मैं ढूंढता हूं एक राज़दार शहर में
हर दोस्त मेरा बन गया अखबार शहर में.
जिस शख्स का इतिहास भी थाने में दर्ज़ था,
वो आज बन गया है असरदार शहर में.
अपने मुनाफे के लिये भगवान बेच दे ,
ऐसे हैं धर्म के अलमबरदार शहर में.
दिन रात लोग जो करें सत्ता की दलाली,
हां हां उन्ही के दम पे है सरकार शहर में.
जब से ये 'हाय' 'बाय' 'हलो' शब्द चले हैं,
गुम हो गया है जैसे 'नमस्कार' शहर में.
4 comments:
वाह, बहुत ही अच्छी ग़ज़ल. सीधे दिल पर असर करती है.
बहुत बढिया व सामयिक गजल है बधाई स्वीकारें।
वाह आज के हालात पर गहरा कटाक्ष्।
@Rajeev Bharol ji
@परमजीत सिंह जी
@वन्दना जी
आप ब्लौग पर पधारे एवं टिप्पणी की,इस हेतु आपका आभार.
आपको गज़ल पसन्द आयी, धन्यवाद.
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