Thursday, October 18, 2007

'एंटर एट योर ओन रिस्क'


उम्दा लकडी के केबिन में प्रवेश के लिये अपार्दर्शी शीशे का दरवाजा.दरवाजे के बीचोबीच लगी एक तख्ती ,जिस पर लिखी हुई रहस्यमयी सी इबारत- " enter at your own risk.Everything is going wrong today".( अर्थात अन्दर आना जोखिम भरा हो सकता है,आज सब कुछ गलत सलत हो रहा है ) देखने वाला एक बार तो चौंक ही जाय. अगर आपने यह तख्ती पढने के बाद भी केबिन में जाने की हिम्मत की तो दरवाजा खोलते ही सामने की दीवार पर एक और तख्ती "come on in, everything else has gone wrong". ( अन्दर आइये, बाकी सब कुछ गडबड है ).

जी हां, यह केबिन था डा. राजेन्द्र कुमार पचौरी का. हैदराबाद स्थित एड्मिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कौलेज औफ इंडिया ( ASCI) में डा. पचौरी senior faculty member थे .शायद 1980 तक. वही आर.के.पचौरी, जिनके नेट्रत्व में चलने वाले अंतरऋअष्ट्रीय संस्थान IPCC को इस वर्ष के नोबल पुरुस्कार के लिये चुना गया है.

1977 में मैं आई आई टी बम्बई में रिसर्च स्कौलर था. Hyderabad के Administrative Staff College of India जैसी प्रसिद्ध संस्था से Project Associate पद हेतु प्रस्ताव आया तो तुरंत तैयार हो गया. मई 1977 में जोइन किया. पहले ही दिन अपने कार्यालय से बाहर निकला तो बगल के केबिन पर निगाह गयी जहां वो तख्ती लगी हुई ठीक जिसका मैने शुरु में जिक्र किया .मैं प्रोजेक्ट एसोसिअट था, वह भी नया नया. हिम्मत नही हुई . बाद में मेरे अन्य सहयोगी भारत भूषण ( जो आगे चल कर Hindustan Times के सम्पादक पद पर भी पहुंचे) ने पचौरी साहब से परिचय कराया. मै Economics Area था, जबकि भारत भूषन Opeartions Management एरिया मे, जिसके प्रमुख थे डा. पचौरी.

फिर तो रोज़ का मिलना . शायद 1980 तक, जब तक डा. पचौरी वहां रहे. फिर अचानक पता लगा कि टाटा समूह ने एक कोष स्थापित करके दिल्ली में नया संस्थान खोला है " टाटा एनर्जी रिसर्च इंस्टिटयूट" ( जो बाद में TERI के नाम से मशहूर हुआ. बाद में शायद टाटा के हाथ खींच लेने के कारण ,TERI का नाम बदलकर The Energy Research Institute हो गया.

1977 से आजतक, डा. पचौरी की वेश भूषा, चाल ढाल में कोई परिवर्तन नहीं. अथक लगन. नितांत स्पष्ट ध्येय, लक्ष्य एकदम साफ. ऊर्जा सम्बन्धी लगभग सभी सरकारी फैसलों की पृष्ठभूमि में डा. पचौरी की सोच व लौबीयिंग. पर्यावरण से जुडे हर मुदे पर सबसे पहली राय डा. पचौरी की ही होती आयी है,पिछले तीस वर्षो में. मैने अपना पहला शोध पत्र " the substitution of energy and energy inputs in manufacturing industries" भी डा. पचौरी से प्रेरित होकर ही लिखा था 1978 में. हालांकि बाद में मैं commercial research की तरफ मुड गया और एक advertising agency में market research division में कार्य सम्हाल लिया.

डा. पचौरी ने अपनी लगन, मेहनत से विश्व एवं भारत मे नाम कमाया है. ईश्वर करें वह और सफलता अर्जित करते रहें तथा देश का नाम रोशन करें.

3 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा आपका संस्मरण पढ़ना और डॉ पचौरी के विषय में जानकर.

अनिल रघुराज said...

अतीत का हर पन्ना लौटकर पढ़ने पर कुछ न कुछ नायाब बयां कर जाता है। पचौरी जी के बारे में इतना आत्मीय विवरण पढ़कर काफी लाभान्वित हुआ। शुक्रिया...

राजीव जैन said...

बहुत ही खूबसूरत

ऐसे आदमी के बारे में पढने का मौका मिला जिसके बारे में मीडिया ने कुछ खास नहीं छापा। यूं भी साइंसदानों को जगह ही कहां मिलती है, समचारों में सारा स्‍पेस तो ये कमबख्‍त पॉलीटिशियन खा जाते हैं।