Friday, May 15, 2009

अमरीका में ‘भारतीयम’ –दो

एमिरेट्स की उड़ान के दौरान मैने पाया कि जो यात्री सो नहीं रहे थे वह अपनी अपनी वीडिऑ स्क्रीन पर फिल्में ही देख् रहे थे . अधिकांश भारतीय मूल के यात्री तो हिन्दी ( या तेलुगु ) फिल्में देखने में व्यस्त थे. मेरी सीट के अगल बगल वाले भी .मैं काफी देर तक तो रेडिओ पर आशा भोंसले के गीत सुनता रहा, फिर मुकेश पर आ गया, फिर मैने जब गेम्स का चैनल ढूंढा ,तो मुझे सुडोकू मिल गया. बस फिर क्या था, बीच बीच में झपकी, फिर सुडोकू, यानी खेल खेल में मैने लम्बी यात्रा पूरी की. बीच बीच में दाहिनी तरफ वाले गुजराती भाई से ( वह भी पहली बार अमरीका जा रहा था), और बांई ओर दिल्ली की मूल निवासिनी व अमरीका मे मेडिकल छात्रा, से बात चीत भी होती रही. सफर भली प्रकार कट गया.

यान से उतर कर बस में लगभग 5 कि.मी. का सफर और तब आया टर्मिनल ,जहां इमिग्रेशन तथा कस्टम की कार्यवाही पूरी करनी थी. उसके भी पहले सुरक्षा जांच के नाम पर बेल्ट और जूते भी उतरवाये गये और एक्सरे मशीन से गुजारने पडे. उस दिन न्यूयोर्क का मौसम खराब था और इस कारण हमारी फ्लाइट 1 घंटा देर से पहुंची थी. इमिग्रेशन के लिये 50 काउंटर थे ,किंतु उसमें लगभग आधे – अमरीकी नागरिक, ग्रीन-कार्ड धारक, राजनयिक आदि श्रेणियों के लिये थे और शेष ‘विजिटर्स’ के लिये.

धीरे धीरे लाइन ने खिसकना शुरू किया और एक घंटे आते आते यह कार्य भी सम्पन्न हुआ. कन्वेयर बेल्ट पर सामान के लिये मैने ट्रोली उठाई तो मुझे बताया गया कि पांच डालर लगेंगे. आन्ध्र के एक परिवार को ( पांच सदस्यों के परिवार के पास आठ बडे बडे सूटकेस थे, जिन पर विशाखापटनम का पता भी लिखा हुआ था) को तीन ट्रोली के पन्द्रह डालर खर्च करने पडे ( यानी करीब 750 रुपये).
ज़ब कस्टम का फार्म भर रहा था तो उल्झन में पड गया. एक प्रश्न था कि “क्या आप अपने साथ पौधा,वनस्पति,ताजा फल , खाद्य सामग्री या कीडे-मकोडे तो नही लाये हैं?” (food & insects-एक ही category में देखकर मैं हैरान था.) यदि ‘’हां’ पर निशान लगाते है तो इसका मतलब हुआ कि मेरे साथ Insects –कीडे भी हैं. और ना पर, तोयह झूठ् होता क्यों कि मेरे पास मिठाई, नमकीन आदि बहुत कुछ था. खैर मैने ,हां पर निशान लगाया, सोचकर कि देखा जायेगा. सामान लेकर निकला तो अंतिम स्थान पर कस्टम अधिकारी ने फोर्म देखकर पूछा कि खाने के सामान मे क्या है ?मैने बताया कि ‘indian cookies’. उसने मुझे दूसरी तरफ रखी एक्सरे मशीन की तरफ भेज दिया, और वहां से निकल कर लगा ,मानो किला फतह कर लिया और ऐयरपोर्ट से बाहर आया.

मेरे मेज़बान दिनेश आहुजा जो ईस्ट-लाइम से मुझे लेने के लिये पांच बजे घर से निकले थे और अब ग्यारह बज रहे थे. अभी दो घंटे का सफर तय करना था.तय हुआ कि हाईवे पर रुक कर हल्का नाश्ता कौफी ले लेंगे. दिनेश ने अपनी SUV मे GPS लगाया हुआ था, जो मिनट मिनट पर बताता जा रहा था कि कब कहां मुडना है,कहां गाडी बांई लेन मे रखनी है और कहां दांयी में.
हम हाई वे से नीचे उतर कर वहां बनी दुकानों पर गये, एक चाइनेज़ स्नेक्स पर जलपान लिया और कौफी के मग हाथ में लेकर वापस गाडी में आ गये,अपने गंतव्य की तरफ.

........( आगे जारी....अमरीका में सांईभक्तों का सत्संग )

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