Friday, November 23, 2012

भद्द पिटी अविश्वास प्रस्ताव की: ममता ने कराई छीछालेदर


संसद के शीतकालीन अधिवेशन के पहले दिन वही हुआ जिसका डर था. तमाम विपक्षी दलों से कोई सहयोग न मिलने के बावज़ूद अविश्वास प्रस्ताव लाने की ज़िद पकडे तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव  पेश किया  और अपनी राजनीति की खुल्लम्खुल्ला छीछालेदर करवाई.


ममता बनर्जी को यह बखूबी पता था कि कोई उनकी पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं करने वाला है. अविश्वास प्रस्ताव  लाने के लिये न्यूनतम 10 प्रतिशत सांसदों का समर्थन होना आवश्यक है. निर्धारित संख्या न होने पर प्रस्ताव खुद-ब-खुद गिर जायेगा. फिर भी मात्र 19 सदस्य होते हुए भी यह अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया गया ? इसका उत्तर और कोई तो खैर क्या देगा,ममता खुद भी नहीं दे सकती.



अब ममता बनर्जी  भाजपा तथा वामपंथी दलों को कोसने में लगीं हैं. प्रशन दाग रहीं है कि ग्यों इन दोनों मुख्य विपक्षी दलों ने उनकी पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया? इस सादगी पर कौन न मर जाये ए खुदा !!!


क्या ममता इतनी भोली हैं कि उन्हे उम्मीद थी कि भाजपा व साम्यवादी दल उनका समर्थन करेंगे? उन्हे लगभग ऐसी ही उम्मीद उन सारे दलों – बीजे डी, अना द्रमुक, द्रमुक, समाजवादी पार्टी, बसपा  से भी थी ? वाकई अगर वह इस उम्मीद में जी रहीं थीं तो कहा जा सकता है कि वह इतने वर्ष राजनीति में रहने के बावज़ूद कुछ भी न सीख सकीं.


यह शीशे की तरह स्पष्ट था कि सपा (मुलायम सिंह), बसपा  (मायावती) व द्रमुक ऊपर से भले ही खुदरा किराना में विदेशी निवेश का विरोध करते दीखते हों, उनमें इतना माद्दा नहीं है कि वे इसका विरोध सदन में कर सकें. यदि संप्रग ( यूपीए) को छोड़कर पूरा विपक्ष भी अविश्वास प्रस्ताव की साथ खडा हो जाता तो भी ये तीन दल प्रस्ताव का समर्थन नहीं करते. अन्न द्रमुक ने तो विरोध जताया पर ममता के अविश्वास प्रस्ताव पर कभी भी अपने पत्ते नहीं खोले थे.  बच गये वामपंथी और राजग ( एन डी ए) .


जिस वामपंथी गठबन्धन को पराकित कर ममता सत्ता में आयीं है,वे ममता का समर्थन भला क्यों करेंगे ? क्या ममता की राजनीति  इतनी अपरिपक्व है कि सोच कर  बैठी थीं कि “ मरता ,क्या न करता” के चलते वामपंथी उनके खेमे में “ आ गिरेंगे” .


फिर भाजपा और राजग को लेते हैं . यह सत्य है कि राजग की निगाहें ममता पर लगी हैं  ( देखा जाये तो ममता के पास और कोई चारा भी नहीं है) . पर 19 सदस्यों वाली ममता को इतना अहंकार था कि बिना भाजपा की चिरौरी ,अनुनय –विनय  करे उन्होने भाजपा को मज़बूर समझ लिया. भाजपा/ राजग  को संख्या बल का पूरा सही आकलन था ,यही सोचकर उन्होने कभी  अविश्वास प्रस्ताव की बात दूर दूर तक नहीं सोची. मात्र नियम 184 के आगे यह सोच गया ही नहीं ,जो सही भी था.


तृणमूल कांग्रेस के 19 और (बोनस स्वरूप मिले ) बीजू जद के 3 मिलाकर 22 सदस्यों का समर्थन मिल पाया प्रस्ताव को.

 इसे गिरना ही था. इस प्रस्ताव का तो वही हश्र हुआ जो अपेक्षित था.


प्रस्ताव की तो  भद्द पिटनी थी सो पिटी.  हां ममता की राजनीति की खूब छीछालेदर हो गयी. राष्ट्रपति चुनाव में भी यही हुआ था .यह ममता की दूसरी भयंकर भूल थी. साबित हो गया  कि ममता ने कच्ची गोलियां ही खेली हैं


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Sunday, September 30, 2012

ग़णेशोत्सव पर कवि सम्मेलन सम्पन्न


प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी गणेशोत्सव के दौरान राजधानी दिल्ली के द्वारका उपनगर में कवि सम्मेलन आयोजित  किया गया.

 

महाराष्ट्र मित्र मंडल के तत्वावधान में 20 सितम्बर को आयोजित इस कवि सम्मेलन का सफल संचालन लब्ध्प्रतिष्ठ कवियित्री डा. कीर्ति काले ने किया. क़वि सम्मेलन के मुख्य अतिथि पूर्व सी बी आई निदेशक श्री जोगिन्दर सिंह थे व विशिष्ट अतिथि विधायक करण सिंह तंवर  थे.



कवि सम्मेलन का प्रारम्भ कीर्ति काले की सरस्वती वन्दना के साथ हुआ. इसके बाद ओज के कवि रमेश गंगेले अनंत जी ने वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था पर चुटीले काव्यात्मक प्रहार किये.उन्होने संसद ठप्प होने पर प्रश्न उठाते हुए नेताओं की भी खबर ली. तदुपरांत डा.अरविन्द चतुर्वेदी ने अपनी हास्य गज़ल के साथ ताज़ा रूमानी गज़लों के सस्वर पाठ से श्रोताओं की वाह वाही लूटी.



अलवर से पधारे ब्रज भाषा के सशक्त हस्ताक्षर डा. रमेश बांसुरी ने अपनी  ब्रज भाषा के छंदों के साथ साथ अपनी प्रसिद्ध रचना “सोने की होती तो का करती ,अभिमान करै देखो बांस की जाई” सुनाकर उपस्थित समुदाय का दिल जीत लिया.

हास्य-व्यंग्य  के प्रसिद्ध कवि भोपाल से पधारे उमेश उपध्याय जी ने हास्य रचनाओं के साथ अपनी प्रतिनिधि रचना “ शास्त्रीय संगीत सम्मेलन उर्फ बाजू-बन्ध खुल खुल जाय”  प्रस्तुत की.

 

इसके बाद कवि सम्मेलन में समां बान्धने हेतु डा. कीर्ति काले ने जिम्मेदारी सम्भाली तथा मधुर गीतों की बौछार से आमंत्रित जनता को रसाविभोर कर दिया. उनकी रचनायें –‘ ऐसा सम्बन्ध जिया मैने,जिसमें कोई अनुबन्ध नहीं” तथा  ‘ फिर हृदय के एक कोने से कोई कुछ बोल जाता है” बहुत सराही गयी.

 

अंत में जयपुर से आये वरिष्ठ कवि सुरेन्द्र दुबे ने एक के बाद एक हास्य व्यंग्य की रचनाओं से मध्य रात्रि तक श्रोताओं को  बान्धे रखा.

 

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Friday, May 25, 2012


महंगौ है गऔ तेल  

फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो  अब नांय बैठौंगो , कार में अब नांय बैठौंगो फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगौ.

·         तेल कौ पैसा मोपे नांय,  अब हमें कौउ पूछत नांय, कार अब हमें सुहावत नांय                 देख देख कें कुढ़ों  जाय में कैंसे बैठौंगो ?

·फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो



·         संग मेरे ठाड़ी गूजरिया, पहन के धानी चूनरिया, के पिक्चर ले चल सांवरिया

·पैदल कैंसे जांऊ मैं पिक्चर  घर ई बैठौंगो,                                             फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो                                                                                                                     

·         चीख रये सब टीवी अखबार, बढ़ गयी महंगाई दस बार, जे गूंगी बेहरी है सरकार             जनता बिल्कुल्ल है लाचार, देश में मच गऔ हाहाकार                                     दफ्तर मेरो दूर मैं, रस्ता कैसे पाटौंगौ ?

·फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो



·          कि नेता मज़े करें दिन रात , विन्हे महंगाई नांय सतात, कीमतें फिर फिर हैं बढ़ जात,        अबकी बारी सोच लयौ है वोट ना डारोंगौ  

फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो  अब नांय बैठौंगो,कार में अब नांय बैठौंगो  फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगौ.















Sunday, May 13, 2012

आइये मां को याद करें




मातृ दिवस यानी अंग्रेज़ी के Mothers day पर आज अपने ब्लोग पर पूर्व प्रकाशित रचना "मां" प्रस्तुत कर रहा हूं. ,जो वर्षों पहले मेरे संग्रह " चीखता है मन " में प्रकाशित हुई थी. सभी माओं व उनकी संतानों के अमर सम्बन्ध को समर्पित.
अपने आगोशोँ मे लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ
गर्मी हो तो ठंडक देती, जाडोँ मेँ गर्माती माँ
हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती
घंटोँ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ

अपने सुख दुख मेँ चुप रहती शिकन न माथे पर लाती
अपना आंचल गीला करके ,हमको रहे हंसाती माँ

क्या दुनिया, भगवान कौन है, शब्द और अक्षर है क्या
अपना ज्ञान हमेँ दे देती ,बोली हमे सिखाती माँ

पहले चलना घुट्ने घुट्ने और खड़े हो जाना फिर
बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठलाती माँ

उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर,
खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां

जब होती है दूर हृदय से प्यार बरसता रहता है
उसकी याद बहुत आती है, आंखे नम कर जाती मां

–अरविन्द चतुर्वेदी

प्रस्तुतकर्ता डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi पर 2:10:00 AM

पुनश्च: दो वर्षों पूर्व जब यह रचना मैने अपने ब्लोग पर प्रस्तुत की थी तो तीन प्रतिक्रियायें भी प्राप्त हुई थीं. हूबहू प्रस्तुत हैं :
  3 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari said... बहुत आभार अरविन्द भाई इस रचना को प्रस्तुत करने का. माँ के लिए तो जितना भी हम आप लिखें, कम ही होगा. नमन! January 31, 2010 4:38 AM


  संगीता पुरी said...
बहुत सुंदर रचना है .. मां पर जितना कहा जाए कम ही होगा !! January 31, 2010 5:35 AM


  निर्मला कपिला said...

उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर, खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां. माँ आगे निशब्द हो जाती हूँ उसका आकार इतना बडा है कि सभी शब्द उसमे समा जाते हैं सुन्दर रचना धन्यवाद्

Tuesday, February 14, 2012

सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति

Feb 12, 2012 डॉ स्वामी बताते हैं की संस्कृति ही सामाजिक रचना का आधार है एवं भारतवर्ष की संस्कृति सबसे पुराचन, श्रेष्ठ एवं सिद्ध है । इसे सनातन धर्म भी कहते हैं । ८ सदियों के इस्लामिक एवं २ सदियों के ईसाई राज के होते हुए भी सनातनी संघर्ष करते रहे , तभी आज भारत में ८३ % सनातनी हैं । डॉ स्वामी देश के सनातनी, वीर पुत्रियों एवं पुत्रों के बारे में बताते हैं । उन्होंने देश के गौरवपूर्ण संस्कृति का एक व्याख्यान दिया ।

उन्होंने कहा की यदि भारत का विलुप्त मान इस विश्व में वापस लाना है तो सनातन धर्म को पुनर्जीवित करना पड़ेगा । इस देश में धर्म -निरपेक्षता ने हिन्दुओं के साथ पक्षपात मात्र किया है । यह हिन्दू संस्कृति ही भारत की पहचान है । डॉ स्वामी आरक्षण के विषय पे भी चर्चा करते हैं एवं बताते हैं की तुष्टिकरण की नीति ने इस व्यवस्था को विकृत कर दिया है । देश की बाकी समस्याओं पे चर्चा करते हुए डॉ स्वामी ने कश्मीर की बात की । आगे वो राम मंदिर की समस्या का भी हल सुझाते हैं ।डॉ स्वामी के पास देश के भविष्य को ले कर एक उत्तम दृष्टीकोण है जो देश के पुनरुत्थान के लिए आवश्यक है । व्याख्यान ख़त्म करते हुए उन्होंने २-जी के विषय पे भी व्यंग्य किया ।
http://www.youtube.com/watch?v=2E0u-_jAQUU

Tuesday, January 3, 2012

हैप्पी न्यू ईयर 2012

हैप्पी न्यू ईयर 2012

नाचो गाओ मौज़ मनाओ हैप्पी न्यू ईयर
नया वर्ष है खुशी मनाओ हैप्पी न्यू ईयर

प्यार से सबको गले लगाओ हैप्पी न्यू ईयर
जो रूठा है उसे मनाओ हैप्पी न्यू ईयर

महंगा है पेट्रोल तो उसकी चिंता भी छोड़ो
पैदल पैदल ओफिस आओ हैप्पी न्यू ईयर

जो दफ्तर में काम है ज्यादा पूरा उसे करो
ओवर टाइम भूल भी जाओ हैप्पी न्यू ईयर

लोकपाल की चिंता तुम क्यों करते हो अन्ना
अनशन छोड़ो,जम कर खाओ हैप्पी न्यू ईयर

लड्डू पेड़ा महंगा, महंगी चौकलेट भी है
आधा आधा मिलकर खाओ हैप्पी न्यू ईयर

( रचयिता: डा. अरविन्द चतुर्वेदी)