आज राज्य सभा में में संसद की गरिमा अक्षुण्ण रह गयी. हालांकि आने वाले दिनों में यह गरिमा तार तार होगी, यह तय है. महिला आरक्षण विधेयक भारतीय राजनीति में राजनैतिक तंत्र द्वारा देश पर थोपा जाने वाला सबसे बडा पाखंड है . इस पाखंड का भंडाफोड- संसद में होने से संसद की गरिमा नहीं बची रह सकती.
देश के अधिकांश राजनैतिक दल ,जो इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, पहले दर्जे के पाखंडी और फरेबी सिद्ध हुए हैं.14 वर्षों से ढिंढोरा पीट पीट कर विधेयक पास न होने पर पूरे तंत्र को दोषी बताते आये हैं. क़िंतु महिला आरक्षण के मुद्दे पर एक भी दल ऐसा न निकला जो अपनी कथनी और करनी को एक रूप दिखा पाता.
कितने चुनाव आये और गये. लोक सभा के चुनाव भी हुए और विधान सभाओं के भी. आज महिला आरक्षण के नाम का नारा लगाने वाले एक भी दल ने 10 प्रतिशत से ज्यादा महिला प्रत्याशी नहीं उतारे. यह तथ्य इन सारे दलों के पाखंड को बेनक़ाब करता है.
यदि ये दल वास्तव में महिला वर्ग के हितैषी होते तो इन्हे किसी विधेयक अथवा कानून की आवश्यकता नहीं थी. 33 प्रतिशत ही क्यों 50 या इससे भी ज्यादा चुनाव क्षेत्रों में यह दल महिला प्रत्याशी को उतार सकते थे. इन्हे कौन रोकने वाला था?
अब यह फिर देश के समक्ष रोना रोयेंगे. सियापा करेंगे. दोषारोपण करेंगे.
इनकी नीयत साफ नहीं है.
दोगले हैं ये .
पाखंडी .
1 comment:
इन पाखंडियों को छोड़िये और बताईये कि आप आ गये हैं क्या? अपना फोन नम्बर भेजें.
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