इस समूची उपलब्धि पर मेरे बह्त पुराने ( आई आई टी बम्बई 1976-77) मित्र व वैज्ञानिक डा. शाहिद अब्बास अब्बासी ने मुझे एक चार पंक्तियों की रचना भेजी है,मैं चाहता हूं सभी लोगों तक पहुंचे.

हर दश्त को भी अब से बहारें मिलें खुदा
हर शख्स खुश दिखे वो नज़ारे मिलें खुदा
जो चल पड़ा है कारवां अब ना रुके कभी
इस मुल्क को हज़ारों हज़ारे मिलें खुदा
- डा. शाहिद अब्बास अब्बासी, पोंडिचेरी विश्वविद्यालय , पुदुच्चेरी.