ये अन्धेरा अब पिघलना चाहिये
सूर्य बादल से निकलना चाहिये
कब तलक परहेज़ होगा शोर से
अब हमारे होँठ हिलना चाहिये
फुसफुसाहट का असर दिखता नहीँ
हमको अपना स्वर बदलना चाहिये
अब नहीँ काफी महज़ आलोचना
आग कलमोँ को उगलना चाहिये
ये नक़ाबेँ नोचने का वक़्त है
हाथ चेहरोँ तक पहुंचना चाहिये
वक़्त भी कम है हमारे हाथ से
अब न ये मौक़ा फिसलना चाहिये.
नमस्कार बन्धुओ !
भारतीयम मेँ आप सभी का स्वागत है.
समाज, राष्ट्र एवम विश्व मेँ एक सार्थक पहल के लिये हमेँ एक संकल्प लेकर विचारोँ का आदान-प्रदान प्रारम्भ करना होगा.
अपने आप मेँ हम सभी सक्षम हैँ किंतु आवश्यकता है एक पहला कदम उठाने की.
हमारी सबकी योग्यतायेँ अलग अलग हैँ, हमारी क्षमतायेँ भी. परंतु ये सभी एक साथ मिल जायेँ तो जो समवेत स्वर उभरेगा वह निश्चय ही एक अपेक्षित हँगामे के लिये काफी होगा.
ज़हाँ तक इस चिट्ठे का सम्बन्ध है, यह एक आधा -अधूरा सा प्रयास है. इसकी सफलता आप सब की भागीदारी पर ही निर्भर होगी. ज़ाहिर है कि इसमेँ अनेक गलतियाँ भी होंगी. आशा है आप इन गलतियोँ को भी निरंतर क्षमा करते चलेंगे.
शुभकामनाओँ सहित
आपका अपना
अरविन्द चतुर्वेदी
10 comments:
एक सुंदर कविता के साथ आगाज़ किया है आपने
स्वागत है आपका
स्वागत है चिट्ठाजगत में आपका। नए चिट्ठाकारों के स्वागत पृष्ठ पर अवश्य जाएं।
पहली ही पोस्ट में सुंदर रचना के लिए बधाई!
हिन्दी चिट्ठाजगत् में आपका स्वागत् है.
नियमित लेखन हेतु शुभकामनाएँ.
सुंदर कविता।
शुभकामनाओं के साथ स्वागत
आओ भाई, स्वागत है इस बस्ती में. अब सुनाओ अपने हास्य व्यंग्य तो समा बंधे. चिंता न करें, बहुत हैं सुनने वाले. शुभकामना.
हिन्दी चिट्ठा जगत में स्वागत है।
अत्यंत मनोहर कविता.
स्वागत-शुभकामनायें
बन्धुवर,
चलिये शुरूआत धन्यवाद से ही करते चलेँ.
मेरे प्रथम प्रयास पर आप सबकी प्रतिक्रिया हेतु ढेरोँ धन्यवाद. सच मानिये ,गदगद हो गया मन.
बन्धु रीतेश,श्रीश,रवि रत्लामी,संजीत से प्रोत्साहन भरी एसी प्रतिक्रियाएँ मिली कि मेँ क्या मेरे धुर विरोधी भी उन्मुक्त होकर आकाश मे उडन तश्तरी बन कर उडने लग जायेँ.
खूब गुजरेगी जब मिल बेठेंगे चन्द प्रेमी.
देखेँ आगे आगे कैसे झेल पायेगी चिट्ठाकारोँ की यह जमात.
आज के लिये चन्द शेर( पूरी गज़ल बाद मेँ फिर कभी)
यूँ न आले मेँ सजाकर बिठाइये मुझको
मेरी पूजा की वज़ह भी बताइये मुझको
मेँ हूँ मिट्टी की तरह रौँदिये जैसे चाहेँ
किसी सांचे के मुताबिक़ बनाइये मुझको
एक आवारा दीया हूँ मक़ाँ नहीँ है मेरा
जहाँ भी दीखे अन्धेरा जलाइये मुझको
शेष फिर,
आपका अपना
अरविन्द चतुर्वेदी
हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।
शुभकामना । सातत्य रखियेगा ।
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