अपने हाथों का खिलौना न बनाना मुझको ,
हो सके तो किसी मूरत सा सजाना मुझको.
मैं जो मिट्टी हूं तो एक बीज़ मिला दे मुझमें,
में हूं पत्थर तो अहिल्या सा बनाना मुझको.
बून्द हूं तो किसी दरिया में समा जाने दो ,
मैं जो दरिया हूं तो सागर में मिलाना मुझको.
हूं जो नफरत तो मुझे ,क़त्ल करके दफनाना,
मैं मोहब्बत हूं तो सीने से लगाना मुझको.
मैं जो आकाश दिखूं,ओढना चादर की तरह ,
दिखूं धरती तो, बिछौने सा बिछाना मुझको.
जो हूं कांटा तो मुझे दिल में छुपा कर रखना,
फूल हूं तो किसी मन्दिर में चढाना मुझको.
मैं हूं दोहा, तो किसी पाठ् सा पढ जाना मुझे,
मैं गज़ल हूं तो ज़रा झूम के गाना मुझको.
3 comments:
मैं हूं दोहा, तो किसी पाठ् सा पढ जाना मुझे,
मैं गज़ल हूं तो ज़रा झूम के गाना मुझको.
---गा लिया झूम के जनाब!! बढ़िया.
बढ़िया ....
अरविन्द चतुर्वेदी Ji
Bahut hi sunder rachna hae aap ki...
हूं जो नफरत तो मुझे ,क़त्ल करके दफनाना,
मैं मोहब्बत हूं तो सीने से लगाना मुझको
बून्द हूं तो किसी दरिया में समा जाने दो ,
मैं जो दरिया हूं तो सागर में मिलाना मुझको.
मैं हूं दोहा, तो किसी पाठ् सा पढ जाना मुझे,
मैं गज़ल हूं तो ज़रा झूम के गाना मुझको.
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