Sunday, April 22, 2007

स्वर बदलना चाहिये

ये अन्धेरा अब पिघलना चाहिये
सूर्य बादल से निकलना चाहिये

कब तलक परहेज़ होगा शोर से
अब हमारे होँठ हिलना चाहिये

फुसफुसाहट का असर दिखता नहीँ
हमको अपना स्वर बदलना चाहिये

अब नहीँ काफी महज़ आलोचना
आग कलमोँ को उगलना चाहिये

ये नक़ाबेँ नोचने का वक़्त है
हाथ चेहरोँ तक पहुंचना चाहिये

वक़्त भी कम है हमारे हाथ से
अब न ये मौक़ा फिसलना चाहिये.

नमस्कार बन्धुओ !
भारतीयम मेँ आप सभी का स्वागत है.
समाज, राष्ट्र एवम विश्व मेँ एक सार्थक पहल के लिये हमेँ एक संकल्प लेकर विचारोँ का आदान-प्रदान प्रारम्भ करना होगा.
अपने आप मेँ हम सभी सक्षम हैँ किंतु आवश्यकता है एक पहला कदम उठाने की.
हमारी सबकी योग्यतायेँ अलग अलग हैँ, हमारी क्षमतायेँ भी. परंतु ये सभी एक साथ मिल जायेँ तो जो समवेत स्वर उभरेगा वह निश्चय ही एक अपेक्षित हँगामे के लिये काफी होगा.
ज़हाँ तक इस चिट्ठे का सम्बन्ध है, यह एक आधा -अधूरा सा प्रयास है. इसकी सफलता आप सब की भागीदारी पर ही निर्भर होगी. ज़ाहिर है कि इसमेँ अनेक गलतियाँ भी होंगी. आशा है आप इन गलतियोँ को भी निरंतर क्षमा करते चलेंगे.

शुभकामनाओँ सहित
आपका अपना

अरविन्द चतुर्वेदी

10 comments:

Reetesh Gupta said...

एक सुंदर कविता के साथ आगाज़ किया है आपने

स्वागत है आपका

ePandit said...

स्वागत है चिट्ठाजगत में आपका। नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।

पहली ही पोस्ट में सुंदर रचना के लिए बधाई!

रवि रतलामी said...

हिन्दी चिट्ठाजगत् में आपका स्वागत् है.

नियमित लेखन हेतु शुभकामनाएँ.

Sanjeet Tripathi said...

सुंदर कविता।
शुभकामनाओं के साथ स्वागत

Udan Tashtari said...

आओ भाई, स्वागत है इस बस्ती में. अब सुनाओ अपने हास्य व्यंग्य तो समा बंधे. चिंता न करें, बहुत हैं सुनने वाले. शुभकामना.

उन्मुक्त said...

हिन्दी चिट्ठा जगत में स्वागत है।

dhurvirodhi said...

अत्यंत मनोहर कविता.
स्वागत-शुभकामनायें

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

बन्धुवर,
चलिये शुरूआत धन्यवाद से ही करते चलेँ.
मेरे प्रथम प्रयास पर आप सबकी प्रतिक्रिया हेतु ढेरोँ धन्यवाद. सच मानिये ,गदगद हो गया मन.
बन्धु रीतेश,श्रीश,रवि रत्लामी,संजीत से प्रोत्साहन भरी एसी प्रतिक्रियाएँ मिली कि मेँ क्या मेरे धुर विरोधी भी उन्मुक्त होकर आकाश मे उडन तश्तरी बन कर उडने लग जायेँ.
खूब गुजरेगी जब मिल बेठेंगे चन्द प्रेमी.
देखेँ आगे आगे कैसे झेल पायेगी चिट्ठाकारोँ की यह जमात.

आज के लिये चन्द शेर( पूरी गज़ल बाद मेँ फिर कभी)

यूँ न आले मेँ सजाकर बिठाइये मुझको
मेरी पूजा की वज़ह भी बताइये मुझको

मेँ हूँ मिट्टी की तरह रौँदिये जैसे चाहेँ
किसी सांचे के मुताबिक़ बनाइये मुझको

एक आवारा दीया हूँ मक़ाँ नहीँ है मेरा
जहाँ भी दीखे अन्धेरा जलाइये मुझको

शेष फिर,
आपका अपना
अरविन्द चतुर्वेदी

उन्मुक्त said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।

अफ़लातून said...

शुभकामना । सातत्य रखियेगा ।