Thursday, January 3, 2008

मृत्यु ने झकझोर दिया था मुझे : 34 दिन बाद ब्लोग पर वापसी

सभी के साथ अंतत: यह होना है. सभी को कभी ना कभी इस अनुभव से गुजरना ही है. हर घर मे किसी न किसी की मौत हुई है. यही शाश्वत सत्य है.बाकी सब माया है.
अनेक दिनों तक ये विचार मन में आते रहे. रोज़ एक तरह की दहशत सी बनी रही. अनेक दिनों तक मृत्यु के भय से मुक्त नहीं कर पाया स्वयं को.
न केवल भय, बल्कि मन में संसार के नश्वर होने की वास्तविकता इस कदर मन पर छायी रही कि अनेक दिनों से कुछ काम काज भी अनमने ढंग से ही करता रहा. बल्कि यूं कहना चाहिये कि ..बस होता ही रहा .

25/26 नवम्बर2007 की रात को तसलीमा नसरीन के विषय पर पोस्ट लिखी थी. उसी दिन खबर मिली कि हमारी ही सोसाइटी में 7वें तल पर रहने वाले डा.अरविन्द गुप्ता नही रहे. लगभग 40 वर्ष के रहे होंगे.दो छोटे छोटे बच्चे हैं उनके. सुबह शाम मुलाक़ात हो ही जाती थी.पिछली शाम ही में गेट से अपनी कार में निकल रहा था, उनकी कार प्रवेश कर रही थी. कोई बीमारी नही. स्वयम रेडियोलोजिस्ट थे.पत्नी व घर वालों का बुरा हाल देखा नहीं जा रहा था. लगा कि चारों तरफ बस यही स्वर गूंज रहा है:जीवन नश्वर है -सब कुछ माया है. कौन कब चला जाये,कोई भरोसा नही.मन अवसाद से भर गया.

तीन दिन पहले ही एक और रिश्तेदार के एक-डेढ वर्षीय पुत्र के बारे में खबर आयी थी. पति-पत्नी बंगलौर में रहते थे.जरा सी लापरवाही..और उनके सपनों का राजकुमार नही रहा-मामूली डायरिया से शुरुआत हुई.और बस सारे सपने चूर..अभी कुछ दिनों पहले ही नये घर में प्रवेश किया था,बच्चे का कमरा बडे शौक से सजाया था.सब बच्चे को अपने दादा दादी के घर दिल्ली अंतिम क्रिया के लिये लाया गया तो वही भयानक चीख पुकार..,डरावनी. दिल को झकझोरने वाली.

तीन दिन बाद ..29 नवम्बर 2007.मैं (AIMA की )एक गोष्ठी मे भाग ले रहा था. फोन को silent mode पर रखा था.चूंकि सम्वाद जारी था अत: calls को नहीं ले रहा था. सोचा था सारी missed calls का लंच के समय जवाब दूंगा. एक न बन्द होनी वाली call जब ली तो भाव शून्य हो के रह गया. पता लगा कि कानपुर मे रहने वाले मेरे बडे भाई साहब नही रहे. मैं चुप. कोई प्रतिक्रिया नही हो पाई. फिर सभी वक्ताओं व सहभागियों से माफी मांगते हुए मात्र यह कह कर निकला कि tragic news है, माफ करें मुझे जाना पडेगा.

अगले कुछ दिन कानपुर में. अंतिम यात्रा -श्मशान घाट, अंतिम संस्कार ,वही सब कुछ.
इधर अंदर ही अन्दर टूट सा गया था. मन को ढांढस बन्धाने की स्वयम ही कोशिश करता परंतु मन की निराशा थी कि दूर ही नही हो पा रही थी. शायद यह निराशा नही एक भय अधिक था-वह भय जो आपको झक्झोर देता है.

वापस दिल्ली आया तो किसी काम में मन न लगना जारी रहा. तेरहवीं पर फिर कानपुर गया,लौट्कर धीरे धीरे सारी शक्ति जोडकर फिर सामान्य होने की भरपूर कोशिश. फिर दिल्ली वापस. किंतु हालत वही. Bank Managers के लिये आयोजित trainig programme में पढाना था. किसी तरह वह भी पूरा किया. मन में नैराश्य़ इतना अधिक बढ गया था कि बहुत अधिक चिड्चिडा सा हो गया था. मेरा 18 वर्षीय पुत्र सब कुछ भांप रहा था. अनेक दिनों के उसके प्रयास के बाद एक प्रेरणा दायक सीडी देखी ( इस महत्वपूर्ण विषय पर विस्तार से फिर कभी),मन हल्का हुआ.भय क्रमश्: कम हुआ. निराशा भी दूर हुई. ( पत्नी रोज़ कहती रहती थी कि ब्लोग पर कुछ लिखो, मन लगेगा, पर सम्भव ही नही हो पा रहा था).

इस बार सोसाइटी वालों ने परिस्थिति को देख कर नये वर्ष का उत्सव भी नहीं मनाया.

इस बीच ब्लोग्वाणी व चिट्ठाजगत पर झांक कर कभी कभी देख लेता था कि क्या चल रहा है, परंतु स्वयं को टिप्पणी करने लायक भी नही बना पा रहा था.

आज महर्षि के ब्लोग पर बनारस पर पोस्ट पढी तो ब्लोग पर टिप्पणी के साथ 34 दिन बाद वापसी हुई.
25/26 नवम्बर 2007 के बाद पहली पोस्ट है. शायद वही पुराना क्रम् फिर चालू हो जाये.

सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें.

9 comments:

अनिल रघुराज said...

मौत यकीनन झकझोर कर रख देती है। लेकिन हर क्षण मौत और जीवन का चक्र देखने लगें तो भय खत्म हो जाता है। मुझे आपके साथ पूरी सहानुभूति है। चलिए लिखना शुरू हो गया है। अब जल्दी ही सब पटरी पर आ जाएगा।

Dr Parveen Chopra said...

अरविंद जी, आप की बात सुन कर यही प्रार्थना कर रहे हैं कि वह परमपिता परमात्मा डा गुप्ता जी, उस नन्हे-मुन्ने बेटे और आप के प्रिय बड़े भाई की आत्मा को शांति प्रदान करे। अच्छा है, आप के बेटे ने आप को एक inspirational CD दिखा दी और आप की मैडम आप को ब्लाग पर लिखने के लिए प्रेरित करती रहीं। अरविंद जी, यह बिल्कुल सच है कि हम चाहे जितने भी मजबूत दिखें, लेकिन अंदर से हम कितने कमज़ोर हैं या कमज़ोर पड़ जाते हैं, असहाय हो जाते हैं , इन बातों का आभास हमें दुःख की इन घड़ियों में ही तो होता है। लेकिन हमारे अपने देखिए किस तरह हमें उस अंधेरे से निकाल उजाले में ले आते हैं। भविष्य के लिए आप को शुभकामनाएं।
और हां, देखिए तो , आप की एबसेंस में मेरे जैसे एकदम नोसीखिए ने भी बलागरी की दुनिया में घुसने की कोशिश कर डाली है।
अरविंद जी , मेरा 10 साल का बेटा जो इस समय मेरे पास बैठा हुया है और यह सब पढ़ रहा था, तो झट से मुझे कहने लगा है कि पापा, लास्ट में यह जरूर लिखना कि ---जीना इसी का नाम है।
ok,sir, take care!!
God bless you and yours always !!

उन्मुक्त said...

यही जीवन है - आना और जाना तो लगा रहता है। फिर से लिखना शुरू करें

सुनीता शानू said...

यही सच है जो आया है एक दिन जाना है
हमे बस अपना कर्म निभाना है...आप अपना ख्याल रखिये...ज्यादा सोचने से ही परेशानी बढ़ती है...

मीनाक्षी said...

अरविन्द जी, जो आया है उसे जाना भी है , जाने वाली आत्माओं की शांति की प्रार्थना करते हैं. आपके बेटे को बहुत बहुत आशीर्वाद जिसने आपको सी डी दिखाकर सामान्य करने की कोशिश की. दूसरों को राह सुझाने के लिए वह सी डी हो सके तो पोस्ट करिएगा.

Unknown said...

आपके भाईसाहब, छोटे बच्चे व पड़ोसी की मृत्यु की सुनकर बहुत दुख हुआ । यही संसार है आदि कहना सरल है परन्तु जब इतनी मौतों की खबर इतने कम समय में एक के बाद एक मिले तो कोई भी हिल जाएगा । बेटे ने इस अवसाद से निकलने में सहायता की, यह जानकर खुशी हुई ।
आशा है अब आप निरंतर लिखते रहेंगे और यह नववर्ष अधिक से अधिक शुभ समाचार ही लेकर आए ।
घुघूती बासूती

संजय बेंगाणी said...

मृत्यु सम्बन्धी समाचार बेहद दुखद होते है. आध्यात्म यहीं काम आता है, आदमी को टूटने से बचाता है.

आप लिखना शुरू करें, दुनिया को चलते रहना है.

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

@अनिल जी
आप सही कह रहे हैं. श्मशान घाट पर रहने वाले तो मौत के अभ्यस्त हो जाते हैं.
@डा.प्रवीण जी
मैं स्वयं को मन से बहुत मजबूत समझता था, परंतु कभी कभी भय आप पर हावी हो ही जाता है.
शायद जीना इसी का नाम है
ब्लोग जगत में आपका स्वागत है.
मैने आपका ब्लोग देखा है. पसन्द भी आया.
@मीनाक्षी जी
सीडी की शृंखला पांच भागों की है. अभी मैने तीन ही देखे हैं. निश्चित ही लिखूंगा इस पर्
@उन्मुक्त जी
@सुनीता जी
@घुघुती बसूती जी
@संजय जी
आप सभी की टिप्पणियों ने आलोक बांटने का कार्य किया है. मुझे सम्बल प्रदान किया है. धन्यवाद.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अरविन्द जी,
नया साल शुभ समाचार लेकर आए, आपके परिवार के लिए ये मेरी शुभ कामना है --
आपके पुत्र की समझदारी देखकर आशा बंधी है
भारत के बालक सचमुच भविष्य के लिए अच्छे काम करेंगें ये विश्वास है --

सादर, स -स्नेह ,

- लावण्या