आई आई टी बम्बई में ( 1977) में होस्टल में हम साथ साथ थे. अब मुलाकातें बहुत कम होती हैं ( पिछले 15 वर्ष में शायद दो ही बार मिले हैं). ई-मेल से सम्पर्क बना रहता है.
पिछले सप्ताह मुझे भाटिया जी ने प्यारे से कार्टूंस भेजे. वही सबके साथ share कर रहा हूं.
लेबल:
Cartoons,
office-manners,
मनोरंजन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
अफसोस कि हम (और आप :) ) जेसे मास्टर लोग क्लास में सुला भले ही दें पर सो नहीं सकते :))
@मसिजीवि जी, बिल्कुल सहमत हूं ,तब ही तो मास्टर को 'निरीह' जीव माना गया है.
सोना तो दूर सोने का अभिनय भी नहीं कर सकते.
पधारने & टिप्पियाने हेतु धन्यवाद्
मैं तो दोपहर में १५-२० मिनट बाकायदा लेट कर झपकी लेता हूं; और उसमें कोई अपराध बोध नहीं है! उससे कार्यक्षमता शायद बढ़ती ही है.
यही तरीका सही है. आज हजामत बनवाता हूँ इसी स्टाईल में. :)
"पिछले सप्ताह मुझे भाटिया जी ने प्यारे से कार्टूंस भेजे. वही सबके साथ share कर रहा हूं." - वैसे मुझे यह कार्टून २/३ माह पहले याहू समुह से मिले थे ।हमे तो यह पता नही था, कि यह आप के दोस्त से आए थे :) ।
वाह, क्या बात है ! अब सोते समय पढाने का एक तरीका और निकल आये तो अपने तो वारेन्यारे हो जायेंगे
-- शास्त्री जे सी फिलिप
प्रोत्साहन की जरूरत हरेक् को होती है. ऐसा कोई आभूषण
नहीं है जिसे चमकाने पर शोभा न बढे. चिट्ठाकार भी
ऐसे ही है. आपका एक वाक्य, एक टिप्पणी, एक छोटा
सा प्रोत्साहन, उसके चिट्ठाजीवन की एक बहुत बडी कडी
बन सकती है.
आप ने आज कम से कम दस हिन्दी चिट्ठाकरों को
प्रोत्साहित किया क्या ? यदि नहीं तो क्यो नहीं ??
कलम की कारीगरी बहुत मनोरंजग लगी, पर सच से परे. ागर ऐसा हो तो मैं भी टीम में शामिल होना चाहूंगी. क्लास में वैसे ही बचबे लोरी गाते रहते हैं और हम खुली आँखों से सोये रहते हैं और कर भी क्या सकते हैं. जब तक पघार हाथ में आ रही है तब तक किसि से न कहिये कि सोना जायज़ है !!!!!!!!
देवी
Post a Comment