मैं उन सभी तिब्बतियों से एक सवाल पूछना चाहता हूं जो चीन में आयोजित होने वाले ओलम्पिक खेलो का विरोध कर रह्वे है. आखिर उन्हें अपने एक राजनैतिक प्रश्न को लेकर ओलम्पिक खेलों के प्रति विरोध करने का क्या अधिकार है?
तिब्बत में मानवाधिकार का प्रश्न एक अलग प्रश्न है . ओलम्पिक खेलों का आयोजन इससे बिलकुल अलग देखा जाना चाहिये.
ओलम्पिक खेलों का आयोजन का एक पवित्र लक्ष्य है,जिसका राजनीति से कोई सम्बन्ध नही है.यह एक संयोग हो सकता है कि इस वर्ष ओलम्पिक खेलों का आयोजन चीन में हो रहा है . ओलम्पिक खेलों पर किसी एक देश का एकाधिकार नही है. ये खेल समूचे विश्व के खेल हैं. इनका आयोजन एक पवित्र लक्ष्य को लेकर ही होता आया है.
चीन का शासक कौन है ? वहां क्या शासन प्रणाली है?
चीन के शासकों के सम्बन्ध वहां की प्रजा से कैसे हैं और कैसे होने चाहिये. चीन के एक प्रांत तिब्बत में क्या राजनैतिक समस्या है ? उसका क्या हल है? आदि आदि ... अनेकों प्रश्न ऐसे हैं जिन पर अलग अलग लोगों की राय अलग भी हो सकती है?
परंतु इन सभी प्रश्नों को ओलम्पिक के आयोजन से कदापि नही जोडा जाना चाहिये.
ओलम्पिक की मशाल की अपनी एक महत्ता है. राजनैतिक प्रश्नों को बीच में ला कर ओलम्पिक की भावना से खिल्वाड किया जा रहा है, यह गलत है. इसकी निन्दा व भर्त्सना की जानी चाहिये.
मैं सभी तिब्बतियों से अपील करता हूं कि वह ओलम्पिक मशाल के विरुद्ध अपना आन्दोलन वापस ले लें.उनके सभी प्रश्न ज़ायज़ हैं, उन पर पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित हो चुका है. उन पर विचार किया जाना चाहिये. चीन सरकार को इसका हल निकालना चाहिये. परंतु ओलम्पिक खेलों में इस प्रश्न को लेकर विघ्न डालना ठीक नहीं .यदि खेलों पर इस विरोध की काली छाया असर डालती है, तो सबसे ज्यादा असर खिलाडियों पर ही पडेगा, जिन्होने पिछले चार वर्ष सिर्फ खेलों की तैयारियों मे ही लगायें हैं.
2 comments:
दुनिया के सामने अपनी बात आप शांतिपूर्ण तरीके से रखेंगे या बिना कोई रणनीति बनाये तो आपकी आवाज शायद सही ढंग से लोग ना सुन सकें इसी बात को तिब्बतियों ने समझा है. उनका वाकई ओलंपिक से कोई विरोध भी नहीं है पर ओलंपिक जैसे अवसर को वे चूकें भी कैसे ?
पहले तो हम इसे सीरियस लेख समझ बैठे. फिर आपके प्रोफाइल पर नजर डाली, अनुभवों को जाना, तब समझ में आया कि व्यंग्य है. अच्छा है.
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