
दिल्ली फ्लाई-ओवरों का शहर बनता जा रहा है. 1982 में जब यहां एशियाई खेल आयोजित हुए थे से अब तक फ्लाई-ओवरों का पूरा का पूरा जाल सा बिछ गया है. और अभी भी कम से बीस फ्लाई-ओवर और प्रस्तावित है तथा कुछ निर्माणाधीन हैं. यह् सब इसलिये ये कि यातायात (Traffic ट्रैफिक ) सुचारु रूप से चले. दिल्ली पर सडकें लगभग दो मंजिला हो गयीं हैं. अब प्रश्न यह है कि क्या इन सभी फ्लाई-ओवरों से यातायात कुछ सुधरा है ?
ज़हां जहां ये फ्लाई-ओवर बनाये गये थे वहां पहले अक्सर ट्रैफिक जाम लगा करता था. सुबह शाम ( peak hours ) बह्त मुश्किल हुआ करती थी. उस दृष्टि से उन चौराहों पर निस्सन्देह कुछ फर्क पडा है.परंत विशेष नहीं. इन फ्लाई-ओवरों से आगे निकलते ही सारा का सारा ट्रैफिक फिर जमा हो जाता है. यातायात की गति पर फिर भी कुछ असर नहीं पडता क्यों कि फ्लाई-ओवरों के तुरंत बाद जाम की वही ( बल्कि बदतर भी) स्थिति अब भी है.
पूरे दिल्ली में सभी जगह वही हाल है. आश्रम चौक ,पीरागढी, रजौरी गार्डेन, ओबेराय होटेल, डिफेंस कोलोनी, धौलाकुआं....... कहीं की भी हालत नहीं सुधरी है. और तो और गुडगांव जाने वाली एक्स्प्रेस-वे (express -way) के साथ बने डोमेसटिक एयरपोर्ट ( domestic Airport) वाले फ्लाई-ओवर की तो सबसे ज्यादा गयी बीती हालत है. द्वारका तथा एयरपोर्ट जाने वाला ट्रेफिक मिलकर ऐसी खराब हालत पैदा करतेहैं कि औसत आदमी यातायात व्यवस्था को कोसते हुये स्वयं को भी दोषी मानता है कि इधर आया ही क्यों.अनेकों व्यक्तियों की फ्लाइट छूट जाती है.
लगभग यही आलम पूरी दिल्ली में है,जहां भी फ्लाई ओवर बने हैं. ज़हां कहीं अभी निर्माण कार्य जारी है,वहां की हालत और भी बदतर है. एक या दो किलोमीटर के जाम में से निकलने के लिये घंटा-डेढ घंटा तो मामूली बात है.
आखिर कब सुधरेंगे हालात ?
5 comments:
आपकी रिपोर्ट पढ़कर तो दिल्ली आने से डर लगने लगा है.
सुधरेंगे कभी, या फिर कभी नहीं। बहुत बिगड़ने के बाद जब लोग दिल्ली का रुख करना बंद कर दें तब।
मैं तो समझ रहा था दिल्ली की रफ्तार इधर बहुत सुधर गई है।
जिस स्पीड से फ्लाई ओवर बन रहे है उसी स्पीड से दिल्ली मे गाड़ियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
और सबसे अजीब तब लगता है जब फ्लाई ओवर पर ही पूरा ट्रैफिक जाम हो जाता है।
हमारे अपने शहर में दो फ्लाई ओवर बन चुके हैं तीसरा बन रहा है साथ में तीन और प्रस्तावित हैं।
वही भविष्य दिख रहा है जो आपके शहर में वर्तमान हैं।
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