Sunday, January 25, 2009

माउथ फ्रेशनर का चुम्बन से क्या रिश्ता है ?

क्या आपको याद है कि आपने अपना पहला चुम्बन ( KISS) कब और कहां लिया था? क्या आप उस समय मानसिक रूप से चुम्बन के लिये तैयार थे और इस तैयारी में आपको कितना वक़्त लगा था? कहीं आपका पहला चुम्बन अचानक तो नहीं था? अप्रत्याशित ?
जो भी हो क्या आप उस पहले-पहल अनुभव को कुछ exciting बना कर एक मसालेदार स्टोरी के रूप में पेश कर सकते हैं ?

नहीं ,मैं किसी सस्ती सेक्सी पत्रिका की बात नहीं कर रहा. अपने चुम्बन की कहानी बनाकर गोवा की मुफ्त यात्रा का पुरुस्कार जीतने की प्रतियोगिता आयोजित की गयी है एक ब्रांड के माउथ फ्रेशनर की ओर से. इस किस –कांड के लिये पूरी की पूरी वेब्साइट प्रायोजित की गयी है. www.kiss.....in इस वेबसाइट पर प्रतियोगिता में भाग लिया जा सकता है. माउथ फ्रेशनर के इस ब्रांड की प्रचारित खूबी मात्र इतनी है कि इसे खाकर आप अपने आप को चुम्बन लेने-देने केलिये तैयार रहते हैं. विज्ञापन यह सन्देश देने का प्रयास करता है कि कहीं भी कभी भी आपको चूमने –चाटने के लिये तैयार रहना चाहिये और यह सम्भव है फलां फलां ब्रांड की माउथ फ्रेशनर से.
क्या कहने इस मार्केटिंग के और क्या बात है विज्ञापन की . किंतु बात यहां मात्र विज्ञापन की ही नहीं है. इस विज्ञापन के पीछे जो मानसिकता व संस्कृति है, मैं उसे रेखांकित करना चाहता हूं.
पहले पहल इस विज्ञापन को मैने एम टी वी ( MTV) चैनल पर देखा.हैरानी हुई. किंतु यह हैरानी और अधिक बढ़ गयी जब मैने उक्त website देखी. अनेक फिल्मी अभिनेत्रियों के चित्र यहां दिखाये गये हैं ,और इन चित्रों के नीचे एक संख्या लिखी हुई है जो इन अभिनेत्रियों को प्राप्त मतों की संख्या है- जो इन्हे Most kissable (अति चुम्बनीय) बनाते हैं.
फिर आती हैं चुम्बन की कहानियां. भिन्न भिन्न प्रतिभागियों ने अपने पहले चुम्बन की कहानी भी लिखी है ( धैर्य की कमी के कारण मैं इन्हे पढ़ न सका)

इस पूरी ‘खोज’ की पृष्ठभूमि यूं है कि Advertising Management विषय की class में मैने छात्रों को assignments दिये थे और उनसे विज्ञापन के नये उदाहरण(approaches/strategies) ढूंढ़ कर लाने को कहा था.
कुछ अन्य विज्ञापनों की चीर-फाड़ फिर कभी.
( कहीं जाने-अनजाने मैं मुझसे इस वेबसाइट का प्रचार न हो जाये, इसलिये पूरा नाम नहीं दे रहा, साथ ही माउथ फ्रेशनर का नाम का उल्लेख भी नहीं किया गया है)

Tuesday, January 20, 2009

ये प्यार का गुरु है ,सिखाता है कि लडकी को कैसे पटाया जाये

यह आप पर निर्भर है कि आप की क्या उम्र है और आप इस विकट समस्या से जूझ रहे हैं या नहीं. यदि आपका किसी पर दिल आ गया है और वह ( लडकी / महिला) आपको घास नहीं डाल रही . अब आप किसका सहारा लेंगे? आपको तलाश है किसी अनुभवी व्यक्ति की जो लडकी पटाने में माहिर हो और आपको कुछ ऐसे टिप्स दे दे ताकि आपका काम चल जाये.
हो सकता है कि आप अपनी महिला दोस्त से वह ‘विशेष’ प्रस्ताव देना चाहते हों मगर हिम्मत नहीं पड़ रही ,या आपको अपने ऊपर पूरा विश्वास नहीं है . फिर आप ऐसा गुरु तलाश रहे हों, जो आपको प्यार में उत्पन्न विकट स्थिति से उबार सके.
कम से मेरे ज़माने में तो आशिक़ इतने forward नहीं थे और न ही उन्हे ऐसे “गुरु” आसानी से उपलब्ध थे जो उनके इस पुनीत कार्य में उनकी मदद कर सकते. बल्कि नौसिखिया आशिक तो ऐसे भी होते थे,जो उम्र भर अपने महबूब से इज़हारेमुहब्बत भी नहीं कर पाते थे और देखते ही देखते “उनकी” कहीं और शादी भी हो जाती थी. अब ज़माना बदल गया है.
इतना बदल गया है ज़माना ?

जी हां, एफ एम रेडियो के अनेक चेनलों पर इस प्रकार के कार्यक्रम उप्लब्ध हैं ,जहां लव-गुरु आपकी ऐसी ही समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं. एमटीवी नामक चैनल पर ऐसा ही एक प्रोग्राम आता है “लवलाइन” और यहां भी लव गुरु हाज़िर हैं ,जो जिज्ञासुओं को वह सब सीख दे रहे हैं जो,कही और् नही मिल सकती.

जानना चाहते हैं कि ज़माना कितना बदल गया है ? तो आप स्वयं ही परखें और इन रेडिओ टीवी चैनलों का मज़ा लें.

Monday, January 19, 2009

अपने देश में ही क्यों पराये हैं हिन्दीभाषी ?

नहीं ,मैं बम्बई की बात नहीं कर रहा हूं. वहां तो फिलहाल राज ठाकरे के गुंडो की कार्य वाही पर अंकुश लगा हुआ है.हिन्दी भाषियों के प्रति घृणा फैलाने का जो पुनीत कार्य राज ठाकरे ने बम्बई में कर रखा है,कमोबेश वैसी ही हालत उत्तर-पूर्व में भी है. आज नहीं ,बल्कि अनेक वर्षों से यहां हिन्दीभाषी लगातार घृणा का शिकार होते आ रहे है. सबसे ताज़ा-तरीन घटना है आसाम में बदरपुर् व हरंगाजाओ नामक स्टेशनों की तथा त्रिपुरा के धर्मनगर की, जहां भारतीय रेलवे द्वारा नियुक्त तीन दर्जन हिन्दीभाषी युवकों को नौकरी पर हाज़िर होने से रोक लिया गया. जब ये लोग अपनी ड्यूटी पर पहुंचे तो वरिष्ठ अधिकारियों ने स्थानीय लोगों के दबाब में आकर नौकरी से वंचित रखा.
स्थानीय लोग इन हिन्दीभाषियों का विरोध काफी समय से करते आ रहे हैं और अनेक स्थानों पर हिन्दीभाषी हिंसा का शिकार भी हुए हैं. क्या कसूर है इनका ? कहां हैं मानवाधिकार समर्थक और कहां है हमारा कानून? कोई तो बताये कि आखिर अपने देश में ही क्यों पराये हैं हिन्दीभाषी ?

Saturday, January 10, 2009

कैसी कैसी नौटंकी होगी लोकसभा चुनाव में

अभी तक जो भी नौटंकियां राजनैतिक दल करते आ रहे थे, मानो कम थीं.अपनी कमीज़ को औरों से ज्यादा सफेद साबित करने की जो होड़ राजनैतिक दलों में लगी है ,उसका ही नतीजा है समाजवादी पार्टी के नेता अमरसिंह का लखनऊ सीट पर प्रत्याशी की घोषणा.
समाजवादी पार्टी के नेता ने मुन्नाभाई की गान्धीगीरी का चुनावी लाभ उठाने की नीयत से संजय दत्त को लखनऊ से लोकसभा का प्रत्याशी बनने की घोषणा कर दी. कांग्रेस की गान्धीगीरी का उन्हें यही सबसे माक़ूल जवाब लगा. इसमें तर्क ढूंढना फिज़ूल है.संजय दत्त का लखनऊ से क्या और कैसे नाता है, यह सवाल भी बेमानी है. चुनाव में प्रत्याशी सुनिश्चित करने का सबसे बडा पैमाना उसका "जिताऊ" होना है, फिर वह सारी दीगर कसौटिओं पर भले ही खोटा निकले. कांग्रेस व भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी के लिये भी यह फिल्मी गली अपरिचित नहीं है. राज बब्बर ( भले ही अब वह कांग्रेस की गोद में बैठ गये हैं), व जया प्रदा का सहारा वह पहले भी ले चुकी है.

अभी तक अनेक चुनावों का इतिहास सिद्ध करता है फिल्मी कलाकारों की लोकप्रियता सभी दलों के लिये कारगर हथियार साबित हुई है. तमिलनाड की तो पूरी की पूरी राजनीति फिल्म से जुडी शख्सियतों के इर्द-गिर्द ही घूमती आ रही है. एम जी आर से लेकर विजयकांत तक सब 'मौलीवुड" के रंग में ही रंगे हुए रहे हैं. एन टी रामा राव के बाद आन्ध्र में भी जब यही रंग चढ़ा, तो वहां भी ऐसे व्यक्ति निरंतर सफलता पाने के प्रयास मे लगेगी हैं जिनका नाता फिल्मों से रहा है. नयी पार्टी प्रजाराज्यम भी इसी का नतीजा है.
बम्बई नगरी में सुनील दत्त लम्बे अर्से तक राजनीति में फिल्म उद्योग के प्रतिनिधि के रूप में रहे. अमिताभ का जिक्र छोड़ भी दें तो शतुघ्न सिन्हा, राजेश खन्ना की लोकप्रियता समय समय पर कांग्रेस व भाजपा ने भुनाई. इसी क्रम में गोविन्दा की लोकप्रियता का लाभ मंत्री राम नाइक को हराने में हुआ और अब शाहरुख की चर्चा है कि वह बम्बई की एक सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी बनेंगे .
अब भाजपा को कौन सा ठुमके वाला पसन्द आता है, यह जानने के लिये ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पडेगा. टी वी कलाकर नितीश भारद्वाज,अरविन्द त्रिवेदी,दीपिका चिखालिया, स्मृति ईरानी आदि को तो भाजपा भुना ही चुकी है.


मजे की बात तो यह है कि जब कई टिप्पणीकारों ने ( इसमें कभी संजय दत्त के वकील रहे और लखनऊ से एक बार प्रत्याशी रहे राम जेठ्मालानी भी शामिल हैं) संजय दत्त के नाम पर कानूनी योग्यता का प्रश्न खड़ा किया ,तो झट से उनके स्थान पर नयी पत्नी मान्याता का नाम अमर सिंह ने आगे कर दिया.साथ ही भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी का नाम भी उनके पक्ष से घोषित हो चुका है.


तो अब इस स्थिति तक आ गयी है राजनैतिक नौटंकी. दुहाई है.

Wednesday, January 7, 2009

आतंकवाद : ढेरों प्रश्न ,पहला प्रश्न-पाकिस्तान क्या करेगा?

बम्बई की आतंकवादी घटना के बाद से लगातार पाकिस्तान अभी तक मुकरता ही आ रहा था. अब जबकि सारे सबूत पेश कर दिये गये हैं (न केवल पाकिस्तान को, बल्कि उन तमाम देशों को भी, जिनसे भारत कार्यवाही में दबाब बनाने की अपेक्षा करता है ), पाकिस्तान के रुख पर निगाहें जमी हुई हैं.
पाकिस्तान के हुक्मरानों के प्रारम्भिक रुख से तो यही लगता है कि पाकिस्तान वही पुराना रिकौर्ड बजाता रहेगा. बडी ही चतुराई से पाकिस्तानी नेता किसी सीधॆ जवाब से बचते आ रहे हैं. एक स्वर उभरता है कि सबूत पूरे नही है, दूसरा वक्तव्य आता है कि कोई भी कार्यवाही हम करेंगे तो अपने देश में ही करेंगे.
आतंकवादियों मे अकेला ज़िन्दा बचा कसाब वहां का नागरिक है ,यह तो निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुका है. न केवल भारत , बल्कि अमरीकी खुफिया एजेंसी भी यह मान चुकी है और पाकिस्तान को समझा चुकी है. भारत के गृहमंत्री तो डी एन ए परीक्षण का प्रस्ताव भी रख चुके है अब क्या सबूत बाकी है ,यह पाकिस्तान बता भी नही पा रहा है.

सेटेलाइट फोन पर आतंकी पाकिस्तानियों की बातचीत का पूरा ब्यौरा भी पेश किया ज चुका है. यानी कि कुछ भी ऐसा नही बचा जो, सन्देह के घेरे में हो.

अब पाकिस्तान के पास विकल्प क्या है?

पाकिस्तानी सेना का एक अधिकारी ने कल ही कहा कि भारत द्वारा पेश सबूतों में कुछ भी नया नहीं है. दूसरा फौज़ी अफसर कहता है कि हम इनकी जांच करेंगे . जांच मे कितना समय लगेगा यह पाकिस्तान बताने को तैयार नहीं है.
ले दे कर पाकिस्तान के पास सिर्फ टाल-मटोल करने के अलावा कोई रास्ता नही है. पाकिस्तान हां-ना हां-ना करते करते समय निकालना चाहता है.

अब इससे दूसरा प्रश्न निकलता है- कि भारत कब तक पाकिस्तान के जवाब की प्रतीक्षा करेगा ?

Tuesday, January 6, 2009

यहां है सारी मिठाइयां -और भी बहुत कुछ्

जिस साइट से कुछ मुंह में पानी आने वाले फोटो लिये थे वह साइट है; Indian Food

खाना खजाना -दुकान मिठाई की- मांग पंगेबाज की

इतने दिनों बाद ब्लोग पर वापसी करने पर भाई अरुन अरोरा (http://pangebaj.blogspot.com) ने मिठाई की मांग कर डाली. वादा तो पूरा करना था. सोचा क्यों न virtual मिठाई हो जाये.













तय किया कि एक बढिया सी फोटो डाउनलोड करके अपने ब्लोग पर डालते हैं और पंगेबाज जी को आमंत्रित करते हैं.
पहली फोटो ढूंढी तो देखते ही मुंह में पानी आ गया. सोचा कुछ और देखते हैं .मिठाई की दुकान ही सज गयी. फिर तय किया कि आज कुछ चुनी हुई मिठाइयां ही हाज़िर की जायें ,बाकी फिर कभी.



( फिर मन में आया कि कहीं कोई copyright violation तोनहीं हो जायेगा, सोचकर एक साइट का लिंक भी हाज़िर कर रहा हूं.

Sunday, January 4, 2009

लो !! मैं वापस आ गया

पिछले आठ माह में सिर्फ तीन -चार पोस्ट ही लिख पाया और अंत में घोषित भी कर दिया था कि कुछ दिनों तक व्यस्तता के कारण ब्लोग पर नहीं दिखूंगा.
तीन दिन पहले औपचारिक दस्तक भी दी थी ,और कहा था कि: " चौंकना मत ..अगर मेरी दस्तक सुनो".

और अब दस्तक के बाद हाज़िर हूं ,फिर से.

इन दिनों बहुत कुछ भोगा, बहुत कुछ सहा. अनेक बार मन हुआ कि कुछ लिखूं पर .....

दरअसल ,मैं आई आई टी दिल्ली में शोध छात्र (हूं) था, और शोध प्रबन्ध को अंतिम रूप देने में व्यस्त था. 30 दिसम्बर को अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत कर दिया ,तब जाकर दिल को सुकून हुआ. लगा कि एक बडी जिम्मेदारी से मुक्त हुआ.

मैं अपने मित्रों से भी क्षमा चाहूंगा कि उनके ब्लोग भी पढ नहीं सका , इस दौरान टिप्पणी भी नहीं कर सका ,हालांकि नुकसान मेरा ही रहा क्योंकि अनेक पढने ,गुनने और सीखने योग्य सामग्री से वंचित ही रहा .

कुछ मित्रों के आमंत्रण पर उनके साथ उपस्थित भी न हो सका.मुझे विश्वास है, मित्र गण अन्यथा न लेंगें.

पिछले तीन दिनों में एग्रीगेटर के माध्यम से बहुत कुछ पढा तो जाना कि आखिर ब्लोग पर क्या क्या चल रहा है.

पिछले वर्ष की तरह ,पुन: सक्रिय होने का प्रयास करूंगा.

तो..... मिलता हूं.

Friday, January 2, 2009

चौंकना मत अगर मेरी दस्तक सुनो

चौंकना मत अगर मेरी दस्तक सुनो
देके आने की पहले, खबर आऊंगा.

दूर था इसलिये सबने देखा नहीं
हर जगह देखना अब नज़र आऊंगा.

-अरविन्द चतुर्वेदी