सच को दबाने के लिये हथियार लिये है,
हर आदमी अब हाथ में अखबार लिये है.
बगलों में तंत्र मंत्र की गठरी दबाये है,
अब संत भी आंखों में चमत्कार लिये है.
उड़ने की होड़ में हमारे पंख कट गये,
हर दूसरा पंछी यहां तलवार लिये है .
हर पूजा अधूरी है बिना फूल के शायद,
हर फूल दिलों में ये अहंकार लिये है.
आता है झूमता हुआ इक डाकिये सा वो,
बादल है, बारिशों के समाचार लिये है.
जिसने बनाये ताज़ कटी उनकी उंगलियां,
सीने में यही दर्द तो फनक़ार लिये है. **
मैं उससे बिछड़ तो गया, इस पार हूं मगर,
वो मेरे ख्वाब आंख में उस पार लिये है. **
डा.अरविन्द चतुर्वेदी
2 comments:
Wah Sir!
Bahut pahle ek pahdhi thi, yaad aagai:
"कीमत है साठ पैसे, अखबार लीजिये
मंडी लुटी है कैसे, अखबार लीजिये"
http://tevari.blogspot.com/2011/04/blog-post_14.html
बेहतरीन..आपकी बात ही कुछ निराली है सर| :)
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