शाम हुई और मन हुरियारा हो गया.
फागुन की हवा में ही कुछ ऐसी मस्ती होती है
कि मन करता है कुछ रंगीन्,
कुछ चुलबुली शरारत ,
कुछ छेडछाड़ की जाये
किसी की चुनरी भिगोई जाये
किसी को चिकोटी काटी जाये.
किसी से चुहल की जाये.
और कुछ नहीं
तो बस मस्ती में अकेले ही झूम लिया जाये
.......
.....
और बस यूं ही कुछ पुरानी होली याद आयी ....ऐसे ...
कमल फूल जल में बाढे, और चन्दाआआआ हो उगे आकाश,
मेरो मना पिउ में लागो
और पिउ को हहो मोमें हतु नांय
पिउ बिन होरी को खेलै ?
हो पिउ बिन होरी को खेलै ?
कोजा बसे गढ आगरें, और कोजा औरंगाबाद
कोजा बसे गढ सांकरे और कोजा चन्दन चौपार
मेरो मना पिउ में लागो
और पिउ को हो मोमें हतु नांय
पिउ बिन होरी को खेलै ?
हो पिउ बिन होरी को खेलै ?
देवरा बसे गढ आगरें, और जेठा औरंगाबाद
ससुर बसे गढ सांकरे और बलमा चन्दन चौपार
मेरो मना पिउ में लागो
और पिउ को हो मोमें हतु नांय
पिउ बिन होरी को खेलै ?
हो पिउ बिन होरी को खेलै ?
साभार : ब्रज गोकुलम्
2 comments:
रंग रस.भंग से लबालब....झोली..भर ले रे होली..
मुबारका!!!मुबारक!!
वाह! वाह!! होली पर आनन्द आया!!
ये रंग भरा त्यौहार, चलो हम होली खेलें
प्रीत की बहे बयार, चलो हम होली खेलें.
पाले जितने द्वेष, चलो उनको बिसरा दें,
खुशी की हो बौछार,चलो हम होली खेलें.
आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक.
-समीर लाल ’समीर’
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