भारतीयम Bhaarateeyam
कुछ अपनी,कुछ जग की . खरी खरी- जो सोचने पर मज़बूर कर दे, सबको.
Thursday, May 7, 2020
Thursday, August 22, 2019
फिर फिर से ....
2012 से ही ब्लॉग लेखन लगभग छूट ही गया।
2013 में एक अन्य रचनाकार की सामयिक रचना ही ब्लॉग पर आई।
2015 में सोचा कि चलो एक बार फिर शुरुआत करते हैं। यह सोचकर एक घोषणा भी कर डाली की बस अब फिर से शुरुआत होने ही वाली है।
पर घोषणा नेताओं के वादे जैसी ही साबित हुई।
भूत एक बार फिर सवार हुआ है,
इस बार इरादा पहले से ज्यादा गंभीर लगता है।
चलो एक बार फिर से.....लिखें , और अपनी बात फिर रखें सबके सामने....
कितनी बदल गई है दुनिया इन दिनों?
न केवल ज़माना बदला बल्कि जमाने की रफ्तार भी बदल गई है, लोग बदल गए हैं , लोगों के आचार-विचार में भी गजब का बदल हुआ है।
तक्नोलोजी भी तो कितनी बदल गई है इतने सालों में?
चलो तालमेल बिठाने की एक कोशिश करेंगे, कर के देखते हैं।
( हाँ, मेरा चेहरा, मोहरा भी बादल गया है। नया फोटो बाद में डालते हैं।)
2013 में एक अन्य रचनाकार की सामयिक रचना ही ब्लॉग पर आई।
2015 में सोचा कि चलो एक बार फिर शुरुआत करते हैं। यह सोचकर एक घोषणा भी कर डाली की बस अब फिर से शुरुआत होने ही वाली है।
पर घोषणा नेताओं के वादे जैसी ही साबित हुई।
भूत एक बार फिर सवार हुआ है,
इस बार इरादा पहले से ज्यादा गंभीर लगता है।
चलो एक बार फिर से.....लिखें , और अपनी बात फिर रखें सबके सामने....
कितनी बदल गई है दुनिया इन दिनों?
न केवल ज़माना बदला बल्कि जमाने की रफ्तार भी बदल गई है, लोग बदल गए हैं , लोगों के आचार-विचार में भी गजब का बदल हुआ है।
तक्नोलोजी भी तो कितनी बदल गई है इतने सालों में?
चलो तालमेल बिठाने की एक कोशिश करेंगे, कर के देखते हैं।
( हाँ, मेरा चेहरा, मोहरा भी बादल गया है। नया फोटो बाद में डालते हैं।)
Thursday, July 23, 2015
एक बार फिर से शुरुवात.....
अनेक कारण रहे...
भारतीयम से दूर था...चाहकर भी सम्भव नहीं हो पाया....
जब जब फिर से शुरुवात करने की सोचा, कुछ न कुछ तकनीकी वजहें आड़े आ गयीं..
आज आखिर वह दिन आ ही गया ..
इतने दिनों दूर रहने के बाद ..
एक नयी सी शुरुवात...
(अच्छा लग रहा है )
आज बस इतना ही.
भारतीयम से दूर था...चाहकर भी सम्भव नहीं हो पाया....
जब जब फिर से शुरुवात करने की सोचा, कुछ न कुछ तकनीकी वजहें आड़े आ गयीं..
आज आखिर वह दिन आ ही गया ..
इतने दिनों दूर रहने के बाद ..
एक नयी सी शुरुवात...
(अच्छा लग रहा है )
आज बस इतना ही.
Wednesday, January 2, 2013
क़विता : क्यों है मेरा देश महान?
मेरा भारत है महान
सुनते आ रहे हैं, सदियों से यह अनोखी तान
फिर फिर दोहराया जाता है यह गान
कभी पावन भूमि की दुहाई
कभी लेते हैं
ईश्वर का नाम ,
राम,कृष्ण,गौतम और नानक का नाम
कभी बताते हैं इसे पवित्र धाम.
तन,मन को गर्वित कर जाती है ये तान कि
‘मेरा भारत है महान’ .
“यदा यदा हि धर्मस्य” कहा था कृष्न ने गीता में
इसीलिये
हुआ था यहां उनका अवतार
एक नहीं, बल्कि बारम्बार
इस धरती पर होता ही आया है प्रभु का चमत्कार .
सीता ,गीता ,देवी, देवताओं का धाम है यहां
गान्धी, सुभाष, नेहरू का नाम और काम है यहां.
पवित्रता बहाती है गंगा,जमुना, सरस्वती की
धारा..
इसीलिये तो हमने इसे ‘महान’ पुकारा.
जब भी कभी हमने देखी इस ‘नारे’ की हकीक़त
हमें ज़रूर परेशान कर गई इसकी असलियत.
आज़ाद, भगतसिंह के नामों ने जब जब चौड़ा किया
हमारा सीना
जय चन्दों के नाम के धब्बों ने यह हमसे छीना .
जब भी मर्यादा पुरुषोत्तम की हमने दी दुहाई,
हमें
सामने नज़र आ गयी खूनी दंगों की खाई.
गंगाजल को हाथ में लेकर पवित्रता की कसमें जब खाते हैं,
गंगा और जमुना में बहते कूड़े के ढेर नज़र आ जाते
हैं.
‘जै जवान-जै किसान’ का लगाते हैं जब नारा ,
हमॆं आतमहत्या करता किसान नज़र आ जाता है बेचारा.
सामाजिक समरसता और प्रेम की बातें जब जातीं हैं
दोहराई,
महंगाई के बोझ से गरीब की झुकी कमर देखी है
दुहाई.
जब भी हम सीता के त्याग की कथा गाते हैं ,
पेट्रोल और किरोसिन के डब्बी हाथ में लिये
,बहुएं जलाते लोग दीख जाते हैं
देशभक्ति का जज़बा कुछ ऐसा हावी है हम पर,
नकरात्मक देखकर
भी पलट लेते है अपनी नज़र
दिल से फिर उठती है हूक
याद रहती है शान
फिर कहने लगते हैं ‘मेरा भारत है महान’
बड़ी बड़ी लाइनें
अभिभावकों की लगतीं हैं
निजी,महंगे अंग्रेज़ी स्कूलों के आगे.
दूर ,कराहती है हमारी शिक्षा व्यवस्था ,पिसे
जाते हैं हम इसके आगे
डिग्रियां हाथ में लेकर ,सडको पर काम की तलाश
में निकले लोग,
लाचार हैं, लग ही जाता है ,इन्हे बेरोज़गारी का
रोग.
रोग भी ऐसा
जिसका नही है कोई इलाज़,
बढता ही जाता है जैसे कोढ़ में खाज़.
दवा के
अभाव मॆ दम तोडती जनता,
अस्पताल तो हैं ,फिर भी कोई इनकी नहीं सुनता.
हैज़ा, मलेरिया ,पोलिओ का प्रकोप बदस्तूर ज़ारी है,
टी वी पर अमितभ बच्चन के विज्ञापन की बारी है
शौचालय हैं नही ,खुले मे ही चलता आ रहा है जनता
का काम
फिर वही बेमतलब की शिक्षा देते विज्ञापन ,
बडे बड़े
फिल्मीसितारों का हो रहा नाम.
ऐतिहासिक स्थलों पर लोग खोद जाते हैं अपना नाम,
जहां खाया, वहीं फेंका, साफ-सफाई की सीखी
ही बात.
पचासों सालों के बाद भी वही ढाक के तीन पात,
सादा जीवन व त्याग का पाठ खूब हमें गया पढ़ाया,
राजा हरिश्चन्द्र के वंशज होकर भी हमें समझ ना
आया
भाई भतीजावाद हमने जी भर के फैलाया ,
राम तो भूल गये पर ‘राम नाम जपना पराया माल अपना
हमें खूब भाया. ‘
’लूट सके तो लूट’ से हमने यही मतलब निकाला
जो भी मिल सका ,उसे जेबों में डाला.
रिश्वत, नज़र्राना,भेंट ,चढावा, प्रसाद,
जलपान,चाय-पानी
कोई भी नाम ले लो ,इनसे तो अब पहचान पुरानी,.
कागज़ बेचे, फाइल बेची, पुल को खाया, कोयला भी
पचा गये
कुछ तो बड़े कलाकार थे, जानवरों का चारा भी खा
गये.
हज़ारों, करोडों,अरबों ,खरबों का रोज़ नया है
घोटाला
बेशरम हम ऐसे निकले, पूरा ईमान ही बेच डाला.
नारा दिया ‘सबको शिक्षा –सबको काम’
खुली लूट है, खुली छूट है शिक्षा में, नहीं है
कोई लगाम.
सरकारी स्कूलों की तो बात ही निराली है
कागज़ पर नाम हैं, कक्षायें खाली हैं,
जो भरती होता है, देर-सवेर पास भी हो जाता है ,
ज्ञान तो मिलता नहीं, बस आंकड़े पूरे कर जाता है. खुद छात्र तो हो जाता है उत्तीर्ण
पर पूरा का पूरा समाज हो जाता हो अनुत्तीर्ण.
बन्दा
अब आ जाता है सड़कों पर, फिरता है नाकारा
काम कुछ मिलता नहीं , हो ही जाता है आवारा.
इधर कुछ ढूंढा ,नहीं मिला तो उधर मुंह मारा ,
जाने न जाने अपराध की दुनिया मे फंस जाता है
बेचारा.
ज्ञान कुछ मिला नहीं, संस्कार पाये नहीं,चोरी –चकारी
है,कोई उपाय नही
पुलिस और अपराध का रिश्ता पुराना है ,
ऐसे ही बनते हैं अपराधी, हमने ये जाना है.
पुलिसिया संरक्षण बस जल्द ही मिल जाता है, देखते
ही देखते इंसान बदल जाता है.
पुलिस भी मस्त है, डंडा घुमाती है,
रौब दिखाती है, जेबें भर लाती है
जिधर अपराध दिखता है, नज़रें फेर लेती है,
हाय –तौबा हुई तो किसी निर्दोष को ही घेर लेती
है.
डर के मारे अब सडकों पर है सुनसान
किंतु फिर भी मेरा भारत है महान
बेखौफ हो ही जाते हैं अपराधी ये हाल है
कानून से डरता हौ कौन, यह बडा सवाल है.
पुलिस होती चुस्त तो अपराध नहीं हो सकता,
खुले आम सडक पर ,बस में बलात्कार नहीं हो सकता
अपराध पल रहा है , शहर में ,गांव में
खुले आम होता है पुलिस की छांव नें
सुरक्षित नहीं हैं हम और हमारी बहू बेटियां,
दुराचारी घूम रहे निडर हो के , नेता सेंक रहे
रोटियां.
पुलिस का डन्डा चलता है ,बस निरीह जनता पर,
मौन जलूस पर, खामोश प्रदर्शनकारियों पर
कान में तेल डाल, आंखों पर पट्टी बान्ध सो रही
है सरकारें
जनता है डरी डरी , कहां जायें,किसे पुकारें.
शर्मसार हो गयी हूं ,नेताओं के रवैये से.
आ गयी है जनता सडक पर इंसाफ मांगने
अब नहीं रुकेगा यह काफिला,
जाग उट्ठा है समाज ,मांग रहा है अपना हक़.
होना चाहिये अब पूरा इंसाफ,
दुराचारियों पर हो अब इतना कहर
मज़बूर हो जाये जान की भीख मांगने पर.
दुबारा कोई बच
भी ना पाये अपराध करने पर
लानत है इन दरिन्दो पर
लानत है इन कारिन्दो पर
रोज़ खो रही नारी यहां अपना सम्मान है
लानत है उन पर जो कह रहे हैं कि
मेरा भारत महान है.
आवश्यकता है अब आत्ममंथन की .
गहन विचार की , सामूहिक सोच की
व्यवस्था में सुधार की या व्यवस्था परिवर्तन की
हर मां के संकल्प लेने की, हर स्कूल में योजना
की
बच्चों को डाक्टर ,इंजीनीयर बनायें या न बनायें,
इंसान ज़रूर बनायें.
ज़रूरत नहीं है कन्या पूजन के दिखावे की , उन्हे
देवी बनाने की
ज़रूरत है तो बस उन्हे उन का हक़ दिलाने की, उन्हे
इंसान समझने की.
इसी में है प्रगति, इसी में है विकास,
यही होना चाहिये सबसे बडा नारा, सबसे प्रथम
उद्देश्य, पूरे समाज का मुख्य ध्येय.
जिस घर में लडकी की इज़्ज़त नहीं होती, प्रगति
नहीं होती, बर्कत नही होती.
आज में हूं शर्मसार, झिंझोडती है मुझे मेरी
आत्मा
रोता है मेरा मन , बार बार , अपने दुख से नहीं
,,किंतु पीड़्ता के दुख से ,
बोझ है मेरे दिल पर, दिमाग पर .आत्मा पर .
पूछती है क्यों है तेरा देश महान ? किस तरह से
है भारत महान ?
- आहत मन
(ज्योत्स्ना गान्धी )
Friday, November 23, 2012
भद्द पिटी अविश्वास प्रस्ताव की: ममता ने कराई छीछालेदर
संसद के
शीतकालीन अधिवेशन के पहले दिन वही हुआ जिसका डर था. तमाम विपक्षी दलों से कोई
सहयोग न मिलने के बावज़ूद अविश्वास प्रस्ताव लाने की ज़िद पकडे तृणमूल कांग्रेस ने
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश
किया और अपनी राजनीति की खुल्लम्खुल्ला
छीछालेदर करवाई.
ममता
बनर्जी को यह बखूबी पता था कि कोई उनकी पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन
नहीं करने वाला है. अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिये न्यूनतम 10 प्रतिशत सांसदों का
समर्थन होना आवश्यक है. निर्धारित संख्या न होने पर प्रस्ताव खुद-ब-खुद गिर
जायेगा. फिर भी मात्र 19 सदस्य होते हुए भी यह अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाया गया ?
इसका उत्तर और कोई तो खैर क्या देगा,ममता खुद भी नहीं दे सकती.
अब ममता
बनर्जी भाजपा तथा वामपंथी दलों को कोसने
में लगीं हैं. प्रशन दाग रहीं है कि ग्यों इन दोनों मुख्य विपक्षी दलों ने उनकी
पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया? इस सादगी पर कौन न मर जाये ए
खुदा !!!
क्या
ममता इतनी भोली हैं कि उन्हे उम्मीद थी कि भाजपा व साम्यवादी दल उनका समर्थन
करेंगे? उन्हे लगभग ऐसी ही उम्मीद उन सारे दलों – बीजे डी, अना द्रमुक, द्रमुक,
समाजवादी पार्टी, बसपा से भी थी ? वाकई
अगर वह इस उम्मीद में जी रहीं थीं तो कहा जा सकता है कि वह इतने वर्ष राजनीति में
रहने के बावज़ूद कुछ भी न सीख सकीं.
यह शीशे
की तरह स्पष्ट था कि सपा (मुलायम सिंह), बसपा (मायावती) व द्रमुक ऊपर से भले ही खुदरा किराना
में विदेशी निवेश का विरोध करते दीखते हों, उनमें इतना माद्दा नहीं है कि वे इसका
विरोध सदन में कर सकें. यदि संप्रग ( यूपीए) को छोड़कर पूरा विपक्ष भी अविश्वास
प्रस्ताव की साथ खडा हो जाता तो भी ये तीन दल प्रस्ताव का समर्थन नहीं करते. अन्न
द्रमुक ने तो विरोध जताया पर ममता के अविश्वास प्रस्ताव पर कभी भी अपने पत्ते नहीं
खोले थे. बच गये वामपंथी और राजग ( एन डी
ए) .
जिस
वामपंथी गठबन्धन को पराकित कर ममता सत्ता में आयीं है,वे ममता का समर्थन भला क्यों
करेंगे ? क्या ममता की राजनीति इतनी
अपरिपक्व है कि सोच कर बैठी थीं कि “ मरता
,क्या न करता” के चलते वामपंथी उनके खेमे में “ आ गिरेंगे” .
फिर
भाजपा और राजग को लेते हैं . यह सत्य है कि राजग की निगाहें ममता पर लगी हैं ( देखा जाये तो ममता के पास और कोई चारा भी नहीं
है) . पर 19 सदस्यों वाली ममता को इतना अहंकार था कि बिना भाजपा की चिरौरी ,अनुनय –विनय
करे उन्होने भाजपा को मज़बूर समझ लिया. भाजपा/
राजग को संख्या बल का पूरा सही आकलन था
,यही सोचकर उन्होने कभी अविश्वास प्रस्ताव
की बात दूर दूर तक नहीं सोची. मात्र नियम 184 के आगे यह सोच गया ही नहीं ,जो सही
भी था.
तृणमूल
कांग्रेस के 19 और (बोनस स्वरूप मिले ) बीजू जद के 3 मिलाकर 22 सदस्यों का समर्थन
मिल पाया प्रस्ताव को.
इसे गिरना ही था. इस प्रस्ताव का तो वही हश्र
हुआ जो अपेक्षित था.
प्रस्ताव
की तो भद्द पिटनी थी सो पिटी. हां ममता की राजनीति की खूब छीछालेदर हो गयी. राष्ट्रपति
चुनाव में भी यही हुआ था .यह ममता की दूसरी भयंकर भूल थी. साबित हो गया कि ममता ने कच्ची गोलियां ही खेली हैं
************************************
लेबल:
BJP,
Mamata,
No Confidence Motion,
Parliament,
UPA,
अविश्वास प्रस्ताव,
ममता बनर्जी
Sunday, September 30, 2012
ग़णेशोत्सव पर कवि सम्मेलन सम्पन्न
प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी गणेशोत्सव के दौरान राजधानी
दिल्ली के द्वारका उपनगर में कवि सम्मेलन आयोजित किया गया.
महाराष्ट्र मित्र मंडल के तत्वावधान में 20 सितम्बर को आयोजित इस कवि
सम्मेलन का सफल संचालन लब्ध्प्रतिष्ठ कवियित्री डा. कीर्ति काले ने किया. क़वि
सम्मेलन के मुख्य अतिथि पूर्व सी बी आई निदेशक श्री जोगिन्दर सिंह थे व विशिष्ट
अतिथि विधायक करण सिंह तंवर थे.
कवि सम्मेलन का प्रारम्भ कीर्ति काले की सरस्वती वन्दना के
साथ हुआ. इसके बाद ओज के कवि रमेश गंगेले अनंत जी ने वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था पर
चुटीले काव्यात्मक प्रहार किये.उन्होने संसद ठप्प होने पर प्रश्न उठाते हुए नेताओं
की भी खबर ली. तदुपरांत डा.अरविन्द चतुर्वेदी ने अपनी हास्य गज़ल के साथ ताज़ा
रूमानी गज़लों के सस्वर पाठ से श्रोताओं की वाह वाही लूटी.
अलवर से पधारे ब्रज भाषा के सशक्त हस्ताक्षर डा. रमेश
बांसुरी ने अपनी ब्रज भाषा के छंदों के
साथ साथ अपनी प्रसिद्ध रचना “सोने की होती तो का करती ,अभिमान करै देखो बांस की
जाई” सुनाकर उपस्थित समुदाय का दिल जीत लिया.
हास्य-व्यंग्य के प्रसिद्ध
कवि भोपाल से पधारे उमेश उपध्याय जी ने हास्य रचनाओं के साथ अपनी प्रतिनिधि रचना “
शास्त्रीय संगीत सम्मेलन उर्फ बाजू-बन्ध खुल खुल जाय” प्रस्तुत की.
इसके बाद कवि सम्मेलन में समां बान्धने हेतु डा. कीर्ति
काले ने जिम्मेदारी सम्भाली तथा मधुर गीतों की बौछार से आमंत्रित जनता को रसाविभोर
कर दिया. उनकी रचनायें –‘ ऐसा सम्बन्ध जिया मैने,जिसमें कोई अनुबन्ध नहीं” तथा ‘ फिर हृदय के एक कोने से कोई कुछ बोल जाता है” बहुत
सराही गयी.
अंत में जयपुर से आये वरिष्ठ कवि सुरेन्द्र दुबे ने एक के
बाद एक हास्य व्यंग्य की रचनाओं से मध्य रात्रि तक श्रोताओं को बान्धे रखा.
*************************
Friday, May 25, 2012
महंगौ है गऔ तेल
फिर
तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो अब नांय बैठौंगो , कार में अब नांय
बैठौंगो फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय
बैठौंगौ.
·
तेल कौ पैसा मोपे नांय, अब हमें कौउ पूछत नांय,
कार अब हमें सुहावत नांय देख देख कें कुढ़ों जाय
में कैंसे बैठौंगो ?
·फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो
·
संग मेरे ठाड़ी गूजरिया, पहन के धानी चूनरिया, के पिक्चर ले चल सांवरिया
·पैदल कैंसे जांऊ मैं पिक्चर
घर ई बैठौंगो, फिर
तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो
·
चीख रये सब टीवी अखबार, बढ़ गयी महंगाई दस बार, जे गूंगी बेहरी है सरकार जनता बिल्कुल्ल है लाचार, देश में मच गऔ हाहाकार दफ्तर
मेरो दूर मैं, रस्ता कैसे पाटौंगौ ?
·फिर तें महंगौ है गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगो
·
कि नेता मज़े करें दिन रात , विन्हे महंगाई नांय सतात, कीमतें फिर फिर हैं बढ़ जात, अबकी बारी सोच लयौ है वोट ना डारोंगौ
फिर तें महंगौ है गऔ
तेल, कार में अब नांय बैठौंगो अब नांय बैठौंगो,कार में अब नांय बैठौंगो फिर तें महंगौ है
गऔ तेल, कार में अब नांय बैठौंगौ.
लेबल:
Hike,
PricesPETROL,
UPA,
पेट्रोल�,
महंगाई
Sunday, May 13, 2012
आइये मां को याद करें
मातृ दिवस यानी अंग्रेज़ी के Mothers day पर आज अपने ब्लोग पर पूर्व प्रकाशित रचना "मां" प्रस्तुत कर रहा हूं. ,जो वर्षों पहले मेरे संग्रह " चीखता है मन " में प्रकाशित हुई थी. सभी माओं व उनकी संतानों के अमर सम्बन्ध को समर्पित.
अपने आगोशोँ मे लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ
गर्मी हो तो ठंडक देती, जाडोँ मेँ गर्माती माँ
हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती
घंटोँ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ
अपने सुख दुख मेँ चुप रहती शिकन न माथे पर लाती
अपना आंचल गीला करके ,हमको रहे हंसाती माँ
क्या दुनिया, भगवान कौन है, शब्द और अक्षर है क्या
अपना ज्ञान हमेँ दे देती ,बोली हमे सिखाती माँ
पहले चलना घुट्ने घुट्ने और खड़े हो जाना फिर
बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठलाती माँ
उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर,
खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां
जब होती है दूर हृदय से प्यार बरसता रहता है
उसकी याद बहुत आती है, आंखे नम कर जाती मां
–अरविन्द चतुर्वेदी
प्रस्तुतकर्ता डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi पर 2:10:00 AM
पुनश्च: दो वर्षों पूर्व जब यह रचना मैने अपने ब्लोग पर प्रस्तुत की थी तो तीन प्रतिक्रियायें भी प्राप्त हुई थीं. हूबहू प्रस्तुत हैं :
3 टिप्पणियाँ:
Udan Tashtari said... बहुत आभार अरविन्द भाई इस रचना को प्रस्तुत करने का. माँ के लिए तो जितना भी हम आप लिखें, कम ही होगा. नमन! January 31, 2010 4:38 AM
संगीता पुरी said...
बहुत सुंदर रचना है .. मां पर जितना कहा जाए कम ही होगा !! January 31, 2010 5:35 AM
निर्मला कपिला said...
उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर, खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां. माँ आगे निशब्द हो जाती हूँ उसका आकार इतना बडा है कि सभी शब्द उसमे समा जाते हैं सुन्दर रचना धन्यवाद्
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