Feb 12, 2012 डॉ स्वामी बताते हैं की संस्कृति ही सामाजिक रचना का आधार है एवं भारतवर्ष की संस्कृति सबसे पुराचन, श्रेष्ठ एवं सिद्ध है । इसे सनातन धर्म भी कहते हैं । ८ सदियों के इस्लामिक एवं २ सदियों के ईसाई राज के होते हुए भी सनातनी संघर्ष करते रहे , तभी आज भारत में ८३ % सनातनी हैं । डॉ स्वामी देश के सनातनी, वीर पुत्रियों एवं पुत्रों के बारे में बताते हैं । उन्होंने देश के गौरवपूर्ण संस्कृति का एक व्याख्यान दिया ।
उन्होंने कहा की यदि भारत का विलुप्त मान इस विश्व में वापस लाना है तो सनातन धर्म को पुनर्जीवित करना पड़ेगा । इस देश में धर्म -निरपेक्षता ने हिन्दुओं के साथ पक्षपात मात्र किया है । यह हिन्दू संस्कृति ही भारत की पहचान है । डॉ स्वामी आरक्षण के विषय पे भी चर्चा करते हैं एवं बताते हैं की तुष्टिकरण की नीति ने इस व्यवस्था को विकृत कर दिया है । देश की बाकी समस्याओं पे चर्चा करते हुए डॉ स्वामी ने कश्मीर की बात की । आगे वो राम मंदिर की समस्या का भी हल सुझाते हैं ।डॉ स्वामी के पास देश के भविष्य को ले कर एक उत्तम दृष्टीकोण है जो देश के पुनरुत्थान के लिए आवश्यक है । व्याख्यान ख़त्म करते हुए उन्होंने २-जी के विषय पे भी व्यंग्य किया ।
http://www.youtube.com/watch?v=2E0u-_jAQUU
4 comments:
Nazar Na hoti to nazare na hote
Raat Na banti to sitare na hote
Kuchh to Rab ka karam hai hum par
Varna Itne achhe dost aap hamare na hote.
धर्म का उद्देश्य - मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता (सदाचरण) की स्थापना करना ।
व्यक्तिगत (निजी) धर्म- सत्य, न्याय एवं नैतिक दृष्टि से उत्तम कर्म करना, व्यक्तिगत धर्म है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है ।
ईश्वर या स्थिर बुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है ।
धर्म संकट - जब सत्य और न्याय में विरोधाभास होता है, उस स्थिति को धर्मसंकट कहा
जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और
न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
व्यक्ति के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, प्रजाधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म ।
यह धर्म भी निजी (व्यक्तिगत) व सामाजिक होते है ।
धर्म सनातन है भगवान शिव (त्रिमूर्ति) से लेकर इस क्षण तक ।
राजतंत्र होने पर धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र होने पर धर्म का पालन
लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से किया जाना चाहिए है । by- kpopsbjri
सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है । धर्म के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । धर्म पालन में धैर्य, विवेक, क्षमा जैसे गुण आवश्यक है ।
वर्तमान युग में धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।
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