Saturday, November 21, 2009

ऐसे काले सर्पों का सन्यास ज़रूरी है

दीवारों से टकराने का अभ्यास ज़रूरी है
पत्थर को पिघलाने का प्रयास ज़रूरी है.


धार नदी की मुड़ सकती है, बस दो हाथों से
अपने हाथों पर ऐसा विश्वास ज़रूरी है.


तृप्त नहीं होती जो मंज़िल को पा जाने तक़
मंज़िल के हर राही को वह प्यास ज़रूरी है.


बीच सफर से जो मुड़ जाये वापस जाने को
ऐसे सारे लोगों का उपहास ज़रूरी है.


मार कुंडली जो बैठे सम्पूर्ण व्यवस्था पर
ऐसे काले सर्पों का सन्यास ज़रूरी है.


हारे थके बदन में फिर से जोश जगाने को,
थोड़े आंसू, कुछ कुंठा ,संत्रास ज़रूरी है.


बहुत अकेले से लगते हैं ये टेढ़े रस्ते ,
एक जीवन साथी का होना पास ज़रूरी है.


सभी गलों से इसके ही स्वर गूंजेंगे कल से
गज़ल लिखे जाने तक़ ये अहसास ज़रूरी है.

Wednesday, November 18, 2009

संतान के लिये अब ओनलाइन पूजा , मात्र 3100 रुपयों में.

गये वे ज़माने जब पुरोहित,पंडित ,पुजारी अपने अपने यजमानों को ढूंढने के लिये या तो मन्दिर मे जाकर ठीया जमाते थे या अपने पुश्तैनी यजमानों के घर के चक्कर लगाते थे. अब ज़माना हाई फाई हो गया है तो पंडित-पुरोहित भी कैसे पीछे रहते.

अब तो टेलीविज़न चैनल घर बैठे ईश्वर के दर्शन कराने को तैयार हैं और आपके नाम के संकल्प के माध्यम से ओनलाइन पूजा- थाली भी अर्पित कर रहे हैं . अब हवन करते हाथ जलाने की आवश्यकता नहीं और न ही चिंता कि आम की लकडी कहां से लायेंगे और पुरोहित कहां ढूंढेंगे. सब कुछ ओनलाइन उपलब्ध है.

मन्दिरों ,विशेषकर बडे मन्दिरों ,की अपनी अपनी वेबसाइट हैं ,जहां न केवल आप दर्शन कर सकते हैं बल्कि चढ़ावा भी आपके नाम से पंजीकृत हो कर लगाया जा सकता है.

कल 19 नवम्बर को एक विशेष पूजा का अवसर है, मुझे एक ई-मेल से जानकारी प्राप्त हुई. ये है संतान-गोपाल् पूजा , जो नि:संतान दम्पत्तियों को संतान दिलाने हेतु की जा रही है. यही नहीं बल्कि मेल में दावा है कि यदि संतानोत्पत्ति में किसी प्रकार की बाधा है तो दूर हो जायेगी तथा इस पूजा के फलस्वरूप स्वस्थ व बुद्धिमान् संतान जन्म लेगी.

इस विज्ञापन नुमा मेल में कहा गया है इस पूजा में पहले पुरुष सूक्त का पाठ होता है फिर भगवान विष्णु की पूजा गोपाल रूप में की जाती है तथा संतान गोपाल मूल मंत्र का जाप होता है.

फीस है मात्र 67.40 अमरीकी डालर अथवा 3100 रुपये.

( इस जानकारी का उद्देश्य इस पूजा का विज्ञापन नहीं है ,परंतु हिन्दू रीति-रिवाज़ों,पूजा-पाठ में आये तकनीकी बदलावों की सूचना भर है. इसे अन्यथा ना लें. और एक स्पष्टीकरण :मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है यदि आपने ओनलाइन पूजा का सहारा लिया तो. )

Tuesday, November 17, 2009

राष्ट्रवादी मराठी या मराठी राष्ट्रवादी ?

आजकल समाचार पढ़ना या सुनना बोझीला सा लगने लगा है. समाचार जानकारी कम देते हैं,विचलित अधिक करते है . यह सिलसिला काफी लम्बे अर्से से ज़ारी है. राजनीतिक समाचार इतना क्षोभ भर देते हैं कि उससे बाहर आना मुश्किल हो जाता है. राज ठाकरे ,मनसे, शिवसेना आदि का अर्थ ज़हर बुझी खबर हो गया है.

सचिन तेन्दुलकर के क्रिकेट जीवन के दो दशक पूरे करने पर मीडिया की चर्चा अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि बाला साहेब अपने आप को 'सुपर मराठा' साबित करने के चक्कर में राज ठाकरे से भी आगे निकल गये. बेचारे सचिन तो बस अपने सीधे-साधे उद्गार व्यक्त किये थे कि वह भारतीय पहले हैं और महाराष्ट्रियन बाद में. और बस तैश में आ गये बाला साहेब ठाकरे.

क्या एक् महाराष्ट्रियन भारतीय नहीं कहलायेगा? पहले देश है या प्रदेश ? किस सीमा तक जायेंगे ये छिछोरे राजनीतिक नौटंकीबाज़?

वक़्त आ गया है कि राष्ट्रवादी तत्वों को जाग जाना चाहिये. विशेषकर महाराष्ट्रियन राष्ट्रवादियों को. अब चुप बैठने का वक़्त नहीं है. उठो और बता दो कि हम शहर ,प्रांत/प्रदेश ,भाषा से ऊपर हैं .देश पहले है.