Monday, August 9, 2010

हास्य गज़ल

बैठा हूं मैं उदास तेरे घर के अपोजिट
लूंगा यहीं सन्यास तेरे घर के अपोजिट.

लम्बा है और हरा है तेरे सामने का लौन ,
खायेंगे गधे घास तेरे घर के अपोजिट.

जिस जिस को तूने देख लिया टेढ़ी आंख से
घूमे है बदहवास तेरे घर के अपोज़िट.


ठर्रे की दुकानों पे पियक्कड करें दंगे,
पकडे गये बदमाश तेरे घर के अपोजिट.

जब से मिली है आशिक़ों को बोलने की छूट,
आशिक़ करें बकवास तेरे घर के अपोजिट.

कुत्ते के काटने पे थी सुईयां लगी जिन्हे,
बन्दे थे वे पचास तेरे घर के अपोजिट.

खूसट से तेरे बाप से टकरा गये थे जो,
कुछ आम थे ,कुछ खास तेरे घर के अपोजिट.

4 comments:

Rajeev Bharol said...

वाह. बहुत अच्छे.

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

@Rajeev Bharol ji,
पसन्द के लिये धन्यवाद्

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Kaju ke bhav maine khareedey hai kuch chane/
baitha hoon intezar me terey ghar ke opposite.
kya umda bahar par ghazal likhi bhai ji.
maja aaya khoob
sader
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

डा. साहब,
गज़ल की सराहना के लिये शुक्रिया.
आपकी दो लाइन मैं कुछ इस तरह लिखूंगा:

करना है इंतज़ार ,ले आया हूं कुछ चने
करने को टैम पास,तेरे घर के अपोज़िट.

आखिर काफिया भी तो मिलाना है.