Monday, May 18, 2009

अमरीका में भारतीय स्वाद की तलाश

Virginia Commonwealth University (VCU) आने के सिलसिले मे वहां की एक भारतीय मूल की एक छात्रा सुहासिनी पाशीकांती से ई-मेल का आदान प्रादान हुआ था. वह जान पहचान काम आयी. अगले दिन जब मेरे लेपटोप की प्लग-अडोप्टर समस्या दूर नहीं होती लगी ( उन्होने तदर्थ रूप में मुझे एक दूसरा लेपटोप दे दिया था )तो मैने सुहासिनी से सम्पर्क किया और आधे दिन के बाद सुहासिनी ने मुझे एक ऐसा अडोप्टर ला कर दे दिया जो न सिर्फ USA में बल्कि UK आदि अन्य देशों में भी उपयोग किया जा सकता है. ( धन्यवाद, सुहासिनी).
जिस रिसर्च वर्कशोप ( research workshop) के लिये मैं यहां आया हूं, वहां मुझे भारतीय मूल के एक और प्रोफेसर मिल गये. डा. अर्जुन भारद्वाज मूल रूप से इलाहाबाद के हैं और पिछले दस वर्षों से कनाडा की एक university में सहायक प्रोफेसर हैं. इलाहाबाद, कानपुर से लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति ,मायावती तक अनेक विषयों पर बातचीत हुई.वापस होटल भी साथ साथ आये और तय हुआ कि 6 बजे लोबी में मिलेंगे और फिर dinner के लिये जायेंगे. लोबी में जब आया तो भारद्वाज जी होटल स्टाफ से किसी भारतीय रेस्ट्रां के बारे में पूछ रहे थे. मैने पिछले दिन एक guide में एक मशहूर भारतीय रेस्ट्रां FarouksHouse of India के बारे में पढ़ा था,उसकी वेबसाइट भी देखी थी, जिसपर वहां उपलब्ध व्यंजनॉ के दाम भी लिखे हुए थे. इतना याद था कि यह् रेस्ट्रां carry street पर है , जो पास में ही है . मैं और अर्जुन भारद्वाज जी FarouksHouse of India नामक रेस्ट्रां की तलाश में चल दिये. कैरी स्ट्रीट पर चलते चलते गये पर रेस्ट्रां नहीं मिला. ( मैने उनको 1987 की ऐसी ही घटना बयान की जब जिनेवा में हम कल्पना नामक रेस्ट्रां ढूंढते ढूंढते थक गये थे और नहीं मिला था). अनेक लोगों से पूछा ,कईयों ने बताया कि नाम तो सुना है, कहां है ,नहीं मालूम. दर असल कैरी स्ट्रीट बहुत लम्बा मार्ग है जिसके east और west दो हिस्से है, हम अभी तक ईस्ट में घूम रहे थे. जब पूरा रास्ता पार हो गया और पुराना शहर आ गया तो अर्जुन ने कहा कि आम तौर पर अमरीका में शहरों के पुराने हिस्से कुछ असुरक्षित होते हैं विशेषकर बाहरी व्यक्तियों के लिये ,यह सोचकर हम वापस पलटे, वेस्ट कैरी स्ट्रीट मे रेस्ट्रां ढूंढने के लिये. रास्ते में एक महिला से पूछने पर पता चला कि फारुक्स नामक रेस्ट्रां carry town में है , जो काफी दूर है. फिर भी भारतीय भोजन के दीवानों की तरह हम तलाश करते रहे. जब लगा कि अब हद होती जा रही है, और हमें ( कम से कम आज के दिन) भारतीय भोजन की ज़िद छोड़ देनी चाहिये, तभी एक जगह नेओन साइन से ‘Indian cuisine’ लिखा हुआ देखा ,तो तय किया कि चलो यहीं खाना ख्हते हैं. पास गये तो दिखा कि एक छोटा सा भोजनालय ,जिसका नाम था Ruchee Express. अन्दर गये तो मालिक से भी मुलाक़ात हुई. उनका नाम शंकर था और वह मेंगलौर ( कर्नाटक) के मूल निवासी थे.

फिर हमने खाना मंगाया- दाल मखानी, भिंडी, तन्दूरी रोटी व चावल. हम दोनों को ही खाना स्वादिष्ट लगा. वहीं एक और (भारतीय) ग्राह्क ने कहा ‘नमस्ते’.परिचय पूछा तो उसने अपना नाम रौनक बताया, जो नागपुर से इंजीनीयरिंग करने के बाद VCU में bio-medical engineering का छात्र है. रौनक ने बताया कि VCU में भारतीय मूल के छात्रों की संख्या लगभग एक हज़ार है.अधिकांश छात्र summer vacation के कारण भारत गये हुए हैं.

भले ही हम जिस की तलाश में थे नहीं मिला, परंतु जो मिला उससे संतोष तो बहुत मिला.