Tuesday, January 8, 2008

बचपन की 'बकनरी' उर्फ आओ बकनर -बकनर खेलें

सुनील गावस्कर ने अपनी पहली पुस्तक 'सन्नी डेज़' में ( मेरी यददाश्त सही है तो!!) Newzealand में खेले गये मैच का जिक्र करते हुए लिखा था कि जब एक खिलाडी क्लीन बोल्ड हो गया तो भारतीय टीम ने अपील की. इस पर अम्पायर बौख्लाकर बोला कि'ही इज़ क्लीन बोल्ड'he is claen bowled, इस पर गैन्दबाज़ ( भागवत चन्द्रशेखर) ने पूछा ' we know he is bowled but is he out वी नो ही इज़ क्लीन बोल्ड, बट इज़ ही आउट?"

क्रिकेट में ऐसे उदाहरण अक्सर मिल जाते थे और चठ्कारे ले ले कर इनका जिक्र होता था. एक ज़माना था जब पाकिस्तानी अम्पायर्स के बारे ऐसे अनेक किस्से होते थे. फिर neutral umpires का दौर आया. Technology और री-प्लेज़ का सहारा लिया जाने लगा. किंतु अभी भी समस्या से क्रिकेट जगत उबरा नही है. कुच समय पहले सचिन के बार बार विवादास्पद तरीके से आउट होने पर मैने एक पोस्ट लिखी थी ,जिसमे पूछा था कि कहीं यह साजिश तो नहीं(पोस्ट यहां देखें).

बचपन में जब हम( कानपुर के फूलबाग मैदान में) क्रिकेट खेलते थे तो हमेशा बल्लेवाज़ी करने वाली टीम का ही अम्पायर होता था. आम तौर पर हम बच्चे ( या कहें कि हर टीम) एक ऐसा बन्दा टीम में रखते थे कि जो डील डौल में अच्छा हो,दबंग हो, दूसरों को डरा धमका कर अपना फेसला मनवाने मे सक्षम हो.

कई ऐसे ही फ्रेंडली मेचों में तो विवाद से बचने के लिये पहले ही तय हो जाता था कि "एल बी डब्ल्यू-नाट आउट" .

ऐसी कई 'बकनर्री' के किस्से अभी भी याद है, जहां मैच बकनरी के चलते ही जीता गया.
एक तो कौलेज के दिनों का किस्सा है. शायद एलगिन मिल्ल्स के मैदान पर एक मैच खेल रहे थे. हमारे ही कौलेज का सेंचुरी मेन हमारी विपक्षी टीम में था. कुछ दिन पहले ही उसने दो सेंचुरी मार कर शहर में नाम पैदा किया था.में अपनी टीम में मुख्य गैन्दबाज़ था.हमारी टीम के एक अन्य खिलाडी का एक मित्र विपक्षी टीम में था. जब वह सेंचुरी मेन बैटिंग हेतु आया तो उसने अपने मित्र को, जो विपक्षी टीम ओर से अम्पायर था, आंख से इशारा कर दिया.
उसने क्या क्या बकनरी की, अब याद करता हूं तो हंसीं आती है. कोई ओवर 5 गेन्द का तो कोई 8-8 का. पर सबसे मजेदार था एल बी डब्ल्यू आउट होना उस सेंचुरी मेन का. गेन्द बस पैड पर लगी ही थी और वो भी विकेट से बाहर, बस सिर्फमैने अपील की और निर्णय हुआ आउट.
फिर तो वो हंगामा हुआ कि बस. मात्र सिर फुटोव्वल ही नहीं हुई बल्कि सब कुछ हो गया. उस जयचन्द/मीर ज़ाफर की जो दुर्गति हुई कि बस. अब भी वो मैच याद आता है . आज फिर वो बकनरी याद आ ही गयी.

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