संसद के
शीतकालीन अधिवेशन के पहले दिन वही हुआ जिसका डर था. तमाम विपक्षी दलों से कोई
सहयोग न मिलने के बावज़ूद अविश्वास प्रस्ताव लाने की ज़िद पकडे तृणमूल कांग्रेस ने
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश
किया और अपनी राजनीति की खुल्लम्खुल्ला
छीछालेदर करवाई.
ममता
बनर्जी को यह बखूबी पता था कि कोई उनकी पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन
नहीं करने वाला है. अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिये न्यूनतम 10 प्रतिशत सांसदों का
समर्थन होना आवश्यक है. निर्धारित संख्या न होने पर प्रस्ताव खुद-ब-खुद गिर
जायेगा. फिर भी मात्र 19 सदस्य होते हुए भी यह अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया गया ?
इसका उत्तर और कोई तो खैर क्या देगा,ममता खुद भी नहीं दे सकती.
अब ममता
बनर्जी भाजपा तथा वामपंथी दलों को कोसने
में लगीं हैं. प्रशन दाग रहीं है कि ग्यों इन दोनों मुख्य विपक्षी दलों ने उनकी
पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया? इस सादगी पर कौन न मर जाये ए
खुदा !!!
क्या
ममता इतनी भोली हैं कि उन्हे उम्मीद थी कि भाजपा व साम्यवादी दल उनका समर्थन
करेंगे? उन्हे लगभग ऐसी ही उम्मीद उन सारे दलों – बीजे डी, अना द्रमुक, द्रमुक,
समाजवादी पार्टी, बसपा से भी थी ? वाकई
अगर वह इस उम्मीद में जी रहीं थीं तो कहा जा सकता है कि वह इतने वर्ष राजनीति में
रहने के बावज़ूद कुछ भी न सीख सकीं.
यह शीशे
की तरह स्पष्ट था कि सपा (मुलायम सिंह), बसपा (मायावती) व द्रमुक ऊपर से भले ही खुदरा किराना
में विदेशी निवेश का विरोध करते दीखते हों, उनमें इतना माद्दा नहीं है कि वे इसका
विरोध सदन में कर सकें. यदि संप्रग ( यूपीए) को छोड़कर पूरा विपक्ष भी अविश्वास
प्रस्ताव की साथ खडा हो जाता तो भी ये तीन दल प्रस्ताव का समर्थन नहीं करते. अन्न
द्रमुक ने तो विरोध जताया पर ममता के अविश्वास प्रस्ताव पर कभी भी अपने पत्ते नहीं
खोले थे. बच गये वामपंथी और राजग ( एन डी
ए) .
जिस
वामपंथी गठबन्धन को पराकित कर ममता सत्ता में आयीं है,वे ममता का समर्थन भला क्यों
करेंगे ? क्या ममता की राजनीति इतनी
अपरिपक्व है कि सोच कर बैठी थीं कि “ मरता
,क्या न करता” के चलते वामपंथी उनके खेमे में “ आ गिरेंगे” .
फिर
भाजपा और राजग को लेते हैं . यह सत्य है कि राजग की निगाहें ममता पर लगी हैं ( देखा जाये तो ममता के पास और कोई चारा भी नहीं
है) . पर 19 सदस्यों वाली ममता को इतना अहंकार था कि बिना भाजपा की चिरौरी ,अनुनय –विनय
करे उन्होने भाजपा को मज़बूर समझ लिया. भाजपा/
राजग को संख्या बल का पूरा सही आकलन था
,यही सोचकर उन्होने कभी अविश्वास प्रस्ताव
की बात दूर दूर तक नहीं सोची. मात्र नियम 184 के आगे यह सोच गया ही नहीं ,जो सही
भी था.
तृणमूल
कांग्रेस के 19 और (बोनस स्वरूप मिले ) बीजू जद के 3 मिलाकर 22 सदस्यों का समर्थन
मिल पाया प्रस्ताव को.
इसे गिरना ही था. इस प्रस्ताव का तो वही हश्र
हुआ जो अपेक्षित था.
प्रस्ताव
की तो भद्द पिटनी थी सो पिटी. हां ममता की राजनीति की खूब छीछालेदर हो गयी. राष्ट्रपति
चुनाव में भी यही हुआ था .यह ममता की दूसरी भयंकर भूल थी. साबित हो गया कि ममता ने कच्ची गोलियां ही खेली हैं
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