Tuesday, April 15, 2008

क़ैसे हुआ प्यार अन्धा ? क़्यों होता है प्यार पागल ? अजब कहानी सुनी पहली बार्

जब भी प्यार का जिक्र आता है, यह ज़ुमला बार बार दोहराया जाता है कि 'प्यार अंधा होता है' (Love is Blind). साथ ही यह भी कहा जाता है कि प्यार में प्रेमी पागल हो जाते हैं. (Love is always accompanied by madness)
इन परिभाषाओं को सिद्ध करने वाली ,एक नहीं अनेक जीवंत घटनायें हमें आये दिन सुनने को मिल जाती है. किंतु ऐसा क्यों होता है? मैने कभी इस को ढूंढने का प्रयास नहीं किया और न ही यह कहीं पढने में आया कि 'प्यार क्यों अंधा होता है' या प्यार में प्रेमी क्यों पागल हो जाते हैं.मनोविज्ञान के विद्यार्थियों को इसका कारण ज़रूर मालूम होगा. परंतु मैने इस का एक विचित्र वर्णन पढा तो मैने सोचा क्यों न इसे औरों को भी बताया जाये.

मेरे एक मित्र हैं डा. क़रण भाटिया.बिजनौर में एक इंजीनीयरिंग कालेज के निदेशक हैं. आई आई टी बम्बई में होस्टल में हम साथ थे. ( शायद पहले भी किसी पोस्ट में जिक्र आया है)वे अक्सर रोचक सामग्री ई-मेल से भेजते रहते हैं.आज एक मेल में उन्होने 'another beutiful story' शीर्षक से जो सामग्री भेजी,मुझे बहुत भाई और हिन्दी में अनुदित करके मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं.( मैने इसमें थोडा संशोधन अपनी तरफ से भी कर दिया है)

बात तब की है जब ईश्वर ने मनुष्य की रचना नहीं की थी. हां रचने के लिये सारी सामग्री जुटा ली थी. इस सामग्री में बहुत से मानवीय गुण भी थे, जो मनुष्य के शरीर बनाने के बाद उसमें डाले जाने थे.
इन गुणों में घृणा, सुन्दरता, कोमलता, लचीलापन, प्यार, सच, झूठ, मक्कारी, बे ईमानी ,शर्मो-हया, पागलपन, अकुलाहट, धोखा, आदि आदि सारे गुण शामिल थे,जो ईश्वर को भिन्न भिन्न शरीरों में अलग अनुपात में डालने थे.ईश्वर ने उन सबको एक खुले स्थान पर छोड़ दिया और कहा जाओ कुछ देर खेलो.
सारे गुणों ने मिल्कर छुपन-छुपाई (hide & seek) खेलने का फैसला लिया. सभी गुणों को छुपना था और पागलपन् (madness) को ढूंढने का जिम्मा दिया गया.

सच ने कहा वह पेड के पीछे छिपेगा. झूठ ने कहा कि वह चट्टान के पीछे छिपेगा ,किंतु छिपा जाकर तालाब में .घृणा छिपी जाकर झाडी में. इस तरह सभी गुण जाकर छुप गये तो पागलपन उन्हे ढूंढने निकला.

सबसे पहले ज़ाहिर है सच पकडा गया,क्यों कि वह सबके सामने था. प्यार अकेला ऐसा गुण था जो कहीं छुप ही नही पा रहा था. जब कुछ समझ में नहीं आया तो प्यार गुलाब के फूल में जाकर छुप गया. पागलपन ने बडी जुगत लगायी और धीरे धीरे सबको पकड लिया. प्यार तो फूल में छिपा था अत: पकड में नहीं आया.

फिर 'चुगली' ने जाकर चुपचाप पागलपन को बता दिया कि प्यार तो गुलाब के फूल में छिपा है. बस फिर क्या था. पागलपन ने इधर उधर अभिनय करके गुलाब की क्यारी पर छलांग लगा दी. गुलाब के सारे के सारे कांटे प्यार के बदन मे गढ गये ,यहां तक कि कांटे प्यार की आखों में भी चुभ गये और प्यार अन्धा हो गया.

खूब बावेला मचा. कोहराम सुनकर ईश्वर आया तो देखा कि प्यार तो अन्धा हो गया है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा है. जब सारी घटना की जानकारी ईश्वर को हुई तो उसने पागलपन को आदेश दिया कि चूंकि तुम्हारे कारण से प्यार अंधा हुआ है अत: इसकी जिम्मेदारी अब तुम्हारी ही है. अब तुम इसे कभी अकेला नहीं छोडोगे, और हमेशा इसके साथ रहोगे.


तब से प्यार के साथ साथ पागल पन भी रहता है.अन्धा तो प्यार हो ही गया था.

4 comments:

Manas Path said...

वाह वाह क्या कहानी है.

Anonymous said...

pyar ko itni khoobsurti se explain karne wali kahani...dil ko chhoo gai. bahut badhiya.

रवीन्द्र प्रभात said...

बहुत दिनों के बाद आज आपके ब्लॉग पर आया , अच्छा लगा ...इस क्रम को बनाए रखें !

Batangad said...

गजब तुकताल मिलाया है आपने।