एक चिंगारी कहीं से लाइये,
इन बुझे शोलों को फिर भडकाइये.
इस अन्धेरे को मिटाने के लिये,
रोशनी का एक क़तरा चाहिये.
लाइये जुगनू कहीं से खोजकर ,
और हमको रास्ता दिखलाइये.
आपकी हर बात पर विश्वास है,
आप तो झूठी कसम मत खाइये.
क्या पता कोई कही ठुकरा न दे,
सबके आगे हाथ मत फैलाइये.
हर जगह सम्वेदना मिलती नहीं,
हर किसी का द्वार मत खटकाइये.
फेंकिये सारी नक़ाबें नोचकर,
असली चेहरा सामने तो लाइये
1 comment:
प्रो. साब - कुछ दिनों घर से / नेट से बाहर था - आज पढी - दोनों गज़लें आप की ही जैसी हैं
"काईयों की पीठ दीमक मल रहीं हैं / हरी दीवार के इस रंग पर ना जाईये " - सादर मनीष
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