Sunday, January 31, 2010

एक अहसास का नाम है मां

भाई समीरलाल (उड़न तश्तरी)ने मां को याद किया तो प्रतिक्रिया स्वरूप मुझे मेरी वह " मां" शीर्षक रचना याद आ गयी ,जो वर्षों पहले मेरे संग्रह " चीखता है मन " में प्रकाशित हुई थी. भाई समीरलाल जी को समर्पित रचना पेश है:

अपने आगोशोँ मे लेकर मीठी नीँद सुलाती माँ
गर्मी हो तो ठंडक देती, जाडोँ मेँ गर्माती माँ

हम जागेँ तो हमेँ देखकर अपनी नीँद भूल जाती
घंटोँ,पहरोँ जाग जाग कर लोरी हमेँ सुनाती माँ

अपने सुख दुख मेँ चुप रहती शिकन न माथे पर लाती
अपना आंचल गीला करके ,हमको रहे हंसाती माँ

क्या दुनिया, भगवान कौन है, शब्द और अक्षर है क्या
अपना ज्ञान हमेँ दे देती ,बोली हमे सिखाती माँ

पहले चलना घुट्ने घुट्ने और खड़े हो जाना फिर
बच्चे जब ऊंचाई छूते बच्चोँ पर इठलाती माँ

उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर,
खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां.


जब होती है दूर हृदय से प्यार बरसता रहता है
उसकी याद बहुत आती है, आंखे नम कर जाती मां

–अरविन्द चतुर्वेदी

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार अरविन्द भाई इस रचना को प्रस्तुत करने का. माँ के लिए तो जितना भी हम आप लिखें, कम ही होगा.

नमन!

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना है .. मां पर जितना कहा जाए कम ही होगा !!

निर्मला कपिला said...

उसका तो सर्वस्व निछावर है,सब अपने बच्चों पर,
खुद रूखा सूखा खा लेती है, भर पेट खिलाती मां.
माँ आगे निशब्द हो जाती हूँ उसका आकार इतना बडा है कि सभी शब्द उसमे समा जाते हैं सुन्दर रचना धन्यवाद्