Sunday, September 13, 2009

आखिर इस ढोंग की ज़रूरत ही क्या थी ?

देश के अनेक भागों में सूखा पड़ रहा है. क़िसान आत्महत्या पर अभी भी मज़बूर हैं. ऐसे समय में सोनिया गान्धी द्वारा कांग्रेस सरकार के मंत्रियों को दिये गये सरकारी खर्च में कमी लाने के निर्देशों का वाकई कितना असर होगा ,इसका अन्दाज़ लगाना मुश्किल नहीं है.

जैसे ही वित्त मंत्री प्रणव बाबू ने फरमान ज़ारी किया वैसे ही एक समाचार पत्र मे दो मंत्रियों के 5 -स्टार होटल में रहने की खबर आ गई. अब सरकार की किरकिरी होना निश्चित थी अत: वित्त मंत्री को स्प्ष्टीकरण भी देना पड़ा. परंतु राजनेता ( यानी मंत्रीगण) अभी भी समझोते को तैयार नहीं दिखते . शरद पवार, फारुक अब्दुल्ला ने साधारण श्रेणी की हवाई यात्रा पर भी सवाल उठा दिया है. कुल मिलाकर यह एक गम्भीर मुहिम न होकर एक ढोंग सा बन गया लगता है.

आखिर इस ढोंग की ज़रूरत ही क्या थी ?

इस बहस के कई आयाम हैं परंतु मेरी राय में जो प्रमुख प्रश्न हैं वे निम्न हैं:
(1) क्या अमीर /सम्पन्न पृष्ठभूमि से राजनीति में आने वाले राजनेताओं को अपनी सम्पत्ति का भोंडा ( व अश्लील) प्रदर्शन करने की छूट होनी चाहिये ? दो मंत्रियों ने (लगभग)ताल ठोकते हुए कहा था कि वे अपने पांच सितारा होटल का खर्च स्वयं उठा रहे हैं ( हालांकि इस पर सहजता से विश्वास करना मुश्किल है )अत: किसी को आपत्ति करने का हक़ नहीं है और उन्हे ऐसा करने से नहीं रोका जाना चाहिये.

(2) क्या संप्रग सरकार अपने मंत्रियों को ज़बरद्स्ती सादगी का प्रदर्शन करने पर मज़बूर करके एक ढोंग नहीं कर रही ? सभी जानते हैं कि यदि मंत्रियों को सार्वजनिक रूप से सादगी पूर्ण व्यवहार हेतु मज़बूर किया भी गया ,तो भी सरकारी खर्च में कोई बड़ी कमी नहीं आने वाली.

(3) क्या वाकई पब्लिक सब जानती है ? जनता को इन फालतू के नारों या दिखावों से भरमाया नहीं जा सकता. जनता इस सारे झूठ के पर्दे के आर पार देख सकती है.
(4) जिस तरह गरीबी की रेखा निर्धारित है ,उसी तरह क्या कोई अमीरी की रेखा भी होनी चाहिये?
(5) अब जबकि कि आम राजनेता संपन्न तबके से भी आने लगे हैं ( भले ही वे - पिछले दरवाजे से राज्य सभा में पहुंचे या धनबल के बूते जनता के वोट खरीद कर) क्या लोक प्रतिनिधियों से सादगी के व्यवहार की अपेक्षा ही नहीं की जानी चाहिये और उन्हे पूरी छूट हो कि वे ( कथित रूप् से) 'अपनी निज़ी' कमाई को सार्वजनिक रूप् से जैसे चाहें वैसे उड़ायें?

ये सभी प्रश्न महत्वपूर्ण हैं.
मेरी राय है कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में आता है तो उसे कुछ त्याग करने के लिये तैयार होना चाहिये. सार्वजनिक जीवन के कुछ मापदंड भी हों ( जिनमें निज़ी दौलत का भी भोंडा व अश्लील प्रदर्शन वर्जित हो) . ये मापदंड भले ही कानून का रूप न लें तो भी एक मर्यादित आचरण अवश्य निर्धारित होना चाहिये.

3 comments:

संजय तिवारी said...

आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.

हेमन्त कुमार said...

सहमत । आभार ।

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

@संजय तिवारी जी,
@ हेमंत जी

टिप्पणी करने ,सहमति जताने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद्