पिछले कुछ कवि सम्मेलनों में मैने राजनैतिक सन्दर्भ वाले कुछ दुमदार दोहे सुनाये एवम श्रोताओं ने इन्हे बहुत पसन्द किया.
प्रस्तुत हैं कुछ ऐसे ही दुमदार दोहे .
कम्युनिस्टों के खेल ने किया रंग में भंग,
आडवाणी जी पीटते घर में ढोल मृदंग .
गीत सावन के गायें,
चलो सरकार बनायें.
अमर सिंह जी कर रहे तेरह मे से तीन,
मनमोहन निश्चिंत हो ,बजा रहे हैं बीन.
दाल में कुछ है काला,
समर्थन मिलने वाला .
डील डील सब कर रहे ,इसका ओर न छोर,
सिंह मुलायम देखते अमरीका की ओर.
दूर की कौडी लाई
ज़ेब में सी बी आई.
शिरडी पहुंची सोनिया, लेने आशिर्वाद,
जनता भई नाराज तो, आये सांई याद .
बडा गडबड घोटाला,
इलेक्शन आने वाला.
यू पी में हल्ला मचा, हाय हाय चहुं ओर
माल सहारा तोड दे, माया का है ज़ोर.
न लेना इससे पंगा
करा देगी ये दंगा.
साइकल महंगी हो गयी ,इसका क्या है राज ?
दाम तेल के बढ गये, साइकल पर शिवराज.
सी एम अब काम करेगें
कार के दाम गिरेंगे .
मुझसे यूं कहने लगे चिदम्बरम महाराज
महंगा है पेट्रोल तो, होता क्यूं नाराज ?
ज़रा सा पैदल चल ले,
पैर मज़बूत तू कर ले .
राबडी जी कहने लगीं,कर घूंघट की ओट
अगले आम चुनाव में हमको देना वोट .
किचन में आलू होंगे
मिनिस्टर लालू होंगे .
संसद में नारे लगे ,सुन लो माई बाप
आधी महिला सीट हों,आधे पर हों आप .
चेयर पर नारी होगी,
सभी पर भारी होगी.
9 comments:
बहुत बढ़िया अरविन्द भाई बहुत चुटीले दुमदार दोहे हैं...किसी को नहीं बख्शा आपने...बहुत खूब.
नीरज
कविता बहुत पसन्द आयी!
Ek se ek dumdaar dohe..Aanand aa gaya. Badhai.
बहुत बढिया दोहे लिखे है।पढ कर जी खुश हो गया।
शायद "दुमदार" नहीं "दमदार" लिखना चाहते थे आप?
@ नीरज भाई जी
@अनुनाद सिंह जी
@भाई समीर लाल जी
@बाली जी
@अनिल जी
ब्लोग पर पधारने का, पधार कर रचना पढने का, पढकर पसन्द करने का एवं फिर उसे व्यक्त करने का, और मेरा हौसला बढाने का बहुत बहुत शुक्रिया.
मन बाग़-बाग़ हो गया ... गजब के दोहे हैं .
superb poem....mauja hi mauja aa gaya
पूरी दाल काली है सर
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