जो महिला विधेयक को एक क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं मैं उनसे पूछना चाहता हूं कौन सी क्रांति की आशा है उन्हे इस प्रतिगामी विधेयक से?
संसद में या विधानसभाओं में चन्द महिलायें ज्यादा हो जायेंगी तो कौन सा फर्क़ पडने वाला है. पंचायत, नगर निगम व नगर पालिकाओं में महिला आरक्षण के नतीजे यही बताते हैं कि राजनीतिक परिवारों के पुरुष उनकी कन्धे पर बन्दूक रख कर राजनीति करते हैं .
मैं स्पष्ट कर दूं कि मैं महिलाओं को अधिक अवसर दिये जाने का पक्षधर ज़रूर हूं परंतु किसी भी तरह के आरक्षण के खिलाफ हूं.आरक्षण कोई रामबाण नहीं है.
अनुसूचित जाति, जनजाति ,अन्य पिछडे वर्गों को आगे लाने के लिये बहुत कुछ किया जा सकता है सिर्फ आरक्षण की वैसाखी देकर उन्हें विकलांग बना दिया गया है और यही गति देश की महिलाओं की करने की साजिश है.
यदि आज के राजनैतिक दल सही मायनों में अनुसूचित जाति, जनजाति ,अन्य पिछडे वर्गों व महिलाओं का भला चाहते हैं उन्हे प्रगति के शिखर पर ले जाना चाहते हैं तो शिक्षा ही एकमात्र उपाय है.
मुफ्त शिक्षा, समान शिक्षा व अनिवार्य शिक्षा यही हमारा मंत्र होना चाहिये.
आरक्षण रूपी झुनझुने थमाने से न किसी का भला हुआ है और न ही होगा. पाखंड और ढकोसले की राजनीति वोट भले ही दिला दे, देश को पीछे ही धकेलेगी.
10 वर्षों के लिये दिया गया अनुसूचित जाति व जनजाति हेतु आरक्षण अभी तक लागू है. आज तक यह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया. इससे सिर्फ समाज में वैमनस्य व कटुता ही बढी है. यही हाल मण्डल आयोग के चलते हुआ. अन्य पिछडे वर्गों को भी बस सुनहरे ख्वाब दिखाये गये. कहीं कुछ नहीं बदला. क्रीमी लेयर ही सब फसल चर् गयी.
महिला आरक्षण को लेकर जश्न मनाने वालों को भी मैं यही कहना चाहता हूं. जिस महिला के उत्थान की आप बात करते हो, उसे तो यही नहीं पता कि संसद है क्या?
50 वर्ष हो गये ,हम दो पीढियों को साक्षर नहीं कर पाये.
आरक्षण हर मर्ज़ की दवा नहीं है.
हमें सोच बदलनी होगी.
हो सकता है कि कल आरक्षण समर्थक सफल भी हो जायें और मेरा मज़ाक उडायें.
कडवी ज़रूर लगेगी मेरी बात.पर सच हमेशा कडवा ही होता है.
बुरा लगे तो ... दो रोटी ज्यादा खा लेना .. ( और मुझसे पर गरिया लेना.)
1 comment:
gajab ki baat kahi hai aapne...yahi hai real fact
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