बन्धुवर,
चलिये शुरूआत धन्यवाद से ही करते चलेँ.
मेरे प्रथम प्रयास पर आप सबकी प्रतिक्रिया हेतु ढेरोँ धन्यवाद. सच मानिये ,गदगद हो गया मन.
बन्धु रीतेश,श्रीश,रवि रत्लामी,संजीत से प्रोत्साहन भरी एसी प्रतिक्रियाएँ मिली कि मेँ क्या मेरे धुर विरोधी भी उन्मुक्त होकर आकाश मे उडन तश्तरी बन कर उडने लग जायेँ.
खूब गुजरेगी जब मिल बेठेंगे चन्द प्रेमी.
देखेँ आगे आगे कैसे झेल पायेगी चिट्ठाकारोँ की यह जमात.
आज के लिये चन्द शेर( पूरी गज़ल बाद मेँ फिर कभी)
यूँ न आले मेँ सजाकर बिठाइये मुझको
मेरी पूजा की वज़ह भी बताइये मुझको
मेँ हूँ मिट्टी की तरह रौँदिये जैसे चाहेँ
किसी सांचे के मुताबिक़ बनाइये मुझको
एक आवारा दीया हूँ मक़ाँ नहीँ है मेरा
जहाँ भी दीखे अन्धेरा जलाइये मुझको
शेष फिर,
आपका अपना
अरविन्द चतुर्वेदी
3 comments:
मेरी ओर से अब स्वागत है आपका।
एक आवारा दीया हूँ मक़ाँ नहीँ है मेरा
जहाँ भी दीखे अन्धेरा जलाइये मुझको
बहुत सुंदर लिखा है।
अतुल भाई,
स्वागत हेतु धन्यवाद.
कृपया चिट्ठे के ज़रिये मिलते रहेँ.
आपका अपना ,
अरविन्द चतुर्वेदी
आपके ब्लॉग को कई बार देखा है सोचा आज वक्त है टिपण्णी कर ही दूँ , ब्लॉग का बदलता रूप पसंद आया ब्लोगींग हमको पसंद आई । ब्लॉग्गिंग जारी रखिये । हमारे ब्लॉग पर भी पधारिये । धन्यवाद् ।
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