Sunday, June 3, 2007

सूरज सबको बांट्ता टुकड़ा टुकड़ा धूप्

बादल बून्दें बांटता ,चन्दा बांटै रूप
सूरज सबको बांट्ता टुकड़ा टुकड़ा धूप्

सूरज तो जासूस है, सबकी रखता खोज
हर खिड़की से झांक कर खबरें लाता रोज

ठंडी ठंडी चान्दनी ,चान्दी चान्दी रेत
लद गये दिन आसाढ़ के ,सावन के संकेत

नंगे से पर्वत दिखे, हरयाली ना दूब
लिपट लिपट कर पेड़ से रोया बादल खूब

चन्द्रग्रहण की सांझ को राहु-केतु स्वच्छन्द्
चन्दा को आने लगी राजनीति की गन्ध्

पूनम सी कविता दिखै, सभी करेँ सन्देह
बस हौले से छू गया ,चन्दा उसकी देह

आगे आगे चान्दनी, पीछे पीछे चान्द
सीधे आंगन तक घुसे सभी छतों को फान्द

हाथ उठाकर रेंग कर बच्चा करता मांग
फुदके फुदके चान्दनी, हाथ ना आवै चान्द

पन्द्रह दिन आज़ाद सौ, पन्द्रह दिन की जेल
चन्दा बादल से करै लुका छुपी कौ खेल

बदरी के पीछे दिखे, सूरज का परकाश
सात रंग र्की चादरें बिछी दिखें आकाश्

खड़ा बिजूका खेत मेँ,रहता सदा उदास
बाहें फैला कर खड़ा ,कोइ न आवे पास

पत्ता पत्ता जोड़् कै कुनबा लिया सजाय
जब पतझड़ आ जाय तो ठूंठ बचा रह्जाय्

रस्ता सबै बताय के ,पत्थर दर्द सुनाय
राही मंज़िल नापते, पत्थर हिल ना पाय


आशा है आपको ये दोहे पसन्द आयेंगे.
सादर,
-अरविन्द चतुर्वेदी

10 comments:

Dr Prabhat Tandon said...

मन को छूने वाले , विशेष कर ठंडी ठंडी चान्दनी ,चान्दी चान्दी रेत
लद गये दिन आसाढ़ के ,सावन के संकेत

इतनी गर्मी मे लगा की सावन बस द्वार पर खडा है.

Satyendra Prasad Srivastava said...

अच्छा गीत है। बधाई हो

परमजीत सिहँ बाली said...

दोहो मे प्राकृति का वर्णन बहुत बढिया ढंग से किया है। बहुत सुन्दर दोहे लिखे हैं\बधाई।

Monika (Manya) said...

बहुत खूब्सुरत दोहे हैं..
पूनम सी कविता दिखै, सभी करेँ सन्देह
बस हौले से छू गया ,चन्दा उसकी देह
..सौंदर्य परीपूर्ण.

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

प्रभात जी,सत्येन्द्र जी,बाली जी एवं मान्या जी,
आप सभी लोगों की टिप्पणियों के लिये धन्यवाद.
( तारीफ सुनना भी अच्छा लगता है).
शुभकामनाओं सहित
अरविन्द चतुर्वेदी

Anonymous said...

Good job, I never knew that u are such a good poet.

Alok Mittal

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

आलोक जी,
बस जो भी जी मेँ आता है, कागज पर उतार लेता हूँ. प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद.
अरविन्द चतुर्वेदी

Anonymous said...

I was doubtful but somehow there was a belief that apart from Management teaching there would be another side of you! IITians excel in all fields and you have done exactly that. I am touched by your poems and more so your thoughts. I will meet you sometime to share more of this.

Anurag Saxena, IGNOU

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

Anuraag jee,
Thanks for your comments.
Lets meet soon.
Arvind chaturvedi

Udan Tashtari said...

वाह, बढ़िया रहे.