Sunday, May 17, 2009

अमरीका में उल्टा-पुल्टा

रविवार के दिन मुझे रिचमण्ड के लिये जे एफ के से 8.20 की फ्लाइट पकड़नी थी. सुरक्षा नियमों के अनुसार दो घंटे पहले पहुंचना था. परिवार वाले को बिना डिस्टर्ब किये दिनेश ने मेरे कमरे मे आकर मुझे पांच बजे जगा दिया, हमें मलूम था कि हम लेट हैं इस्लिये कोफी बनाकर बडे मग में भर ली और बिस्किट का पैकेट लेकर चल दिये. लगभग 120कि.मी का सफर था और दिनेश को पेट्रोल ( यहां गैस –कहते हैं) भराना था. रास्ते में न्यू हवेन पर दिनेश ने सिर्फ दस डालर का पेट्रोल भरा ,जो 2.39 डालर प्रतिगैलन था. दिनेश ने बताया कि यहां भिन्न भिन्न कम्पनियों के उत्पाद के दामों में फर्क है. नक़द व क्रेडिट कार्ड की खरीद पर भी दरों में फर्क़ है. नक़द 5 सेंट सस्ता पड़ता है.

आगे जाकर एक अन्य गैस स्टेशन पर फिर दिनेश ने गाडी फुल कराई. दोनो स्थानों के दामों में 14 सेंट्सप्रति गैलन का का फर्क़ था.अधिकांश गैस स्टेशन स्वचालित हैं. ( यूरोप के देशों में भी मैं पहले ऐसा ही देख चुका था).ग्राहक आकर गाड़ी लगाता है.कार्ड स्वाइप करता है और तेल भर जाने पर कार्ड पर रजिस्टर हो जाता है. अमरीका में अनेक गैस स्टेशन भारतीय मूल के लोगों द्वारा भी संचालित हैं जहां काम करने वाले भी भारतीय ही हैं.
7.15 पर एयर्पोर्ट पहुंच गया. कम्प्यूटर-किओस्क लगे हुए थे.अपने आप चेक –इन करना था. समय कम था अत:चेक-इन के बाद सुरक्षा जांच केलिये चला. यहां भी, बेल्ट ,जूते उतरवा कर x ray machine से निकालना पडा.

छोटा विमान था शायद 60 सीट वाला. फ्लाइट में नाश्ते की उम्मीद थी किंतु मिला सिर्फ भुनी मूंगफली के दानों का एक पैकेट और कौफी.
रिचमण्ड एयर्पोर्ट पहुंच कर टैक्सी और और बस बीस पचीस मिनट में होटल पहुंच गया.

अमरीका में काफी कुछ भारत से उल्टापुल्टा है. गाडी लेफ्ट हैंड द्राइव वाली हैं,सडकों पर दायी ओर चलता ट्रेफिक, बिजली के स्विच ऊपर करने पर औन होते हैं,नीचे औफ.
मुश्किल तो तब आयी जब ई-मेल चेक करने के लिये अपना लैप्टोप खोला.

लैपटोप का चार्ज बिलकुल समाप्त था और कोर्ड लगाने के लिये निकाली तो सन्न रह गया. भारत के तीन पिन वाले प्लग के लिये तो यहां के सोकेट बिल्कुल उल्टे हैं. अब क्या करें? होटल के स्टाफ से बात की, उन्होने इंजीनीयर को फोन लगाया पर बात नहीं बनी. हां, उसने Radio sacks नामक एक दुकान का पता बता दिया जो 5 कि.मी दूर थी और आने जाने का भाड़ा लगभग 25 डालर था. मैने होटल के कम्प्यूटर से मेज़बान संस्था- Virginia Commonwealth University ( VCU) ईमेल भेजकर सम्स्या बताई. शाम को मिलने आये एक छात्र सहायक ने सांत्वना दी कि वह अगले दिन एक ऐसा अडोप्टर ला देगा जिससे काम चल जाये.
----कैसे हुई समस्या दूर? खाने के लिये बहाया पसीना...(ज़ारी)

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

परदेस में बहुत उल्टा पुल्टा हो ही जाता है। हम तो यहाँ प्रांत बदलते हैं तो हो जाता है।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

रोचक वृत्तांत. बधाई.