Tuesday, November 20, 2007

लाल झंडे का असली रंग

पूरे विश्व के सम्मुख बेनक़ाब हो गये ये तथाकथित साम्यवादी,. पिछले कुछ हफ्तों में, नन्दीग्राम के निर्दोष नागरिकों ने जो कुछ सहा है, जो भोगा है, जिस दर्द ,पीडा के दौर से वो गुजरे है, शर्मनाक है. पर काश! कम्युनिस्ट पार्टी के नुमाइन्दे ये सब समझ पाते.

कोलकाता में फिल्म समारोह के दौरान शंतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने वाले कलाकारों,रंग्कर्मियों के साथ कोलकाता पुलिस ने जो वर्ताव किया, वह उन सभी लोगों के सर शर्म से झुकाने के लिये काफी है, जो कभी वाम पंथियों को एक प्रतिबद्ध समूह मानकर सम्मन देते थे.
राजनैतिक विरोधियॉ पर हिंसा का नंगा नाच , सरकार का बर्बर रवैया -ऐसा यदि देश के किसी अन्य भाग में हुआ होता, तो कम्युनिस्ट दुनिया को सर पए उठा लेते. लोकतंत्र की दुहाई देते. सर्वहारा / निर्धन /विपन्न लोगों के मानवाधिकार का प्रश्न बनाकर , सरकार को बर्खास्त करने की मांग करते.

निहत्थे गरिबों पर गोलीवर्षा क्यों ? सिर्फ इसलिये कि उन्होने तानाशाही रवैये का विरोध किया था ?

और इतने सब के बावज़ूद सीनाजोरी ?

नन्दीग्राम का जिक्र करें तो काटने दौडते हैं वामपंथी .
पश्चिम बंगाल के सभी नागरिकों की आंखे खुल जानी चाहिये. अगर वे आज चुप रहे ,तो कल उनकी बारी निश्चय ही आयेगी.

नपुंसकों की जमात की तरह चुपचाप खडे रहकर तमाशा देख रही है कांग्रेस.

किसी भी द्रृष्टिकोण से देखे, धारा 356 के तहत, सरकार को बर्खास्त करने का ये फिट मामला है.

परंतु कांगरेस को अभी भी दिक्कत है कि वह गठ बन्धन के सहयोगियों का विरोध नही कर सकती. वाह्! रे बिडम्बना .


-------हे प्रभु जी, बचालो !!!!!

2 comments:

Batangad said...

अरविंदजी
सच्चाई यही है अपने खिलाफ कुछ भी सहन न कर पाना वामपंथ का स्वभाव है। ये खुलकर नंदीग्राम के बाद सामने आ रहा है।

Shastri JC Philip said...

हृस्व, लेकिन सटीक विश्लेषण.

अब सच में सिर्फ प्रभु ही बचा सकते है अरविंद जी -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??